चुकन्दर से निर्मित घुलनशील प्लास्टिक

यूरोपीय देशों में चुकंदर से चीनी बनती है। चीनी बनाने के बाद बचा वेस्ट जिसे फेंक दिया जाता था, उसी से यह घुलनशील प्लास्टिक बनाया गया है। वैज्ञानिकों की मानें तो यह प्लास्टिक दस दिन में पूरी तरह घुल जाएगा और पानी पर इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। तेल उत्पादित प्लास्टिक की तुलना में बायो प्लास्टिक का बाजार अभी काफी छोटा है लेकिन कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में यह उत्पाद दफ्तरों व घरों में दिखने लगे क्योंकि इटली की कम्पनियां बायो प्लास्टिक उत्पाद क्षमता को तेजी से आगे बढ़ा रही हैं।

न्यायालय के हस्तक्षेप के बावजूद देश में पॉलीथिन का उपयोग बंद नहीं हो पाया है। उच्चतम न्यायालय के आदेश पर भारत सरकार व देश की राज्य सरकारों ने शासनादेश जारी कर स्थानीय निकायों व अन्य विभागों को हिदायत दे दी कि बीस माइक्रान से पतले पॉलीथिन का उपयोग सख्ती से रोका जाये लेकिन सवाल उठता है कि क्या देश की केंद्र व राज्य सरकारों के आदेश से प्रतिबंधित पॉलीथिन का उपयोग बंद हो सका! कूड़े के ढेर में पड़े पॉलिथिन खाने से जहां सालाना सैकड़ों पशुओं की मौत होती है, वहीं इसके दुष्प्रभाव से भूमि की उर्वरा शक्ति का क्षरण हो रहा है। यही नहीं पॉलिथिन कचरा शहरों के सीवर सिस्टम को चौपट कर रहा है।

देश की अनेक राज्य सरकारों ने पॉलीथिन हटाओ अभियान चला कर लाखों टन प्रतिबंधित पॉलीथिन जब्त भी किया लेकिन उसे नष्ट करने में अब उनको पसीने छूट रहे हैं क्योंकि पॉलीथिन जलाने से वायुमंडल जहरीला होगा और भूमि में दफन करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति क्षीण होगी। वैज्ञानिकों की मानें तो पॉलीथिन जलाने से डी-ऑक्सीन गैस निकलती है, जो मनुष्य सहित शेष जीव-जगत के लिए बेहद खतरनाक है। इससे कैंसर सहित तमाम गंभीर रोगों का खतरा रहता है। डी-ऑक्सीन के अलावा भी कई प्रकार की खतरनाक गैसें पॉलीथिन जलाने से निकलती हैं। हैरत की बात यह है कि देश-दुनिया में प्रतिबंधित होने के बावजूद विश्व में पांच सौ बिलियन पॉलीथिन बैग्स का उपयोग होता है। वैज्ञानिकों की मानें तो दुनिया में हर मिनट एक लाख पॉलीथिन बैग का उपयोग होता है।

विडम्बना यह है कि दुनिया में सबसे अधिक पॉलीथिन का उपयोग अपने ही देश में होता है। हिमाचल प्रदेश ने पॉलीथिन हटाओ अभियान के तहत बतौर मॉडल अच्छा प्रयोग किया। वहां प्रदेश सरकार ने जब्त पॉलीथिन का उपयोग सड़क निर्माण में किया। भारत सरकार व देश की राज्य सरकारों को चाहिए कि हिमाचल प्रदेश के प्रयोग को जांच परख और उपयोगिता की कसौटी पर कस कर ‘पॉलीथिन से सड़कें’ बनाने का मॉडल देश में लागू करें। इससे पॉलीथिन से फैलने वाले प्रदूषण की समस्या से छुटकारा मिलेगा और देश को चमकदार सड़कों का बेहतरीन संजाल मिल जाएगा। पॉलीथिन व प्लास्टिक के खतरों को कम करने के लिए इन दिनों इटली में खास वैज्ञानिक प्रयोग हो रहे हैं। वहां वैज्ञानिकों ने पानी में घुलने वाला प्लास्टिक बनाया है। इस घुलनशील प्लास्टिक बनाने में चुकंदर के वेस्ट का उपयोग किया जा रहा है।

इस प्रयोग के कामयाब होने पर तेल से बनने वाली प्लास्टिक व पॉलीथिन उपयोग पर दुनिया की निभर्रता काफी कम हो जायेगी। यूरोपीय देशों में चुकंदर से चीनी बनती है। चीनी बनाने के बाद बचा वेस्ट जिसे फेंक दिया जाता था, उसी से यह घुलनशील प्लास्टिक बनाया गया है। वैज्ञानिकों की मानें तो यह प्लास्टिक दस दिन में पूरी तरह घुल जाएगा और पानी पर इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। तेल उत्पादित प्लास्टिक की तुलना में बायो प्लास्टिक का बाजार अभी काफी छोटा है लेकिन कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में यह उत्पाद दफ्तरों व घरों में दिखने लगे क्योंकि इटली की कम्पनियां बायो प्लास्टिक उत्पाद क्षमता को तेजी से आगे बढ़ा रही हैं। देश के वैज्ञानिकों को भी इस तरह की पहल करनी चाहिए ताकि वेस्ट का उपयोग हो और समस्याओं से निजात मिले।
 

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