उत्तरांचल : ऊर्जा प्रदेश बनने की व्यापक सम्भावनाएँ

उत्तरांचल राज्य में कई ऐसी विशाल झीलें हैं जो बरसात में लबालब भरी रहती हैं। यदि इनके पानी को संग्रहण किया जाए तो निश्चित रूप से इनमें स्थापित की जाने वाली लघु जल विद्युत परियोजनाएँ राज्य की खुशहाली का प्रतीक बन सकती हैं।उत्तरांचल राज्य उन तीन नये राज्यों में से एक है जो नवम्बर 2000 में अस्तित्व में आया है। इससे पूर्व उत्तरांचल को उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र के रूप में जाना जाता रहा है। हिमालय क्षेत्र में अनेक झरने, बड़ी-बड़ी झीलें और तेज गति से बहने वाली अनगिनत नदियाँ हैं जिनके नियोजित दोहन से बिजली और पानी की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। यही नहीं जल विद्युत के उत्पादन से उत्तरांचल को देश का सबसे बड़ा ऊर्जा प्रदेश बनाए जाने की व्यापक सम्भावनाएँ हैं जिससे उत्तरी ग्रिड से जुड़े राज्यों का बिजली संकट भी दूर हो सकता है। भारतीय हिमालय में 5,200 से भी अधिक हिमनद हैं जिनमें उत्तरांचल में 917 हिमनद हैं। राज्य की नदियों में प्रति वर्ष करीब 22,575 लाख क्यूबिक मीटर पानी बहता है।

प्रारम्भिक अध्ययन के अनुसार उत्तरांचल में 16,500 मेगावाट विद्युत उत्पादन की सम्भावना आँकी गई है। उत्तरांचल राज्य गठित होने के बाद इस दिशा में तेजी से कार्य शुरू हुआ है। राज्य बनने तक उत्तरांचल में करीब 1,160 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा था जो कि उपलब्ध जल क्षमता का मात्र सात प्रतिशत था। जल उत्पादन की अपार सम्भावनाओं को देखते हुए इसे भारत का भावी पावर हाउस माना जाने लगा है।

राज्य में 2002 में हुए पहले विधान सभा चुनाव के बाद राज्य और देश के विकास में बिजली की महत्वपूर्ण भूमिका को गहराई से समझा गया और इस दिशा में प्रयास तेज हो गए। धनाभाव के कारण वर्षों से ठप्प पड़ी परियोजनाओं को पुन: शुरू कराने का भी अभियान चलाया गया।

राज्य को ऊर्जा प्रदेश के रूप में स्थापित करने के लिए राज्य में 4,171.30 मेगावाट क्षमता की परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं तथा 3,806.40 मेगावाट क्षमता की कई और परियोजनाएँ आवण्टित की गई हैं। फरवरी 2004 तक राज्य में 3,239 मीट्रिक यूनिट बिजली का उत्पादन हुआ। राज्य बनने के बाद यहाँ की जनता को समय-असमय होने वाली बिजली की कटौती से मुक्ति मिली, इससे यह सम्भावना और व्यापक हो गई है कि आने वाले समय में उत्तरांचल बिजली संकट से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा।

राज्य में उत्पादनरत 17 लघु जल विद्युत परियोजनाओं के माध्यम से सुदूरवर्ती क्षेत्रों में विद्युत व्यवस्था तथा दो लघु जल विद्युत एवं 6 माइक्रो हाइडिल परियोजनाओं का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है।

उत्तरांचल जल विद्युत निगम द्वारा मनेरी माली द्वितीय चरण की 1,200 करोड़ रुपए लागत की 304 मेगावाट क्षमता वाली विद्युत परियोजना, 416 मेगावाट की पाला मनेरी, 132 मेगावाट की बावला-नन्दप्रयाग, 42 मेगावाट की त्यूनी-पलासू तथा 70 मेगावाट की आराकोट-त्यूनी जल विद्युत परियोजनाओं पर काम चल रहा है। टिहरी में भिलंगना जल विद्युत परियोजना (22.5 मेगावाट) का कार्य निष्पादन किया जाएगा। इसमें करीब सौ करोड़ रुपए का पूंजी निवेश होगा। देहरादून में हनोल-त्यूनी जल विद्युत परियोजना से 45 मेगावाट विद्युत उत्पादन होगा, जिसमें करीब 225 करोड़ रुपए का पूंजी निवेश होगा। भिलंगना तृतीय जल विद्युत परियोजना में करीब 45 करोड़ रुपए के निवेश से 8.4 मेगावाट विद्युत उत्पादन किया जाएगा। ये तीनों परियोजनाएँ निजी क्षेत्र को सौंपी गई हैं।

अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चीला जल विद्युत परियोजना के आधुनिकीकरण एवं विस्तार तथा भैरों घाटी द्वितीय (240 मेगावाट) जल विद्युत परियोजना हेतु कनाडा के साथ अनुबन्ध हुआ है। भैरों घाटी तृतीय (320 मेगावाट) तालुका सांकरी (112 मेगावाट) तथा चीला विद्युत परियोजना (144 मेगावाट) के आधुनिकीकरण हेतु आस्ट्रिया के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं। लखवाड़ी व्यास (144 मेगावाट) के पुनः क्रियान्वयन, कोटली-बहल जल विद्युत परियोजना (100 मेगावाट), लाता तपोवन (108 मेगावाट) तथा विष्णु प्रयाग पीपल कोटी (340 मेगावाट) के विकास हेतु एनएचपीसी के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर हुए हैं, जिन पर 8,200 करोड़ रुपए का निवेश होगा।

नवीनतम आँकड़ों से पता चलता है कि उत्तरांचल में अब तक 8 जल विद्युत परियोजनाएँ पूरी हो चुकी है। जिनसे 1,716 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। 11 निर्माणाधीन परियोजनाओें के पूरा हो जाने से 5,608 मेगावाट बिजली का और उत्पादन होने लगेगा। इसके अलावा 875 मेगावाट की तीन और परियोजनाएँ प्रस्तावित हैं।

हिमालय को विश्व का वाटर टैंक भी कहा जाता है। उत्तरांचल, अलकनन्दा, पिण्डर, सरयू, गोरी, कोसी और काली आदि नदियों से प्रति वर्ष करीब 22,575 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी प्रवाहित होता है। इनमें 62 प्रतिशत गढ़वाल मण्डल और 38 प्रतिशत कुमाऊं मण्डल में बहने वाली नदियों का हिस्सा है।उत्तरांचल में करीब 52 ऐसे तापीय झरने हैं जिनके नियोजित दोहन से लघु जल विद्युत परियोजनाएँ सफलतापूर्वक क्रियान्वित की जा सकती हैं। इनमें टोंस घाटी, यमुना घाटी, भगीरथी घाटी, यमुना-भगीरथी के बीच, भिलंगना, मन्दाकिनी, अलकनन्दा, धौली घाटी, पिण्डर घाटी, सरयू घाटी, रामगंगा (पूर्वी), गोरी गंगा घाटी तथा काली नदी के घाटी क्षेत्र में स्थित तापीय झरने प्रमुख हैं। इन लघु जल विद्युत परियोजनाओं से आसपास के गाँवों के विद्युतीकरण में भरपूर मदद मिल सकती है, साथ ही उन गाँवों में लघु उद्योग भी स्थापित किए जा सकते हैं। लघु उद्योगों की स्थापना से ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार में मदद मिल सकती है।

चमोली जिले की धौली नदी घाटी क्षेत्र के मलेरी गाँव में 50 किलोवाट विद्युत क्षमता की जल विद्युत परियोजना सफलतापूर्वक चल रही है। स्थानीय घरेलू विद्युतीकरण के अलावा ऊन उत्पादन तथा सिंचाई कार्य में भी इसका उपयोग किया जा रहा है। यह परियोजना ग्रामीण जनजागरण का अद्भुत उदाहरण है।

गाँव के प्रधान चैतसिंह ने गाँव के लोगों के साथ मिलकर जागरुकता अभियान चलाया, जिससे हर घर को रोशनी मिल सके। इस अभियान और एकजुट प्रयासों से परती भूमि विकास परिषद से परियोजना के लिए 15 लाख रुपए की सहायता प्राप्त हुई। शेष दस लाख रुपए की राशि मलारी गाँव के लोगों ने श्रमदान, अनुदान और चन्दें से जुटाने में सफलता पाई। यह परियोजना 31 अक्टूबर, 2001 को पूरी हुई और अब गाँव के 125 घरों को रोशनी मिल रही है। राज्य में 26 लघु जल विद्युत परियोजनाओं में मलारी परियोजना वहाँ के लोगों के साहसिक प्रयास का जीवन्त उदाहरण बन गई है।

राज्य के नदी-घाटी क्षेत्रों में सदियों से घराटों (पनचक्कियों) की परम्परा रही है। समय के साथ आधुनिकीकरण ने घराट परम्परा को लगभग तबाह कर दिया। उत्तरांचल राज्य के गठन के बाद घराट संस्कृति को पुनर्जीवित करने की शुरुआत हुई। पत्येक जिले में एक-एक मॉडल घराट की स्थापना की जा रही है तथा 300 से भी अधिक घराटों का सुधारीकरण किया जा चुका है। घराटों के माध्यम से 10 से लेकर 50 किलोवाट क्षमता की माइक्रो-हाइडिल परियोजनाएँ भी सफलता से संचालित की जा सकती है।

हिमालय को विश्व का वाटर टैंक भी कहा जाता है। उत्तरांचल, अलकनन्दा, पिण्डर, सरयू, गोरी, कोसी और काली आदि नदियों से प्रति वर्ष करीब 22,575 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी प्रवाहित होता है। इनमें 62 प्रतिशत गढ़वाल मण्डल और 38 प्रतिशत कुमाऊं मण्डल में बहने वाली नदियों का हिस्सा है।

भगीरथी के वरदान को साकार करने के लिए राज्य सरकार ने आखिरकार भगीरथ प्रयास शुरू कर दिए हैं। अगर इन प्रयासों को जारी रखा गया तो निश्चित रूप से आने वाले समय में उत्तरांचल ऊर्जा प्रदेश के रूप में अपनी अलग पहचान बनाने में सफल होगा। इससे राज्य की बिजली और सिंचाई की समस्याओं को हल करने में तो मदद मिलेगी ही, दूसरे राज्यों को बिजली बेचने से राज्य के राजस्व में भी करोड़ों रुपए की वृद्धि होगी। निश्चित रूप से इससे राज्य की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी।

दिसम्बर 2004 में राज्य सरकार ने आने वाले समय में बिजली की दरों में कमी करने का वादा किया है। अगर ऐसा हुआ तो देश में उत्तरांचल सबसे सस्ती बिजली उपलब्ध कराने वाला राज्य होगा। एक ओर जहाँ हाल ही में अनेक राज्यों में बिजली की दरों में वृद्धि की गई है वहीं उत्तरांचल में दरों में कमी का संकेत अन्धेरे में रोशनी की किरण बन कर सामने आया है।

उत्तरांचल राज्य में कई ऐसी विशाल झीलें हैं जो बरसात में लबालब भरी रहती हैं। इनका क्षेत्रफल भी कई किलोमीटर का है। यदि इनके पानी को संग्रहण किया जाए तो निश्चित रूप से इनमें स्थापित की जाने वाली लघु जल विद्युत परियोजनाएँ राज्य की खुशहाली का प्रतीक बन सकती है। हर विकास खण्ड में ऐसे नदी-घाटी क्षेत्रों, झीलों व झरनों का व्यापक सर्वे कर उनमें लघु जलविद्युत परियोजनाओं की सम्भावनाएँ खोजी जा सकती हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Path Alias

/articles/utataraancala-urajaa-paradaesa-bananae-kai-vayaapaka-samabhaavanaaen

×