Posted on 01 May, 2015 12:32 PMभूकम्प की भाषा विनाश की होती है लेकिन अगर हम उसे समझ सकते हैं तो उसमें से जीवन को निकाल सकते हैं। हमारी दिक्कत यह है कि विज्ञान अभी तक भूकम्प का पूर्वानुमान लगा नहीं सका है और उसके बाद की भाषा को समझ कर कोई एहतियात बरत नहीं पा रहे हैं।
हम व्यवस्था और आधुनिकता के स्तर पर महज राहत करना जानते हैं और उसके बाद यह भूल जाते हैं कि यहाँ कभी भूकम्प आया था जो आगे भी आ सकता है। वास्तव में हम प्राकृतिक आपदा के बारे में महज प्रबन्धन सम्बन्धी संस्थाएँ बना सके हैं लेकिन उसके बारे में रोकथाम और उससे जुड़ा जनमत बनाने की कोई तरकीब नहीं निकाल सके हैं।
Posted on 30 Apr, 2015 01:51 PM25 अप्रैल को 7.9 तीव्रता के महाविनाशकारी भूकम्प ने नेपाल को बुरी तरह प्रभावित तो किया ही है, लेकिन भारत के उत्त रप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, उत्तराखण्ड तथा साथ में लगे पड़ोसी देश चीन आदि को भी जान माल की हानि हुई है। पूरे दक्षिण एशियाई हिमालय क्षेत्र में बाढ़, भूकम्प की घटनाएँ पिछले 30 वर्षों में कुछ ज्यादा ही बढ़ गई हैं।
इससे सचेत रहने के लिये भूगर्भविदों ने प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से भी अलग-अलग जोन बनाकर दुनिया की सरकारों को बता रखा है कि कहाँ-कहाँ पर खतरे अधिक होने की सम्भावना है। हिमालय क्षेत्र मे अन्धाधुन्ध पर्यटन के नाम पर बहुमंजिले इमारतों का निर्माण, सड़कों का चौड़ीकरण, वनों का कटान, विकास के नाम पर बड़े-बड़े बाँधों, जलाशयों और सुरंगों के निर्माण में प्रयोग हो रहे विस्फोटों से हिमालय की रीढ़ काँपती रहती है।
Posted on 30 Apr, 2015 12:21 PMविडम्बना देखिए कि मनुष्य प्रकृति की भाषा और व्याकरण को समझने के लिए तैयार नहीं है। वह अपनी समस्त ऊर्जा प्रकृति को गुलाम बनाने में झोंक रहा है। 21वीं सदी का मानव अपनी सभ्यताओं और संस्कृतियों से कुछ सीखने को तैयार नहीं। उसका चरम लक्ष्य प्रकृति की चेतना को चुनौती देकर अपनी श्रेष्ठता साबित करना है। इन्सान को समझना होगा कि यह समष्टि-विरोधी आचरण है। प्रकृति पर प्रभुत्व की भरपाई है।
Posted on 30 Apr, 2015 11:37 AMEarthquake and Indian theodicy
बीते दिनों नेपाल में लामजंग में आए विनाशकारी भूकम्प ने इस बहस को और बल प्रदान किया है कि आखिर भूकम्प का कारण क्या है और इसका भारतीय धर्म विज्ञान से क्या सम्बन्ध है। अब यह साबित हो चुका है और उदाहरणों से भी स्पष्ट है कि विज्ञान का चिन्तन किस प्रकार भारतीय ऋषि चिन्तन के इर्द-गिर्द घूम रहा है।
Posted on 30 Apr, 2015 10:48 AMधरती की गहराइयों में होने वाली हलचलों के कारण पैदा होने वाला भूकम्प ऐसी प्राकृतिक घटना है जिन पर मनुष्य का वश नहीं। विज्ञान अभी इतना सक्षम नहीं है कि इसके बारे में पूर्वानुमान लगा सके। वैसे, भूकम्प खुद किसी की जान नहीं लेता। नुकसान होता है मानव निर्मित मकानों, इमारतों के टूटने और उनके नीचे दबने से
Posted on 28 Apr, 2015 12:06 PMयह सही है कि भारत के पर्यावरण कार्यकर्ता और उसकी कानूनी संस्थाओं ने कोकाकोला के गैर- कानूनी कारोबार को रोकने और उसे बन्द कराने में कामयाबी हासिल की है और नई जगहों पर भी सफल हो रहे हैं। लेकिन वहीं कोकाकोला भी भारतीय कानून, उसकी संस्थाओं के आपसी अन्तर्विरोध और यहाँ की राजनीतिक स्थितियों का लाभ उठाकर अपना उल्लू सीधा करती रहती है।
दूसरी तरफ हकीक़त यह भी है कि कोकाकोला के उत्पादों का स्वाद लोगों की जबान पर चढ़ गया है। इसलिये कोकाकोला के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई जो भी हो लेकिन उसकी लोकप्रियता और बाजार पर असर बरकरार है। उल्टे आम जनता उसके गैर कानूनी और अनैतिक कारोबार को भूलकर उसे किसी जीवनदायी पेय की तरह पीए जा रही है और उसके नैतिक विरोध का आन्दोलन लगातार ठंडा पड़ गया है।