2-3 दिसम्बर 1984 की रात को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड इण्डिया लिमिटेड की कीटनाशक कारखाने की टंकी से रिसी 40 टन मिथाइल आयसोसायनेट (एमआईसी) गैस (जो एक गम्भीर रूप से घातक ज़हरीली गैस है) के कारण एक भयावह हादसा हुआ।
कारखाने के प्रबन्धन की लापरवाही और सुरक्षा के उपायों के प्रति गैर-ज़िम्मेदाराना रवैए के कारण एमआईसी की एक टंकी में पानी और दूसरी अशुद्धियाँ घुस गईं जिनके साथ एमआईसी की प्रचंड प्रतिक्रिया हुई और एमआईसी तथा दूसरी गैसें वातावरण में रिस गईं।
ये जहरीली गैसें हवा से भारी थीं और भोपाल शहर के करीब 40 किमी इलाके में फैल गईं। इनके असर से कई सालों में 20 हजार से ज़्यादा लोग मारे गए और लगभग साढ़े 5 लाख लोगों पर इसका अलग-अलग असर हुए। उस समय भोपाल की आबादी लगभग 9 लाख थी।
यूनियन कार्बाइड कारखाने के आस-पास के इलाके में पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों पर हुए असर का तो किसी ने सुध ही नहीं ली। यूनियन कार्बाइड इण्डिया लिमिटेड उस समय यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन के नियंत्रण में था जो अमरीका की एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी है, और अब डाउ केमिकल कम्पनी, यूएसए के अधीन है।
हादसे के 31वीं बरसी पर सम्भावना ट्रस्ट क्लिनिक के सदस्यों और चिकित्सकों द्वारा पीड़ितों और प्रदूषित भूजल से एक लाख से अधिक प्रभावितों पर अध्ययन पूरा किया है, जिसमें यह साफ हो गया कि 4 समान आबादी वाले समुदाय के गैस और भूजल से प्रभावितों में से अधिकतर बच्चे टीबी, कैंसर, लकवा यहाँ तक कि महिलाओं का प्रजनन स्वास्थ्य तथा शिशुओं और बच्चों का शारीरिक, मानसिक व सामाजिक विकास पर इस त्रासदी का असर पड़ा है।
सम्भावना के शोधकर्मियों ने वर्तमान पीढ़ी के ढाई हजार से ज़्यादा ऐसे बच्चों की पहचान की है, जिनमें जन्मजात विकृति है। अध्ययन करने वाले 30 स्वयंसेवी चिकित्सक देश के अलग-अलग हिस्सों से आये हुए थे। उन्होंने एक हजार सात सौ से अधिक बच्चों को जन्मजात विकृति से ग्रस्त प्रमाणित किया है। क्लिनिक में कारखाने के पास रहने वाले प्रदूषित भूजल के चलते विभिन्न बीमारियों से ग्रसित 31 हज़ार से ज़्यादा पीड़ित पंजीकृत हैं।
अध्ययन के फील्ड को-ऑर्डिनेटर रीतेश पाल बताते हैं कि यूनियन कार्बाइड के आस-पास के 22 बस्तियों में पानी प्रदूषित पाया गया है और इसकी पुष्टि लखनऊ की इण्डियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टॉक्सिकोलॉजिकल रिसर्च ने भी किया है और इसी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 22 बस्तियों में फ्री नल कनेक्शन देने के लिये आदेशित किया था। क्योंकि कचरे की सफाई हुई नहीं है इसी वजह से बस्तियों में भूजल प्रदूषण बढ़ रहा है।
कुछ बस्तियों में टेस्टिंग की गई, तो पाया कि कार्बाइड के जहर का असर इन बस्तियों में आ रहा है। शोध के आँकड़ों का विश्लेषण जारी है। उन्होंने कहा कि प्राथमिक अवलोकन से यह सामने आया है कि अपीड़ित आबादी के मुकाबले ज़हरीली गैस या प्रदूषित भूजल से प्रभावित आबादी में जन्मजात विकृतियों की दर कहीं ज़्यादा है। श्री पाल के अनुसार यह रिपोर्ट शीघ्र ही अन्तरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो जाएगी।
सम्भावना ट्रस्ट सिर्फ बच्चों की विकृति के बारे में ही जानकारी नहीं जुटाए हैं, बल्कि ऐसे बच्चों को इलाज मुहैया कराने में भी पीछे नहीं हैं। अब तक मंदबुद्धि, सेरेब्रल पॉल्सी, (अण्डकोश की विकृति), सिन्डेक्टिली-पॉलिटेक्टिली (ऊँगलियों की विकृति) तथा अन्य जन्मजात विकृतियों वाले 164 बच्चों को इलाज के लिये सरकारी और निजी चिकित्सा केन्द्रों में भेजा जा चुका है। इनमें से 43 बच्चों का इलाज पूरा हो चुका है। यह शोध 3 साल में पूरा हुआ है।
भोपाल गैस त्रासदी अगली पीढ़ियों के लिये चेतावनी बन गई है। ज़हरों से पीड़ित माता-पिता के शिशु जन्मजात विकृतियों के साथ पैदा हो रहे हैं। द्वारका नगर की शान्ति बाई ने बताया कि सम्भावना के चिकित्सकों ने उनके 12 साल के लड़के अभिषेक को जन्मजात हृदय रोग बताने के बाद भोपाल मेमोरियल अस्पताल में उसे भर्ती कराया गया, जहाँ उसका सफल ऑपरेशन हुआ।
न्यू आरिफ नगर की आयशा ने अपने 8 साल के बेटे अमन का हमीदिया अस्पताल में अण्डकोश की विकृति का ऑपरेशन करवाया। वल्लभ नगर के जीतेन्द्र वैश्य ने बताया कि इसी अस्पताल में उनकी 7 साल की लड़की वैष्णवी का एक छोटा ऑपरेशन होने के बाद वह बोलने लगी है।
न्यू शिव नगर के 9 साल के हिमांशु साहू के टॉर्टिकॉलिस के सफल ऑपरेशन के बाद गर्दन सीधी हो गई। जन्मजात विकृतियों वाले 120 बच्चों ने सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाया है। शोधकर्ता इकाई के हरिओम विश्वकर्मा ने बताया कि प्रभावित बस्तियों के बहुसंख्यक बच्चों को सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध सुविधाओं से ही पर्याप्त इलाज दिया जा रहा है।
क्लिनिक के जन-जागरुकता ग्रुप के सदस्यों ने मण्डीदीप एवं गोविन्दपुरा औद्योगिक क्षेत्र स्थित कपड़ा, दवा, प्लास्टिक और पेय पदार्थ कारख़ानों से होने वाले जल प्रदूषण के सम्बन्ध में दस्तावेज़ एवं फोटो इकट्ठा किये हैं।
पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति : भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉरमेशन एंड एक्शन के सतीनाथ षडंगी बताते हैं कि 1969 से 1984 तक चले यूनियन कार्बाइड के कामों के कारण कारखाने के अहाते में और आस-पास ज़हरीला कचरा जमा होता रहा जिससे यहाँ की ज़मीन और पानी बहुत दूषित हो गया है।
आज तक राज्य या केन्द्र सरकार ने इसके कारण होने वाली क्षति के आकलन के लिये कोई समग्र अध्ययन नहीं करवाया है। इसके उलट इस समस्या को कम आँकते हुए यह दिखाया जा रहा है कि मामला केवल कारखाने में जमा 345 टन ठोस कचरे का निपटारा का ही है। यह मामला उच्चतम न्यायलय के सामने लम्बित है, जो उपचारात्मक पेटीशन के तहत है।
इन्दौर के पास इस कचरे को गाड़ देने या जला देने का मौजूदा प्रस्ताव एकदम गलत है और इससे तो समस्या को भोपाल से हटाकर इन्दौर ले जाने का ही काम होगा। इसके विपरीत 2009-10 में नेशनल इंवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट, नागपुर (नीरी) और नेशनल जियोफिजिक़ल रिसर्च इंस्टिट्यूट, हैदराबाद (एनजीआरआई) द्वारा किये गए एक अध्ययन से यह पता चला था कि जहरीले कचरे से प्रभावित कुल ज़मीन 11 हजार मीट्रिक टन है।
चूँकि भारत सरकार ने यह हलफ़नामा पेश किया कि पीथमपुर (इन्दौर) की निजी भट्टी का आधुनिकीकरण हो चुका है और वह जहरीला धुआँ नहीं छोड़ता है, तो न्यायालय ने भोपाल कारखाने के कचरे के टेस्ट जलावन की अनुमति दी है। इस टेस्ट के नतीजों का इन्तज़ार है।
दूषित करने वाला ही हर्जाना भरेगा, इस सिद्धान्त के आधार पर डाउ कम्पनी की ज़िम्मेदारी है कि वह यूनियन कार्बाइड के आस-पास प्रभावित पर्यावरण की आधुनिक टेक्नोलॉजी की मदद से क्षतिपूर्ति का खर्च उठाए। इसी तरह कारखाने के आस-पास रहने वाले प्रभावित लोगों को साफ पीने का पानी मुहैया कराने का खर्च भी डाउ को उठाना पड़ेगा।
हालांकि लोगों तक साफ पीने का पानी पहुँचाने की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से राज्य सरकार की है। राज्य सरकार अब भी अपने इस दायित्व को निभाने में अक्षम है। दूसरी ओर दूषित पानी के कारण बीमार हो रहे प्रभावितों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा तक नहीं मिल पा रही है।
अनुमानित 11 हजार मीट्रिक टन दूषित ज़मीन या मिट्टी को ठीक करना ही सबसे कठिन कार्य है। सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरनमेंट, दिल्ली की अगुवाई में अप्रैल 2013 में हित-धारकों और विशेषज्ञों को एक मंच पर लाकर एक कार्ययोजना बनाने की कोशिश की गई थी।
इस एक्शन प्लान का एक मसौदा तो बनाया गया है, परन्तु इसमें मध्य प्रदेश सरकार सहित अन्य हितधारकों और विशेषज्ञों को जोड़ने की आवश्यकता है। इस विशाल काम के प्रति राज्य सरकार की उदासीनता चिन्ताजनक है। यूएन पर्यावरण कार्यक्रम की मदद से भोपाल के दूषित इलाकों की सफाई का काम सम्भव है। परन्तु इस सफाई का पूरा खर्च डाउ केमीकल कम्पनी को उठाना चाहिए।
कारखाने के प्रबन्धन की लापरवाही और सुरक्षा के उपायों के प्रति गैर-ज़िम्मेदाराना रवैए के कारण एमआईसी की एक टंकी में पानी और दूसरी अशुद्धियाँ घुस गईं जिनके साथ एमआईसी की प्रचंड प्रतिक्रिया हुई और एमआईसी तथा दूसरी गैसें वातावरण में रिस गईं।
ये जहरीली गैसें हवा से भारी थीं और भोपाल शहर के करीब 40 किमी इलाके में फैल गईं। इनके असर से कई सालों में 20 हजार से ज़्यादा लोग मारे गए और लगभग साढ़े 5 लाख लोगों पर इसका अलग-अलग असर हुए। उस समय भोपाल की आबादी लगभग 9 लाख थी।
यूनियन कार्बाइड कारखाने के आस-पास के इलाके में पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों पर हुए असर का तो किसी ने सुध ही नहीं ली। यूनियन कार्बाइड इण्डिया लिमिटेड उस समय यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन के नियंत्रण में था जो अमरीका की एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी है, और अब डाउ केमिकल कम्पनी, यूएसए के अधीन है।
हादसे के 31वीं बरसी पर सम्भावना ट्रस्ट क्लिनिक के सदस्यों और चिकित्सकों द्वारा पीड़ितों और प्रदूषित भूजल से एक लाख से अधिक प्रभावितों पर अध्ययन पूरा किया है, जिसमें यह साफ हो गया कि 4 समान आबादी वाले समुदाय के गैस और भूजल से प्रभावितों में से अधिकतर बच्चे टीबी, कैंसर, लकवा यहाँ तक कि महिलाओं का प्रजनन स्वास्थ्य तथा शिशुओं और बच्चों का शारीरिक, मानसिक व सामाजिक विकास पर इस त्रासदी का असर पड़ा है।
सम्भावना के शोधकर्मियों ने वर्तमान पीढ़ी के ढाई हजार से ज़्यादा ऐसे बच्चों की पहचान की है, जिनमें जन्मजात विकृति है। अध्ययन करने वाले 30 स्वयंसेवी चिकित्सक देश के अलग-अलग हिस्सों से आये हुए थे। उन्होंने एक हजार सात सौ से अधिक बच्चों को जन्मजात विकृति से ग्रस्त प्रमाणित किया है। क्लिनिक में कारखाने के पास रहने वाले प्रदूषित भूजल के चलते विभिन्न बीमारियों से ग्रसित 31 हज़ार से ज़्यादा पीड़ित पंजीकृत हैं।
अध्ययन के फील्ड को-ऑर्डिनेटर रीतेश पाल बताते हैं कि यूनियन कार्बाइड के आस-पास के 22 बस्तियों में पानी प्रदूषित पाया गया है और इसकी पुष्टि लखनऊ की इण्डियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टॉक्सिकोलॉजिकल रिसर्च ने भी किया है और इसी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 22 बस्तियों में फ्री नल कनेक्शन देने के लिये आदेशित किया था। क्योंकि कचरे की सफाई हुई नहीं है इसी वजह से बस्तियों में भूजल प्रदूषण बढ़ रहा है।
कुछ बस्तियों में टेस्टिंग की गई, तो पाया कि कार्बाइड के जहर का असर इन बस्तियों में आ रहा है। शोध के आँकड़ों का विश्लेषण जारी है। उन्होंने कहा कि प्राथमिक अवलोकन से यह सामने आया है कि अपीड़ित आबादी के मुकाबले ज़हरीली गैस या प्रदूषित भूजल से प्रभावित आबादी में जन्मजात विकृतियों की दर कहीं ज़्यादा है। श्री पाल के अनुसार यह रिपोर्ट शीघ्र ही अन्तरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो जाएगी।
सम्भावना ट्रस्ट सिर्फ बच्चों की विकृति के बारे में ही जानकारी नहीं जुटाए हैं, बल्कि ऐसे बच्चों को इलाज मुहैया कराने में भी पीछे नहीं हैं। अब तक मंदबुद्धि, सेरेब्रल पॉल्सी, (अण्डकोश की विकृति), सिन्डेक्टिली-पॉलिटेक्टिली (ऊँगलियों की विकृति) तथा अन्य जन्मजात विकृतियों वाले 164 बच्चों को इलाज के लिये सरकारी और निजी चिकित्सा केन्द्रों में भेजा जा चुका है। इनमें से 43 बच्चों का इलाज पूरा हो चुका है। यह शोध 3 साल में पूरा हुआ है।
भोपाल गैस त्रासदी अगली पीढ़ियों के लिये चेतावनी बन गई है। ज़हरों से पीड़ित माता-पिता के शिशु जन्मजात विकृतियों के साथ पैदा हो रहे हैं। द्वारका नगर की शान्ति बाई ने बताया कि सम्भावना के चिकित्सकों ने उनके 12 साल के लड़के अभिषेक को जन्मजात हृदय रोग बताने के बाद भोपाल मेमोरियल अस्पताल में उसे भर्ती कराया गया, जहाँ उसका सफल ऑपरेशन हुआ।
न्यू आरिफ नगर की आयशा ने अपने 8 साल के बेटे अमन का हमीदिया अस्पताल में अण्डकोश की विकृति का ऑपरेशन करवाया। वल्लभ नगर के जीतेन्द्र वैश्य ने बताया कि इसी अस्पताल में उनकी 7 साल की लड़की वैष्णवी का एक छोटा ऑपरेशन होने के बाद वह बोलने लगी है।
न्यू शिव नगर के 9 साल के हिमांशु साहू के टॉर्टिकॉलिस के सफल ऑपरेशन के बाद गर्दन सीधी हो गई। जन्मजात विकृतियों वाले 120 बच्चों ने सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाया है। शोधकर्ता इकाई के हरिओम विश्वकर्मा ने बताया कि प्रभावित बस्तियों के बहुसंख्यक बच्चों को सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध सुविधाओं से ही पर्याप्त इलाज दिया जा रहा है।
क्लिनिक के जन-जागरुकता ग्रुप के सदस्यों ने मण्डीदीप एवं गोविन्दपुरा औद्योगिक क्षेत्र स्थित कपड़ा, दवा, प्लास्टिक और पेय पदार्थ कारख़ानों से होने वाले जल प्रदूषण के सम्बन्ध में दस्तावेज़ एवं फोटो इकट्ठा किये हैं।
पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति : भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉरमेशन एंड एक्शन के सतीनाथ षडंगी बताते हैं कि 1969 से 1984 तक चले यूनियन कार्बाइड के कामों के कारण कारखाने के अहाते में और आस-पास ज़हरीला कचरा जमा होता रहा जिससे यहाँ की ज़मीन और पानी बहुत दूषित हो गया है।
आज तक राज्य या केन्द्र सरकार ने इसके कारण होने वाली क्षति के आकलन के लिये कोई समग्र अध्ययन नहीं करवाया है। इसके उलट इस समस्या को कम आँकते हुए यह दिखाया जा रहा है कि मामला केवल कारखाने में जमा 345 टन ठोस कचरे का निपटारा का ही है। यह मामला उच्चतम न्यायलय के सामने लम्बित है, जो उपचारात्मक पेटीशन के तहत है।
इन्दौर के पास इस कचरे को गाड़ देने या जला देने का मौजूदा प्रस्ताव एकदम गलत है और इससे तो समस्या को भोपाल से हटाकर इन्दौर ले जाने का ही काम होगा। इसके विपरीत 2009-10 में नेशनल इंवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट, नागपुर (नीरी) और नेशनल जियोफिजिक़ल रिसर्च इंस्टिट्यूट, हैदराबाद (एनजीआरआई) द्वारा किये गए एक अध्ययन से यह पता चला था कि जहरीले कचरे से प्रभावित कुल ज़मीन 11 हजार मीट्रिक टन है।
चूँकि भारत सरकार ने यह हलफ़नामा पेश किया कि पीथमपुर (इन्दौर) की निजी भट्टी का आधुनिकीकरण हो चुका है और वह जहरीला धुआँ नहीं छोड़ता है, तो न्यायालय ने भोपाल कारखाने के कचरे के टेस्ट जलावन की अनुमति दी है। इस टेस्ट के नतीजों का इन्तज़ार है।
दूषित करने वाला ही हर्जाना भरेगा, इस सिद्धान्त के आधार पर डाउ कम्पनी की ज़िम्मेदारी है कि वह यूनियन कार्बाइड के आस-पास प्रभावित पर्यावरण की आधुनिक टेक्नोलॉजी की मदद से क्षतिपूर्ति का खर्च उठाए। इसी तरह कारखाने के आस-पास रहने वाले प्रभावित लोगों को साफ पीने का पानी मुहैया कराने का खर्च भी डाउ को उठाना पड़ेगा।
हालांकि लोगों तक साफ पीने का पानी पहुँचाने की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से राज्य सरकार की है। राज्य सरकार अब भी अपने इस दायित्व को निभाने में अक्षम है। दूसरी ओर दूषित पानी के कारण बीमार हो रहे प्रभावितों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा तक नहीं मिल पा रही है।
अनुमानित 11 हजार मीट्रिक टन दूषित ज़मीन या मिट्टी को ठीक करना ही सबसे कठिन कार्य है। सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरनमेंट, दिल्ली की अगुवाई में अप्रैल 2013 में हित-धारकों और विशेषज्ञों को एक मंच पर लाकर एक कार्ययोजना बनाने की कोशिश की गई थी।
इस एक्शन प्लान का एक मसौदा तो बनाया गया है, परन्तु इसमें मध्य प्रदेश सरकार सहित अन्य हितधारकों और विशेषज्ञों को जोड़ने की आवश्यकता है। इस विशाल काम के प्रति राज्य सरकार की उदासीनता चिन्ताजनक है। यूएन पर्यावरण कार्यक्रम की मदद से भोपाल के दूषित इलाकों की सफाई का काम सम्भव है। परन्तु इस सफाई का पूरा खर्च डाउ केमीकल कम्पनी को उठाना चाहिए।
क्र.सं. | जीपीएस नं. | कम्युनिटी | बोरवेल गहराई | टेस्ट डेट | सीओडी | बिलस्टीन टेस्ट |
1. | 22 | रिजाल्दर | 180 | 30/03/2015 | 40 | पॉजिटिव |
2. | 21 | रम्भा नगर | 165 | 30/03/2015 | 80 | पॉजिटिव |
3. | 28 | सन्त कंवर राम नगर | 240 | 30/03/2015 | 40 | पॉजिटिव |
4. | 16 | एहले हदीस | 150 | 11/02/2015 | 40 | पॉजिटिव |
5. | 17 | सुंदर नगर | 55 | 11/02/2015 | 40 | पॉजिटिव |
6. | 18 | न्यू कबदखाना | 140 | 27/01/2015 | 50 | पॉजिटिव |
7. | 32 | लक्ष्मी नगर | 200 | 27/01/2015 | 40 | पॉजिटिव |
8. | 34 | चंदन नगर पीपुल्स हॉस्पीटल |
| 20/01/2015 | 80 |
|
9. | 29 | निशतपुरा, बरेसिया रोड | 170 | 20/01/2015 | 90 | पॉजिटिव |
10. | 36 | छोला मन्दिर | 60 | 20/01/2015 | 70 | पॉजिटिव |
11. | 25 | द्वारका नगर | 170 | 20/01/2015 | 100 | पॉजिटिव |
12. | 33 | लक्ष्मी नगर, शिव मन्दिर | 180 | 20/01/2015 | 40 | पॉजिटिव |
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Post By: RuralWater