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‘जोड़ने’ में न टूटें लक्ष्मण रेखाएं
Posted on 09 Apr, 2012 06:04 PM

हिमालय का नक्शा ऊपर से देखें तो गंगा और यमुना का उद्गम बिल्कुल पास-पास दिखाई देगा लेकिन यह पर्वत का भूगोल ही है कि दोनों नदियों को प्रकृति ने अलग-अलग घाटियों में बहाया और फिर बहुत धीरज के साथ पर्वत को काट-काटकर प्रयाग तक पहुंच कर इनको मिलाया। न्याय देने वाला पक्ष-विपक्ष की लंबी-लंबी दलीलें सुनता है और तब वह नीर, क्षीर, विवेक के अनुसार फैसला सुनाता है। दूध का दूध और पानी का पानी। लेकिन नदी जोड़ो प्रसंग में अदालत ने दोनों बार दूध भुला दिया और पानी को पानी से जोड़ने का आदेश दे दिया है।

लगता है लक्ष्मण रेखाएं तोड़ने का यह स्वर्ण-युग आ गया है। जिसे देखो वह अपनी मर्यादाएं तोड़कर न जाने क्या-क्या जोड़ना चाहता है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने नदी जोड़ने के लिए सरकार को आदेश दिया है। एक समिति बनाने को कहा है और उसकी संस्तुतियां भी एक निश्चित अवधि में सरकार के दरवाजे पर डालने के लिए कहा है और शायद यह भी कि सरकार संस्तुतियां पाते ही तुरंत सब काम छोड़कर देश की नदियां जोड़ने में लग जाए! यह दूसरी बार हुआ है। इससे पहले एनडीए के समय में बड़ी अदालत ने अटलजी की सरकार को कुछ ऐसा ही आदेश दिया था, तब विपक्ष में बैठी सोनिया जी और पूरी कांग्रेस उनके साथ थी। एनडीए के भीतरी ढांचे में आज की तरह किसी भी घटक ने इसका कोई विरोध नहीं किया था। सबसे ऊपर बैठे राष्ट्रपति भी इस योजना को कमाल का मानते थे।
river
प्रगतिशील वनविनाश
Posted on 05 Apr, 2012 05:11 PM

तंजानिया में वर्ष 1990 एवं 2005 के मध्य वन क्षेत्र में 15 प्रतिशत की कमी आई है और बढ़ती गरीबी के चलते लकड़ी का उ

जीडी की जिद, क्या बहेगी गंगा
Posted on 04 Apr, 2012 04:04 PM

नदी नहीं गधेरे


बड़े बांधों के खिलाफ नारा ‘गंगा को अविरल बहने दो, गंगा को निर्मल रहने दो’ यह दो दशक पुराना नारा है। पुराना संघर्ष तो पानी पर लिखा इतिहास हो चुका है। उसको समझने के लिए ‘पानी की दृष्टि’ चाहिए। पुराना तो छोड़िए नए में देश के उत्तर पूर्व के एक राज्य असम के लखीमपुर जिले में निर्माणाधीन लोअर सुबानसिरी को वहां के जनसंगठनों की तरफ से नवम्बर-दिसम्बर 2011 से हजारों की संख्या में चक्का जाम कर बांध निर्माण को रोक दिया गया है।

भागीरथी, धौलीगंगा, ऋषिगंगा, बालगंगा, भिलंगना, टोंस, नंदाकिनी, मंदाकिनी, अलकनंदा, केदारगंगा, दुग्धगंगा, हेमगंगा, हनुमानगंगा, कंचनगंगा, धेनुगंगा आदि ये वो नदियां हैं जो गंगा की मूल धारा को जल देती हैं या देती थीं। देती थीं इसलिए कहना पड़ रहा है कि गंगा को हरिद्वार में आने से पहले 27 प्रमुख नदियां पानी देती थीं। जिसमें से 11 नदियां तो धरा से ही विलुप्त हो चुकी हैं और पांच सूख गई हैं। और ग्यारह के जलस्तर में भी काफी कमी हो गई है। यह हाल है देवभूमि उत्तराखंड में गंगा और गंगा के परिवार की। नदी निनाद कर बहती है। उसके तीव्र वेग के कारण ही वह नदी कहलाती है। यदि किसी धारा में कलकल और उज्जवल जल नहीं तो वह उत्तराखंड में गधेरा कहा जाता है उसको नदी का दर्जा प्राप्त नहीं होता।
घटती भूमि: बढ़ती चिंता
Posted on 04 Apr, 2012 12:32 PM

आर्थिक विकास एवं सकल घरेलु उत्पादन (जीडीपी) में वृद्धि प्राकृतिक संसाधनों पर भी आधारित है। आर्थिक मंदी से निजात

natural resources
औद्योगिक कॉरिडोर: विध्वंस का नया हथियार
Posted on 04 Apr, 2012 11:44 AM

पश्चिमी घाट की 600 मीटर की ऊंचाई को लांघकर गोदावरी, कृष्णा जैसी नदियों का पानी कॉरीडोर परियोजना के लिए सुझाया है

पड़त भूमि की समस्याएं
Posted on 04 Apr, 2012 09:18 AM

भूक्षरण से जमीन के कटाव को होने वाली क्षति का मूल्यांकन कर पाना असंभव है क्योंकि भूमि की उपजाऊ सतह को एक इंच परत

परम्परा, ज्ञान और धरोहर का व्यापार
Posted on 03 Apr, 2012 04:05 PM

मानव जिंदगी के लिए जिस तरह जमीन, हवा, पानी जरूरी है, उसी तरह वनस्पति और प्राणी भी जरूरी हैं। किन्हीं कारणों से य

वन घायल हैं, डरी सी नदियाँ
Posted on 03 Apr, 2012 03:10 PM

यदि हम चाहते हैं कि हमारी कुदरत-कायनात में जिन्दगानी बनी रहे तो हमें उगाना होगा हरा भरा जंगल अपने अंदर। एक जीवंत

17 अप्रैल की गंगा बेसिन प्राधिकरण और गंगा सेवा अभियानम् के बैठक का संभावित एजेंडा
Posted on 03 Apr, 2012 02:48 PM

लोक अपेक्षा और सरकारी आश्वासन


मांगें
• अलकनंदा, मंदाकिनी, नंदाकिनी, पिंडर, विष्णुगंगा - पंचप्रयाग बनाने वाली गंगा की इन पांच मूल धाराओं पर बन रही सभी परियोजनायें बंद/निरस्त हों।
• गंगा और गंगा से मिलने वाली सभी नदियों और नालों को प्रदूषित करने वाले चमड़ा-पेपर आदि उद्योगों को कम से कम 50 किमी दूर खदेड़ा जाए।
पेयजल संकट की बढ़ती समस्या पर एक वैकल्पिक दृष्टि
Posted on 03 Apr, 2012 01:39 PM

हमारे जल संकट का एक पहलू यह भी है कि बाढ़ के समय काफी पानी बर्बाद हो जाता है और बाकी समय जलाभाव से जूझना पड़ता ह

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