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सूचनाधिकार का खौफ
Posted on 15 Nov, 2011 08:46 AM

चिंता का विषय यह है कि पिछले अठारह सालों में यह गठजोड़ कमजोर होने के बजाय और मजबूत हुआ है। आजाद

सूखी धरती, प्यासे लोग और हमारे तालाब
Posted on 15 Nov, 2011 08:33 AM

गांवों या शहरों के रुतबेदार लोग जमीन पर कब्जा करने के इरादे से बाकायदा तालाबों को सुखाते हैं, प

pond
वन हैं तो हम हैं
Posted on 13 Nov, 2011 08:54 PM

भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून द्वारा देश में वन क्षेत्रफल के आंकड़े तैयार किए जाते हैं। संस्थान ने 2007 तक के वन क्षेत्रफल के आंकड़े एकत्र किए हैं। इसके अनुसार देश में छह लाख 90 हजार 899 वर्ग किमी वन क्षेत्र है। देश में वन संरक्षण कानून 1980 में बना। इससे पहले वनों के काटने पर कोई रोकटोक नहीं थी। कानून बनने के बाद विकास के लिए भी वनों को काटने की पूर्व अनुमति हासिल करने का प्रावधान है और एक पेड़ काटने के बदले में तीन पेड़ लगाने पड़ते हैं।

जल, थल और आकाश मिलकर पर्यावरण को बनाते हैं। हमने अपनी सुविधा के लिए प्रकृति के इन वरदानों का दोहन किया, लेकिन भूल गए कि इसका नतीजा क्या होगा? पर्यावरण विनाश के कुफलों से चिंतित मनुष्य आज अपनी गलती सुधारने की कोशिश में है। आइए हम भी कुछ योगदान करें। जितने अधिक वन होंगे पर्यावरण उतना ही अधिक सुरक्षित होगा। पर्यावरण की सुरक्षा में जंगलों के महत्व को स्वीकार करते हुए विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर इस साल की थीम है फारेस्ट-नेचर एट युअर सर्विस यानी ‘जंगल-प्रकृति आपकी सेवा में। इस थीम के पीछे वनों की उपयोगिता और उनके संरक्षण का भाव है। वनों के बगैर आज मानव समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। वन संसाधनों और इनके संरक्षण के मामले में भारत धनी है। हालांकि यह भी सत्य है कि पिछले कुछ दशकों के दौरान अनियंत्रित औद्योगिक विकास के कारण वनों को काफी क्षति पहुंची है लेकिन इधर हाल के वर्षों में जागरूकता बढ़ी है और वनों की कीमत पर विकास की परंपरा थमी है। वैसे भी हमारे देश के कई सूबों में वनों और वन्य जीवों का संरक्षण लोगों के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दा भी है। देश में विकास गतिविधियों में इजाफे के बावजूद वन बढ़े हैं। इसलिए भारत के कदमों को वैश्विक स्तर पर भी मान्यता मिल रही है। इसी कड़ी में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने विश्व पर्यावरण दिवस की थीम के क्रियान्वयन की मेजबानी भारत को सौंपी है।

पर्यावरण संरक्षक थे पूर्वज
Posted on 13 Nov, 2011 08:41 PM

हमने पर्यावरण के साथ खिलवाड़ तो किया ही, अपनी पुरातन पर्यावरण हितैषी परंपराओं को तिलांजलि दे दी

पर्यावरण पर विशेष ग्रोइंग सेक्टर है ग्रीन जॉब
Posted on 13 Nov, 2011 08:34 PM

पिछले दो ढाई दशकों से इंडस्ट्रियल ग्रोथ के नाम पर जो विकास हो रहा है, उसकी बड़ी कीमत हमारी धरती को अपने ही अस्तित्व के एक हिस्से को मिटाकर चुकानी पड़ रही है। इस दौरान हम पृथ्वीवासियों ने खुद अपने जीवन को खतरे में डाल दिया है। सड़कें चौड़ी करने के नाम पर जंगलों का सफाया किया गया, घर-घर लगे एसी, रेफ्रीजरेटर्स, बोझ बनते ट्रैफिक ने शहरों की आबोहवा में ही जहर भर दिया। यही नहीं इस बीच वन्य जीवन की स्थिति भी बद से बदतर होती गई। घटते वन, अंधाधुंध शिकार, जागरूकता की कमी आदि के चलते, वन्यजीवन की स्थित और दयनीय हुई है। परिणामस्वरूप वे पशु जिनकी असल जगह वनों में हुआ करती थी, जानवर-इंसान की नियमित मुठभेड़ों के किरदार बनते गए। आज ऐसी बहुत सी परेशानियां धरती के जीवन और मृत्यु के बीच यक्ष प्रश्न का रूप ले चुकी हैं। यही कारण है कि कार्बन उत्सर्जन कटौती को लेकर दुनिया भर के तमाम देश नए समझौते को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। स्थिति की भयावहता को देखते हुए हर देश की सरकार और निजी क्षेत्र, पर्यावरण संरक्षण से संबंधित जॉब बढ़ा रहे हैं और संबंधित प्रोफेशनल्स को वरीयता दे रहे हैं। इससे न सिर्फ रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं, बल्कि इस क्षेत्र को भविष्य का सबसे पसंदीदा सेक्टर माना जा रहा है।

पर्यावरण के क्षेत्र में कैरियर
चुकन्दर से निर्मित घुलनशील प्लास्टिक
Posted on 12 Nov, 2011 09:58 AM

यूरोपीय देशों में चुकंदर से चीनी बनती है। चीनी बनाने के बाद बचा वेस्ट जिसे फेंक दिया जाता था, उसी से यह घुलनशील प्लास्टिक बनाया गया है। वैज्ञानिकों की मानें तो यह प्लास्टिक दस दिन में पूरी तरह घुल जाएगा और पानी पर इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। तेल उत्पादित प्लास्टिक की तुलना में बायो प्लास्टिक का बाजार अभी काफी छोटा है लेकिन कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में यह उत्पाद दफ्तरों व घरों में दिखने लगे क्योंकि इटली की कम्पनियां बायो प्लास्टिक उत्पाद क्षमता को तेजी से आगे बढ़ा रही हैं।

न्यायालय के हस्तक्षेप के बावजूद देश में पॉलीथिन का उपयोग बंद नहीं हो पाया है। उच्चतम न्यायालय के आदेश पर भारत सरकार व देश की राज्य सरकारों ने शासनादेश जारी कर स्थानीय निकायों व अन्य विभागों को हिदायत दे दी कि बीस माइक्रान से पतले पॉलीथिन का उपयोग सख्ती से रोका जाये लेकिन सवाल उठता है कि क्या देश की केंद्र व राज्य सरकारों के आदेश से प्रतिबंधित पॉलीथिन का उपयोग बंद हो सका! कूड़े के ढेर में पड़े पॉलिथिन खाने से जहां सालाना सैकड़ों पशुओं की मौत होती है, वहीं इसके दुष्प्रभाव से भूमि की उर्वरा शक्ति का क्षरण हो रहा है। यही नहीं पॉलिथिन कचरा शहरों के सीवर सिस्टम को चौपट कर रहा है।

गहराता जलवायु संकट, झगड़ती दुनिया
Posted on 09 Nov, 2011 12:00 PM

घर में अगर भाड़ जल रहा हो तो अगरबत्तियाँ बुझाने से धुआँ कम नहीं होता। दुनिया को इस बात का भी अह

जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना कैसे करें
Posted on 09 Nov, 2011 11:15 AM

सवाल उठता है कि बड़ी व विकट होती आपदाओं का सामना करने की तैयारी कैसे करें। यदि हम इन सवालों को एक मुख्य प्राथमिकता बनाएं व सरकार तथा प्रशासन भी इस प्राथमिकता के अनुकूल ही तैयार रहे, तो जलवायु बदलाव के प्रतिकूल दुष्परिणामों को चाहे पूरी तरह न रोका जा सके, पर इन दुष्परिणामों को काफी कम अवश्य किया जा सकता है।

जलवायु बदलाव की समझ रखने वाले अधिकांश विशेषज्ञ व संस्थान यह चुनौती दे रहे हैं कि इस संकट को नियंत्रित करने के लिए बहुत व्यापक प्रयास अभी नहीं हुए तो कुछ वर्षो में हालात हाथ से निकल जाएंगे। इसलिए अब समय आ गया है कि इन्हें बचाने की कोशिशें अभी से शुरू कर दी जाएं। कुछ कदम हैं, जो तुरंत ही उठाए जा सकते हैं। सबसे पहले तो वनों को बचाना बहुत जरूरी है। अनुमान है कि हमारी दुनिया से हर एक मिनट में तकरीबन 50 फुटबॉल मैदानों के बराबर ट्रॉपिकल या उष्ण कटिबंधीय वन नष्ट हो जाते हैं यानी प्रतिवर्ष 55 लाख हेक्टेयर। कई जगह इन्हें जलाकर नष्ट कर दिया जाता है और सिर्फ इसी वजह से धरती पर 20 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। कहीं इन वनों को काट दिया जाता है। कभी लकड़ी के लिए, कभी उद्योगों के लिए, तो कभी खेती के लिए।

वनों की रक्षा का कार्य सदा से महत्वपूर्ण रहा है। मिट्टी व जल संरक्षण, बाढ़ व सूखे के संकट को कम करने व आदिवासियों-गांववासियों की आजीविका की दृष्टि से वनों !

जमनालाल बजाज पुरस्कारों की घोषणा
Posted on 07 Nov, 2011 11:25 AM

श्री अनुपम मिश्र नईदिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान के पर्यावरण कक्ष के प्रभारी एवं द्वैमास

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