बड़खल झील में अब पानी नहीं, हैं घास व झाड़ियां

झील के सूखने के बाद पर्यटकों का भी रुझान कम हो गया। अगर आज के समय की बात करें तो झील में केवल जंगली घास व झाड़ियां ही दिखाई देती है। बड़खल झील के सूख जाने का सीधा असर भूजल स्तर पर तो पड़ा ही है। साथ में पर्यटकों की संख्या भी न के बराबर रह गई है। कई इलाकों में तो भूजल स्तर काफी नीचे गिर गया है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार भूजल स्तर गिरने की बड़ी वजह बड़खल झील है। जिले की पहचान मानी जाने वाली हरियाणा पर्यटन की खूबसूरत धरोहर बड़खल झील अपना अस्तित्व खो चुकी है। हालात यह है कि इस पर्यटन केंद्र पर जहां दिल्ली, नोएडा, हरियाणा सहित देश-विदेश के सैलानियों का आवागमन रहता था, आज लोगों की बाट जो रही है।

मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अप्रैल 2012 में बड़खल झील में पानी भरने का काम फरीदाबाद नगर निगम को सौंपा था। सरकार के इस प्रस्ताव को सदन की बैठक में भी पास किया गया था, लेकिन तब से लेकर अब तक इस परियोजना को आगे ही नहीं बढ़ाया गया है। इसके अलावा प्रशासन ने भी अपने स्तर पर कई योजनाएं बनाई। मसलन पहाड़ियों के पानी को चेकडेम के जरिए झील में पहुंचाना, गुड़गांव नहर के पानी को ट्रीट करने झील में पहुंचाना आदि। लेकिन अब तक इस पर भी कोई काम नहीं हुआ है।

प्रशासन के उदासीन रवैए के कारण पर्यटकों के लिए प्राकृतिक स्थल कहे जाने वाले बड़खल झील का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है। साल 2000 से ही झील सूखने लगी थी। अरावली की पहाड़ियों के बीचों-बीच बने प्राकृतिक धरोहरों में से एक बड़खल झील फरीदाबाद ही नहीं बल्कि दिल्ली एनसीआर के लोगों के लिए हॉट पिकनिक स्पॉट के रूप में जाना जाता था।

हरे-भरे पहाड़ियों के बीच में बने झील में लोग बोटिंग, ऊंट की सवारी, घुड़सवारी, बच्चों के लिए अलग-अलग तरह के खेल दिखाए जाते थे। इस झील के कारण फरीदाबाद की अलग पहचान तो बनी ही, साथ में हरियाणा पर्यटन को भी काफी लाभ पहुंचा। लेकिन साल 2000 का दशक झील के लिए अच्छा नहीं रहा। झील धीरे-धीरे सूखनी शुरू हो गई। झील का पानी अचानक खत्म होने लगा। साल 2007 में झील ने पूरी तरह से दम तोड़ दिया था।

इस झील के सूखने के बाद पर्यटकों का भी रुझान कम हो गया। अगर आज के समय की बात करें तो झील में केवल जंगली घास व झाड़ियां ही दिखाई देती है। बड़खल झील के सूख जाने का सीधा असर भूजल स्तर पर तो पड़ा ही है। साथ में पर्यटकों की संख्या भी न के बराबर रह गई है। कई इलाकों में तो भूजल स्तर काफी नीचे गिर गया है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार भूजल स्तर गिरने की बड़ी वजह बड़खल झील है।

अधिकारियों का मानना है कि अरावली पर्वत पर हुए भारी खनन के कारण बरसाती पानी के बड़खल झील तक पहुंचने वाले प्राकृतिक रास्ते बंद हो गए हैं, जिससे यह पानी अरावली पहाड़ों पर ही जमा हो गया है।

झील के सूखेपन को दूर करने के लिए प्रशासन की तरफ से साल 2012 में प्रयास तेज किए गए अप्रैल 2012 में नगर निगम सदन की बैठक में सभी पार्षदों के बीच सरकार की तरफ से प्रस्ताव रखा गया था कि बड़खल झील को पानी से भरने का काम निगम देखेगा। जिसकी अध्यक्षता नगर निगम कमिश्नर करेंगे। सभी पार्षदों ने इस प्रस्ताव को पास कर दिया था।

मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने नगर निगम कमिश्नर को नोडल ऑफिसर बनाया था ताकि झील को पानी से भरने के लिए योजना तैयार किया जाए। लेकिन निगम ने अपनी तरफ से केवल एक प्रयास किया था उसमें भी कामयाबी नहीं मिल सकी। नगर निगम ने एक प्राइवेट कंपनी को सीवर का पानी ट्रीट करके इसे झील में पहुंचाने के लिए योजना बनाने का जिम्मा सौंपा। जिस पर कंपनी ने सेक्टर 21 ए के पास बने डिस्पोजल पर अपनी पानी ट्रीट करने की मशीन लगाई। लेकिन इस योजना को सही रूप कैसे दिया जाए इस पर कोई चर्चा अभी तक नहीं हो पाई है।

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