भूकंप से भयभीत उत्तराखंड

हिमालय पर बन रहीं बड़ी-बड़ी इमारतों और बांधों ने भी भूकंप की स्थिति में पहाड़ को बम के रूप में तब्दील कर दिया है। उत्तराखंड के पहाड़ों में इस समय लगभग 300 परियोजनाएं चल रही हैं जबकि 200 से अधिक निर्माणाधीन व प्रस्तावित हैं। ऐसे में पहाड़ी नदियों पर थोड़े-थोड़े अंतर में बांध बन रहे हैं। भूकंप की स्थिति में यदि एक भी बांध टूटा तो कई बांध टूटेंगे। पहाड़ों पर अवैज्ञानिक रूप से बने भवन, बेहद सघन शहर, अतिसंवेदनशील भूकंप जोन 4-6 में स्थिति एवं बड़ी-बड़ी पनबिजली परियोजनाएं भूकंप आने पर उत्तराखंड में भारी तबाही मचा सकती हैं।

पिछले दिनों भूकंप ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। पूर्वोत्तर का पहाड़ी राज्य सिक्किम भारी तबाही का शिकार हुआ। अब भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील दूसरा पहाड़ी राज्य उत्तराखंड भयभीत है। हिली धरती ने यूं तो यहां इस बार कुछ नुकसान नहीं पहुंचाया है पर 'देवभूमि' के लोगों के दिलों में गहरे बसी पिछले विनाशकारी भूकंपों की यादें जरूर ताजा हो गई हैं। यहां के लोग इस तथ्य को लेकर आशंकित हैं कि सिक्किम में पहाड़ों को तोड़कर चल रही विद्युत परियोजनाओं ने भूकंप की विनाशलीला को बढ़ाने में खूब भूमिका निभाई है, क्योंकि उत्तराखंड में भी ऐसी कई परियोजनाओं पर काम चल रहा है। भूकंप के जानकार चिंता जता रहे हैं कि उत्तराखंड भी संवेदनशीलता की दृष्टि से मौत के मुहाने पर खड़ा है। तेज भूकंप आने पर सूबे में भारी नुकसान को रोकना मुमकिन नहीं होगा। पहाड़ों में अवैज्ञानिक रूप से बन रहे बड़े-बड़े व्यावसायिक भवन, सघन होते पहाड़ी शहर, पहाड़ की परिस्थितियों के प्रतिकूल भारी निर्माण सामग्री का अत्यधिक प्रयोग व खतरनाक भूकंप जोन 4-6 में स्थित होने के बावजूद प्रकृति की चेतावनियों की अनदेखी कर बनाई जा रहीं बड़ी-बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं कभी भी भूकंप आने पर पहाड़ को दहला सकती हैं। इतना ही नहीं, आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंध केंद्र ने अपने अध्ययन में देहरादून, मसूरी और नैनीताल जैसे शहरों में सैकड़ों ऐसे जर्जर भवनों को चिह्नित किया है, जो भूकंप आने पर खतरनाक साबित हो सकते हैं।

आईआईटी, रुड़की के भूगर्भशास्त्रियों के मुताबिक भूकंप की हालत में राज्य के देहरादून, मसूरी, अल्मोड़ा, हरिद्वार व अन्य पहाड़ी जिलों में भी भयानक तबाही होगी। उत्तराखंड में पूर्व में आए भूकंप भी भयंकर तबाही मचा चुके हैं। 19 अक्टूबर, 1999 को उत्तरकाशी की भटवाड़ी तहसील के पिलांग क्षेत्र में आए भूकंप को कौन भूल सकता है। रिक्टर स्केल पर 7.8 मापे गए इस भूकंप के कारण 768 लोग मारे गए थे जबकि क्षेत्र के 5000 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस भूकंप के कारण उत्तरकाशी और चमोली जिलों के 18,000 घर तबाह हुए जिससे एक लाख से अधिक लोग घटना के बाद बेघर हो गए थे। इससे पहले भी इसी साल भूकंप ने इस क्षेत्र को अपना निशाना बनाया था। 28 मार्च, 1999 को चमोली जिले के पीपलकोटी क्षेत्र में भूकंप के कारण भयानक तबाही हुई थी। इस घटना में पीपलकोटी क्षेत्र के 115 लोग मारे गए थे जबकि भूकंप का असर उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में भी महसूस हुआ था। चमोली के लोग इस भयंकर हादसे से उबर भी नहीं पाए थे कि दो दिन बाद ही 30 मार्च,1999 को फिर भूकंप आया। इस भूकंप में सबसे ज्यादा असर चमोली जिले के मैढाना गांव पर हुआ।

पर्यावरणविद ऐसी पनबिजली परियोजनाओं को खतरा बताते हैंपर्यावरणविद ऐसी पनबिजली परियोजनाओं को खतरा बताते हैं
भूकंप के कारण यह गांव पूरा तबाह हो गया था। गांव के 20 घर पूरी तरह ध्वस्त हुए जबकि 11 घर दरारों के कारण रहने लायक नहीं रहे थे। 5.2 रिक्टर स्केल के इस भूकंप के कारण कोटियाल गांव के 85 घरों में भी दरारें आई थीं। 27 मार्च, 2003, 8 अक्टूबर, 2005, 14 दिसंबर 2005, 5 अगस्त, 2006 और 22 जुलाई, 2007 को भी भूकंपों के कारण उत्तराखंड की धरती डोल चुकी है। 5 जनवरी, 1997 को सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के धारचूला में आया भूकंप भी जानलेवा साबित हुआ था। शिवालिक रेंज में काली नदी के किनारे नेपाल सीमा से लगे धारचूला नगर में भूकंप के कारण दर्जनों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा जबकि सैकड़ों भवन जमींदोज हो गए थे। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में आए भूकंपों पर पिछले दो सौ सालों के दौरान हुए अध्ययनों से साफ हो जाता है कि इस क्षेत्र में अनेक बार 5.5 रिक्टर तीव्रता के भूकंप आ चुके हैं। हिमालय श्रेणी में कई सक्रिय प्लेट्स मौजूद हैं जिनमें पैदा होने वाली हलचल पहाड़ों में भयंकर भूकंप का कारण बन जाती है। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में दो प्रमुख सक्रिय थ्रस्ट हैं जिन्हें भूगर्भशास्त्री 'मेन बाउंड्री थ्रस्ट' (एमबीटी) और 'मेन फ्रंटल थ्रस्ट' (एमएफटी) के नाम से जानते हैं। इन सक्रिय प्लेट्स का केंद्र चमोली और उत्तरकाशी जिलों के आस-पास बताया गया है।

भारतीय मानक ब्यूरो के ताजा मानचित्र के मुताबिक भूकंप की दृष्टि से उत्तराखंड के चीन और नेपाल की सीमा से लगे जिले सबसे अधिक संवेदनशील हैं। साफ है कि भूकंप का खतरा सबसे अधिक पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर, चमोली व उत्तरकाशी जैसे जिलों पर मंडरा रहा है। ब्यूरो के मुताबिक राज्य के सभी सीमांत जनपद जोन पांच में आते हैं जबकि राज्य के देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर जैसे जिलों को जोन चार में रखा गया है। पूरी दुनिया में भूकंपों पर अध्ययन कर रही न्यूजीलैंड की संस्था 'एमेंच्योर सिस्मिक सेंटर' (एएससी) की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के मैदानी भाग भी भूकंप आने पर खतरनाक साबित हो सकते हैं। मैदानों में आने वाले भूकंप की तीव्रता भी रिक्टर स्केल पर आठ तक पहुंच सकती है। हरिद्वार, देहरादून, मसूरी सहित मैदानी भागों में बनी पुरानी इमारतें व रिहायशी भवनों को वैज्ञानिकों ने गंभीर खतरा माना है। आपदा प्रबंधन केंद्र की रिपोर्ट पहले ही इस ओर इशारा कर चुकी है कि अकेले देहरादून और मसूरी में सैकड़ों जर्जर भवन हैं जो हजारों लोगों की मौत का कारण बन सकते हैं।

हिमालय पर बन रहीं बड़ी-बड़ी इमारतों और बांधों ने भी भूकंप की स्थिति में पहाड़ को बम के रूप में तब्दील कर दिया है। उत्तराखंड के पहाड़ों में इस समय लगभग 300 परियोजनाएं चल रही हैं जबकि 200 से अधिक निर्माणाधीन व प्रस्तावित हैं। ऐसे में पहाड़ी नदियों पर थोड़े-थोड़े अंतर में बांध बन रहे हैं। भूकंप की स्थिति में यदि एक भी बांध टूटा तो कई बांध टूटेंगे। आईआईटी, रुड़की के अर्थक्वेक इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के सीनियर प्रोफेसर एम.एल शर्मा का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील होने के साथ-साथ भूस्खलन और कमजोर भवनों के चलते भी असुरक्षित है। बांधों पर भी हमें नजर रखनी होगी। सबसे ज्यादा जरूरत इस बात की है कि भूकंपीय आपदा से बचने के लिए हम अपने मकानों को भूकंपरोधी बनाएं। राज्य आपदा प्रबंधन केंद्र के निदेशक डॉ. पीयूष रतौला के मुताबिक राज्य में आपदा से बचने के पर्याप्त उपाय किए जा रहे हैं। न्याय पंचायत स्तर पर आपदा प्रबंधन टीमों का गठन किया गया है और संवेदनशील क्षेत्रों का लगातार अध्ययन कर उन्हें सुरक्षित करने के प्रयास हो रहे हैं।

सुरक्षित नहीं है राजधानी भी


पहाड़ों पर बढ़ती आबादी भूंकप के खतरे को और बढ़ा रही हैपहाड़ों पर बढ़ती आबादी भूंकप के खतरे को और बढ़ा रही हैभूकंप की दृष्टि से उत्तराखंड की राजधानी देहरादून भी मौत के ढेर पर बैठी है। इसका अंदाजा नार्वेजियन रिसर्च इंस्टिट्यूट नोरसार, वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून व आईआईटी, रुड़की द्वारा चार सालों तक किए गए अध्ययन से लगाया गया है। पिछले दिनों जारी नतीजों के मुताबिक टीम ने देहरादून में 30 मीटर गहराई तक अध्ययन किया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर 10 किलोमीटर की गहराई में 5 रिक्टर की तीव्रता का भूकंप आया तो शहर के छह प्रतिशत बड़े भवन जमींदोज हो जाएंगे। रिपोर्ट के मुताबिक दून शहर की बुनियाद बिखरे हुए प्राकृतिक मलबे से बनी है। इसकी सतह पर वर्तमान में 40 तरह के भवन हैं। 150 वर्ष से वर्तमान समय तक के 55 आवासीय क्षेत्रों, 44 स्कूल-कॉलेजों के साथ ही 29 अस्पतालों का अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि अधिकांश भवनों के बीच की दूरी कम है। कई कॉलोनियों में तो भवन मिलाकर बनाए गए हैं। रिपोर्ट में इशारा है कि लोग अब भी भवन बनाते हुए भूकंपरोधी तकनीक का प्रयोग नहीं कर रहे हैं।

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