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बिहार
भूतही-बलान : फिर बँधे दालान
Posted on 23 Aug, 2015 11:34 AMभूतही बलान एक छोटी नदी है। भारत-नेपाल सीमा पर लौकहा से महज 42 किलोबिहार की सिंचाई परियोजनाओं पर केन्द्र का बयान
Posted on 22 Aug, 2015 03:13 PMबिहार सरकार ने वर्ष 2012 में 39 जलाशयों के लिये प्रस्ताव भेजे थे। कबिहार सरकार के सभी बाढ़ निरोधक प्रस्ताव स्वीकृत
Posted on 22 Aug, 2015 02:09 PMकेन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार मंत्री सुश्री उमा भारती ने कहा है कि सप्त-काशी हाईडैम के निर्माण हेतु विचार-विमर्श में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। इससे बिहार में बाढ़ की विभीषिका को अत्यधिक कम किया जा सकेगा। भारत सरकार ने इसके लिये नेपाल सरकार से सार्थक बातचीत की है।
बिहार में हरित आवरण पन्द्रह फीसदी करने का लक्ष्य : मुख्यमन्त्री
Posted on 11 Aug, 2015 09:32 AMमुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को कम करने के मक्सद से पर्यावरण सनतुलन बनाये रखने हेतु राज्य में हरित आवरण को 9 से बढ़ाकर 15 फीसदी करने का लक्ष्य तय किया गया है तथा मौजूदा उपलब्ध आकड़ों के आधार पर हरित आवरण 13 फीसदी हो चुका है। विकास के मॉडल को समझना होगा। समावेशी विकास का मतलब है कि हम अपने पर्यावरण की रक्षा करें और उसके सन्तुलन को कायम रखें
कोसी के लिए समझदारी और सावधानी
Posted on 08 Aug, 2015 01:53 PMजल-विद्युत विशेषज्ञ दीपक ग्यावली, नेपाल के पूर्व जल संसाधन मन्त्री रह चुके हैं तथा नेपाल के जल संरक्षण फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं। कोसी की बाढ़ और भविष्य की तैयारियों पर दीपक ग्यावली के बेबाक विचार :-प्रकृति सम्मत एकीकृत जल प्रबन्धन का बेहतरीन नमूना
Posted on 07 Aug, 2015 01:39 PMजल प्रबन्धन का सर्वोत्तम व एकत्रि ढँग यही हो सकता है कि गाँवों मेंबीस साल बाद भी नहीं होती है खनन की भरपाई
Posted on 01 Aug, 2015 12:25 PMशहरीकरण के कारण हमारी ज़मीन कम होती जा रही है। अगर हमारी स्थिति यूँतालाबों के पुनरुद्धार से मिली विकास की राह
Posted on 23 Jul, 2015 11:27 AMपचास साल पहले तक इन गाँवों में जरूरत के मुताबिक तालाब होते थे। पोखर ग्राम्य जीवन के अभिन्न अंग होते थे। इनसे कई प्रयोजन सिद्ध होते थे। बरसात के मौसम में वर्षाजल इनमें संचित होता था। बाढ़ आने पर वह पानी पहले तालाबों को भरता था। गाँव और बस्ती डूबने से बच जाते थे। अगर कभी बड़ी बाढ़ आई तो तालाबों के पाट, घाट मवेशियों और मनुष्यों के आश्रय स्थल होते थे। अगर बाढ़ नहीं आई तो अगले मौसम में सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध होता था। कोसी तटबन्धों के बीच फँसा एक गाँव है बसुआरी। तटबन्ध बनने के बाद यह गाँव भीषण बाढ़ और जल-जमाव से पीड़ित हो गया। यहाँ भूतही-बलान नदी से बाढ़ आती थी जो अप्रत्याशित और भीषण बाढ़ के लिये बदनाम नदी है। अचानक अत्यधिक पानी आना और उसका अचानक घट जाना इसकी प्रकृति रही है। पर तटबन्ध बनने के बाद बाढ़ के पानी की निकासी में अवरोध आया और पानी अधिक दिन तक जमने लगा।तटबन्ध बनने के पहले भी इस क्षेत्र में बाढ़ आती थी। कई बार पानी अधिक दिनों तक लगा रहता था और कई बार साल में पाँच-सात बार बाढ़ आ जाती थी। जिससे धान की फसल भी नहीं हो पाती थी या लहलहाती फसल बह जाती थी। धान का इलाक़ा कहलाने वाले इस क्षेत्र में ऐसी हालत निश्चित रूप से बहुत ही भयावह होती थी। पर धान की फसल नहीं हो, तब भी दलहन की उपज काफी होती थी। मसूर, खेसारी और तिसी की फसल में कोई खर्च भी नहीं होता था। गर्मी अधिक होने पर सिंचाई करनी पड़ती थी। जिसके लिये गाँव-गाँव में बने तालाब काम में आते थे।
भागीरथी की संगिनी : चम्पा नदी के अस्तित्व पर खतरा
Posted on 19 Jul, 2015 10:31 AMएक ओर पूरे देश में स्वच्छ भारत का नारा दिया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर अंग जनपद की प्रमुख नदी चम्पा के अस्तित्व को खत्म करने पर भागलपुर नगर निगम आमादा है। अंग देश या महाजनपद पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था। वर्तमान के बिहार के मुँगेर और भागलपुर ज़िले इसमें आते थे। महाजनपद युग में अंग महाजनपद की राजधानी चम्पा थी। वर्तमान में भागलपुर का चम्पानगर ही उसकी राजधानी थी। इस क्षेत्र में कर्णगढ़ का होना
जल : आध्यात्मिक महत्त्व श्रावणी मेला
Posted on 18 Jul, 2015 11:16 AMपवित्र जल हमें बाजार से दूर पुराण कथाओं, कहानियों, विश्वासों और श्रद्धा, संस्कृति तथा उत्सव की एक अभिभूत दुनिया में ले जाता है। इसी तरह की दुनिया का साक्षात्कार कराता है विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला। भागलपुर के सुल्तानगंज से कांवर लेकर चलते कांवरियों की संख्या करोड़ के आस-पास पहुँच गयी है। अनास्था की सदी में यह आस्था का मेला है। साथ ही पवित्र गंगाजल और शिव के प्रति समर्पण का अनुष्ठान है। क्योंकि