धीमी मौत मर रहा है बड़ा तालाब

गन्दे नालों से आ रही गन्दगी और खेतों की रासायनिक खाद के कारण न केवल भोपाल के मशहूर बड़े तालाब का पानी खराब हो रहा है बल्कि जलीय जीवों के लिये भी खतरा पैदा हो गया है।

.तकरीबन 35 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला और 362 वर्ग किलोमीटर जल भराव क्षेत्र वाला भोपाल का बड़ा तालाब शहर के कई मोहल्लों की नालियों की गन्दगी अपने आप में समेटता हुआ धीमी मौत की ओर बढ़ रहा है। उल्लेखनीय है कि पर्यटकों और पक्षियों को समान रूप से प्रिय इस तालाब से ही शहर की तकरीबन 40 फीसदी आबादी को पेयजल की आपूर्ति की जाती है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में यह स्वीकार किया कि भोपाल शहर के नेहरू नगर, नया बसेरा, खानुगाँव, हलालपुरा, संजय नगर, राजेन्द्र नगर और बैरागढ़ समेत नौ नालों की गन्दगी लम्बे समय से लगातार बड़े तालाब में मिल रही है।

खास बात ये कि यह पहला मौका है जब सरकार ने खुद तालाब में सीवेज का पानी मिलने की बात मानी है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का मानना है कि तालाब में रोज करीब 25 करोड़ लीटर गन्दगी मिल रही है। अगर इसका उपचार नहीं किया गया तो जल्द ही यह पानी पीने लायक नहीं रह जाएगा।

मुख्यमंत्री की यह स्वीकारोक्ति हताश करने वाली है क्योंकि भोपाल का बड़ा तालाब न केवल शहर की बड़ी आबादी को पीने का पानी मुहैया कराता है बल्कि 52 किलोमीटर लम्बी तटरेखा वाला यह तालाब पर्यटन, वाटर स्पोटर्स और अन्य गतिविधियों का भी बहुत बड़ा अड्डा है।

अतीत में भोपाल नगर निगम भी मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम पर यह आरोप लगा चुका है कि उसके द्वारा चलाए जा रहे क्रूज और डीजल चालित मोटर बोट की वजह से बड़े तालाब का पानी प्रदूषित हो रहा है। लेकिन उस वक्त मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इन आरोपों को यह कहकर खारिज कर दिया था कि प्रदूषण नियंत्रण मानकों के भीतर है।

उल्लेखनीय है कि बड़े तालाब के संरक्षण और विकास के लिये मास्टर प्लान बनाने का काम गुजरात की सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल प्लानिंग ऐंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी को सौंपा गया था। उसने रिपोर्ट बनाकर राज्य सरकार को दे भी दी है लेकिन उसे अज्ञात वजहों से सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है।

इससे पहले कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने विस्तृत अध्ययन के बाद कहा था कि खेतों में बड़े पैमाने पर रासायनिक खाद के इस्तेमाल के कारण हर वर्ष इस तालाब में 450 टन रासायनिक कचरा भी मिल रहा है। तालाब के पानी के उपचार के लिये लगाए गए चार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में से तीन बन्द पड़े हैं जबकि केवल एक ही पूरी क्षमता से काम कर रहा है।

ग़ौरतलब है कि अभी चन्द रोज पहले आई पर्यावरण नियोजन पर काम करने वाले संगठन एप्को की रिपोर्ट में भी भोपाल के विभिन्न तालाबों के बारे में बहुत निराश करने वाले खुलासे किये गए।

रिपोर्ट के मुताबिक बीते डेढ़ दशक में भोपाल के छोटे तालाब में जलीव वनस्पतियों की संख्या 50 से घटकर 12 हो गई जबकि जलीय जीव 31 से घटकर 20 रह गए। बड़े तालाब को छोड़कर भोपाल तथा उसके आसपास के लगभग सभी तालाबों में ऐसा ही हुआ है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पानी की यह दुर्दशा नालियों से बहकर आने वाली गन्दगी, रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से हुई है। लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा बड़े तालाब में नालों का पानी मिलने की स्वीकारोक्ति के बाद अब बड़े तालाब को लेकर नए सिरे से शंकाएं सर उठाने लगी हैं।
 

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Post By: RuralWater
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