भारत

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भूमि सुधार के लिए जन-सत्याग्रह की जरूरत
Posted on 02 Nov, 2011 04:04 PM

प्राकृतिक संसाधनों की लूट व इससे जुड़े भ्रष्टाचार पर रोक लगनी चाहिए। सबसे गरीब परिवारों को जहां

भूमि सुधार
बारिश का संगीत
Posted on 02 Nov, 2011 03:20 PM

जंगलों, पहाड़ों, पठारों, समतल पर वर्षा अपनी तरह-तरह की किलकरियों से गूंजने लगती है। झमाझम, रिम

मेहनत पर जुर्माना
Posted on 02 Nov, 2011 01:57 PM

चावल, गेहूं या चीनी, कोई भी ऐसी फसल नहीं जिसका अधिक उत्पादन होने पर किसानों को मेहनत का सही दाम

कृषि
अनुपम जी को जमनालाल बजाज पुरस्कार
Posted on 29 Oct, 2011 12:37 PM

पानी और पर्यावरण पर काम करने वाले मशहूर पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र को साल 2011 के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार दिया गया है। उनको यह पुरस्कार आगामी 7 नवंबर को मुंबई में दिया जाएगा। अनुपम मिश्र को यह पुरस्कार ग्रामीण विकास में अभूतपूर्व योगदान के लिए दिया जा रहा है। अनुपम मिश्र की पुस्तक आज भी खरे हैं तालाब ने देश में नये सिरे से तालाबों के बारे में जागरुकता पैदा की है।

जमनालाल बजाज पुरस्कार चार श्रेणियों में दिया जाता है जिसमें ग्राम विकास में तकनीकि का योगदान, ग्राम विकास में अभूतपूर्व योगदान, महिला और बाल विकास के क्षेत्र में किया जा रहा काम और विश्व पटल पर गांधी विचार के आधार पर किये जा रहे काम को हर साल यह पुरस्कार दिया जाता है।

अनुपम मिश्र
તળાવ ઉપર હજુ પણ છે (ગુજરાતી)
Posted on 25 Oct, 2011 04:34 PM તળાવ ઉપર હજુ પણ છે (ગુજરાતી)તેમના પુસ્તક 'તળાવ ઉપર હજુ પણ છે' ભારત તરફ, શ્રી અનુપમ જી તળાવો, પાણી - પાક સિસ્ટમો, પાણી - ઘણા ભવ્ય પરંપરા ની સમજણ વ્યવસ્થા તળાવો, અને પાણી, તત્વજ્ઞાન અને સંશોધન દસ્તાવેજીકૃત છે.

ભારત પરંપરાગત જળાશયોમાં, આજે ગામો અને નગરો હજારો જીવાદોરી સમાન છે. આઅનન્ય જીવંત ક્રિયા છે, જે સમગ્ર દેશમાં ફેલાય શેડો જેવા ગંભીર જળ કટોકટી સાથે વ્યવહારકરવામાં આવે છે અને સમસ્યાને 'માર્ગદર્શન' કામ કરે છે સમજો. અનન્ય વસવાટ કરો છોપર્યાવરણ અને પાણી - વર્ષ માટે વ્યવસ્થાપન ક્ષેત્રમાં કામ કર્યું છે અને હાલમાં ગાંધી પીસફાઉન્ડેશન, નવી દિલ્હી સાથે કામ કરે છે. તેમના પુસ્તકો, ખાસ કરીને અને 'સિલ્વરટચરાજસ્થાનના ટીપાં' માં, લક્ષ્યો પાણી વિષય પર પ્રકાશિત
તળાવ ઉપર હજુ પણ છે (ગુજરાતી)
वह किताब रामचरित मानस नहीं है, लेकिन दो लाख छप चुकी है
Posted on 25 Oct, 2011 03:23 PM

हिंदी भाषी परिवारों का आकार देखते हुए दो लाख की संख्या का भी बड़ा मतलब नहीं होना चाहिए लेकिन जब बात हिंदी किताब की बिक्री की हो तो यह सचमुच में यह आंकड़ा बहुत बड़ा है। एक जमाने में गुलशन नंदा जैसों के उपन्यास वगैरह की बिक्री के दावों को छोड़ दें तो आज के हिंदी प्रकाशन व्यवसाय के लिए दो हजार प्रतियों का बिकना भी किताब का सुपरहिट होना है। अब इसे अनुपम मिश्र और गांधी शांति प्रतिष्ठान का स्वभाव मानना चाहिए कि वे अपनी किताब आज भी खरे हैं तालाब की छपाई दो लाख पार करने पर न कोई शोर मचा रहे हैं, न विज्ञापन कर रहे हैं। अगर इस अवसर का अपना व्यावसायिक लाभ या कोई पुरस्कार वगैरह पाने की उम्मीद होती तो यह काम जरूरी होता लेकिन अनुपम मिश्र न तो पुरस्कारों की होड़ में हैं, न थे और न ही गांधी शांति प्रतिष्ठान किताब से कमाई को बढ़ाना चाहता है।

कैसे हो जैव संपदाओं का संरक्षण
Posted on 13 Oct, 2011 10:20 AM

सबसे खतरनाक हमला किसान, खेत, जंगल, जड़ी-बुटियां और इनसे जुड़े हमारे हजारों वर्ष पुराने ज्ञान पर

पानी को तरसेगा आदमी
Posted on 12 Oct, 2011 08:09 PM

इस समस्या के जटिल हो जाने से मानव भूख, गंदगी तथा रोगों का शिकार बन बिना मौत के ही मर जाएगा। ये

देखो! मैं आ रहा हूं!
Posted on 12 Oct, 2011 07:20 PM

अर्चना बाली

पक्षी मेरे पड़ोसी हैं
Posted on 12 Oct, 2011 06:18 PM

कासिम मोहम्मद

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