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बिहार
क्यों शोक का कारण बन जाती हैं उत्तर बिहार की नदियाँ
Posted on 19 Sep, 2015 03:57 PMविश्व नदी दिवस 27 सितम्बर 2015 पर विशेष
मीठे जल के स्रोत के रूप में अनादि काल से इंसानों को हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराने वाली नदियाँ क्या किसी मानव समूह के लिये निरन्तर दुख की वजह बन सकती हैं? जिस नदियों के किनारे दुनिया भर की सभ्यताएँ विकसित हुई हैं, उद्योग-धंधे पाँव पसारने को आतुर रहते हैं, खेती की फसलें लहलहाती हैं, उन्हीं नदियों के किनारे बसी उत्तर बिहार की एक बड़ी आबादी गरीबी और लाचारी भरा जीवन जीने को विवश है।
दुनिया भर में नदियों के किनारे बसे लोग लगातार समृद्ध होते रहे हैं, मगर इन इलाकों के लोग आज भी अठारहवीं सदी वाला जीवन जी रहे हैं। आखिर इसकी वजह क्या है? कहा जाता है कि सालाना बाढ़ की वजह से ऐसा होता है, मगर क्या बात इतनी सरल है?
नेपाल की सीमा से सटे उत्तर बिहार के तराई इलाकों से होकर बिहार में सात बड़ी नदियाँ गुजरती हैं।
उत्तर बिहार : अच्छे दिन कब आएँगे
Posted on 17 Sep, 2015 03:51 PMविश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष
उत्तर बिहार में बहुत सी नदियों के किनारे तटबन्ध बने हुए हैं। इन तटबन्धों के बीच बहुत से गाँव बसे हुए है जिनका पुनर्वास होना चाहिए था मगर लोग पुनर्वास स्थलों पर या तो गए ही नहीं या जाकर लौट आये। कारण यह था कि उन्हें खेती की ज़मीन के बदले ज़मीन नहीं दी गई थी और मजबूरन उनकी वापसी हुई।
कोसी के अलावा दूसरी नदियों में या तो घर बनाने के लिये कुछ रुपए दे दिये गए या फिर बागमती में जैसा हुआ कि सिर्फ घर उठा कर पुनर्वास में सामान ले जाने की लिये कुछ रुपये दे दिये गए और हो गया पुनर्वास। कई जगहों पर पुनर्वास स्थलों में जल-जमाव हो गया और लोग अपने पुश्तैनी ज़मीन पर वापस आने के लिये मजबूर हुए।
आमतौर पर उत्तर बिहार की सभी नदियों के साथ यही हुआ। आज कोसी तटबन्धों के बीच 380 गाँव भारत के और 61 गाँव नेपाल के फँसे हुए है और इनकी आबादी अब 15 लाख के आस-पास होगी।
ग्लोबल वार्मिंग के मुकाबले में सतही जल का समेकित प्रबन्धन
Posted on 13 Sep, 2015 11:30 AMजल सम्पदा का प्रचलित वर्गीकरण संक्षिप्तीकरण का शिकार है। इसके तीन वबाढ़ के इलाके में भूजल का अकाल
Posted on 12 Sep, 2015 01:20 PMपहले पानी 45 फीट पर आता था, आज 60 फीट पर मिलता है। उसमें गंध रहता है और थोड़ी देर रखने पर पानी के उपर एक परत नजर आती है। कुल्हड़िया में पहले पानी 20 फीट पर था, अब 60 फीट पर है। कपड़े धोने पर पीले पड़ जाते हैं, पानी को स्थिर रखने पर ऊपर एक परत जम जाती है। पेयजल के माध्यम से मानव शरीर में एकत्र लौहतत्वों की अधिकता से कई बीमारियाँ होती हैं। जिनमें बाल गिरने से लेकर किडनी-लीवर की बीमारी के अलावा चिड़चिड़ापन व मस्तिष्क की बीमारियाँ भी शामिल हैं। भूजल घटने से पूरा देश, बल्कि दुनिया के अधिकतर देश चिन्तित हैं। फिर भी बाढ़ग्रस्त कोसी क्षेत्र के भूगर्भीय जल भण्डार घटने और दूषित होने की खबरें चौंकाती हैं, सचेत करती हैं। 18 गाँवों के सर्वेक्षण में पता चला कि पहले जहाँ 10-15 फीट गहराई पर पानी था, अब 70-80-100 फीट नीचे चला गया है।लोग हर काम के लिये भूजल पर निर्भर हैं। पेयजल के लिये चापाकल और सिंचाई के लिये नलकूप का प्रयोग लगातार बढ़ता गया है। करीब 79 प्रतिशत सिंचाई नलकूपों से होती है। वर्षाजल की हिस्सेदारी महज 15 प्रतिशत है। नदी और तालाब की हिस्सेदारी महज 5-6 प्रतिशत है।
यह बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र हैं। बाढ़ में आई पतली मिट्टी (सिल्ट या विभिन्न जैविक उर्वरकों से युक्त गाद) -बालू के कारण क्षेत्र की मिट्टी बलुआही है। उसकी जलधारण क्षमता कम है। इसलिये बरसात में जलनिकासी की समस्या भी उत्पन्न होती है और जल-जमाव होता है। कोसी तटबन्ध बनने के बाद बाढ़ विकराल हुई। उसका रूप बदला, वह विध्वंसक हो गई।
भूख मिटाने के लिये बच्चों की मजदूरी पर निर्भर हैं किसान
Posted on 12 Sep, 2015 12:22 PMसुपौल और मधुबनी जिले के 18 गाँवों की कहानी है जो पश्चिमी कोसी तटबन्खत्म होने के कगार पर कांवर झील
Posted on 27 Aug, 2015 11:49 AMउत्तर बिहार के बेगूसराय का कांवर झील प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता के कारण प्रवासी एवं स्थानीय पक्षियों का आश्रय स्थल है। वह अब खत्म होने के कगार पर है। यह न सिर्फ अनुकूल जलवायु और वातावरण के कारण पक्षियों का पसंदीदा स्थान है। मौजूदा समय में यह प्रकृति और मानवीय संम्बधों की तलाश कर रहा है।
कभी भी जमीन का मुद्दा नहीं होगा अप्रासंगिक: दिवाकर
Posted on 27 Aug, 2015 11:12 AMआज जब पूरे देश में विकास के मॉडल के नाम पर किसानों से जमीन छीनने और अधिग्रहण की बात की जा रही है। वहीं बिहार जैसे सामंती प्रदेश में देने की प्रक्रिया जारी है। राज्य में 65 फीसदी लोग भूमिहीन हैं और मजदूरी करते हैं। बिहार भूमि के महत्त्वपूर्ण सवाल पर एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के निर्देशक तथा बिहार सरकार द्वारा गठित कोर कमेटी के सदस्य डॉ. डीएम दिवाकर से बातचीत।
वर्षाजल संचयन की प्रकृति सम्मत उपयोगी व्यवस्था
Posted on 27 Aug, 2015 11:08 AMवर्षा की बूँदें जहाँ गिरे वहीं रोक लेना और संग्रहित जल का विभिन्न प्रयोजनों में उपयोग करना सर्वोत्तम जल-प्रबन्धन है। इसकी कई तकनीकें प्रचलित हैं। कुछ तकनीकें प्राचीन और परम्परासिद्ध हैं तो कुछ नई विकसित हुई हैं। संग्रह और वितरण की इन प्रणालियों में भूजल कुण्डों के पुनर्भरण का समावेश भी होता है जिसका उपयोग संकटकालीन अवस्थाओं में हो सकता है। अतिरिक्त जल की
जलागम विकास में लाभों का बँटवारा, एवं गरीब वर्ग का सशक्तिकरण
Posted on 25 Aug, 2015 11:41 AMपाठ-8भूमिका
भारत में तेजी से घट रही प्राकृतिक सम्पदाओं का कारण है देश की बढ़ती जनसंख्या तथा उनकी बढ़ती हुई जमीन पर निर्भरता। 1952 से 1981 तक के बीच भारत में खेती योग्य भूमि 0.48 हेक्टेयर/व्यक्ति से घट कर 0.20 हेक्टेयर/व्यक्ति हो गई है।