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यमुना को प्रदूषण से मुक्त रखने का सवाल
Posted on 01 Apr, 2012 11:04 AM

जिस प्रकार गंगा नदी को लेकर खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग आंदोलनरत हैं उसी प्रकार यमुना के मुद्दे पर पश्चिमी

नदी जोड़ योजना का संतुलित मूल्यांकन जरूरी
Posted on 31 Mar, 2012 04:53 PM

बांधों व नहरों के इस जाल से बहुत से वन, संरक्षित क्षेत्र व वन्य जीवों के आश्रय स्थल भी तबाह होंगे। मछलियों व अन्

गंगा मुक्ति: अनशन और आश्वासन से आगे
Posted on 31 Mar, 2012 03:12 PM

समस्या नदी के आर्थिक उपयोग से नहीं होती, समस्या तब होती है, जब उसका अंधाधुंध दोहन होता है, इतना कि नदी कई जगह ना

पानी को प्रदूषण से बचाइए
Posted on 31 Mar, 2012 12:58 PM

पिछले कुछ वर्षों से यह देखने में आया है कि गर्मी के चरम पर जबकि पानी की सख्त आवश्यकता होती है हमारे देश की कई नद

गंगा का दूसरा कोई विकल्प नहीं है।
Posted on 31 Mar, 2012 10:51 AM

जापान के वैज्ञानिक मसारू इमोटो ने अपने अध्ययन में पाया कि बहती नदी में पानी के अणु षट्कोणीय आकर्षक झुंड बना लेते

अवैज्ञानिक व्यवहार ने नष्ट किया गंगाजल का चारित्रिक गुण
Posted on 30 Mar, 2012 02:33 PM

एनइइआरआई (नेशनल इंवायरमेंटल इंजीनियरिंग आफ रिसर्च इंस्टीच्यूट, नागपुर) द्वारा वर्ष 2011 में जारी जांच रिपोर्ट मे

जैविक कृषि: तेरा तुझको अर्पण
Posted on 29 Mar, 2012 04:17 PM

दूसरे महायुद्ध के बाद रासायनिक कृषि ने विश्व में अपने पैर जमाने शुरू किए थे। करीब आठ दशक के अपने इतिहास में इसने

नदी जोड़ योजना: बेजोड़ या अव्यावहारिक गठजोड़
Posted on 28 Mar, 2012 05:18 PM

सच्चाई यह है कि जब एक नदी में बाढ़ आई हुई होती है तो दूसरी नदी में भी पानी अधिक ही रहता है। इसी तरह नदियों के पा

रामबाण नहीं है नदी जोड़ योजना
Posted on 28 Mar, 2012 10:39 AM

पुराने अनुभव बताते हैं कि बड़े निर्माण-कार्यों का क्रियान्वयन करने वाली कंपनियां पुनर्वास संबंधी नीतियों के प्रति बेहद असंवेदनशील और गैर-जिम्मेदाराना रुख अपनाती हैं। पहले भी देखा गया है कि सरकारी तंत्र और निजी कंपनियों के बीच के गठजोड़ में विस्थापित होने वाली जनता के रोजी-रोटी के सवाल नदारद रहते हैं और ऐसे लोगों के पक्ष में आवाज उठाने वालों को विकास-विरोधी की संज्ञा दी जाती है। भारत में पानी से जुड़ी मूल समस्या पानी की उपलब्धता की नहीं, बल्कि पानी के प्रबंधन की है।

जनसत्ता 16 मार्च, 2012: उच्चतम न्यायालय द्वारा सरकार को नदियों के एकीकरण की योजना पर चरणबद्ध तरीके से अमल करने का निर्देश देने के बाद परिणामप्रिय विश्लेषक इस योजना से होने वाले लाभों को गिनवाने में लग गए हैं। नदियों के एकीकरण के इस प्रस्ताव पर उस तबके के बीच खासा उत्साह का माहौल है जो इसके जरिए अपने हितों को साधने और अपने आर्थिक विस्तार की संभावनाएं तलाश रहा है। मोटे तौर पर यह वही तबका है जो विकास के देशी-सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति हिकारत का भाव रखता है और उन्हें सिरे से खारिज करता है। यही वजह है कि इस प्रस्ताव के पक्ष में गोलबंदी भी शुरू हो गई है। बौद्धिक जगत का एक हिस्सा इस योजना के दूरगामी परिणामों को समझे बगैर इसके साथ खड़ा है और इस योजना को पानी की समस्या से निजात पाने का रामबाण इलाज बता रहा है।
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