भोपाल जिला

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विकास संवाद मीडिया फेलोशिप के लिये आवेदन आमंत्रित
Posted on 04 Feb, 2016 03:54 PM
फेलोशिप के दौरान पत्रकार को सम्बन्धित विषय पर 10 समाचार/आलेख प्रकाशित करवाने होंगे। इनमें नीतिगत मुद्दों पर 3 विस्तृत आलेख 1500 शब्दों में होना अनिवार्य है। फेलोशिप की समाप्ति पर 10,000 शब्दों की एक शोध रिपोर्ट प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा। चयनित पत्रकारों को फेलोशिप के दौरान कुल 84000 रुपए की सम्मान निधि शोध कार्य और लेखन के लिये दी जाएगी। भोपाल (सप्रेस)। विकास संवाद की ओर से जारी विज्ञप्ति में वरिष्ठ पत्रकार राकेश दीवान एवं राकेश मालवीय ने बताया है कि विकास और जनसरोकार के मुद्दों पर दी जाने वाली विकास संवाद मीडिया लेखन और शोध फेलोशिप की घोषणा कर दी गई है।

फेलोशिप के बारहवें साल में पोषण सुरक्षा पर चार फेलोशिप के साथ प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता पर भी एक फेलोशिप के लिये आवेदन किये जा सकते हैं। फेलोशिप के चार विषय पिछले दो साल की तरह वंचित, उपेक्षित या हाशिए पर खड़े समुदाय की पोषण सुरक्षा पर केन्द्रित होंगे।

इस साल एक और नया विषय प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता पर केन्द्रित होगा। फेलोशिप के लिये मुख्य धारा या स्वतंत्र पत्रकारिता करने वाले इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल, समाचार एजेंसी और प्रिंट माध्यम के पत्रकार 20 फरवरी 2016 तक आवेदन कर सकते हैं।
भोपाल का बड़ा तालाब यानी अन्तरराष्ट्रीय आर्द्रभूमि (वेटलैण्ड) खतरे में
Posted on 31 Jan, 2016 12:01 PM
यूँ तो झीलों की नगरी भोपाल में 18 तालाब और एक नदी है। इसीलिये इसे ‘सिटी ऑफ लेक’ कहा जाता है। अगर पूरे मध्य प्रदेश की बात करें, तो यहाँ लगभग 2400 छोटे-बड़े तालाब हैं।

इनमें भोपाल का बड़ा तालाब अन्तरराष्ट्रीय वेटलैण्ड के रूप में जाना जाता है। यह तालाब जलसंग्रहण की पुरानी तकनीक का बेहतरीन नमूना है और मनुष्यों द्वारा निर्मित यह तालाब एशिया का सबसे बड़ा तालाब है। इस तालाब का कैचमेंट क्षेत्र 361 किलोमीटर और पानी से भरा क्षेत्र 31 वर्ग किलोमीटर में फैला है।

आज भी सारे शहर की प्यास यह तालाब बुझा रहा है। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यहाँ पानी बी. कैटेगरी का है और यह पीने योग्य नहीं है। वर्तमान में इस तालाब के चारों ओर अवैध कब्ज़ा हो चुका है।
धीमी मौत मर रहा है बड़ा तालाब
Posted on 20 Dec, 2015 10:57 AM

गन्दे नालों से आ रही गन्दगी और खेतों की रासायनिक खाद के कारण न केवल भोपाल के मशहूर बड़े तालाब का पानी खराब हो रहा है बल्कि जलीय जीवों के लिये भी खतरा पैदा हो गया है।

.तकरीबन 35 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला और 362 वर्ग किलोमीटर जल भराव क्षेत्र वाला भोपाल का बड़ा तालाब शहर के कई मोहल्लों की नालियों की गन्दगी अपने आप में समेटता हुआ धीमी मौत की ओर बढ़ रहा है। उल्लेखनीय है कि पर्यटकों और पक्षियों को समान रूप से प्रिय इस तालाब से ही शहर की तकरीबन 40 फीसदी आबादी को पेयजल की आपूर्ति की जाती है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में यह स्वीकार किया कि भोपाल शहर के नेहरू नगर, नया बसेरा, खानुगाँव, हलालपुरा, संजय नगर, राजेन्द्र नगर और बैरागढ़ समेत नौ नालों की गन्दगी लम्बे समय से लगातार बड़े तालाब में मिल रही है।

गैस रिसाव और प्रदूषित भूजल से तीसरी पीढ़ी के ढाई हजार बच्चे जन्मजात विकृत
Posted on 07 Dec, 2015 03:35 PM 2-3 दिसम्बर 1984 की रात को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड इण्डिया लिमिटेड की कीटनाशक कारखाने की टंकी से रिसी 40 टन मिथाइल आयसोसायनेट (एमआईसी) गैस (जो एक गम्भीर रूप से घातक ज़हरीली गैस है) के कारण एक भयावह हादसा हुआ।

कारखाने के प्रबन्धन की लापरवाही और सुरक्षा के उपायों के प्रति गैर-ज़िम्मेदाराना रवैए के कारण एमआईसी की एक टंकी में पानी और दूसरी अशुद्धियाँ घुस गईं जिनके साथ एमआईसी की प्रचंड प्रतिक्रिया हुई और एमआईसी तथा दूसरी गैसें वातावरण में रिस गईं।
भोपाल गैस त्रासदी के 31 साल : शोक, जुलूस, पुतला दहन और प्रदर्शन
Posted on 04 Dec, 2015 10:22 AM भोपाल गैस त्रासदी पर विभिन्न जनसंगठनों, संस्थाओं के साथ-साथ सरकार एवं विपक्ष ने भी भीषणतम औद्योगिक घटना को याद करते हुए उसमें मारे गए लोगों के प्रति शोक व्यक्त किया। घटना के 31 साल बाद भी न्याय के इन्तजार कर रहे पीड़ितों के संगठनों ने जुलूस निकाले, प्रदर्शन किया और पुतला दहन किया। दूसरी ओर मुख्यमंत्री ने त्रासदी में मारे गए लोगों को लेकर आयोजित सर्वधर्म श्रद
नहीं बीते भोपाल गैस कांड से पीड़ितों के बुरे दिन
Posted on 03 Dec, 2015 04:32 PM साधो ये मुरदों का गांव
पीर मरे, पैगम्बर मरिहैं
मरिहैं जिन्दा जोगी
राजा मरिहैं परजा मरिहै
मरिहैं बैद और रोगी...
-कबीर


. 2 दिसम्बर,1984 की रात यूनियन कार्बाइड से रिसी जहरीली गैस ने हजारों को मौत की नींद सुला दिया था। जो लोग बचे हैं वे फेफड़े, आँख, दिल, गुर्दे, पेट और चमड़ी की बीमारी झेल रहे हैं। सवा पाँच लाख ऐसे गैस पीड़ित हैं, जिन्हें किसी तरह की राहत नहीं दी गई है। साथ ही 1997 के बाद से गैस पीड़ितों की मौत दर्ज नहीं की जा रही है।

सरकार भी यह मान चुकी है कि कारखाने में और उसके चारों तरफ तकरीबन 10 हजार मीट्रिक टन से अधिक कचरा ज़मीन में दबा हुआ है। अभी तक सरकारी स्तर पर इसे हटाने को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है। खुले आसमान के नीचे जमा यह कचरा बीते कई सालों से बरसात के पानी के साथ घुलकर अब तक 14 बस्तियों की 40 हजार आबादी के भूजल को जहरीला बना चुका है।
अमरीकी कम्पनियों के खिलाफ कार्रवाई में केन्द्र सरकार विफल
Posted on 01 Dec, 2015 10:10 AM

भोपाल गैस कांड पर विशेष


भोपाल में यूनियन कार्बाइड हादसे की 31वीं बरसी पर गैस पीड़ित मशाल जुलूस लेकर यूनियन कार्बाइड कम्पनी का विरोध करेंगे। हर बार की तरह इस बार भी गैस पीड़ित मुफ्त इलाज, मुआवजा के साथ-साथ जन्मजात विकलांगता वाले बच्चों की पुनर्वास सुविधाओं की भी माँग करेंगे।

इस तरह का विरोध पहली बार नहीं हो रहा है, बल्कि लगातार 30 वर्षों से गैस पीड़ित इसी तरह यूनियन कार्बाइड के खिलाफ अपना विरोध जताते आ रहे हैं। लेकिन इस दफा मामला इसलिये भी गम्भीर है, क्योंकि पेरिस में 125 देश मिलकर पर्यावरण प्रदूषण के चलते हो रहे जलवायु परिवर्तन पर बहस और दिशा तय करेंगे।
भयावह रिसाव
Posted on 30 Nov, 2015 03:27 PM

भोपाल गैस कांड पर विशेष


सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की पॉल्युशन मॉनिटरिंग लैब (पीएमएल) ने विषैले रसायनों की उपस्थिति का पता लगाने के लिये यूनियन कार्बाइड इण्डिया लिमिटेड (यूसीआईएल) फ़ैक्टरी के भीतर और इसके आसपास पानी और मिट्टी के नमूनों की जाँच की।

पीएमएल ने यूसीआईएल में विभिन्न कीटनाशकों के उत्पादन के लिये इस्तेमाल की जा रही प्रक्रियाओं की जाँच की और इनके आधार पर मिट्टी तथा पानी के नमूनों की जाँच के लिये रसायनों के चार समूहों का चयन किया। इसने क्लोरिनेटेड बेंज़ीन कम्पाउंड में 1,2 डाइक्लोरोबेंज़ीन, 1,3 डाइक्लोरोबेंज़ीन, 1,4 डाइक्लोरोबेंज़ीन तथा 1,2,3 ट्राइक्लोरोबेंज़ीन की जाँच की।
यूनियन कार्बाइड के कचरे से प्रदूषित भूजल
Posted on 29 Nov, 2015 12:33 PM

भोपाल गैस कांड पर विशेष


आज से 31 साल पहले दुनिया की सबसे भीषणतम औद्योगिक दुर्घटना (भोपाल गैस कांड) में हजारों लोगों की मौतें हुई थीं और हजारों लोग जिन्दगी भर पीछा न छोड़ने वाली बीमारियों से पीड़ित हो गए लेकिन अब भी हालात नहीं सुधरे हैं।

यूनियन कार्बाइड कारखाने में जमा कई टन कचरे की वजह से आसपास (करीब चार किमी की परिधि) में रहने वाले लोगों के जिन्दगी पर अब भी इसका बुरा साया बरकरार है। कचरे के जमीन में रिसने से यहाँ का भूजल इतनी बुरी तरह प्रदूषित हो चुका है कि यहाँ हर दिन एक व्यक्ति गम्भीर बीमारियों की चपेट में आ रहा है।

यहाँ के पानी की जाँच में खतरनाक तत्व मिले हैं और यह पानी प्रतिबन्धित भी कर दिया है लेकिन वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होने से लोगों को यही पानी पीने को मजबूर होना पड़ रहा है।
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