भूकम्प की आफत से कैसे निपटेंगे दिल्ली के खस्ताहाल अस्पताल

दिल्ली में आपदा से निपटने के लिये तैयारियों का जायजा लेने पर जो हकीकत दिखाई दी, वह सरकारी दावों के ठीक उलट नजर आई। एम्स में किसी आपदा से निपटने की बाबत सोमवार तक कोई सर्कुलर डॉक्टरों को जारी नहीं किया गया था। यह जरूर है कि डॉक्टरों की एक टीम काठमाण्डू रवाना की गई है।

नई दिल्ली, 27 अप्रैल 2015। राजधानी के उत्तरी दिल्ली जिला स्वास्थ्य केन्द्र में चार महीने पहले भूकम्प या किसी दूसरी आपदा से निपटने की तैयारियों के आकलन के लिये ‘मॉक ड्रिल’ (तैयारी का पूर्वाभ्यास) होनी थी। लेकिन आज तक उसका अता-पता नहीं, जबकि इसके लिये अस्पताल कर्मियों को तैयार रहने के निर्देश के साथ पूरे अस्पताल में नोटिस वगैरह लगा दिये गए थे। यह हाल तब है जब इसके लिये निर्देश आला अफ़सर की ओर से जारी किए गए थे।

केन्द्रीय औषधि विभाग के तमाम कर्मचारी जन्तर-मन्तर पर धरना दे रहे हैं कि उनको दवाओं की खेप मुहैया कराई जाए ताकि वे आगे अस्पतालों को आपूर्ति कर सकें। अस्पतालों में दवाओं के लिये मरीजों की कतारें बढ़ती जा रही हैं। उपलब्ध दवाओं की सूची घटती जा रही है। जाहिर है, दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में इलाज कराना किसी त्रासदी से कम नहीं और यह हकीकत हाई अलर्ट जारी होने के बाद भी नहीं बदली है। यह हकीकत देश की राजधानी में आपदा के लिहाज से अस्पतालों की तैयारी की दास्ता बयाँ करने के लिये पर्याप्त है। डॉक्टरों, कर्मचारियों, बिस्तरों, उपकरणों व दवाओं की भारी कमी से जूझते अस्पताल सामान्य दिनों की भीड़ को ही नहीं सम्भाल पा रहे हैं तो किसी भीषण आपदा के हाल में क्या होगा, इसका सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है।

राजधानी के एक सरकारी अस्पताल में करीब चार महीने पहले आपदा राहत के बाबत एक बैठक आयोजित की गई। बैठक में तय हुआ कि ‘मॉक ड्रिल’ करके अपनी तैयारियों व कमियों का जायजा लिया जाये। लेकिन वह बैठक हो गई। बात आई-गई हो गई। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की बैठक होने के मौके पर फिर पिछली बैठक का जिक्र हुआ व ‘मॉक ड्रिल’ के लिये समय निर्धारित करके उसकी तारीख तय हुई। सम्बन्धित अधिकारी से मंजूरी लेकर यह सब किया गया। जिलाधिकारी मधु तेवतिया से मंजूरी के बाद अस्पताल में नोटिस वगैरह भी लग गया कि अमुक दिन इतने बजे मॉक ड्रिल होगी। तमाम कर्मचारी आ भी गए, पर जिस विभाग को करवाना था, उसके अधिकारियों का अता-पता ही नहीं चला। वह ‘मॉक ड्रिल’ आज तक नहीं हुई। इससे तैयारी का अन्दाजा लगाया जा सकता है। दवा व जरूरी सामान खरीदने का अस्पताल के अधिकारियों को अधिकार नहीं है। उन्हें हर जरूरत के लिए नौकरशाही की ओर देखना व फाइलों की लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।

दिल्ली में आपदा से निपटने के लिये तैयारियों का जायजा लेने पर जो हकीकत दिखाई दी, वह सरकारी दावों के ठीक उलट नजर आई। एम्स में किसी आपदा से निपटने की बाबत सोमवार तक कोई सर्कुलर डॉक्टरों को जारी नहीं किया गया था। यह जरूर है कि डॉक्टरों की एक टीम काठमाण्डू रवाना की गई है। यहाँ के मरीजों की पहले से निर्धारित व्यवस्था व जरूरी प्रावधानों के बावजूद मरीज दिखाने, मर्ज का पता लगने व दवा मिलने में ही कई दिन नहीं, हफ्ते निकल जाते हैं जबकि जाँच वगैरह मरीजों को बाहर से ही कराके आने के निर्देश दिये जाते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत व उपलब्धता के बीच की भारी खाई पाटने की कोशिश कहीं नजर नहीं आ रही है।

सफदरजंग अस्पताल में पहले से ही हर एक बिस्तर पर एक-दो नहीं, कभी-कभी तीन मरीजों का इलाज किया जाता है। यहाँ राष्ट्रमण्डल खेलों के समय से एक सेंटर बना है जो खेल से जुड़ी चोटों के इलाज के लिये ही है। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक से तैयारियों के बारे में बात करने की कई बार कोशिश की, लेकिन वे नहीं मिले। कई अस्पताल हैं, जहाँ एक छोटे से कमरे के बाहर कुछ दिन पहले स्वाइन फ्लू वार्ड का बोर्ड लगा था। स्वाइन फ्लू के मरीज तो अब आ नहीं रहे। बताया जाता है कि अब यह आपदा वार्ड है। पर इसके अलावा कोई बदलाव या सजगता नहीं दिखाई दी। आपदा से निपटने के लिये लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में भी कुछ खास तैयारी नहीं दिखी।

इस अस्पताल में कहने को आपदा से निपटने की तैयारी है। हकीकत में यहाँ रोज इतने भी बिस्तर नहीं होते कि निर्धारित समय पर मरीज को भर्ती कर लिया जाए। यहाँ आपदा वार्ड आठवीं मंजिल पर है। चिकित्सा अधीक्षक डॉ रामजी सिंह का दावा है कि हम तो अलर्ट पर हैं। राष्ट्रमण्डल खेलों के समय से ही 50 बिस्तरों का वार्ड भी है और इस तरह की आपदा के लिए कर्मचारियों व डॉक्टरों का दल भी है।

कर्मचारियों से पूछने पर कहानी उलट ही नजर आती है। उनका कहना है कि अलग से तो कोई इन्तजाम नहीं है। कुछ आफत आती है तो हम लोगों से ही काम चलाया जाता है। यहाँ ही नहीं, दिल्ली सरकार के सभी 42 अस्पतालों में कर्मचारियों के करीब 40 फीसद पद खाली पड़े हैं। पर दवा से लेकर कर्मचारियों तक की भारी कमी यहाँ देखी जा सकती है। यहाँ के दवा काउंटर पर पर्याप्त कर्मचारी नहीं होते। दस में से पाँच-छह काउंटर ही खुले रहते हैं। चिकित्सा अधीक्षक का दावा है कि इमरजेंसी होने पर दवाओं की कमी नहीं होगी। पर इस बात से उन्हें भी इनकार नहीं है कि यहाँ सामान्य दिनों में भी मरीजों को दवा, रुई, पट्टी, मरहम बाहर से ही खरीद कर लाने का निर्देश दे दिया जाता है।

राजधानी के लालबहादुर शास्त्री अस्पताल में एक कमरे में कुछ बिस्तर खत्साहाल पड़े रहते हैं जिनको जरूरत के हिसाब से कभी स्वाइन फ्लू वार्ड, कभी डेंगू वार्ड तो कभी डिजास्टर वार्ड का नाम दे दिया जाता है। बाकी कुछ बदलता नहीं, न ही मरीजों की भटकन, न ही अफरातफरी। यहाँ सामान्य दिनों में भी मरीजों को दवा, रुई पट्टी, मरहम बाहर से ही खरीद कर लाने का फरमान जारी कर दिया जाता है। कमोबेश यही आलम तमाम दूसरे अस्पतालों का भी है।

राम मनोहर लोहिया अस्पताल की नई इमारत में ही आपदा के लिये बिस्तरों का इन्तजाम है, वह भी ऐसा कि बिना अफरातफरी के पटरी पर न आए। जिस इमारत में आपदा वार्ड है उसे ही सुरक्षा के लिहाज से जरूरी मंजूरी आज तक नहीं मिल पाई है। यहाँ दवाओं की 400 लम्बी सूची को छोटा करके 50 अनिवार्य दवाओं तक सीमित कर दिया गया। बावजूद इसके यह सभी दवाएँ अस्पताल में नहीं होती। तमाम दवाओं की भारी कमी का आलम यह है कि केन्द्रीय कर्मचारी दवाओं की कमी दूर करने व कर्मचारियों के हितों की माँग लेकर जन्तर-मन्तर पर सोमवार को धरने पर बैठे रहे।

खुद आपदा के शिकार न हो जाएँ ये अस्पताल


1. दिल्ली के राव तुलाराम अस्पताल में सालों पहले आपदा के नाम पर बिस्तर, गद्दे, चादर-कम्बल और फर्नीचर वगैरह खरीदे गए थे लेकिन उनको डाक्टरों के छात्रावास में रखवा दिया गया। अब वे कबाड़ में बदल रहे हैं।
2. इस अस्पताल की इमारत इतनी खस्ताहाल है कि आपदा की सूरत में अस्पताल खुद आपदा का शिकार बन जाए।
3. यहाँ के आवासीय परिसर की जर्जर इमारतों के कारण खतरनाक घोषित कर पाँच साल पहले खाली करा लिया गया था। मरम्मत के बावजूद कई इमारतें आज भी खस्ताहाल ही हैं।
4. यही हाल बाबू जगजीवन राम अस्पताल और बाड़ा हिन्दूराव अस्पताल की इमारतों का है।

सफदरजंग अस्पताल और एम्स के विशेषज्ञ जाएँगे नेपाल


स्वास्थ्य मन्त्रालय नेपाल में आए भीषण भूकम्प के बाद वहाँ बड़ी संख्या में लोगों के घायल होने और मरने की वजह से पैदा हो रही स्थिति का जायजा लेने के लिये एम्स और सफदरजंग अस्पताल के विशेषज्ञों का एक दल रवाना करेगा। शनिवार को आए विनाशकारी भूकम्प के बाद मन्त्रालय पहले ही वहाँ 34 डॉक्टरों और तकनीशियनों का एक दल और 15 टन चिकित्सा सामग्री भेज चुका है।

यहाँ एक विज्ञप्ति में कहा गया, ‘स्वास्थ्य मन्त्री जेपी नड्डा के निर्देश के मुताबिक एम्स, सफरजंग अस्पताल के विशेषज्ञों और मन्त्रालय के सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का एक दल नेपाल भेजा जा रहा है जो वहाँ बड़ी संख्या में लोगों के घायल होने और मरने की वजह से पैदा हो रही स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्कतों का आकलन करेगा।’

अधिकारियों ने कहा कि दल नेपाल के स्वास्थ्य अधिकारियों से बात करेगा और मानव संसाधन एवं चिकित्सा साजो-सामान की तैनाती के लिहाज से ज़रूरतों का पता लगाने के लिये तेजी से एक स्वास्थ्य एवं जरूरत आधारित आकलन करेगा। मन्त्रालय ने कहा कि भारत में भूकम्प से प्रबावित हुए राज्यों की सरकारों से बातचीत करने और तेजी से स्वास्थ्य सम्बन्धी एक आकलन करने के लिये कल वरिष्ठ अधिकारियों का एक दल भी तैनात किया गया। इस बीच नेपाल ने भोजन, पानी, बिजली और दवाओं की भारी कमी से निपटने के लिए सोमवार को अन्तरराष्ट्रीय मदद माँगी।

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