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एक जमाना था जब पानी की गुणवत्ता के चलते यहां पैदा होने वाले गन्ने, गाजर और प्याज की दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी में सर्वाधिक मांग होती थी। मंडी के व्यापारी गांव में आकर खेत में खड़ी फसल का सौदा कर लेते थे। उधर, गांव की थली से भरत के लिए उठाए जा रहे रेत से थली में खेत 50-50 फुट के गड्ढे हो गए हैं। परिणामत: थली में पानी का चोआ एकदम ऊपर आ गया है। गांव मार में है, पानी की कमी गांव को मार रही है तो थली में रेत उठाने से निकलने वाला पानी वहां खेती को चौपट कर रहा है।
अप्रैल 2014 में पूज्य पिताजी श्री गणपत राय भारद्वाज का निधन हुआ तो तकरीबन डेढ़ दशक बाद अपने घर, गांव में लगातार 13 दिन रहने का अवसर मिला। पिछले एक दशक में गांव जब भी गया तो एक- दो दिन रुककर वापस आ जाता था। गांव काफी बदल गया है, इस बात का अहसास इतने लंबे समय तक गांव में रहने के बाद हुआ। खुद पर थोड़ी शर्म भी आई कि गांव, गंवई पर नियमित लेखन करता हूं, और बहुत वाचालता से जगह-जगह गांव के मुद्दों पर बात करता हूं, लेकिन अपने ही गांव के सवालों को नहीं जानता।