पूरे देश को सामने रखकर देखें तो हमारे यहां पानी की कोई कमी नहीं है। कहीं कम और कहीं ज्यादा मानसून खूब पानी बरसाता है पर हमारी सरकारें उसे सहेज कर नहीं रख पातीं। न बांधों में जमा रख पाती हैं और ना ही धरती के भीतर डालकर जलस्तर को बढ़ाने का काम कर पाती हैं। वे तो पानी को बहने का आसान रास्ता देने के लिए नालियां बनाती हैं। इसका नतीजा देश में 'डार्कजोन' बढ़ते जाते हैं। गांव तो गांव शहर तक पीने के पानी को तरसते हैं। मजबूरी में लोगों को दस से पंद्रह रुपए लीटर का पानी पीना पड़ता है। आखिर कब तक चलेगा यह सिलसिला? हमारी सरकारें और अफसर कभी इस पर शर्मिंदा भी होंगे या नहीं? और देश के पास, इस सूरत से पार पाने के क्या हैं रास्ते, जानिए पत्रिका के संडे जैकेट में ...
गांवों में जीआईएस और रिमोट सेसिंग से सही मायने में मापना होगा कि कहां-कहां पानी मौजूद है। हरेक गांव को उनकी पानी की जरूरतों के हिसाब से बांटना होगा। हमारे देश में पानी के लिए इतनी योजनाएं हैं, जिनके तहत भरपूर धन गांवों को भेजा जाता है लेकिन फायदा नहीं होता है। इसलिए पानी के लिए सबसे पहली प्राथमिकता देहात को बचाना चाहिए। 20-25 गांवों को एक यूनिट समझकर वहां पानी और स्थानीय स्तर पर बिजली का वितरण करना चाहिए। देश में पानी और बिजली की योजना हमें निचले स्तर से ही शुरू करनी होगी। इस दिशा में क्रियांवयन से ही हर गांव में पानी-बिजली की समस्या पूर तरह दूर कर सकते हैं। इस तरह जो खर्चा आएगा, वह भी बहुत कम होगा। अभी सरकार अलग-अलग योजनाऔं के नाम पर पैसा भेजती है। लेकिन वह बर्बाद हो जाता है। नौकरशाही और राजनीतिक जमात यह धन हजम कर जाती है और आम जनता पानी और बिजली के अभाव में रहती है। अगर सरकार ईमानदारी से प्रयास करे तो देशभर में पांच साल में पानी की समस्या खत्म हो सकती है।
आज शहरों में जो आबादी का दबाव है, वह गांवों से बड़ी तादाद में आए लोगों की वजह से है। गांवों में ही पर्याप्त पानी और बिजली मिले तो किसान की आमदनी दो से तीन गुना हो जाएगी। जहां पानी और बिजली होगी, वहां उद्योग विकसित होंगे, इससे रोजगार बढेंगे। जब एनडीए सरकार में मैं मंत्री था तो नंदन निलेकणी की चेयरमैनशिप में एक कमेटी बनाई थी। हमारी योजना थी कि हर जगह पानी के लिए मीटर लगाए जा सकते हैं। एक औसत सीमा तक पानी मुफ्त दें। इसके बाद ज्यादा इस्तेमाल पर चार्जँ वसूलें। लोगों को वहीं पानी मिल जाए और वह बर्बाद भी न हो। तकनीकी मॉनिटरिंग से जल वितरण, पानी की चोरी और बर्बादी पर निगरानी रखी जाए। बड़े शहरों में पानी की बर्बादी और असमान वितरण रोकने के लिए मीटर लगाए जाएं, पाइपलाइन का सही रख-रखाव हो।
उसके बाद पानी मुहैया कराने वाली कंपनियों का समय-समय पर वॉटर ऑडिट कराना चाहिए। सरकार का कॉरपोरेट्स की तरफ ज्यादा झुकाव नहीं रहना चाहिए। आम आदमी का पानी छीनकर कॉरपोरेट को दिया जाएगा तो वितरण असमानता बनी रहेगी। अगर सरकार साफ नीयत से काम करे, बुनियादी सुविधाओं का वितरण सुनिश्चित करे तो लोगों को पर्याप्त पानी भी मिलेगा और चोरी भी नहीं होगी।
सुनीता नारायण, जानी-मानी पर्यावरणविद्
पिछले कुछ वर्षों से मानसून का ढांचा बदलता जा रहा है। क्लाइमेट चेंज इसका बड़ा कारण है। आज वैज्ञानिक समझते हैं कि क्लाइमेट चेंज का बड़ा संकेत यह है कि हमारा मानसून 'एक्सट्रीम' होगा। यानी जब वर्षा होगी तो बहुत ज्यादा होगी और सूखा पड़ेगा तो वह भी बहुत होगा। यह भी देखने को मिल रहा है कि वर्षा बेमौसम हो रही है। यह बड़ा बदलाव मानसून में आ रहा है। वैज्ञानिक भी नहीं जानते कि कब ज्यादा सूखा होगा और कब वर्षा आएगी।
पानी न मिलने की समस्या हमारे शहरों में आज हकीकत है, जो लगातार बढ़ती ही जा रही है। आज न उद्योगों को पर्याप्त पानी है, न शहर में पानी है। काफी शहरों में तो हफ्ते में एक दिन पानी सप्लाई होता है। कुछ में 15-15 दिन में एक बार पानी नसीब होता है। किसान से लेकर शहरी जीवन तक पानी की उपलब्धता को लेकर दिक्कतें बढ़ रही हैं। अब सवाल है कि हम इससे निबटने के लिए क्या कर रहे हैं? किस तरह पानी मुहैया करा रहे हैं?दरअसल, हमारी सरकारें इतनी बेफिक्र हैं कि उन्होंने पानी मुहैया कराने के लिए कभी जुनून नहीं दिखाया। जब भारत में सूखा था, तब ढेरों कार्यक्रम बने। नीतियां बनाते वक्त तो बड़ा जोश था। लगता था कि कुछ करेंगे। लेकिन जैसे ही सूखा बीता, वह जोश खत्म होता गया। पिछले दस साल से केंद्र में यूपीए की सरकार रही। उसने इस सुअवसर का इस्तेमाल नहीं किया। मनरेगा लाने के पीछे यह मकसद भी था पानी संग्रहण के लिए बड़ा काम हो सकेगा। सरकार ने योजना तो शुरू कर दी लेकिन उससे जमीन पर कोई फायदा नहीं हुआ। सरकार ने नीतियां तो खूब बनाईं। इनमें काफी अच्छे कार्यक्रम भी शामिल हैं। लेकिन सबसे बड़ी खामी यही है कि जमीन पर इनका कार्य बहुत दिखाई नहीं देता है। तालाब, बावड़ियों, कुओं से ग्राउंड वॉटर रिचार्ज, घरों-दफ्तरों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग जैसी नीतियों को अमल में लाकर भूजल स्तर को काफी बढ़ाया जा सकता है। लेकिन इन पर काम ही नहीं हो रहा है।
लोग पानी रिचार्ज करें, हर घर की छत पर पानी रोकना जरूरी हो, इस पर क्रियांवयन नहीं किया जा रहा है। आज हम सोलर एनर्जी की बात कर रहे हैं कि घरों की छत पर सोलर पैनल लगाए जाने चाहिए। लेकिन हमारे देश में जो बरसात का पानी संजोने की परंपरा है, उसे आगे नहीं बढ़ाया जा रहा है।
आने वाले वक्त में वर्षाजल का भरपूर उपयोग हो, भू-जल रिचार्ज हो, उसके लिए अभी से काम करना होगा। आज जो तालाब हैं, उन पर काम शुरू कीजिए। जितनी भी वर्षा हो, उस पानी को रोकिए। जिस प्रकार चेन्नई में रेनवॉटर हार्वेस्टिंग को हर घर के लिए जरूरी बनाया गया है, वैसी योजना सभी शहरों के लिए हो। शहरों के जो तालाब हैं उन्हें बचाने के लिए कोई कानून नहीं है। कोई भी लैंड यूज बदलकर तालाब हथिया सकते हैं। शहर की प्लानिंग केवल वहां की जमीन को देखकर की जाती है, इसके चलते सारे तालाब खो गए हैं। इसलिए सरकारें शहर के जल संसाधन बचाने के लिए पहल करें।
राजेंद्र सिंह, कृषि एवं खाद्य-सुरक्षा विशेषज्ञ
देशभर में वॉटर रिचार्जिंग के लिए सबसे पहले हमें मैजूदा तालाबों और जोहड़ों की जमीनों का सीमांकन, चिन्हिकरण और पंजीकरण होना चाहिए। उन पर बहुत अतिक्रमण हो रहा है। इनका फिर से निर्माण शुरू होना चाहिए, जिससे ये कारगर बन सकें। धरती पर जहां जल भंडारों का पुनर्भरण संभव है, वहां नए तालाब-जोहड़ बनाने चाहिए।
इस वक्त भारत में वर्षा का बहुत सारा जल वाष्पीकरण से उड़ जाता है। राजस्थान जैसे इलाकों में तो वाष्पीकरण रोकना बेहद जरूरी है। ऐसे प्रदेशों में भू-जल का भंडारण खूब हो ताकि भू-जल का पुनर्भरण हो सके। इसके अलावा यह सुनिश्चित करना होगा कि वर्षाजल में गंदा जल न मिले। आजकल तालाबों में वर्षाजल भी आता है और सारे गंदे नाले उन तालाबों के साथ जोड़ दिए जाते हैं। यदि वर्षाजल गंदे जल में मिलेगा तो धरती के पेट को प्रदूषित करेगा, जो फिर ठीक करना संभव नहीं है।
जल संग्रहण और रिचार्ज को लेकर हमें संयुक्त प्रयास करने की जरूरत है। आम आदमी अपने स्तर पर ही घर में टांके बनाकर घर की जरूरतों का पानी एकत्र कर सकता है। हमें प्राकृतिक जल का ज्यादा से ज्यादा सदुपयोग करना चाहिए। किसान अपनी जमीन पर तालाब बनाए, खेत-तलाई बनाए, खेत तालाब बनाएं। खेत का पानी खेत में और घर का पानी घर में इस्तेमाल हो।
इस दिशा में सरकार को भी आमजन का सहयोग करना चाहिए। अभी आम जनता सरकारी जमीन पर तालाब और जोहड़ बनाकर वॉटर रिचार्ज नहीं कर सकती है। सिंचाई विभाग के इरिगेशन ड्रेनेज एक्ट-1954 के तहत किसी को भी पानी का संरक्षण नहीं करने दिया जाता। सरकारें वॉटर रिचार्ज और भू-जल स्तर बढ़ाने की सिर्फ बातें करती हैं लेकिन जो व्यावहारिक कदम हैं, वे नहीं उठाए जाते हैं। नागरिकों को भी अपने परिवारों में पानी के अधिकतम सदुपयोग के संस्कार डालने होंगे। भविष्य में जलसंकट से रूबरू न होना पड़े, इसके लिए नई पीढ़ी को पानी की महत्ता समझाना जरूरी है।
जो लोग पानी के अभाव में जीने को मजबूर है, उन्हें पर्याप्त पानी मिले, यह सभी की जिम्मेदारी है। लोकतंत्र में जीने का हक जल से मिलता है। इसके लिए सरकार को 'राइट टू वॉटर' देना चाहिए। शहरों में कांक्रीट के जंगलों ने पानी के प्राकृतिक संसाधनों को मिटा दिया है। आज शहरों में ज्यादातर वर्षा जल बहकर व्यर्थ हो जाता है। नालों में मिल जाता है। इसे बचाने के लिए सरकारें वॉटर रिचार्जिंग को ध्यान में रखकर निर्माण कार्य करें।
योजनाएं नीचे से काम करें
पिछले कुछ वर्षों से मानसून का ढांचा बदलता जा रहा है। क्लाइमेट चेंज इसका बड़ा कारण है। आज वैज्ञानिक समझते हैं कि क्लाइमेट चेंज का बड़ा संकेत यह है कि हमारा मानसून 'एक्सट्रीम' होगा। यानी जब वर्षा होगी तो बहुत ज्यादा होगी और सूखा पड़ेगा तो वह भी बहुत होगा। यह भी देखने को मिल रहा है कि वर्षा बेमौसम हो रही है। यह बड़ा बदलाव मानसून में आ रहा है।
हमारे देश में दुर्भाग्य से पानी की 90 फीसद मांग वर्षा से ही पूरी हो पाती है। 10 फीसद से भी कम पानी हमें बर्फ पिघलने से मिलता है। यूरोप, अमरीका जैसे देशों में बर्फ पिघलने से काफी मात्रा में पानी मिल जाता है। भारत में पानी की उपलब्धता को लेकर बहुत असमानता है। राजस्थान जैसे रेतीले इलाके में वर्षा जल पर ही निर्भर रहना पड़ता है और पानी की उपलब्धता कम रहती है। वहीं पूर्वांचल में, जहां ज्यादा वर्षा होती है, वहां बाढ़ भी आ जाती है। अब इस विषमता के कारण पानी का सही इस्तेमाल करना हमारे लिए एक चुनौती है। इसलिए हमारे पास जो उपलब्ध पानी है, उसी में हमें तारतम्य बैठाना पड़ेगा। पानी का गैस और तेल की तरह आयात नहीं किया जा सकता है। हम भोजन की समस्या को तो संभाल सकते हैं लेकिन पानी जितना है, उसी का अधिकतम सदुपयोग करना होगा।गांवों में जीआईएस और रिमोट सेसिंग से सही मायने में मापना होगा कि कहां-कहां पानी मौजूद है। हरेक गांव को उनकी पानी की जरूरतों के हिसाब से बांटना होगा। हमारे देश में पानी के लिए इतनी योजनाएं हैं, जिनके तहत भरपूर धन गांवों को भेजा जाता है लेकिन फायदा नहीं होता है। इसलिए पानी के लिए सबसे पहली प्राथमिकता देहात को बचाना चाहिए। 20-25 गांवों को एक यूनिट समझकर वहां पानी और स्थानीय स्तर पर बिजली का वितरण करना चाहिए। देश में पानी और बिजली की योजना हमें निचले स्तर से ही शुरू करनी होगी। इस दिशा में क्रियांवयन से ही हर गांव में पानी-बिजली की समस्या पूर तरह दूर कर सकते हैं। इस तरह जो खर्चा आएगा, वह भी बहुत कम होगा। अभी सरकार अलग-अलग योजनाऔं के नाम पर पैसा भेजती है। लेकिन वह बर्बाद हो जाता है। नौकरशाही और राजनीतिक जमात यह धन हजम कर जाती है और आम जनता पानी और बिजली के अभाव में रहती है। अगर सरकार ईमानदारी से प्रयास करे तो देशभर में पांच साल में पानी की समस्या खत्म हो सकती है।
आज शहरों में जो आबादी का दबाव है, वह गांवों से बड़ी तादाद में आए लोगों की वजह से है। गांवों में ही पर्याप्त पानी और बिजली मिले तो किसान की आमदनी दो से तीन गुना हो जाएगी। जहां पानी और बिजली होगी, वहां उद्योग विकसित होंगे, इससे रोजगार बढेंगे। जब एनडीए सरकार में मैं मंत्री था तो नंदन निलेकणी की चेयरमैनशिप में एक कमेटी बनाई थी। हमारी योजना थी कि हर जगह पानी के लिए मीटर लगाए जा सकते हैं। एक औसत सीमा तक पानी मुफ्त दें। इसके बाद ज्यादा इस्तेमाल पर चार्जँ वसूलें। लोगों को वहीं पानी मिल जाए और वह बर्बाद भी न हो। तकनीकी मॉनिटरिंग से जल वितरण, पानी की चोरी और बर्बादी पर निगरानी रखी जाए। बड़े शहरों में पानी की बर्बादी और असमान वितरण रोकने के लिए मीटर लगाए जाएं, पाइपलाइन का सही रख-रखाव हो।
उसके बाद पानी मुहैया कराने वाली कंपनियों का समय-समय पर वॉटर ऑडिट कराना चाहिए। सरकार का कॉरपोरेट्स की तरफ ज्यादा झुकाव नहीं रहना चाहिए। आम आदमी का पानी छीनकर कॉरपोरेट को दिया जाएगा तो वितरण असमानता बनी रहेगी। अगर सरकार साफ नीयत से काम करे, बुनियादी सुविधाओं का वितरण सुनिश्चित करे तो लोगों को पर्याप्त पानी भी मिलेगा और चोरी भी नहीं होगी।
तालाब, कुएं ही बचाएंगे
सुनीता नारायण, जानी-मानी पर्यावरणविद्
पिछले कुछ वर्षों से मानसून का ढांचा बदलता जा रहा है। क्लाइमेट चेंज इसका बड़ा कारण है। आज वैज्ञानिक समझते हैं कि क्लाइमेट चेंज का बड़ा संकेत यह है कि हमारा मानसून 'एक्सट्रीम' होगा। यानी जब वर्षा होगी तो बहुत ज्यादा होगी और सूखा पड़ेगा तो वह भी बहुत होगा। यह भी देखने को मिल रहा है कि वर्षा बेमौसम हो रही है। यह बड़ा बदलाव मानसून में आ रहा है। वैज्ञानिक भी नहीं जानते कि कब ज्यादा सूखा होगा और कब वर्षा आएगी।
पानी न मिलने की समस्या हमारे शहरों में आज हकीकत है, जो लगातार बढ़ती ही जा रही है। आज न उद्योगों को पर्याप्त पानी है, न शहर में पानी है। काफी शहरों में तो हफ्ते में एक दिन पानी सप्लाई होता है। कुछ में 15-15 दिन में एक बार पानी नसीब होता है। किसान से लेकर शहरी जीवन तक पानी की उपलब्धता को लेकर दिक्कतें बढ़ रही हैं। अब सवाल है कि हम इससे निबटने के लिए क्या कर रहे हैं? किस तरह पानी मुहैया करा रहे हैं?दरअसल, हमारी सरकारें इतनी बेफिक्र हैं कि उन्होंने पानी मुहैया कराने के लिए कभी जुनून नहीं दिखाया। जब भारत में सूखा था, तब ढेरों कार्यक्रम बने। नीतियां बनाते वक्त तो बड़ा जोश था। लगता था कि कुछ करेंगे। लेकिन जैसे ही सूखा बीता, वह जोश खत्म होता गया। पिछले दस साल से केंद्र में यूपीए की सरकार रही। उसने इस सुअवसर का इस्तेमाल नहीं किया। मनरेगा लाने के पीछे यह मकसद भी था पानी संग्रहण के लिए बड़ा काम हो सकेगा। सरकार ने योजना तो शुरू कर दी लेकिन उससे जमीन पर कोई फायदा नहीं हुआ। सरकार ने नीतियां तो खूब बनाईं। इनमें काफी अच्छे कार्यक्रम भी शामिल हैं। लेकिन सबसे बड़ी खामी यही है कि जमीन पर इनका कार्य बहुत दिखाई नहीं देता है। तालाब, बावड़ियों, कुओं से ग्राउंड वॉटर रिचार्ज, घरों-दफ्तरों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग जैसी नीतियों को अमल में लाकर भूजल स्तर को काफी बढ़ाया जा सकता है। लेकिन इन पर काम ही नहीं हो रहा है।
लोग पानी रिचार्ज करें, हर घर की छत पर पानी रोकना जरूरी हो, इस पर क्रियांवयन नहीं किया जा रहा है। आज हम सोलर एनर्जी की बात कर रहे हैं कि घरों की छत पर सोलर पैनल लगाए जाने चाहिए। लेकिन हमारे देश में जो बरसात का पानी संजोने की परंपरा है, उसे आगे नहीं बढ़ाया जा रहा है।
आने वाले वक्त में वर्षाजल का भरपूर उपयोग हो, भू-जल रिचार्ज हो, उसके लिए अभी से काम करना होगा। आज जो तालाब हैं, उन पर काम शुरू कीजिए। जितनी भी वर्षा हो, उस पानी को रोकिए। जिस प्रकार चेन्नई में रेनवॉटर हार्वेस्टिंग को हर घर के लिए जरूरी बनाया गया है, वैसी योजना सभी शहरों के लिए हो। शहरों के जो तालाब हैं उन्हें बचाने के लिए कोई कानून नहीं है। कोई भी लैंड यूज बदलकर तालाब हथिया सकते हैं। शहर की प्लानिंग केवल वहां की जमीन को देखकर की जाती है, इसके चलते सारे तालाब खो गए हैं। इसलिए सरकारें शहर के जल संसाधन बचाने के लिए पहल करें।
बेकार बहने वाले पानी को रोकना होगा
राजेंद्र सिंह, कृषि एवं खाद्य-सुरक्षा विशेषज्ञ
देशभर में वॉटर रिचार्जिंग के लिए सबसे पहले हमें मैजूदा तालाबों और जोहड़ों की जमीनों का सीमांकन, चिन्हिकरण और पंजीकरण होना चाहिए। उन पर बहुत अतिक्रमण हो रहा है। इनका फिर से निर्माण शुरू होना चाहिए, जिससे ये कारगर बन सकें। धरती पर जहां जल भंडारों का पुनर्भरण संभव है, वहां नए तालाब-जोहड़ बनाने चाहिए।
इस वक्त भारत में वर्षा का बहुत सारा जल वाष्पीकरण से उड़ जाता है। राजस्थान जैसे इलाकों में तो वाष्पीकरण रोकना बेहद जरूरी है। ऐसे प्रदेशों में भू-जल का भंडारण खूब हो ताकि भू-जल का पुनर्भरण हो सके। इसके अलावा यह सुनिश्चित करना होगा कि वर्षाजल में गंदा जल न मिले। आजकल तालाबों में वर्षाजल भी आता है और सारे गंदे नाले उन तालाबों के साथ जोड़ दिए जाते हैं। यदि वर्षाजल गंदे जल में मिलेगा तो धरती के पेट को प्रदूषित करेगा, जो फिर ठीक करना संभव नहीं है।
जल संग्रहण और रिचार्ज को लेकर हमें संयुक्त प्रयास करने की जरूरत है। आम आदमी अपने स्तर पर ही घर में टांके बनाकर घर की जरूरतों का पानी एकत्र कर सकता है। हमें प्राकृतिक जल का ज्यादा से ज्यादा सदुपयोग करना चाहिए। किसान अपनी जमीन पर तालाब बनाए, खेत-तलाई बनाए, खेत तालाब बनाएं। खेत का पानी खेत में और घर का पानी घर में इस्तेमाल हो।
इस दिशा में सरकार को भी आमजन का सहयोग करना चाहिए। अभी आम जनता सरकारी जमीन पर तालाब और जोहड़ बनाकर वॉटर रिचार्ज नहीं कर सकती है। सिंचाई विभाग के इरिगेशन ड्रेनेज एक्ट-1954 के तहत किसी को भी पानी का संरक्षण नहीं करने दिया जाता। सरकारें वॉटर रिचार्ज और भू-जल स्तर बढ़ाने की सिर्फ बातें करती हैं लेकिन जो व्यावहारिक कदम हैं, वे नहीं उठाए जाते हैं। नागरिकों को भी अपने परिवारों में पानी के अधिकतम सदुपयोग के संस्कार डालने होंगे। भविष्य में जलसंकट से रूबरू न होना पड़े, इसके लिए नई पीढ़ी को पानी की महत्ता समझाना जरूरी है।
जो लोग पानी के अभाव में जीने को मजबूर है, उन्हें पर्याप्त पानी मिले, यह सभी की जिम्मेदारी है। लोकतंत्र में जीने का हक जल से मिलता है। इसके लिए सरकार को 'राइट टू वॉटर' देना चाहिए। शहरों में कांक्रीट के जंगलों ने पानी के प्राकृतिक संसाधनों को मिटा दिया है। आज शहरों में ज्यादातर वर्षा जल बहकर व्यर्थ हो जाता है। नालों में मिल जाता है। इसे बचाने के लिए सरकारें वॉटर रिचार्जिंग को ध्यान में रखकर निर्माण कार्य करें।
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Post By: pankajbagwan