बांधों को लेकर फिर बवाल


उत्तराखंड सरकार ने किए 56 जलविद्युत परियोजनाओं के आबंटन रद्द

जल संसाधनों के दोहन की होड़ के बीच उत्तराखंड में बांधों को लेकर राजनीतिक हलचलें तेज हो गई हैं। एक ओर जहां भ्रष्टाचार के आरोंपों के बाद उत्तराखंड सरकार को 56 छोटी जलविद्युत परियोजनाओं के आवंटन रद्द करने पड़े वहीं राज्य सरकार की दो परियोजनाओं को केंद्र सरकार ने रोक दिया। लेकिन पिछले दो साल से रुकी लोहारी नागपाला पर केंद्र सरकार के मंत्री समूह को हरी झंडी ने माहौल को गरमा दिया है। भागीरथी पर बन रही इस परियोजना को लेकर पर्यावरणवादी आंदोलन पर उतारू हैं तो राज्य की प्रमुख गैर सरकारी संस्था पक्ष में आंदोलन चलाने का ऐलान कर चुकी है। बांधों को लेकर चल रही राजनीति में राज्य के प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस भी आमने-सामने हैं।

उधर, उत्तराखंड सरकार की 100 से ज्यादा जल विद्युत परियोजनाएं केंद्र सरकार के फैसले के बाद खटाई में पड़ सकती हैं। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की वन सलाहकार समिति यानी एफएसी ने इन परियोजनाओं को तब तक हरी झंडी न देने का फैसला किया है जब तक राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण सभी प्रस्तावित बांधों के पर्यावरण पर असर का अध्ययन नहीं कर लेता। उत्तराखंड सरकार गंगा और उसकी सहायक नदियों पर छोटे-बड़े 300 से ज्यादा बांध बनाने की तैयारी में है। मकसद है राज्य के जल संसाधन का दोहन कर बिजली पैदा करना। लेकिन मंत्रालय की समिति ने इन प्रस्तावित बांधों के पर्यावरण पर सामूहिक असर की पड़ताल होने तक किसी के काम को आगे बढ़ाने की अनुमति ने देने का फैसला किया है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भारत झुनझुनवाला की याचिका पर एफएसी को राज्य सरकार की इन सैकड़ों जल विद्युत परियोजनाओं के असर का अध्ययन को कहा था। परियोजना स्थलों के दौरे के बाद और विभिन्न पक्षों से बातचीत के बाद एफएसी ने पाया कि कुछ मौजूदा बांधों के निर्माण में कई गंभीर अनियमितताएं चल रही हैं और सरकार गंगा नदी की तकरीबन हर सहायक धारा पर बांध बनाने के दुष्परिणामों को नजरअंदाज कर रही है। इस मुद्दे पर एफएसी और राज्य सरकार के बीच टकराव के पूरे आसार हैं। मिली जानकारी के मुताबिक, उत्तराखंड सरकार ने 300 से ज्यादा प्रस्तावित परियोजनाओं की पूरी जानकारी भी एफएसी टीम से साझा नहीं की है। मामले की गंभीरता को देखते हुए एफएसी ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण से विशेषज्ञ कमेटी गठित करने का अनुरोध किया है। इस बीच रूरल लिटिगेशन एंड एनलाइटमेंट केंद्र- रुलेक नाम के गैर सरकारी संगठन ने भी परियोजनाओं के पक्ष में मोर्चा खोल दिया है। उसकी मांग है कि भागीरथी पर पाला मनेरी परियोजना ही सिर्फ शुरू कर दी जाए तो राज्य का ऊर्जा बोझ हल्का हो सकता है। रुलेक ने इस बारे में 15 अगस्त से आंदोलन तेज करने की धमकी दे डाली है।

केंद्र सरकार के मंत्रियों के समूह द्वारा भागीरथी पर निर्माणाधीन लोहारी नागपाला को हरी झंडी दी ही जानी ही थी कि गंगा की अविरल धारा का बवाल एक बार फिर शुरू हो गया है। इन परियोजनाओं पर काम रुकवाने वाले पर्यावरणविद् जीडी अग्रवाल एक बार फिर अनशन पर हैं। लोहारी नागपाला को हरी झंडी देने के पीछे इसके निर्माण पर पहले ही करीब 600 करोड़ रुपये खर्च होने का तर्क रखा गया है जबकि दो अन्य परियोजनाओं भैरो घाटी और पाला मनेरी के प्रस्ताव को मंत्रियों के समूह ने सिरे से निरस्त कर दिया है। अखाड़ा परिषद और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन गंगा की अविरल धारा कायम रखने के लिए बांधों का विरोध करने रहे हैं लेकिन भाजपा के मुख्यमंत्री की ज्यादा से ज्यादा बांध बनवाने में दिलचस्पी छिपी नहीं है। जलविद्युत परियोजनाओं में भ्रष्टाचार के मामले भी कम नहीं है। योजनाओं के आबंटन में धांधली को लेकर दायर जनहित याचिका के बाद उत्तराखंड सरकार ने गत् 16 जुलाई को 56 परियोजनाओं के आबंटन रद्द कर दिए। इस मामले पर उच्च न्यायालय में सुनवाई से कुछ घंटे पहले ही सरकार ने ये आबंटन निरस्त किए।

इन परियोजाओं को लेकर सरकार पर ये आरोप लगाए जाते रहे हैं कि जलविद्युत परियोजनाएं कुछ शराब कंपनियों और कुछ मामलों में अज्ञात कंपनियों को आबंटित की गई हैं। साथ ही सरकार पर यह आरोप भी लगाया गया था कि उसने वर्ष 2008 की ऊर्जा नीति को दरकिनार करते हुए एक ही व्यक्ति या कंपनी को 3 से अधिक परियोजानाएं आबंटित कर दी हैं। सन् 2008 की ऊर्जा नीति के तहत राज्य में 25 मेगावॉट तक की जलविद्युत परियोजनाएं लगाने के लिए राज्य सरकार को 741 बोलियां आई थीं। इस साल की शुरुआत में सरकार ने चुपके से कुल 960 मेगावॉट की 56 जलविद्युत परियोजनाओं का आबंटन कर दिया था।
 
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