भारत

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क्यों बढ़ रहा है तापमान
Posted on 20 Jun, 2014 11:31 AM यदि पृथ्वी के औसत तापमान का बढ़ना इसी प्रकार जारी रहा तो आगामी वर्षो में भारत को इसके दुष्परिणाम झेलने होंगे। पहाड़, मैदानी, रेगिस्तान, दलदली क्षेत्र व पश्चिमी घाट जैसे समृद्ध क्षेत्र ग्लोबल वार्मिंग के कहर का शिकार होंगे। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कृषि, जल, पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैव विविधता व स्वास्थ्य ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न समस्याओं से जूझते रहेंगे..
कन्सट्रक्शन बिजनेस की स्थायी लागत ही उसका भविष्य तय करेगी
Posted on 19 Jun, 2014 03:06 PM हम सब अपने आसपास लगातार कुछ न कुछ निर्माण होते देखते रहते हैं। इसके बावजूद 2030 तक भारत को जितने इमारतों की जरूरत होगी उनमें 70 फीसदी का निर्माण अभी बाकी ही है। यहां तक कि उनकी अब तक योजना ही नहीं बनी है। दूसरी तरफ विकसित देश हैं। वहां 2050 तक जितनी इमारतें चाहिए उनमें से 80 फीसदी बनकर तैयार हो चुकी हैं। यानी भारत इस मामले में बहुत पीछे है। यहां भविष्य की जरूरतों के हिसाब से घर, ऑफिस व व्यावसायिक
पेयजल को संवैधानिक अधिकार बनाने की मुहिम
Posted on 18 Jun, 2014 10:35 AM पिछले दिनों नई दिल्ली में जल सुरक्षा हेतु आयोजित नदी पुनर्जीवन सम्मेलन में पहुंचे देशभर के नदी प्रेमियों ने सामूहिक रूप से तय किया कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में सामुदायिक सहयोग से नदी पुनर्जीवन का कार्य किया जाएगा। इसके लिए सभी राज्यों में जुलाई से अगस्त के बीच यात्राएं आयोजित की जाएंगी। नदी पुनर्जीवन के बारे में देशभर में लोक शिक्षण के कार्य से एनएसएस व एनसीसी से जुड़े एक करोड़ युवाओं को नदी पुनर्जीवन के कार्य संवेदित करने का कार्य किया जाएगा। 11 जुलाई को नदी पुनर्जीवन विषय पर प्रेस व जनप्रतिनिधियों के साथ कांस्टीट्यूशन क्लब में संवाद आयोजित किया जाएगा। देशभर में पानी के आंदोलन को आगे ले जाने के लिए किसानों को जागरूक करने का काम किया जाएगा।
river rejuvenation
भारत पर बाढ़ का खतरा!
Posted on 17 Jun, 2014 03:55 PM

पश्चिम अंटार्टिक में बर्फ की चादर के पिघलने की दर में तेजी आ रही है। उम्मीद की जा रही है कि इस घटना से समुद्र के जल स्तर में चार मिलीमीटर की बढ़ोतरी हो सकती है। गौरतलब है कि पिछले चार दशकों के दौरान पश्चिम अंटार्टिक प्रदेश में बर्फ के ग्लेशियरों की पिघलने की दर में 77 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है।

flood
पानी बहुत है बचाना सीखिए
Posted on 15 Jun, 2014 03:08 PM पूरे देश को सामने रखकर देखें तो हमारे यहां पानी की कोई कमी नहीं है। कहीं कम और कहीं ज्यादा मानसून खूब पानी बरसाता है पर हमारी सरकारें उसे सहेज कर नहीं रख पातीं। न बांधों में जमा रख पाती हैं और ना ही धरती के भीतर डालकर जलस्तर को बढ़ाने का काम कर पाती हैं। वे तो पानी को बहने का आसान रास्ता देने के लिए नालियां बनाती हैं। इसका नतीजा देश में 'डार्कजोन' बढ़ते जाते हैं। गांव तो गांव शहर तक पीने के पान
उत्तराखंड के नवनिर्माण में मीडिया की भूमिका
Posted on 10 Jun, 2014 03:21 PM पहाड़ के जो हित हैं या फिर इकोलाॅजी, संस्कृति और पर्यावरण से जुड़े
उत्तराखण्ड
ਜਲ ਥਲ ਮਲ
Posted on 06 May, 2014 02:31 PM ਵਿਅੰਗ ਨਾਲ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਤੁਸੀਂ ਸ਼ਾਇਦ ਪੜਿਆ ਵੀ ਹੋਵੇ ਕਿ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਟਾਇਲਟ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮੋਬਾਇਲ ਫ਼ੋਨ ਹਨ। ਜੇਕਰ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਹਰ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਕੋਲ ਮਲ ਤਿਆਗਣ ਦੇ ਲਈ ਟਾਇਲਟ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਕਿਵੇਂ ਰਹੇ?
ਅਲਸੀ
Posted on 04 May, 2014 05:56 PM ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਇਹ ਕਹਾਵਤ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਰਹੀ ਹੈ ਕਿ ਭੋਜਨ ਹੀ ਦਵਾਈ ਹੈ। ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਅੰਦਰ ਭੋਜਨ ਨੂੰ ਦਵਾਈ ਵਜੋਂ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਨ ਦੀ ਪਰੰਪਰਾ ਸਦੀਆਂ ਤੋਂ ਚੱਲੀ ਆ ਰਹੀ ਹੈ। ਪਰ ਅਜੋਕੀ ਭੱਜ-ਦੌੜ ਭਰੀ ਜਿੰਦਗੀ ਦੇ ਚਲਦਿਆਂ ਅਸੀਂ ਆਪਣੀ ਇਸ ਅਮੀਰ ਸਮਝ ਅਤੇ ਪਰੰਪਰਾਂ ਤੋਂ ਵਿਰਵੇ ਹੋ ਚੱਲੇ ਹਾਂ। ਅੱਜ ਅਸੀਂ ਅਲਸੀ ਬਾਰੇ ਗੱਲ ਕਰਾਂਗੇ।
ਉਤਪਾਦਕਤਾ ਦੀ ਹਿੰਸਕ ਭੂਮੀ
Posted on 11 Apr, 2014 10:10 PM ਉਪਜਾਊ ਸ਼ਕਤੀ ਵਧਾਉਣ ਵਾਲੀ ਖਾਦ ਨੇ ਅਨਾਜ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਤਾਂ ਵਧਾਇਆ ਹੀ ਪਰ ਨਾਲ ਹੀ ਉਸਨੇ ਇੱਕ ਹੋਰ ਹਿੰਸਕ ਰੂਪ ਧਾਰਨ ਕਰ ਲਿਆ। ਹਿੰਸਾ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਵੀ ਉਸਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਕੁੱਝ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੀ ਉਪਜਾਊ ਬਣਾ ਦਿੱਤੀ ਹੈ।
तुम किस नदी से हो
Posted on 05 Apr, 2014 03:40 PM

1958 की फरवरी में बनारस में दिया गया भाषण


हमारे देश की कुल चालीस करोड़ की आबादी में से तकरीबन एक या दो करोड़ लोग प्रतिदिन नदियों में डुबकी लगाते हैं और पचास से साठ लाख लोग नदी का पानी पीते हैं। उनके दिल और दिमाग नदियों से जुड़े हुए हैं। लेकिन नदियां शहरों से गिरने वाले मल और अवजल से प्रदूषित हो गई हैं। गंदा पानी ज्यादातर फैक्ट्रियों का होता है और कानपुर में ज्यादातर फ़ैक्टरियां चमड़े की हैं जो पानी को और भी नुकसानदेह बना रही हैं। फिर भी हजारों लोग यही पानी पीते हैं, इसी से नहाते हैं। साल भर पहले इस दिक्कत पर कानपुर में मैं बोला भी था।...अब मैं ऐसे मुद्दे पर बोलना चाहता हूं जिसका संबंध आमतौर पर धर्माचारियों से है लेकिन जब से वे अनावश्यक और बेकार बातों में लिप्त हो गए हैं, इससे विरत हैं। जहां तक मेरा सवाल है, यह साफ कर दूं कि मैं एक नास्तिक हूं। किसी को यह भ्रम न हो कि मैं ईश्वर पर विश्वास करने लगा हूं। आज के और अतीत के भी भारत की जीवन-पद्धति, दुनिया के दूसरे देशों की ही तरह, लेकिन और बड़े पैमाने पर, किसी न किसी नदी से जुड़ी रही हैं।

राजनीति की बजाए अगर मैं अध्यापन के पेशे में होता तो इस जुड़ाव की गहन जांच करता। राम की अयोध्या सरयू के किनारे बसी थी। कुरू, मौर्य और गुप्त साम्राज्य गंगा के किनारे पर फले-फुले, मुगल और शौरसेनी रियासतें और राजधानियां यमुना के किनारे पर स्थित थीं। साल भर पानी की जरूरत हो सकती है, लेकिन कुछ सांस्कृतिक वजहें भी हो सकती हैं।

एक बार मैं महेश्वर नाम की जगह में था जहां कुछ समय के लिए अहिल्या ने एक शक्तिशाली शासन स्थापित किया था।
Nadi
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