गुजरात

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बंधाओं से भूजल स्तर उठा
Posted on 31 Dec, 2009 06:42 PM

“गुजरात में पिछले दो वर्षों के दौरान 15,000 बंधाओं का निर्माण किया गया, जिससे यहां का तेजी से घटता भूजल स्तर काफी ऊपर आ गया है”, यह गुजरात के सिंचाई मंत्री बाबूभाई बोखिरिया का कहना था। वे और 5,500 बंधाओं का निर्माण करने के लिए आगे आए हैं, जिससे 7.78 करोड़ घन मीटर अतिरिक्त वर्षा जल संचित होगी।

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भारत के सिर, एक बार फिर जहरभरा जहाज
Posted on 31 Oct, 2009 10:37 AM

जेसिका! ना ना नहीं, दिल्ली की मशहूर मॉडल जेसिका नहीं, यह एमएस जेसिका गुजरात के अलंग समुद्र तट पर खड़े एक जहाज का नाम है जिसने 4 अगस्त 2009 की सुबह छह मजदूरों की जान ले ली लेकिन दिल्ली के किसी अखबार में इस जेसिका के कारनामे की खबर नहीं छपी.

पानी- पर्यावरण का नाश करता शिपब्रेकिंग उद्योग
मेहसाना, गुजरात में गंदे पानी का प्रबंधन
Posted on 02 Oct, 2009 08:38 AM गुजरात में, जिला-मेहसाना के अतर्गत ‘फतेपुरा´ गांव की कुल जनसंख्या 1200 और परिवार संख्या 214 है इस गांव के ग्राम प्रधान श्री जय सिंह भाई चौधरी हैं। इन्होंने इस गांव में धूसर जल (गांव का गंदा पानी) प्रबंधन का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।

. मुख्य विशेषताएं
इस गांव के गहरे बोर का एक नलकूप है, जिसका व्यास 8’’ और गहराई 800 फीट है। 35 अश्वशक्ति वाले पम्प से पंप कर के जल को 40,000 लीटर क्षमता वाली उर्ध्वस्थ टंकी में ले जाया जाता है। यह कार्य दिन में चार बार किया जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि गांव में प्रतिदिन 1,60,000 लीटर जल का उपयोग किया जाता है। इसमें से 40,000 लीटर जल का उपयोग पशुओं के लिए हो जाता है। यद्दपि, वास्तव में धूसर जल (गांव का गंदा पानी) की पैदा कितनी मात्रा में होता है, इसका स्पष्ट हिसाब नहीं लगाया गया है, फिर भी, यह अनुमान किया जाता है कि कुल प्राप्त जल का 80 प्रतिशत धूसर जल (गांव का गंदा पानी) के रुप में निकल आता है। इस प्रकार, गांव में धूसर जल सृजन की अनुमानित मात्रा करीब 96,000 लीटर प्रतिदिन होती है।
कच्छ में प्रकृति का सुन्दर संतुलन
Posted on 24 Sep, 2009 07:27 PM
हमेशा की तरह मानसून समूचे देश में समय पर आये, न आये, अच्छी बरसात हो, न हो। इससे क्या फर्क पड़ता है, राजस्थान और गुजरात जैसे हमेशा सूखे की मार झेलने वाले इलाके जहाँ औसत बारिस सलाना 250 मिमी से अधिक नहीं है, हर वर्ष की तरह उन्हें तो इस बार भी पानी की कमी से जूझना ही है।
भारत का जल संसाधन
Posted on 25 Feb, 2009 10:05 AM

संपादक- मिथिलेश वामनकर/ विजय मित्रा

Rainwater harvesting natural method
सौराष्ट्र में किसान लौट रहे हैं
Posted on 19 Jan, 2009 12:03 AM अहमदाबाद, 8 नवंबर (आईएएनएस)। पानी की कमी के कारण घर-बार और किसानी छोड़ पलायन कर गए सौराष्ट्र के किसान अब अपने गांवों को वापस लौट आए हैं। दरअसल, राज्य सरकार द्वारा अपनाई गई जल प्रबंधन की नई व्यवस्था ने किसानों के लिए घर वापसी का रास्ता खोल दिया है।
नर्मदा की सहायक नदियां
Posted on 18 Jan, 2009 08:20 AM

नर्मदा नदी शहडोल जिले के अमरकंटक (22.40श् उ0, 80*45श् पू0) से 1051 मीटर की ऊंचाई से निकलकर भडोच (21*43श् उ0, 72*57श् पू0) के निकट खंभात की खाडी में गिरती है । इसकी कुल लम्बाई 1312 कि0मी0 है । यह 1077 कि0मी0 तक मध्यप्रदेश के शहडोल, मण्डला, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, खण्डवा तथा खरगोन जिलों से होकर बहती है । इसके बाद 74 कि0मी0 तक महाराष्ट्र को स्पर्श करती हुई बहती है, जिसमें 34 कि0मी0 तक मध्यप्

नर्मदा की सहायक नदियां
पानी का केन्द्रीय बजट
Posted on 16 Jan, 2009 10:11 AM वित्तमंत्री ने सन 2007-08 का आम बजट पेश करते समय बजट भाषण में सर्वहितकारी वृद्धि, कृषि क्षेत्र के लिए उच्च प्राथमिकता एवं द्वितीय हरित क्रांति का नारा देकर सबको लुभाने की कोशिश की थी। यदि हम बजट को ग्रामीण एवं कृषि क्षेत्र के नजरिये से देखते हुए इस पर गहराई से नजर डालें तो पता चलता है कि वित्त मंत्री ने जो नारा दिया था उसे करनी में नहीं बदला।
आरआईएल (वडोदरा विनिर्माण खंड.): रिसाव वाली सिंचाई और अन्य कार्यक्रम
Posted on 08 Oct, 2008 09:25 PM आरआईएल वडोदरा के कृषि जल संरक्षण कार्यक्रम के तहत बाल्टी आधारित सिंचाई प्रणाली पर खास तौर ज़ोर दिया गया है। यह व्यवस्था खास कर घरेलू बागानों और छोटी जोत के लिए उपयोगी है। संकरे मुंह वाले कुंओं के माध्यम से बाल्टियों में पानी उपलब्ध कराया जाता है जिससे फलों और सब्ज़ियों के पौधों की सिंचाई में पानी का अधिकतम उपयोग किया जा सके। गांववालों ने अब तक इस तरह की 96 मशीने ख़रीदी हैं और ये सफलतापूर्वक काम कर
पानी पर खतरे की घंटी सुनना जरूरी
Posted on 03 Oct, 2008 09:41 AM

अनिल प्रकाश/ हिन्दुस्तान

भूमिगत जलस्रोतों को कभी अक्षय भंडार माना जाता था, लेकिन ये संचित भंडार अब सूखने लगे हैं। पिछले 50-60 बरस में डीजल और बिजली के शक्तिशाली पम्पों के सहारे खेती, उद्योग और शहरी जरूरतों के लिए इतना पानी खींचा जाने लगा है कि भूजल के प्राकृतिक संचय और यांत्रिक दोहन के बीच का संतुलन बिगड़ गया और जलस्तर नीचे गिरने लगा। केंद्रीय तथा उत्तरी चीन, पाकिस्तान के कई हिस्से, उत्तरी अफ्रीका, मध्यपूर्व तथा अरब देशों में यह समस्या बहुत गंभीर है, लेकिन भारत की स्थिति भी कम गंभीर नहीं है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकांश इलाकों में भूजल स्तर प्रतिवर्ष लगभग एक मीटर तक नीचे जा रहा है। गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में भूजल स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है। समस्या इन राज्यों तक ही सीमित नहीं है। नीरी (नेशनल इनवायर्नमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीच्यूट) के अध्ययन में पाया गया है कि भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन के कारण पूरे देश में जल स्तर नीचे जा रहा है।

सूखे कुंए
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