दिल्ली

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प्रेम और सम्मान से पानी की लड़ाई को शान्ति में बदलना मुमकिन
Posted on 01 Sep, 2015 10:38 AM

प्रकृति का सम्मान करने के साथ-साथ उस भाव से काम करने से ही समुदाय को पानी का हक मिलेगा। समुदाय

water management
खत्म हो गए कुएँ-कुण्डियाँ उलीचने का दौर
Posted on 31 Aug, 2015 03:23 PM

समय के साथ हमने अपने जन-जीवन से कई महत्त्वपूर्ण चलन रिवाज से बाहर कर दिये। हमने इन्हें चलन से निकालने से पहले यह भी नहीं सोचा कि इनके नहीं निभाने पर हमें किन–किन बड़े संकटों से गुजरना पड़ सकता है और हमारे समाज में यदि ये रिवायत रही थी तो इसके पीछे कितना गहरा अनुभव का ज्ञान रहा होगा।

Kundi
सुनिश्चित जलाधिकार से ही बचा सकते हैं हम नदियों को
Posted on 31 Aug, 2015 12:19 PM गंगा जैसी नदी जिसे हम अपनी माँ कहते हैं, उस नदी में वाराणसी में तीन
water
स्थायी विकास के लिये वनीकरण की आवश्यकता
Posted on 30 Aug, 2015 04:20 PM वनाच्छादित क्षेत्र में कमी देश की अर्थव्यवस्था के लिये चिन्ताजनक ह
गंगा
Posted on 30 Aug, 2015 01:16 PM विष्णु पदी धवला विमला शिव शीश जटा बिच शोभित गंगा।
पांव धरे जिस राह भगीरथ दौड़ पड़ी उस ओरही गंगा।
पाप हरे सब जीवन के दुख दूर करे यह पावन गंगा।
दूषित नित्य किया हमने यह सोचत ही नित रोवत गंगा।।

गोमुख से निकसी विकसी हिम शीतल निर्मल पावन गंगा।
तोड़ शिला करती नित नर्तन पर्वत-पर्वत अल्हड़ गंगा।
खेत धरा पर नेह बहा करती निधि वैभव पूरित गंगा।
जल भरा कलश स्थापित कर
Posted on 30 Aug, 2015 12:56 PM जल देवताओं को अति प्रिय है
अघ्र्य उनको अत: दिया जाता।
स्नान जलाशय में करके
सूरज को अघ्र्य दिया जाता।।

जल बिना नहीं करते हैं हम
देवी न देवता का पूजन।
शंकरजी को जल चढ़ा चढ़ा
करते उनका पूजन अर्चन।।

दुर्गा गणेश की मृण्मूर्ति
सादर कई दिन पूजी जाती।
फिर सर, सरिता सागर जल में
विधि सहित विसर्जित की जाती।।
सलिल बिना सागर
Posted on 30 Aug, 2015 12:49 PM सावन भादों क्वाँर औ, बीत गया मधुमास।
पनघट बैठी बावरी, रटती रही पियास।।

दीन हीन यजमान सी, नदिया है लाचार।
याचक से तट पर खड़े, हम निर्लज्ज गँवार।।

बगिया में अब शेष है, केवल ऊँची मेड़।
कहाँ गए मनभावने, वे बातूनी पेड़।।

चादर छोटी हो रही, शहर रवा रहे गाँव।
हुए नयी तकनीक के, इतने लंबे पाँव।।

नदियों का संबल दिया, सागर का विश्वास।
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