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/regions/dehradun-district
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पिछले कुछ वर्षों से यह घाटी विस्फोटकों के धमाकों से दहल रही है। ये धमाके पनबिजली परियोजना की एक पूरी श्रृखंला के निर्माण के मकसद से किए जा रहे हैं। इनमें से कई स्थल, जो पहाड़ों पर घावों जैसे नजर आते हैं, हमारी उन परस्पर विरोधी भावनाओं के लिए जवाबदेह थे, जिनका जिक्र शुरूआत में किया गया था। अकेली निति घाटी में 20 से ज्यादा छोटे-बड़े बांध प्रस्तावित हैं, इनमें से खुद तो बायोस्फीयर रिजर्व के अंदर है। इनकी इकॉलॉजिकल और सामाजिक लागत को लेकर सिविल सोसायटी के अनुरोध विरोध का कोई असर नहीं हुआ है।
ऋषिकेश से जोशीमठ तक घुमावदार सड़क पर काफी आवाजाही होती है। उसी सड़क से यात्रा करते हुए हम विरोधाभासी भावनाओं से घिरे हुए थे। एक ओर तो साधारण इन्सानों के समान हम विशाल और अपराजेय पहाड़ों के समक्ष बौना और विनम्र महसूस कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर, हम यह भी देख रहे थे कि इंसान किस तरह का विनाश करने की क्षमता रखता है। लाता गांव पहुंचने तक यह भावनात्मक उथल-पुथल अपने चरम पर पहुंच चुकी थी। लाता उत्तराखंड का एक छोटा सा गांव है, जहां चिपको आंदोलन का सूत्रपात हुआ था। भारत के इतिहास में यह गांव एक पूरे अध्याय का हकदार है।हिमालय पर बन रहीं बड़ी-बड़ी इमारतों और बांधों ने भी भूकंप की स्थिति में पहाड़ को बम के रूप में