नदी घाटी निवासियों के सशक्तिकरण की दिशा में सार्थक पहल

नदी घाटी निवासियों के सशक्तिकरण की दिशा में सार्थक पहल
नदी घाटी निवासियों के सशक्तिकरण की दिशा में सार्थक पहल
पूर्वोत्तर राज्यों में अरूणाचल, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैण्ड, त्रिपुरा एवं सिक्किम राज्य शामिल हैं। पूर्वोत्तर राज्यों की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है। यहां 70 से 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर करती है। लेकिन यहां की खेती बरसात पर निर्भर होने के कारण असमान है। जैव-विविधता की दृष्टि से भी पूर्वोत्तर बहुत समृ़द्ध है।

पूर्वोत्तर राज्यों में मेघालय खासी, गारो तथा जयंतियां आदिवासी समूहों की धरती है। मेघालय का शाब्दिक अर्थ मेघों का आलय यानि कि बादलों का घर है। 22,429 वर्ग कि0मी0 क्षेत्रफल वाले मेघालय राज्य की उत्तरी और पूर्वी सीमाएं असम से और दक्षिणी एवं पश्चिमी सीमाएं बाग्लांदेश से मिलतीं हैं। राज्य में लघु बहुउद्देश्यीय जलाशय बनाने की दिशा में काम हो रहा है। ताकि जल आधारित रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जा सकें। इसका उददेश्य न केवल पानी का सही उपयोग करना है बल्कि भूमि कटाव को रोकना और बेहतर नदी प्रबन्धन पद्धति अपनाना है। पूर्वोत्तर राज्यों में मेघालय खासी, गारो तथा जयंतिया आदिवासी समूहों की धरती है। मेघालय का शाब्दिक अर्थ मेंघों का आलय यानी कि बादलों घर है। 22,429 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले मेघालय राज्य की उत्तरी और पूर्वी सीमाएं असम से और दक्षिणी एवं पश्चिमी सीमाएं बांग्लादेश से मिलती हैं। राज्य में लघु बहुउद्देश्यी जलाशय बनाने की दिशा में काम हो रहा है। ताकि जल आधारित रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा सकें। इसका उददेश्य न केवल पानी का सही उपयोग करना है बल्कि भूमि कटाव को रोकना और बेहतर नदी प्रबंधन पद्धति अपनाना है। इन छोटे जलाशयों के निर्माण से विभिन्न उत्पादक कार्यों एक्वा कल्चर, पेयजल, आपूर्ति, मिनी हाईडल (100 किलोवाट से कम) सिंचाई, पर्यटन, पारिस्थितिकी प्रणाली उन्नयन तथा सौंदर्य बोध आर्म्ड में और बेहतर ढंग से संभव है। इनसे ग्रामीण आबादी के लिये पेयजल, खेती के लिए सिंचाई तथा बिजली की आपूर्ति के साथ जीविकोपार्जन के साधनों का दोहन करने का मार्ग प्रशस्त होता है।

मेघालय में पानी प्रचुरता से उपलब्ध है। जो कि जल-विद्युत के लिए उपयुक्त है। राज्य में दो नदी घाटियां है ब्रम्हपुत्र नदी घाटी का बांया किनारा (11220.11 किमी0) तीन जल प्रवाह तथा आठ उप-जलप्रवाह क्षेत्र हैं। उपलब्ध जल संसाधनों के सही तरीके से देाहन से राज्य की आबादी के आर्थिक विकास और सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार लाने के दीर्घकालीन परिणाम उपलब्ध हो सकते हैं। राज्य सरकार ने इस दृष्टि से राज्य की ग्रामीण आबादी के हितों को ध्यान में रखकर ऐसी योजनाओं पर ध्यान केन्द्रित किया है। जिनका राज्य की अधसंख्य आबादी और क्षेत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सके। इस बात का ध्यान रखा जा रहा है कि खर्चीली परियोजनाओं से बचा जा सके। समाज के सभी लाभार्थियों को विकास का लाभ मिल सके । इस सोंच को कार्यरूप दिया जा रहा है। केन्द्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों एवं हिमालयी राज्यों के लिए वर्ष 2001-12 से राष्ट्रीय बागवानी के विकास के संस्थानिक महत्व को समझते हुए बागवानी के समग्र विकास के लिए 2005-06 में नागालैंण्ड में केन्द्रीय बागवानी संस्थान की स्थापना की है। इन सबके सकारात्मक परिणाम राज्य की ग्रामीण आबादी के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मददगार साबित हो रहें हैं।

मेघालय में अनेक नदियां हैं, जिनमें से कई नदियाँ नौकायन के अनुकूल हैं और कुछ नदियां ऐसी है जिनमें नौकायन संभव नहीं है। मेघालय की मुख्य नदियों का उद्गम गारो पहाडियां हैं। जो उत्तरी प्रणाणी नदियों में चागुआ, कालू, दुदनाई, दिदरम रिंग्गी और कृशनई शामिल है, जो पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं। उत्तरी प्रणाली (क्षेत्र) की नदियों में कालू और कृशनई ही केवल नौकायन के अनुकूल है। इनमें ही नौकायान होता है। दक्षिण प्रणाली (क्षेत्र) की मुख्य नदियों में मोगाई, दरिंग, सान्हा, दरेंग, बन्द्रा और सिमसांग हैं। गारो हिल्स की सबसे बडी नदी सिमसांग है। जो कि लगभग 30 किमी0 क्षेत्र में नौकायन के अनुकूल है। इस क्षेत्र की देा और नदियां भूपई और नितई नौकायन के लिए उपयुक्त हैं।

मेघालय के पूर्वी और मध्य क्षेत्र की नदियाँ उत्तर दिशा में बहती हैं। वे हैं उमियम, उमखरी और दिगारू । कुछ नदियां इस क्षेत्र से दक्षिण दिशा में बहती हैं। जिनमें बड़ा पानी, मावपा, क्यानच्यांग (जदुक्ता), मिन्टदू और म्यांगोर है। सोमेश्वरी राज्य की दूसरी सबसे लंबी और बड़ी नदी है जिसका स्थानीय नाम सिंमसांग है। जिंजीएम गारो हिल्स के देा जिलों की सबसे बड़ी नदी है। कालू नदी का स्थानीय नाम गनोल है।

मेघालय सरकार ने नदी घाटी विकास के लिए एक ऐसी योजना बनाई है जो वहां के निवासियों के लिए जीवनयापन के बहुविध अवसर उपलब्ध कराने की दिशा में अग्रणी है। यह योजना एकीकृत नदी घाटी विकास एवं आजीविका उन्नयन (आई बीडीएलपी) है।

मेघालय के मुख्यमंत्री डॉ. मुकुल संगमा ने योजना के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा है मेघालय को सौभाग्य से प्रचुरता के साथ अनेक सौगात मिली है, जिसमें नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय दोनों ही शामिल हैं। फिर भी हरित और टिकाऊ विकास की मांग को ध्यान में रखते हुये गैर नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों के स्थान पर नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों पर इस कार्यक्रम का ध्यान केंद्रित कर निवेश रणनीति बनायी गई है । यह कार्यक्रम जन - आधरित है।

इस कार्यक्रम का मुख्य उददेश्य मेघालय नदी घाटी संसाधनों के उपयोग के माध्यम से आजीविका सुनिश्चित करना है, आई बीडीएलपी के अन्तर्गत अनेक मिशन बनाए गये हैं। जिससे राज्य की ग्रामीण आबादी की बेहतरी सुनिश्चित हो सके। मेघालय की करीब आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है। राज्य के चार लाख परिवारों को 2015 तक गरीबी रेखा के ऊपर उठाने के लिए सरकार ने यह पहल की है। राज्य के प्राकृतिक संसाधनो जल, जमीन और बायोटिक संसाधनों का अधिकतम और उत्पादक उपयोग करने के लिए यह एक सही पहल है क्योंकि राज्य की ग्रामीण आबादी पूरी तरह से अपनी आजीविका के लिए प्राकृतिक संधाधनों पर निर्भर है। बढ़ती हुई जरूरतों के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर लगातार दबाव भी बढ़ता जा रहा है। लोगों के दीर्घकालीन विकास के लिए जल, जमीन और आजीविका सुरक्षा हेतु नदी घाटियों का टिकाऊ विकास जरूरी है।

मेघालय सरकार ने गरीबी उन्मूलन, रोजगार के अवसर पैदा करने और आजीविका उन्नयन के लिए एकीकृत नदी घाटी विकास एवं आजीविका उन्नयन कार्यक्रम शुरू करने का निर्णय लिया। योजना आयोग ने 12 वीं योजना के एप्रोच पेपर (प्रांरभिक दस्तावेज) की सोंच को ध्यान में रखते हुऐ यह कदम उठाया ।

इस कार्यक्रम में जल आधारित आजीविका साधनों का सृजन करने के लिए लघु बहुदे्श्यीय जलाशय बनाने को प्राथमिकता दी गयी, जिसमें एकीकृत जल संसाधन प्रबन्धन को शामिल किया गया है। इनमें मछली पालन और जल क्रीडा पर्यटन आदि के अवसर उपलब्ध कराना है। इस कार्यकम का एक और प्रमुख विषय है। झूम और वन खेती की वजह से पैदा होने वाली समस्याएं और चुनीतियां और इनको एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन के माध्यम से संबधित लाभर्थियों की सक्रिय भागीदारी से हल करना ।

इस कार्यक्रम का उददेश्य परंपरागत / स्थानीय स्वशासन ढांचे को मजबूत करना तथा समाज के सभी वर्गो को शामिल कर सकारात्मक विकासपरक कार्यो का सृजन करना है। कार्यक्रम में जिन क्षेत्रों में हस्तक्षेप करना या जिन्हें शामिल किया जाना है। उनमें प्राकृतिक संसाधनों, मानव संसाधनों, आधारभूत ढांचा, संस्थान, अधिकारिता को रखा गया है। 12 वीं योजना अवधि में मिशन आधारित कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाएगा। इनमें कृषि मिशन,एक्वाकल्चर मिशन, वानिकी एवं पौध फसल मिशन, बागवानी मिशन, पशुधन मिशन, ग्रामीण उर्जा मिशन, रेशम उत्पादन मिशन, पर्यटक मिशन का गठन शामिल है। मिशन आधारित इस कार्यक्रम का उददेश्य टिकाऊ विकास के ढांचे के भीतर आजीविका की सुरक्षा और उत्पादन वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए नदी घाटी संसाधनो के अधिकतम और प्रभावी विकास एवं उपयोग करने को बढ़ावा देना है।

प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन योजना -



प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन योजना के अन्तर्गत जिन सिद्धातों को शामिल किया गया है। उनमें समानता और सम्मिलन विकेन्द्रीकरण, सुविधा एजेंसियां, क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी मानीटरिंग, मूल्यांकन और ज्ञान संगठनात्मक पुनर्गठन आदि प्रमुख है। कार्यवाई के लिए प्राथमिकताएं और रणनीतिकार्यक्रम में की जाने वाली कार्रवाई के लिए प्राथमिकताएं और रणनीतियां निर्धारित की गई है। इनमें जल और जमीन संसाधनों के टिकाऊ प्रयोग के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इसके अलावा जैव विविधता और बायोमास पर भी जोर दिया गया है । ग्रामीण क्षेत्रों की बहुसंख्यक आबादी की प्रमुख आवश्यकताएं ईधन के लिए लकड़़ी, टिम्बा, चारा, फाइबर आदि प्रमुख है। और सबसे बड़ा मुद्दा हैं कि किस तरह से स्थानीय लोग अपनी सामूहिक जमीन तथा अवक्रमित वन भूमि के संसाधनों को संरक्षित कर उनका उपयोग कर सकें।

प्राकृतिक संसाधन, प्रबन्धन परिदृश्य के कुछ प्रमुख क्षेत्रों में कृषि जल, पशुधन, वानिकी, ग्रामीण ऊर्जा शामिल है। उद्यमिता विकास और उन्नयन को ज्ञान, कौशल, व्यवहार, जोखिम का साहस एवं अन्य आवश्यक संबधित कार्यो से जोड़ा गया है, जो कि सफल उद्यमी के रूप् में कार्य करने के लिए आवश्यक हैं। इस कार्यक्रम में बेहतर अधिकारिता के महत्व को भी समझाया गया है जो कि प्रबन्धन का महत्वपूर्ण अंग है।

कार्यक्रम में इस बात का ध्यान रखा गया है कि प्रयासों एवं कार्यों का दोहराया न हो समान उद्देश्यों के लिए संसाधनों की उपलब्धता रहे, विभिन्न विकास कार्यो के साथ प्रभावी संपर्क बना रहे और अधिकारिता में पारदर्शिता और जवाबदेही हो।विभिन्न मंत्रालयों के विभिन्न कार्यो में अंतः विभागीय समानता बनाए रखने को रेखांकित किया गया है जिसमे केन्द्र सरकार के विभिन्न विकास कार्यक्रम हैं।

केन्द्र सरकार की एक ही तरह की अनेक परियोजनाएं एवं कार्यक्रम हैं जिन्हें अलग-अलग मंत्रालय प्रायोजित करते है । राज्य सरकार के इस कार्यक्रम में इस बात का ध्यान रखा गया है। कि राज्य के जल संसाधन, कृषि उद्यान, मछली पालन, पशुपालन, सार्वजनिक स्वास्थ्य अंभियंत्रिकी, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता पर्यटन भूमि एवं जल संरक्षण, वन, गैर-परम्परागत ऊर्जा लघु पनबिजली, नवीकरण उर्जा विभाग जल संसाधन के पारस्परिक एवं टिकाऊ प्रयोग के लिए मिलकर कार्य करें । इस बात को भी सुनिश्चित किया गया है। कि बजट का देाहराव न होने पाए तथा संबधित विभाग के अन्तर्गत ही उन कार्यो को किया जाए।

संस्थानों का विकास-



इस कार्यक्रम के अन्तर्गत तीन संस्थानों की स्थापना की जा रही है। जिनमें मेघालय उद्यमिता संस्थान, मेघालय अधिकारिता संस्थान और मेघालय प्राकृतिक संसाधन संस्थान शामिल है। इस बात पर जोर दिया गया है कि टिकाऊ विकास के लिए संरक्षण जरूरी है। पर संरक्षण से टिकाऊ विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है।

एकीकृत नदी घाटी विकास एवं आजीविका उन्नयन कार्यकृम के सफल कार्यान्वयन के लिए अनेक प्रशासनिक इकाइयां गठित की जा रही है। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में नदी घाटी विकास परिषद (बीडीसी) का गठन किया गया है। जिसमें स्वायत्त जिला परिषदों के मुख्य कार्यकारी सदस्य भी शामिल है। नदी घाटी विकास प्राधिकरण बीडीसी राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करेगा जिसमें स्वायत्त जिलापरिषदों के सचिव भी शामिल हैं। नदी घाटी इकाई (बीडीसी) को जिलास्तर पर संबधित जिले के उपायुक्त की अध्यक्षता में बीडीए की जिला इकाई के रूप् में कार्यक्रम संचालित करने की जिम्मेदारी है। विभिन्न नदी घाटी क्षेत्रों में कार्यक्रम के अन्तर्गत संचालित कार्यो के लिए सक्रियता ग्रुपों को ग्राम / कलस्टर स्तर पर प्रोत्साहित किया जा रहा है।

मेघालय सरकार की इस अभिनव परियोजना की योजना आयोग ने भी प्रशंसा की है। ग्रामीण गरीबों के सशक्तीकरण, जो नदी घाटी क्षेत्रों में रहते है, की दिशा मे यह एक सार्थक पहल है।

संकलन/ टायपिंग- नीलम श्रीवास्तव, महोबा

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Post By: pankajbagwan
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