गुजरात

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हाइवे के लिए कटवा दिए 60000 हरे-भरे पेड़
Posted on 03 Sep, 2011 10:46 AM

भरूच। सरकार कभी-कभी खुद नियमों की परवाह नहीं करती। गुजरात के भरूच शहर में कुछ ऐसा ही हुआ है। हाईवे बनाने के लिए 60000 हरे-भरे पेड़ काट दिए गए लेकिन इनके बदले नए पेड़ लगाने के नियम की किसी को परवाह नहीं है। सरकार ने जारी किया फरमान, काट दिए जाएगें 60000 पेड़। गुजरात के कुछ इलाकों का विकास करना है। सड़कें चौड़ी किए बिना विकास हो कैसे। इसलिए सड़क के किनारे खड़े पेड़ काट दिए गए। साल भर में एक हजार,

चेक डैम से पानी के साथ आमद भी
Posted on 30 Jun, 2011 11:03 AM

रांची। गुजरात में 1.44 लाख चेक डैम हैं। पिछले 10 साल में यहां दो हजार बड़े चेक डैम बने हैं। इससे सूखा क्षेत्र में जल स्तर अप्रत्याशित रूप से बढ़ा है। राज्य अब एन्वायरंमेंट फ्रेंडली स्टेट बनता जा रहा है। जोहांसबर्ग अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में यहां के चेक डैम विशेष चर्चा हुई। वैश्विक पर्यावरण के लिए इसकी सराहना की गयी। एक अध्ययन के मुताबिक, देश के 55 चीजों पर गर्व कर सकते हैं, तो उनमें एक गुजरात क

चेकडैम
गुर्जर-माता साबरमती
Posted on 07 Mar, 2011 03:38 PM अंग्रेज सरकार के खिलाफ असहयोग पुकार कर महात्मा जी स्वराज्य की तैयारी कर रहे हैं। अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना हुई है। स्वातंत्र्यवादी नौजवान महाविद्यालय में शरीक हुए हैं। वे अपनी आकांक्षाएं और कल्पना-विलास व्यक्त करने के लिए एक मासिक पत्रिका चाहते हैं। मेरे पास आकर वे पूछते हैं, “मासिक पत्रिका का नाम क्या रखेंगे?” वह जमाना ऐसा था जब चाचा (काका) को ही बुआ का काम करना पड़ता था।
जहाजों की कब्र से फैलता जहर
Posted on 06 Oct, 2010 11:33 AM कुशीनगर जिले कप्तानगंज ब्लाक के बसहिया गांव निवासी 24 वर्षीय गौतम साहनी की पांच मई को गुजरात के सोसिय बंदरगाह पर एक पुराने जहाज की कटाई के दौरान फायर गैस की चपेट में आकर मौत हो गई। गौतम शिप विजय बंसल ब्रेकिंग कंपनी-158 में काम करते थे। उनका शव आठ मई को गांव आया। आज गौतम साहनी के परिजन आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई सहारा देने वाला नहीं है। जिस कंपनी के लिए वह काम करते थे, उसने भी गौतम के परिजनों की कोई मदद नहीं की। गुजरात के भावनगर के अलंग समुद्र तट को आप चाहें तो मृतप्राय जलपोतों की सबसे बड़ी कब्रगाह कह सकते हैं। पुराने जलपोतो को तोड़ने का यह दुनिया का सबसे बड़ा यार्ड है। आर्थिक प्रदर्शन के लिहाज से नई सदी का पहला दशक, इस कारोबार के लिए बेहतरीन साबित हुआ। विश्व व्यापार में आई मंदी ने जहाज मालिकों के लिए यह अनिवार्य बना दिया कि वे अपने पुराने पड़ चुके निष्प्रयोज्य जलपोतों को नष्ट कर दें। भारत में इस कारोबार के तेजी से बढ़ने का स्याह पहलू यह है कि विकसित देशों के सख्त पर्यावरणीय कानून एवं श्रम कानूनों से बचने के लिए भारतीय समुद्र तट एवं यहां के सस्ते मानव श्रम का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत के मजदूरों एवं पर्यावरण को जोखिम में डालने की इस कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक मुकदमा चल रहा है। जहरीला प्रदूषण फैलाने के आरोप में अमेरिकी जलपोत प्लेटिनम-2 पर यह मुकदमा दर्ज किया गया था। इस साल फरवरी में यह जलपोत, भारतीय जलसीमा में गैरकानूनी तरीके से घुस आया था। लेकिन भारत सरकार के दांव-पेंच के चलते इस मुकदमें की सुनवाई में तेजी नहीं आ पा रही है। भारत सरकार के रवैए को देखते हुए इस बात की कम ही गुंजाइश है कि जलपोतों के जहरीले प्रदूषण से मजदूरों के बचाव एवं पर्यावरण की रक्षा की दिशा में कोई मुकम्मल कार्रवाई हो पाएगी।

लौट रही महक जिंदगी की
Posted on 14 Aug, 2010 11:48 AM
जलवायु परिवर्तन के इस दौर में प्रदूषण पर काबू पाकर वापी ने सामूहिक प्रयासों की नई इबारत ही लिख डाली है
एक नहीं, हर दिन पानी का
Posted on 27 Jul, 2010 09:24 AM समाज में तीज-त्योहारों का अपना महत्व है। धर्म की तरह समाज के बाकी हिस्सों में भी गैर-सामाजिक व राजनीतिक हिस्सों में भी पिछले कुछ वर्षों से हम सब तरह-तरह के दिवस मनाने लगे हैं। इन दिवसों का अपना महत्व हो सकता है, लेकिन उनका वजन तभी बढ़ेगा, जब हम बाकी वर्षभर इन पर अमल करेंगे।

जल दिवस उसी तरह का एक दिवस है। एक तो हम में से ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता कि ऎसे दिवस कौन तय करता है। हम तो बस मनाने लग जाते हैं। आठ-दस घंटे में भाषण, उद्घाटन, समापन आदि करके शाम तक भूल जाते हैं। हमारे यहां वर्षा के लिए पूरे चार महीने रखे गए हैं। सबको मालूम है कि चौमासा वर्षा के स्वागत व सम्मान के लिए ही किसान समाज ने बनाया था, लेकिन उसके आने की तारीखें वर्षा लाने वाले नक्षत्रों के हिसाब से ही तय होती हैं। इसी तरह चार महीने के समापन की तिथियां भी बादल समेटने के नक्षत्रों से जोड़कर देखी गई हैं
अनुपम मिश्र
अपने गांव को बचाने के लिए हजारों गिरफ्तार
Posted on 25 Feb, 2010 11:11 AM

ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह लोगों का अपने खून से हस्ताक्षरित अनुरोध पत्र


अहमदाबाद 25 फरवरी 2010। गुजरात के भावनगर जिले के महुआ तहसील में प्रस्तावित निरमा सीमेन्ट फैक्टरी पन्द्रह गाँव के चालीस हजार लोगों को उजाड़ने पर आमादा है। जबरदस्ती दस हजार एकड़ जमीन किसानों से छीनकर निरमा कम्पनी को दी जा रही है। गुजरात लोक समिति के अध्यक्ष चुन्नी भाई वैद ने इसके विरोध में प्रभावित गाँवों के ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह लोगों का साबरमती के गाँधी आश्रम से गुजरात की राजधानी गाँधीनगर तक मार्च रखा था। ये लोग अपने खून से हस्ताक्षर युक्त और अँगुठे लगे ज्ञापन गुजरात सरकार को सौंपने वाले थे।
खेत का पानी खेत में
Posted on 19 Jan, 2010 01:30 PM

देश में मध्यवर्ती भाग विशेष कर मध्यप्रदेश के मालवा, निमाड़, बुन्देलखण्ड, ग्वालियर, राजस्थान का कोटा, उदयपुर, गुजरात का सौराष्ट्र, कच्छ, व महाराष्ट्र के मराठवाड़ा, विदर्भ व खानदेश में वर्ष 2000-2001 से 2002-2003 में सामान्य से 40-60 प्रतिशत वर्षा हुई है। सामान्य से कम वर्षा व अगस्त सितंबर माह से अवर्षा के कारण, क्षेत्र की कई नदियों में सामान्य से कम जल प्रवाह देखने में आया तथा अधिकतर कुएं और ट्य

irrigation
लोगों ने दिखाई राह
Posted on 31 Dec, 2009 07:44 PM

सन् 2001 में फिर तीसरे साल गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश राज्य सूखे के प्रकोप में थे, लेकिन दाहोद आधारित एक गैर सरकारी संगठन `एन एम सदगुरु वाटर एण्ड डेवलपमेंट फाउंडेशन´(सदगुरु) बड़ी सूझबूझ से सूखा राहत कार्यक्रम चलाने में जुटा था। उन्होंने सामुदायिक जुड़ाव से अपने समेकित दृष्टिकोण का काफी बेहतर ढंग से क्रियान्वयन किया।
 

गांधीग्राम के जल प्रबंधक
Posted on 31 Dec, 2009 07:21 PM पानी का बंटवारा और वो भी भारत के जल संकटग्रस्त क्षेत्र में- एक विफोस्टक मुद्दा है, जिससे खेत युद्ध का मैदान बन जाता है। परन्तु गुजरात के कच्छ जिले के सूखे प्रांत में स्थित गांधी ग्राम के लोगों ने पानी वितरण समिति (पाविस) के जरिए इसका समाधान तलाश लिया है। इस सफलता के पीछे क्या फार्मूला है?
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