देहरादून जिला

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कोका कोला प्लांट के नाम पर उजड़ जायेगा छरबा गांव
Posted on 29 Apr, 2013 04:02 PM छरबा गांव में लगने वाले कोकाकोला प्लांट को यमुना नदी का पानी दिया जाएगा। जबकि यमुना में पानी की पहले ही कमी है और उत्तर प्रदेश व हरियाणा राज्यों के दो दर्जन से अधिक जिले यमुना के पानी पर ही पेयजल और खेती के लिए निर्भर हैं। बैराज से बिजली उत्पादन भी कोकाकोला को पानी दिए जाने के बाद घट जाएगा। एक अनुमान के लिए कोकाकोला प्लांट को प्रतिदिन 2 लाख लीटर पानी की आवश्यकता होगी। कंपनी यमुना से पानी लेने के साथ ही ट्यूबवेल लगाकर भी पानी भूगर्भीय जल खींचेगी और गांव में पानी का जलस्तर घट जाएगा जिसका सीधा मतलब है कि गांव में खेती, पशुपालन और पानी के स्रोत चौपट हो जाएंगे। उत्तराखंड सरकार ने 17 अप्रैल को हिंदुस्तान कोकाकोला बेवरेजेज प्राइवेट लिमिटेड के साथ इस बात का समझौता किया कि कंपनी को राजधानी देहरादून के निकट छरबा गांव में 368 बीघा ज़मीन 19 लाख रुपए प्रति बीघा के हिसाब से कोकाकोला प्लांट स्थापित करने के लिए दी जाएगी। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की मौजूदगी में हुए समझौते में सिडकुल के प्रबंध निदेशक राकेश शर्मा और कोकाकोला की ओर से एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर शुक्ला वासन ने हस्ताक्षर किए। सरकार ने इस समझौते को इतना महत्वपूर्ण समझा है कि फाइल पर हस्ताक्षर के बाद कोकाकोला के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट पैट्रिक जॉर्ज और मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने एक दूसरे को फाइल हस्तांतरित की। सरकार का दावा है कि छरबा में कोकाकोला प्लांट लगने से राज्य में 600 करोड़ का निवेश होगा और 1000 लोगों को रोज़गार मिलेगा। लेकिन विदेशी कंपनी से करार और रोज़गार के दावों के बीच सरकार ने उन ग्रामीणों को इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनाया जिनसे ग्राम समाज की ज़मीन लेकर यह ताना-बाना बुना जा रहा है।
मौत और विनाश के बढ़ते आंकड़े
Posted on 28 Apr, 2013 04:19 PM यह घटना रुद्रप्रयाग जिले के प्रख्यात तीर्थ स्थल मद्महेश्वर क्षेत्र
गंगा चिंतन
Posted on 04 Apr, 2013 04:25 PM जहां बांध बनने के समय चेतना नही थी वहां पर अब लोग खड़े हो रहे है। हां कहीं-कहीं पर प्रभावित बांध के पक्ष में भी खड़े हुए हैं और फिर भुगत रहे हैं। किंतु यह स्पष्ट है कि बांधों से कोई रोज़गार नहीं बढ़ा है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की स्वीकृतियों के अनुसार बांध कंपनियां ही अपनी रिपोर्ट बना कर भेज देती हैं। बाकी पर्यावरणीय और पुनर्वास के पक्ष की किसी शर्त का पालन होता है या नहीं इसकी कोई निगरानी नहीं। बस सरकारी कागजात के पुलिंदे बढ़ते जा रहे हैं। करोड़ों लोगों की आस्था का केन्द्र गंगा को मात्र बिजली बनाने का हेतु मान लिया जाए? गंगा के शरीर पर बांध बनाकर गंगा के प्राकृतिक स्वरूप को समाप्त किया जा रहा है। कच्चे हिमालय को खोद कर सुरंगे बनाई जा रही हैं। जिससे पहाड़ी जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। गंगा नदी नहीं अपितु एक संस्कृति है। पावन, पतितपावनी, पापतारिणी गंगा को मां का स्थान ना केवल हमारे पुराणों में दिया गया है वरन् गंगाजी हमारी सभ्यता की भी परिचायक हैं। वैसे तो गंगा का पूरा आधार-विस्तार अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार करता है। भारत देश में भी गंगा उत्तराखंड से उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में सागर से मिलती है। हम यदि गंगा की उपत्याकाओं और उनके जल संग्रहण क्षेत्र को भी समेटे तो हरियाणा-मध्य प्रदेश और उत्तर-पूर्व राज्यों को भी जोड़ना होगा। गंगा का उद्गम उत्तराखंड से होता है।
पानी के लिए नौलों को सुरक्षित रहना ही होगा
Posted on 01 Apr, 2013 10:01 AM पिथौरागढ़ नगर के निकट जाखपुरान और थरकोट क्षेत्र में ऐतिहासिक नौलों
पनचक्की से पूरी होंगी ऊर्जा जरूरतें
Posted on 05 Jan, 2013 11:09 AM उत्तराखंड का परंपरागत जल प्रबंधन मनुष्य की सामुदायिक क्षमता और आत्मनिर्भरता का बेहतरीन उदाहरण है। जल, अन्य प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग और प्रबंधन को और अधिक सरलीकृत करने हेतु इसमें ग्रामीणों के सहयोग लेने की और अधिक आवश्यकता आन पड़ी है। हिमालय की कठिन परिस्थितियों में यहां के निवासियों ने प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की टिकऊ विधियां तो विकसित की लेकिन सरकारी हस्तक्षेप ने इन विधियों को इनसे दूर कर दिया। भारत के हिमालय क्षेत्र के गांवों में ही लगभग दो लाख घराट यानी पनचक्कियां मौजूद हैं। इसी तरह विश्वभर के पहाड़ी क्षेत्रों में बीस लाख पनचक्कियां तीसरी, चौथी सदी से लोगों की सेवा कर रही हैं। इन पनचक्कियों से गेहूं पिसाई एवं अन्य तरीके के काम लिए जाते रहे हैं। अब इन पनचक्कियों के जरिए पिसाई के अलावा ऊर्जा ज़रूरतों को भी पूरा करने का काम लिए जाने की तकनीक विकसित होने पर इनका महत्व बढ़ रहा है। इन घराटों को ग्रामीण क्षेत्र के कारखाने के रूप में भी इस्तेमाल किए जाने से कई जगह इनको समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। इन घराटों में छिटपुट तकनीकी सुधार से ही इन मिलों की क्षमता में यहां काफी हद तक वृद्धि की सकती है वहीं इससे ऊर्जा उत्पादन एवं लेथ मशीन चलाने जैसे काम लिए जा सकते हैं। इससे पिसाई के साथ-साथ अन्य अभियांत्रिक कामों को भी इन पनचक्कियों द्वारा अंजाम दिया जा सकता है।
उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान यात्रा
Posted on 28 Nov, 2012 02:08 PM देहरादून। 21 नवंबर 2012 से उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान सहित अन्य संगठनों द्वारा जल, जंगल, जमीन स्वराज यात्रा प्रारंभ की जायेगी जो नौ दिसंबर दिल्ली राजघाट में समाप्त होगी। पत्रकारों से वार्ता करते हुए सुरेश भाई ने कहा है कि प्रदेश में विगत दस सालों में उद्योग और उर्जा परियोजनाओं के नाम पर 25 हजार हेक्टेयर की भूमि अधिग्रहीत हो चुकी है और किसान खेती से बेदखल हो गये हैं। खेती छोटे किसानों के लिए अलाभका
कस्तूरी बनी मृग की दुश्मन
Posted on 27 Oct, 2012 03:40 PM उत्तराखंड में हुए भौगोलिक और पर्यावरणीय बदलावों ने कस्तूरी मृग समेत कई दुर्लभ वन्यजीवों के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न कर दिया है। रही-सही कसर शिकारियों ने पूरी कर दी है।
टाइम बम बनतीं हिमालयी झीलें
Posted on 27 Oct, 2012 10:03 AM यह ग्लोबल वार्मिंग का असर है या क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कि अब ऊंचाई पर बर्फबारी नहीं, बारिश होने लगी है। हिमालयी क्षेत्रों की ग्लेशियर निर्मित झीलें राहत नहीं बल्कि आफत बन चुकी हैं।

उत्तराखंड राज्य में एक बड़ी समस्या झीलों में होना वाला ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट भी है। कुछ समय पहले तक यहां के ऊंचाई वाले स्थानों पर अधिक बारिश नहीं होती थी लेकिन अब यहां अक्सर बरसात होती है जिससे फ्लैश फ्लड का खतरा बढ़ गया है। इस तरह की बाढ़ में अब तक कितने ही घर, खेत और पशु तबाह हो चुके हैं। यहां तक कि गांवों का नामोनिशान तक मिट गया है। हिमालयी सदानीरा नदियां कभी भी तबाही बन सकती हैं। हिमालयी क्षेत्रों से सफेद बर्फ की चादर की जगह अब काले बादल खतरे के रूप में मंडराने लगे हैं। उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र की तमाम ग्लेशियर निर्मित झीलों की पारिस्थितिकी बदलने से राज्य के ऊपरी इलाकों में तबाही का खतरा बढ़ रहा है। ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (जीएलओएफ) की घटनाओं में अचानक बढ़ोतरी हो गई है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से मौसम में आए बदलाव ने भी क्षेत्र के पारिस्थितिकी को बड़े हद तक प्रभावित किया है। वैज्ञानिक यह स्पष्ट कर चुके हैं कि सिर्फ आर्कटिक या अंटार्कटिक ही नहीं, हिमालय के ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं। कभी पूरा उत्तराखंड राज्य हरे-भरे पहाड़ों से आच्छादित था लेकिन धीरे-धीरे स्थितियां बदल रही हैं। तमाम सदानीरा नदियां एवं प्राकृतिक जलस्रोतों में बदलाव आ रहे हैं उत्तराखंड की ग्लेशियर युक्त पर्वत श्रृंखलाएं व इससे जुड़ी घाटियां वाटर बैंक के रूप में जानी जाती हैं। इस क्षेत्र के 917 ग्लेशियर 3,550 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं।
हिमालय नीति जन संवाद
Posted on 08 Oct, 2012 02:46 PM जन संवाद के प्रथम दिवस के अवसर पर देश और दुनिया के परिदृश्य में हिमालय की भूमिका के विषय पर विचारकों ने प्रतिभागियों के मन और बुद्धि को झकझोरने वाले विचार व्यक्त कर बहुत गंभीरतापूर्वक आज की परिस्थिति को समझकर दिशा तय करने में सावधानी बरतने की ओर इशारा किया है। उन्होंने आज की वैश्विक साम्राज्यवादी ताकतों के बल पर नीति-नियन्ताओं की कमजोरी को भी उजागर किया है। 27-28 सितम्बर 2012 को उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून में हिमालय नीति जन संवाद का आयोजन किया गया है। इस अवसर पर हिमालय लोक नीति विषय पर चर्चा केन्द्रित रही है। इसमें लगभग 75 लोगों ने भाग लिया है। जन संवाद में अधिकांश वही लोग उपस्थित रहे जिन्होंने सन 2010 से हिमालय लोकनीति के मसौदे को तैयार किया था। गौरतलब है कि हिमालय राज्यों में विशेषकर उत्तराखंड ने चिपको, रक्षासूत्र, नदी बचाओ, हिमालय बचाओ के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का उदाहरण जो देश और दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है उसी के अनुरुप उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, हिमांचल के सामाजिक कार्यकर्ताओं, महिलाओं, किसानों, पंचायत प्रतिनिधियों ने मिलकर नवम्बर 2010 में एक हिमालय नीति की कल्पना की थी।
सुंदर तितलियां बनीं संदेह का सबब
Posted on 28 Sep, 2012 10:50 AM हिमालय क्षेत्र में पतंगों एवं तितलियों का विस्तार चौंकाने वाला है। हिमालय में पतंगों के विस्तार संबंध
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