नई दिल्ली, 22 अगस्त। उत्तराखंड में गंगा पर लोहारी नागपाला पन-बिजली परियोजना पर केंद्र सरकार ने आखिरकार काम रोक दिया। इसके साथ ही गोमुख से उत्तरकाशी तक 135 किलोमीटर के क्षेत्र को अति संवेदनशील घोषित किया गया। इस फैसले से जहां उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डा रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ का कद ऊंचा हुआ, वहीं राज्य में गंगा के अविरल निर्मल प्रवाह के मुद्दे को नई पहचान मिली है। पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने और गंगा के प्रति करोड़ों लोगों की आस्था को ध्यान में रखते हुए राज्य में बांधों को लेकर नए सिरे से राय-मश्विरे की संभावना बनी है। राज्य में गंगा आंदोलन को लेकर राजनीतिक रणनीति का भी नया दौर शुरू हुआ है। साथ ही देश में बड़े बांधों को बढ़ावा देने वाली ताकतों पर सवालिया निशान भी लगे हैं।
लोहारी नागपाला परियोजना बंद
गंगा की सफाई और उसके अविरल निर्मल प्रवाह पर छिड़े आंदोलन के चलते केंद्र सरकार ने छह सौ मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए लोहारी-नागपाला पर चल रहा काम जून में रोका था। आंदोलन के धीमे पड़ते ही फिर काम शुरू हो गया। पर्यावरणविद प्रो. जीडी अग्रवाल गंगा को बचाने के लिए फिर अनशन पर बैठे। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने अभी हाल दलील दी थी कि इस परियोजना के जरिए सिर्फ छह महीने बिजली उत्पादन होगा। उधर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने करोड़ों लोगों की गंगा में आस्था का सवाल उठाते हुए तीन अगस्त को प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। आखिर काम रुक गया। इस फैसले से सार्वजनिक उपक्रम नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी) की छह सौ करोड़ रुपए से भी ज्यादा की पूंजी बट्टे-खाते में जानी है। अब तक हुए काम को स्थानीय पारिस्थतिकी के लिहाज से हटाने में व पूरी साफ-सफाई में करोड़ों के नए खर्च की योजना अभी बननी है। जनता के पैसे की फिजूलखर्ची का यह बड़ा उदाहरण है।
हालांकि केंद्र में बिजली मंत्री सुशील कुमार शिंदे अब कह रहे हैं कि उनके मंत्रालय ने तमाम सार्वजनिक उपक्रमों को निर्देश दिए हैं कि बिजली परियोजनाएं तैयार करते हुए गहराई से तथ्य आधारित पारिस्थितिकी व पर्यावरण प्रभाव का आकलन किया जाए। सवाल है कि अब भी जन प्रतिरोध के बावजूद पूरे देश में जो विभिन्न बिजली परियोजनाएं हैं क्या उन पर नए सिरे से राय-मश्विरा होगा।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को भेजे अपने पत्र में लिखा कि हमारी सरकार गंगा के अतिरिक्त उपलब्ध जल पर लघु जल-विद्युत परियोजना की पक्षधर है। जनभावना और पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिगत प्रदेश सरकार ने दो जल-विद्युत परियोजनाएं पाला-मनेरी एवं भैरो घाटी को डेढ़ साल पहले स्थगित कर दिया था। लोहारी नागपाला योजना में गंगा विलुप्त होकर 16 किलोमीटर लंबी टनल के माध्यम से गुजरेगी जो जनविश्वास और भावनाओं के अनुरूप नहीं होगी और न पर्यावरणीय दृष्टी से ही इसे उपयुक्त माना जा सकता है।
पर्यावरण रक्षा से जुड़े लोगों, विद्वानों, हिंदू नेताओं और स्थानीय निवासियों ने भी गंगा के धार्मिक महत्त्व और बड़े बांधों से होने वाले नुकसान पर प्रधानमंत्री व वित्त मंत्री तक फरियाद की। आखिर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी, बिजली मंत्री सुशील कुमार शिंदे और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने तय किया कि लोहारी नागपाला जल परियोजना पर काम रोक दिया जाए और पर्यावरण भौगोलिक संतुलन के लिहाज से एक तकनीकी समिति बांध पर अब तक हुए निर्माण को हटाए।
केंद्रीय मंत्री समूह ने माना कि भारी वित्तीय खर्च की तुलना में सामाजिक व पर्यावरण मुद्दे कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। यह फैसला भी लिया गया कि गोमुख से उत्तरकाशी के बीच के 135 किलोमीटर के क्षेत्र को पर्यावरण व पारिस्थितिकी के लिहाज से पर्यावरण संरक्षण कानून के तहत अति संवेदनशील घोषित किया जाए। यह बदलाव होते ही इस पूरे क्षेत्र में किसी भी विकास परियोजना पर काम नहीं हो सकेगा।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने अब यूपीए सरकार के ‘यू-टर्न’ से राजनीतिक तौर पर राज्य में छिड़े गंगा आंदोलन का नेतृत्व हासिल कर लिया है। जानकारों के अनुसार प्रोफेसर जीडी अग्रवाल भी अब मुख्यमंत्री के साथ होकर गंगा आंदोलन को धार देने को हैं। इससे प्रदेश कांग्रेस भी खासी हतप्रभ है।
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