हिमयुग हमारी सृष्टि की एक महत्वपूर्ण घटना है जो घटती है अर्थात यह एक चक्रीय प्रक्रिया है। जैसे गर्मी के बाद ठंड का मौसम आता है और ठंड के बाद गर्मी का मौसम। इसी तरह ग्लोबल वार्मिंग के बाद हिमयुग आता है।
निश्चित तौर पर राजनेताओं और सरकारों का काम है कि वे इन समस्याओं को सुलझाएं, न कि बीती हुई गलतियों के लिए एक-दूसरे को कोसें। ठीक है कि अतीत में हमने प्रकृति के साथ खिलवाड़ किए। पर्यावरण को हमने प्रदूषित किया इसका असर ग्लोबल वार्मिंग के तौर पर आया। लेकिन प्रकृति में यह सब सहने की क्षमता भी है और इसे संतुलित करने की ताकत भी। इसलिए यह एक ही पक्ष है कि हमारी वजह से ग्लोबल वार्मिंग है। हकीकत यह भी है कि पृथ्वी अब अपने आप गर्म होने लगी है। यकीनन, वह दिन दूर नहीं, जब आर्कटिक महासागर बर्फ विहीन होगा। (अगले 10-20 वर्षों में यह होने लगेगा) तब विस्कोनसिन व मिनसोटा में बर्फबारी होगी लेकिन फिर बर्फ पिघलेगा नहीं शायद वह पहला साल होगा, जब उत्तरी गोलार्द्ध में गर्मी नहीं पड़ेगी। हिमयुग क्यों आते हैं और क्यों चले जाते हैं? हममें से किसी के पास इसकी सही-सही जानकारी नहीं है। वास्तव में, यह किसी रहस्य से कम नहीं है। लेकिन इसमें भी संदेह नहीं कि यह हमारी सृष्टि की एक महत्वपूर्ण घटना है, जो घटती ही है। अर्थात यह एक चक्रीय प्रक्रिया है। जैसे गर्मी के बाद ठंड का मौसम आता है और ठंड के बाद गर्मी का मौसम। इसी तरह से जब पृथ्वी का तापमान अधिकतम हो जाता है, और कई दशकों तक तापमान अपने चरम पर होता है, तब हिमयुग का आगमन होता है। इस आधार पर देखें, तो सवाल उठता है कि हम किस अवस्था में हैं? निश्चित तौर पर यह उच्चतम तापमान या अधिकतम तापमान से ठीक पहले की अवस्था है। क्या हम इसे अनुभव नहीं कर पा रहे हैं? याद कीजिए कि बीते कुछ वर्षों में कितनी गर्मी पड़ने लगी है। बीते दिनों आर्कटिक व अटलांटिक महासागर के बीच में स्थित ग्रीनलैंड की हिमनदियों पर काफी काम हुए। सौभाग्य से मैं भी उन्हीं अध्ययन-दलों में शामिल था। जगह-जगह बर्फों में गहरे छिद्र कर अंदर के तापमान का मुआयना किया गया। यही नहीं, भूतल की बर्फ को निकालकर, जमीन की बर्फ से उसकी तुलना की गई। इन अध्ययनों के विश्लेषणों से यह निष्कर्ष निकला है कि हम तेजी से हिमयुग की ओर बढ़ रहे हैं। अगर अतीत को खंगालें और फिर बात करें, तो चार लाख बरसों में चौथी बार हम हिमयुग के मुहाने पर हैं।
ऐसे में, यह अविश्वसनीय लगता है कि उच्चतम तापमान पर चले जाने के बाद एकाएक इसमें गिरावट आएगी और इतनी गिरावट कि हिमयुग में प्रवेश कर जाएंगे। यह भी प्रश्न प्रासंगिक है कि अगर भविष्य में यह दृश्य आता है, तो इसके लिए कौन से कारक जिम्मेदार होंगे? बहरहाल, उत्तर काफी आसान है। जब पृथ्वी बहुत ज्यादा गरम हो जाएगी, तब दोनों ध्रुवों की बर्फ पिघल जएगी। नतीजतन, व्यापक जलवायु परिवर्तन होगा। यानी मौसम का मिजाज तेजी से बदलेगा। इसी स्थिति से हिमयुग की शुरुआत होगी। हालांकि, यह थ्योरी कहने-सुनने में जितनी आसान है, उतनी होने में नहीं है। इसलिए भी तो हिमयुग का आरंभ और अंत, दोनों अब तक रहस्य का विषय है।
मैं अमेरिकी नौसेना में मौसम विज्ञानी के तौर पर कार्य कर चुका हूं। इसलिए मेरे पास मौसम व समुद्र, दोनों के हालात को देखने-समझने का बड़ा अनुभव है। इसी के आधार पर मै यह बता रहा हूं कि ग्रीनलैंड व अंटार्कटिका के ग्लेशियरों में से जो आइस रिकॉर्ड्स हमने इकट्ठा किए, वे काफी चौंकाने वाले थे। यह भी मुमकिन है कि कोई आगे चलकर इस अध्ययन को गलत ठहरा दे और यह हो सकता है कि वे स्वयं गलत साबित हो जाएं। लेकिन जलडमरूमध्य, जल-प्रवाह, सतह के पानी व बर्फ का तापमान, उसकी धारा और समुद्र के ऊपर बहने वाली हवा यही संकेत देते हैं कि आने वाले वक्त में जबर्दस्त ठंड पड़ेगी।
अब प्रश्न उठता है कि हिमयुग की शुरुआत होगी, तब आगे क्या होगा? हो सकता है कि प्रकृति अपने आप कार्बन डाइऑक्साइड या मीथेन गैस की उत्पत्ति करे या हमें करनी पड़ी। ताकि ग्रीन हाउस प्रभाव कायम रह सके और उत्तरी गोलार्द्ध का वातावरण गरम हो पाए। अतीत के हिमयुगों की स्थिति व उनके वैज्ञानिक अध्ययनों से हमने पाया है कि ध्रुवीय इलाकों में – 40 डिग्री फॉरेनहाइट से – 70 डिग्री फॉरेनहाइट के बीच बर्फीली हवा बहेगी। पृथ्वी से सटकर बहने वाली हवा में पानी के कण काफी मात्रा में मौजूद रहेंगे। चूंकि यह हवा जमीन से सटी होगी, इसलिए पृथ्वी के प्रभाव से यह ऊपरी हवा की तुलना में कम ठंडी होगी और कम घनी होगी। ऐसे में, उन जीव-जंतुओं के अस्तित्व में बने रहने की संभावना ज्यादा होगी, जो बर्फ में रह सकते हैं या जिनके शरीर में काफी बाल होंगे-मसलन, पोलर बियर।
अब सवाल यह है कि इन सबके लिए हम ग्लोबल वार्मिंग को कितना जिम्मेदार ठहराएंगे? मेरे विचार से दुनिया में काफी समस्याएं, जिन पर गहन चिंतन-मनन की आवश्यकता है। निश्चित तौर पर राजनेताओं और सरकारों का काम है कि वे इन समस्याओं को सुलझाएं, न कि बीती हुई गलतियों के लिए एक-दूसरे को कोसें। ठीक है कि अतीत में हमने प्रकृति के साथ खिलवाड़ किए। पर्यावरण को हमने प्रदूषित किया इसका असर ग्लोबल वार्मिंग के तौर पर आया। लेकिन प्रकृति में यह सब सहने की क्षमता भी है और इसे संतुलित करने की ताकत भी। इसलिए यह एक ही पक्ष है कि हमारी वजह से ग्लोबल वार्मिंग है। हकीकत यह भी है कि पृथ्वी अब अपने आप गर्म होने लगी है।
(पुस्तक द टिपिंग पॉइंट : द कमिंग वेदर ग्लोबल क्राइसिस से संपादित अंश)
निश्चित तौर पर राजनेताओं और सरकारों का काम है कि वे इन समस्याओं को सुलझाएं, न कि बीती हुई गलतियों के लिए एक-दूसरे को कोसें। ठीक है कि अतीत में हमने प्रकृति के साथ खिलवाड़ किए। पर्यावरण को हमने प्रदूषित किया इसका असर ग्लोबल वार्मिंग के तौर पर आया। लेकिन प्रकृति में यह सब सहने की क्षमता भी है और इसे संतुलित करने की ताकत भी। इसलिए यह एक ही पक्ष है कि हमारी वजह से ग्लोबल वार्मिंग है। हकीकत यह भी है कि पृथ्वी अब अपने आप गर्म होने लगी है। यकीनन, वह दिन दूर नहीं, जब आर्कटिक महासागर बर्फ विहीन होगा। (अगले 10-20 वर्षों में यह होने लगेगा) तब विस्कोनसिन व मिनसोटा में बर्फबारी होगी लेकिन फिर बर्फ पिघलेगा नहीं शायद वह पहला साल होगा, जब उत्तरी गोलार्द्ध में गर्मी नहीं पड़ेगी। हिमयुग क्यों आते हैं और क्यों चले जाते हैं? हममें से किसी के पास इसकी सही-सही जानकारी नहीं है। वास्तव में, यह किसी रहस्य से कम नहीं है। लेकिन इसमें भी संदेह नहीं कि यह हमारी सृष्टि की एक महत्वपूर्ण घटना है, जो घटती ही है। अर्थात यह एक चक्रीय प्रक्रिया है। जैसे गर्मी के बाद ठंड का मौसम आता है और ठंड के बाद गर्मी का मौसम। इसी तरह से जब पृथ्वी का तापमान अधिकतम हो जाता है, और कई दशकों तक तापमान अपने चरम पर होता है, तब हिमयुग का आगमन होता है। इस आधार पर देखें, तो सवाल उठता है कि हम किस अवस्था में हैं? निश्चित तौर पर यह उच्चतम तापमान या अधिकतम तापमान से ठीक पहले की अवस्था है। क्या हम इसे अनुभव नहीं कर पा रहे हैं? याद कीजिए कि बीते कुछ वर्षों में कितनी गर्मी पड़ने लगी है। बीते दिनों आर्कटिक व अटलांटिक महासागर के बीच में स्थित ग्रीनलैंड की हिमनदियों पर काफी काम हुए। सौभाग्य से मैं भी उन्हीं अध्ययन-दलों में शामिल था। जगह-जगह बर्फों में गहरे छिद्र कर अंदर के तापमान का मुआयना किया गया। यही नहीं, भूतल की बर्फ को निकालकर, जमीन की बर्फ से उसकी तुलना की गई। इन अध्ययनों के विश्लेषणों से यह निष्कर्ष निकला है कि हम तेजी से हिमयुग की ओर बढ़ रहे हैं। अगर अतीत को खंगालें और फिर बात करें, तो चार लाख बरसों में चौथी बार हम हिमयुग के मुहाने पर हैं।
ऐसे में, यह अविश्वसनीय लगता है कि उच्चतम तापमान पर चले जाने के बाद एकाएक इसमें गिरावट आएगी और इतनी गिरावट कि हिमयुग में प्रवेश कर जाएंगे। यह भी प्रश्न प्रासंगिक है कि अगर भविष्य में यह दृश्य आता है, तो इसके लिए कौन से कारक जिम्मेदार होंगे? बहरहाल, उत्तर काफी आसान है। जब पृथ्वी बहुत ज्यादा गरम हो जाएगी, तब दोनों ध्रुवों की बर्फ पिघल जएगी। नतीजतन, व्यापक जलवायु परिवर्तन होगा। यानी मौसम का मिजाज तेजी से बदलेगा। इसी स्थिति से हिमयुग की शुरुआत होगी। हालांकि, यह थ्योरी कहने-सुनने में जितनी आसान है, उतनी होने में नहीं है। इसलिए भी तो हिमयुग का आरंभ और अंत, दोनों अब तक रहस्य का विषय है।
मैं अमेरिकी नौसेना में मौसम विज्ञानी के तौर पर कार्य कर चुका हूं। इसलिए मेरे पास मौसम व समुद्र, दोनों के हालात को देखने-समझने का बड़ा अनुभव है। इसी के आधार पर मै यह बता रहा हूं कि ग्रीनलैंड व अंटार्कटिका के ग्लेशियरों में से जो आइस रिकॉर्ड्स हमने इकट्ठा किए, वे काफी चौंकाने वाले थे। यह भी मुमकिन है कि कोई आगे चलकर इस अध्ययन को गलत ठहरा दे और यह हो सकता है कि वे स्वयं गलत साबित हो जाएं। लेकिन जलडमरूमध्य, जल-प्रवाह, सतह के पानी व बर्फ का तापमान, उसकी धारा और समुद्र के ऊपर बहने वाली हवा यही संकेत देते हैं कि आने वाले वक्त में जबर्दस्त ठंड पड़ेगी।
अब प्रश्न उठता है कि हिमयुग की शुरुआत होगी, तब आगे क्या होगा? हो सकता है कि प्रकृति अपने आप कार्बन डाइऑक्साइड या मीथेन गैस की उत्पत्ति करे या हमें करनी पड़ी। ताकि ग्रीन हाउस प्रभाव कायम रह सके और उत्तरी गोलार्द्ध का वातावरण गरम हो पाए। अतीत के हिमयुगों की स्थिति व उनके वैज्ञानिक अध्ययनों से हमने पाया है कि ध्रुवीय इलाकों में – 40 डिग्री फॉरेनहाइट से – 70 डिग्री फॉरेनहाइट के बीच बर्फीली हवा बहेगी। पृथ्वी से सटकर बहने वाली हवा में पानी के कण काफी मात्रा में मौजूद रहेंगे। चूंकि यह हवा जमीन से सटी होगी, इसलिए पृथ्वी के प्रभाव से यह ऊपरी हवा की तुलना में कम ठंडी होगी और कम घनी होगी। ऐसे में, उन जीव-जंतुओं के अस्तित्व में बने रहने की संभावना ज्यादा होगी, जो बर्फ में रह सकते हैं या जिनके शरीर में काफी बाल होंगे-मसलन, पोलर बियर।
अब सवाल यह है कि इन सबके लिए हम ग्लोबल वार्मिंग को कितना जिम्मेदार ठहराएंगे? मेरे विचार से दुनिया में काफी समस्याएं, जिन पर गहन चिंतन-मनन की आवश्यकता है। निश्चित तौर पर राजनेताओं और सरकारों का काम है कि वे इन समस्याओं को सुलझाएं, न कि बीती हुई गलतियों के लिए एक-दूसरे को कोसें। ठीक है कि अतीत में हमने प्रकृति के साथ खिलवाड़ किए। पर्यावरण को हमने प्रदूषित किया इसका असर ग्लोबल वार्मिंग के तौर पर आया। लेकिन प्रकृति में यह सब सहने की क्षमता भी है और इसे संतुलित करने की ताकत भी। इसलिए यह एक ही पक्ष है कि हमारी वजह से ग्लोबल वार्मिंग है। हकीकत यह भी है कि पृथ्वी अब अपने आप गर्म होने लगी है।
(पुस्तक द टिपिंग पॉइंट : द कमिंग वेदर ग्लोबल क्राइसिस से संपादित अंश)
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