भरूच। सरकार कभी-कभी खुद नियमों की परवाह नहीं करती। गुजरात के भरूच शहर में कुछ ऐसा ही हुआ है। हाईवे बनाने के लिए 60000 हरे-भरे पेड़ काट दिए गए लेकिन इनके बदले नए पेड़ लगाने के नियम की किसी को परवाह नहीं है। सरकार ने जारी किया फरमान, काट दिए जाएगें 60000 पेड़। गुजरात के कुछ इलाकों का विकास करना है। सड़कें चौड़ी किए बिना विकास हो कैसे। इसलिए सड़क के किनारे खड़े पेड़ काट दिए गए। साल भर में एक हजार, दो हजार नहीं बल्कि साठ हजार। आशीष शर्मा भरूच के रहने वाले हैं। वो पेड़ों को पसंद करते हैं और चाहते हैं कि उनके इलाके में हरियाली बनी रहे। आशीष को इस बात का दुख है कि सरकार ने उनके इलाके के 60,000 पेड़ों को बेरहमी से काट दिया और उनके बदले दूसरे पेड़ लगाने के अपने वादे से मुकर रही है। आशीष का संघर्ष अपने इलाके को दोबारा हरा-भरा बनाने के लिए है।
गौरतलब है कि सरकार ने 2006 में ट्रैफिक की समस्या सुलझाने और विकास कार्य तेज करने के लिए वड़ोदरा से सूरत के बीच नेशनल हाईवे-8 को चार लेन से 6 लेन करने का फैसला किया। इस हाई-वे के दोनों तरफ 30 साल से भी पुराने हरे-भरे पेड़ लगे थे। 2007 में नेशनल हाईवे अथॉरिटी ने सड़क के प्रोजेक्ट की शुरुआत की और साल भर में 200 किलोमीटर लंबे मार्ग से पेड़ों का सफाया कर दिया। ये पेड़ यूं ही नहीं काट दिए गए। प्रोजेक्ट शुरू करते वक्त ये फैसला लिया गया था कि काटे गए पेड़ों के बदले दोगुनी संख्या में पेड़ शहर में लगा दिए जाएंगे, लेकिन अब एक साल होने को है और काटे गए पेड़ों का 1 प्रतिशत भी नहीं लगाया गया है।
कन्जर्वेशन एक्ट के अनुसार किसी भी प्रोजेक्ट में पेड़ों को काटने के बाद दोगुने पेड़ों को लगाना जरूरी है। ऐसा नहीं है कि पेड़ों को लगाने का काम शुरू नहीं किया गया था। वन विभाग ने कुछ जगहों पर पेड़ लगाए थे लेकिन वृक्षारोपण का ये कार्यक्रम सिर्फ दिखावा ही साबित हुआ। पिछले साल जो पेड़ लगाए गए थे वो देखरेख न होने की वजह से आज खत्म हो चुके हैं। लापरवाही का आलम ये है कि पेड़ लगाने का काम अब बिल्कुल ही ठप्प हो चुका है, लेकिन लोगों को इस लापरवाही का असर दिखने लगा है।पर्यावरण वैज्ञानिक भी ये मानते हैं इस इलाके में पेड़ों की जितनी जरूरत है सरकार का रवैया उतना ही लापरवाह है। ये जिद नहीं बल्कि इस इलाके की मजबूरी है कि 60000 पेड़ काटे गए हैं तो इससे ज्यादा पेड़ यहां लगाए जाएं।
वन विभाग के सूत्र तो यहां तक कहते हैं कि पेड़ लगाने और उनके रखरखाव के लिए ग्रांट हासिल करने का आवेदन भी अभी फाइलों में ही अटका है। इस बारे में जानकारी हासिल करने के लिए सिटीजन जर्नलिस्ट की टीम ने कई बार अधिकारियों से मिलने की कोशिश की लेकिन कोई भी अधिकारी कैमरे के सामने आने को तैयार नहीं हुआ। आशीष ने जानना चाहा कि प्रशासन की तरफ से काटे गए पेड़ों के बदले नए क्यों नहीं लगाए जा रहे हैं। उन्होंने कई बार इस बारे में अधिकारियों से बात की और आवेदन भी भेजे। ये पेशकश भी की अगर प्रशासन पेड़ लगाने का इंतजाम करे तो आशीष और उनके बहुत सारे साथी उन पेड़ों की देखभाल की जिम्मेदारी ले लेंगे।
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