मध्य प्रदेश

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विकास का नाकाम मॉडल
Posted on 19 Jul, 2016 01:51 PM

दसवाँ राष्‍ट्रीय मीडिया विमर्श


स्थान : कान्‍हा, मध्य प्रदेश
तारीख : 13-14-15 अगस्‍त, 2016


“लोगों के बीच जाइए। उनके साथ रहिए। उनसे सीखिए। उन्‍हें स्‍नेह दीजिए।
शुरू करें वहाँ से जो वे जानते हैं। निर्माण उन चीजों से करें जो उनके पास है।
लेकिन नेतृत्‍व ऐसा हो कि जब काम पूरा हो तो लोग कहें, ‘ये हमने बनाया है।”


हमारे बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो हमें सही रास्‍ता दिखा रहे हैं। जैसे जैसलमेर के रामगढ़ को पानीदार बनाने का समाज केन्द्रित मॉडल। वहाँ इस सूखे और 51 डिग्री तापमान में भी उनके गाँव में पशु-पक्षियों के लिये भी पानी है। इसी तरह उत्‍तराखण्ड में हुई पहल ने दिखा दिया है कि अगर जंगलों को सहेजने का जिम्‍मा स्‍थानीय समाज ले ले तो न जंगलों में आग लगेगी और न कहीं पानी की कमी होगी। ये लोग असल में विकास के नाम पर चल रही उस भेड़चाल को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें एक छायादार, घना पेड़, बहती नदी और लहलहाते खेत का कोई मोल नहीं, क्‍योंकि ‘बाजारवादी विकासोन्‍मुखी सिद्धान्त’ में इनका दोहन की विकास दर तय करता है। विकास और नियोजन को लेकर पाँचवीं और छठी शताब्‍दी के चीनी दार्शनिक लाओ त्‍सू की यह परिकल्‍पना 20वीं शताब्‍दी में भारत सहित दुनिया के किसी भी देश के विकास मॉडल में नजर नहीं आती। जिन परिणामों की प्राप्‍ति के लिये विकास के ये मॉडल बनाए गए, वे फिलहाल अपेक्षित परिणाम देने में नाकाम हैं। इसके दर्जनों उदाहरण हमारे सामने हैं।

एक समय अमेरिका के चार बड़े निवेश बैंकों में शुमार रहे लेहमैन ब्रदर्स के 2008 में दिवालिया होने के बाद अब बारी भारतीय स्‍टेट बैंक और उसके अधीनस्‍थ बैंकों की है, जिन पर 5 लाख करोड़ रुपए से ज्‍यादा का डूबत खाते का ऋण है। दुनिया में भारत अकेला देश नहीं, जिसका विकास मॉडल फेल हुआ है। ग्रीस का दिवालिया हो जाना और भयंकर मंदी में उलझे यूरोपीय संघ के कुछ और देशों, चीन, ब्राजील, तुर्की और मलेशिया में भी विकास के भूमण्डलीकृत मॉडल की नाकामी साफ झलकने लगी है।
जल समाधि का मन बनाकर गया था : किशोर कोडवानी
Posted on 18 Jul, 2016 04:32 PM


सवाल अकेले पीपल्याहाना तालाब का भी नहीं है, मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी माने जाने वाले इन्दौर शहर के हवा और पानी पर ही संकट खड़ा हो गया है। यही हालात रहे तो 2021 के बाद शहर में साफ हवा और शुद्ध पानी के लिये भी लोग तरसने लगेंगे। हालात यहाँ तक बिगड़ सकते हैं कि इन्दौर के लोगों को हवा और पानी के लिये पलायन करना पड़े।

यह दावा प्रकृति के जानकार विशेषज्ञ कर रहे हैं। हम किस तरह के विकास की बातें कर रहे हैं, यह कौन सा विकास है। हम किस दिशा में जा रहे हैं। क्या हम सामूहिक आत्महत्याओं की दिशा में बढ़ रहे हैं।

पलायन की त्रासदी में पिसता बचपन
Posted on 18 Jul, 2016 04:29 PM
‘एड एट एक्शन’ नाम की संस्था ने भोपाल में पलायन कर शहरों में काम करने आये मजदूरों के बच्चोंके साथ काम शुरू किया
बुन्देलखण्ड को नष्ट करने की साजिश हो रही हैः परिहार
Posted on 18 Jul, 2016 01:19 PM
प्राकृतिक आपदा और सरकारी तंत्र से बेहाल बुन्देलखण्ड सालों से सूखे की मार झेल रहा है। सूखे के चलते खेत-खलिहान चौपट हो गए हैं। लोगों को दो जून की रोटी तक नसीब नहीं हो पा रही है। इस स्थिति में किसान शहर की तरफ पलायन कर रहे हैं। पलायन और बुन्देलखण्ड के किसानों से जुड़े सवालों पर भारतीय किसान यूनियन (भानु) के बुन्देलखण्ड अध्यक्ष शिव नारायण सिंह परिहार से सोपानSTEP के लिये रमेश ठाकुर ने बातचीत
तिरंगा लेकर उमड़े तालाब बचाने लोग
Posted on 18 Jul, 2016 10:12 AM
जन-पंचायत में जनता की बात को जल सत्याग्रह करने वाले 61 वर्षीय
नदियों की हालत आईसीयू में भर्ती माँ जैसी, इलाज करना बेहद जरूरी
Posted on 17 Jul, 2016 04:51 PM

‘नदी के पुनर्जीवन और छत्तीसगढ़ को दुष्काल मुक्त करने’ के विषय पर रोटरी क्लब में आयोजित जल

जनता की जीत, बचेगा पीपल्याहाना तालाब
Posted on 16 Jul, 2016 04:15 PM
शनिवार की दोपहर पीपल्याहाना तालाब का नीला पानी हवा के झोंकों
बावड़ियों का शहर
Posted on 16 Jul, 2016 12:55 PM


इन्दौर का परम्परागत जल संरक्षण लोक रुचि का विषय रहा है। कभी यहाँ बीच शहर से दो सुन्दर नदियाँ बहती थीं। यह शहर चारों ओर से तालाबों से घिरा था। यहाँ बावड़ियों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि इसे बावड़ियों का शहर कहा जाता था। यहाँ घर-घर में कुण्डियाँ भी थीं। ऐसे शहर में परम्परागत जल प्रबन्धन की एक झलक।

.मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी और देश में ‘मिनी बाॅम्बे’ के रूप में ख्यात शहर इंदौर की तुलना- यहाँ के बाशिंदे किसी समय खूबसूरत शहर पेरिस से किया करते थे।

वजह थी..... जिस तरह पेरिस के बीचों-बीच शहर से नदी बहती है, उसी तरह यहाँ भी शहर के बीच में ‘नदियाँ’ निकलती थीं...!

......शहर के आस-पास और बीच में भी तालाब आबाद रहते रहे हैं।

.....कल्पना कीजिए- इस शहर के बीच में स्वच्छ पानी से भरी नालियाँ हुआ करती थीं.... जो लालबाग, कागदीपुरा व राजवाड़ा तक आती थीं......! जिसे पानी चाहिए- वह घर के पास से बह रही नाली से ले लें.....!!

baoli
पीपल्याहाना तालाब पर काम बन्द लेकिन जल सत्याग्रह जारी
Posted on 15 Jul, 2016 03:59 PM
करीब सौ साल पहले होलकर राजाओं ने पीपल्याहाना गाँव के नजदीक बड़
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