वन हैं तो हम हैं

भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून द्वारा देश में वन क्षेत्रफल के आंकड़े तैयार किए जाते हैं। संस्थान ने 2007 तक के वन क्षेत्रफल के आंकड़े एकत्र किए हैं। इसके अनुसार देश में छह लाख 90 हजार 899 वर्ग किमी वन क्षेत्र है। देश में वन संरक्षण कानून 1980 में बना। इससे पहले वनों के काटने पर कोई रोकटोक नहीं थी। कानून बनने के बाद विकास के लिए भी वनों को काटने की पूर्व अनुमति हासिल करने का प्रावधान है और एक पेड़ काटने के बदले में तीन पेड़ लगाने पड़ते हैं।

जल, थल और आकाश मिलकर पर्यावरण को बनाते हैं। हमने अपनी सुविधा के लिए प्रकृति के इन वरदानों का दोहन किया, लेकिन भूल गए कि इसका नतीजा क्या होगा? पर्यावरण विनाश के कुफलों से चिंतित मनुष्य आज अपनी गलती सुधारने की कोशिश में है। आइए हम भी कुछ योगदान करें। जितने अधिक वन होंगे पर्यावरण उतना ही अधिक सुरक्षित होगा। पर्यावरण की सुरक्षा में जंगलों के महत्व को स्वीकार करते हुए विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर इस साल की थीम है फारेस्ट-नेचर एट युअर सर्विस यानी ‘जंगल-प्रकृति आपकी सेवा में। इस थीम के पीछे वनों की उपयोगिता और उनके संरक्षण का भाव है। वनों के बगैर आज मानव समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। वन संसाधनों और इनके संरक्षण के मामले में भारत धनी है। हालांकि यह भी सत्य है कि पिछले कुछ दशकों के दौरान अनियंत्रित औद्योगिक विकास के कारण वनों को काफी क्षति पहुंची है लेकिन इधर हाल के वर्षों में जागरूकता बढ़ी है और वनों की कीमत पर विकास की परंपरा थमी है। वैसे भी हमारे देश के कई सूबों में वनों और वन्य जीवों का संरक्षण लोगों के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दा भी है। देश में विकास गतिविधियों में इजाफे के बावजूद वन बढ़े हैं। इसलिए भारत के कदमों को वैश्विक स्तर पर भी मान्यता मिल रही है। इसी कड़ी में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने विश्व पर्यावरण दिवस की थीम के क्रियान्वयन की मेजबानी भारत को सौंपी है।
 

देश में वन


भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून द्वारा देश में वन क्षेत्रफल के आंकड़े तैयार किए जाते हैं। संस्थान ने 2007 तक के वन क्षेत्रफल के आंकड़े एकत्र किए हैं। इसके अनुसार देश में छह लाख 90 हजार 899 वर्ग किमी वन क्षेत्र है। जबकि 2005 में यह छह लाख 90 हजार 171 वर्ग किलोमीटर था लेकिन घने प्राकृतिक वन घट रहे हैं और जो वृक्षारोपण हो रहा है, वह उतना प्रभावी नहीं कि घने वनों की कमी की भरपाई कर सके। इसलिए छितरा वन क्षेत्र बढ़ रहा है। सरकार ने वनों को तीन क्षेत्रों में विभाजित कर दिया है। अति सघन वन, मध्यम सघन वन तथा छितरे वन हैं। अब स्थिति यह है कि कुल वन क्षेत्र बढ़ा है लेकिन घने और मध्यम स्तर के घने वन कम हुए हैं और छितरे वन बढ़ रहे हैं। ये प्रवृत्ति वनों के अंधाधुंध कटान की तरफ ईशारा करती है।

 

 

कितने हों वन


राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार भू-भाग का 33 फीसदी हिस्सा वनों से आच्छादित होना चाहिए। लेकिन देश के 21.02 फीसदी हिस्से पर ही वन हैं। करीब 2.82 फीसदी भू भाग पर पेड़ हैं। यदि इन्हें भी वन मान लिया जाए तो देश का कुल वन क्षेत्रफल 23.84 फीसदी ही बैठता है, जो लक्ष्य से बेहद कम है। हां, उत्तराखंड, हिप्र, जम्मू-कश्मीर समेत पूर्वोत्तर के राज्यों में 33 फीसदी से अधिक हिस्से पर वन हैं। छत्तीसगढ़, उड़ीसा, गोआ ऐसे हैं जहां वन क्षेत्रफल 33 फीसदी से ज्यादा है। लेकिन विकास परियोजनाओं के चलते यहां भी वनों पर संकट मंडरा रहा है।

 

 

 

 

विकास और वन


देश में वन संरक्षण कानून 1980 में बना। इससे पहले वनों के काटने पर कोई रोकटोक नहीं थी। कानून बनने के बाद विकास के लिए भी वनों को काटने की पूर्व अनुमति हासिल करने का प्रावधान है और एक पेड़ काटने के बदले में तीन पेड़ लगाने पड़ते हैं। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के एक अध्ययन के अनुसार वन संरक्षण कानून बनने से पूर्व देश में प्रतिवर्ष एक लाख 43 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्रफल प्रतिवर्ष घटता था। कानून बनने के बाद इसमें कमी आई लेकिन अभी भी सालाना 30-35 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र विकास की भेंट चढ़ता है। काटे गए वन क्षेत्रफल के एक तिहाई हिस्से की ही भरपाई सरकार कर पाई है।

 

 

 

 

यूकेलिप्टस से बचें


विशेषज्ञों का मानना है कि वनीकरण नीति में बदलाव की जरूरत है। वनीकरण के नाम पर हमें यूकेलिप्टस जैसे पेड़ लगाने से बचना चाहिए। बल्कि हमारी परंपरागत वन्य प्रजातियों के अनुरूप ही पौधे लगाने चाहिए ताकि विविधता कायम रहे। दूसरे, यूकेलिप्टस जैसी प्रजातियां ऐसी हैं जिनसे जमीन की उर्वरा शक्ति को क्षति पहुंच सकती है। बेहतर हो कि वनीकरण के दौरान नीम, अशोक के औषधीय पौधे लगें या जामुन, नीबू, आम के फलदार पेड़। कई शहरों में छोटे स्तर पर ऐसी पहल हुई है और वह बेहद सफल रही है। ये पेड़ फल, औषधि के साथ-साथ छाया भी प्रदान करते हैं।

 

 

 

 

वनों से फायदे


वनों से फायदे ही फायदे हैं। यह सब जानते हैं कि वे हमें ईंधन देते हैं, ताजी हवा देते हैं और बारिश कराते हैं लेकिन सबसे बड़ी बात है कि हमारे द्वारा पैदा होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों को वन सोख रहे हैं। पर्यावरण मंत्रालय के ताजा अध्ययन के अनुसार देश में उत्सर्जित होने वाली 11.25 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों यानी करीब 13.8 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड को जंगल चट कर रहे हैं। दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन से बचने की कोशिशें हो रही हैं, विश्व स्तर भारत जैसे विकासशील देश अमीर देशों पर दबाव डाल रहे हैं कि या तो वे अपना उपभोग घटाएं या हमें मुआवजा दें।

 

 

 

 

आप भी बचा सकते हैं पर्यावरण


• निजी वाहनों की बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट को तरजीह दें।
• बिजली से चलने वाले वाहनों का प्रयोग करें।
• सीएनजी से चलने वाले वाहनों का इस्तेमाल करें।
• जहां संभव हो बॉयो डीजल का प्रयोग करें।
• अपने बगीचे और सार्वजनिक स्थानों पर ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाएं।
• पानी का किफायत से उपयोग करें।
• पवन उर्जा, सौर उर्जा और जल उर्जा से चलने वाले उपकरणों को तरजीह दें।
• बिजली से चलने वाले उपकरणों को जितनी आवश्यकता हो, उतना ही इस्तेमाल करें।
• एयर कंडीशन और इस प्रकार की चीजों का कम से कम इस्तेमाल करें, क्योंकि इससे क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस उत्सर्जित होती है, जो वायुमंडल की ओजोन परत को काफी नुकसान पहुंचाती है।
• नदियों और अन्य जल स्रोतों को प्रदूषित न करें, उनमें कचरा न डालें।
• पॉलीथीन का इस्तेमाल बंद करें। इसकी जगह ईको-फ्रेंडली उत्पाद (कागज के थैले आदि) प्रयोग में लाएं।
• कूड़े को कूड़ेदान में ही फेंकें।
• ‘थ्री आर’ व्यवस्था- रिड्यूस (पर्यावरण के लिए हानिकारक चीजों का इस्तेमाल कम करें), रियूज (चीजों को एक बार की बजाय कई बार इस्तेमाल करें) और रिसाइकल - को बढ़ावा दें।
• एक से ज्यादा व्यक्तियों को एक ही इलाके में जाना (जैसे ऑफिस या किसी कार्यक्रम में) हो तो अलग-अलग वाहनों का इस्तेमाल करने की बजाय सामूहिक रूप से जाएं।
• पटाखे को बाय-बाय कहें। इससे ध्वनि और वायु प्रदूषण दोनों कम होगा।
• लाउडस्पीकर का इस्तेमाल न करें।
• गैर-जरूरी स्ट्रीट लाइट बंद कर ‘लाइट पॉल्यूषण’ कम कर सकते हैं।

 

 

 

 

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