रामेन्द्र सिंह चौहान

रामेन्द्र सिंह चौहान
महाबलेश्वर हिल स्टेशन आनन्द की सुखद अनुभूति
Posted on 31 Dec, 2017 11:28 AM

महाबलेश्वर हिल स्टेशन की घाटियाँ, पर्वत श्रृंखला, वन-जंगल क्षेत्र, झरना-झीलें आदि व्यक्ति को मुग्ध करने वा

चुकन्दर से निर्मित घुलनशील प्लास्टिक
Posted on 12 Nov, 2011 09:58 AM

यूरोपीय देशों में चुकंदर से चीनी बनती है। चीनी बनाने के बाद बचा वेस्ट जिसे फेंक दिया जाता था, उसी से यह घुलनशील प्लास्टिक बनाया गया है। वैज्ञानिकों की मानें तो यह प्लास्टिक दस दिन में पूरी तरह घुल जाएगा और पानी पर इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। तेल उत्पादित प्लास्टिक की तुलना में बायो प्लास्टिक का बाजार अभी काफी छोटा है लेकिन कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में यह उत्पाद दफ्तरों व घरों में दिखने लगे क्योंकि इटली की कम्पनियां बायो प्लास्टिक उत्पाद क्षमता को तेजी से आगे बढ़ा रही हैं।

न्यायालय के हस्तक्षेप के बावजूद देश में पॉलीथिन का उपयोग बंद नहीं हो पाया है। उच्चतम न्यायालय के आदेश पर भारत सरकार व देश की राज्य सरकारों ने शासनादेश जारी कर स्थानीय निकायों व अन्य विभागों को हिदायत दे दी कि बीस माइक्रान से पतले पॉलीथिन का उपयोग सख्ती से रोका जाये लेकिन सवाल उठता है कि क्या देश की केंद्र व राज्य सरकारों के आदेश से प्रतिबंधित पॉलीथिन का उपयोग बंद हो सका! कूड़े के ढेर में पड़े पॉलिथिन खाने से जहां सालाना सैकड़ों पशुओं की मौत होती है, वहीं इसके दुष्प्रभाव से भूमि की उर्वरा शक्ति का क्षरण हो रहा है। यही नहीं पॉलिथिन कचरा शहरों के सीवर सिस्टम को चौपट कर रहा है।

पानी नहीं बचा तो तय बर्बादी
Posted on 16 Jun, 2011 10:02 AM

यदि हम पानी की बर्बादी को तत्काल नहीं रोकेंगे तो खुद बर्बाद हो जाएंगे क्योंकि देश के अधिसंख्य इलाकों में भूगर्भ जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है, लिहाजा ग्राउण्ड वॉटर की समस्या खड़ी हो रही है। तमाम जगहों पर बढ़ते जल प्रदूषण से भी आम लोगों की दुश्वारियां बढ़ रही हैं। इसलिए चिंतन की आवश्यकता है कि पानी को कैसे बचाया जाए और पानी को बर्बाद होने से कैसे रोका जाए?

यमुना को साफ करो
Posted on 03 Jan, 2011 01:28 PM


हिमालय की कोख से प्रवाहमान यमुना को 'आक्सीजन' के लिए संघर्ष करना पड़े... यह कम शर्म की बात नहीं है।
यमुना को आक्सीजन के लिए देश की राजधानी दिल्ली में सर्वाधिक संघर्ष करना पड़ रहा है। उत्तराचंल के शिखरखंड हिमालय से उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तक करीब 1,370 किलो मीटर की यात्रा तय करने वाली यमुना को ज्यादा संकट दिल्ली के करीब 22 किलोमीटर क्षेत्र में है, लेकिन बेदर्द दिल्ली को यमुना के आंसुओं पर कोई तरस नहीं आया। यही कारण है कि अभी तक यमुना की निर्मलता वापस नहीं लौट सकी।

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