आज जब पूरे देश में विकास के मॉडल के नाम पर किसानों से जमीन छीनने और अधिग्रहण की बात की जा रही है। वहीं बिहार जैसे सामंती प्रदेश में देने की प्रक्रिया जारी है। राज्य में 65 फीसदी लोग भूमिहीन हैं और मजदूरी करते हैं। बिहार भूमि के महत्त्वपूर्ण सवाल पर एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के निर्देशक तथा बिहार सरकार द्वारा गठित कोर कमेटी के सदस्य डॉ. डीएम दिवाकर से बातचीत।
बहुत सारे लोग कहते हैं कि बिहार में भूदान और जमीन के सवाल की कोई प्रासंगिकता नहीं है। इस संदर्भ में आपकी क्या राय है?
ऐसी धारणा उन लोगों की है जिनके पास जमीन है या फिर जमींदार किस्म के लोग हैं। जब तक धरती पर भूमिहीन है तब तक जमीन की प्रासंगिकता खत्म नहीं होने वाली है। जमीन मनुष्य की पहचान है। भूमि नहीं होने के कारण कई तरह के प्रमाणपत्र नहीं बनते हैं। तो फिर लोग यह सवाल कैसे करते हैं कि भूमि का सवाल प्रासंगिक नहीं है।
इस संदर्भ में विनोबा भावे की अवधारणा क्या रही है?
हमारा देश आध्यात्मिक देश रहा है। दान और पूजा का अपना महत्व है। इसे विनोबा भावे ने समझा। जिस समय आंध्र प्रदेश के पोचमपल्ली में हिंसक दौर चल रहा था, उस समय विनोबा भावे के मन में आया कि क्यों नहीं दान से इन विसंगतियों को दूर किया जाय। उन्होंने इस हिंसक वातावरण में हस्तक्षेप किया और दान की प्रवृत्ति विकसित करने के प्रयोग को अमल में लाया, जिसके फलस्वरूप उन्हें 100 एकड़ जमीन प्राप्त हुई। इसी प्रयोग को उन्होंने पूरे देश में लागू किया। भूदान आन्दोलन सच्चे अर्थों में राष्ट्रव्यापी और राष्ट्रीय आन्दोलन था।
बिहार में क्या हुआ था उन दिनों?
बिहार से सबसे ज्यादा जमीनें भूदान आन्दोलन को दान में मिली थी। लगभग 22 लाख एकड़ जमीन संयुक्त बिहार से मिली थी। इनमें से बिहार के जमींदारों ने 6,48,593 एकड़ और झारखंड के जमींदारों ने 14,69,280 एकड़ जमीन विनोबा जी को दी थी। बिहार भूदान एक्ट बना। काम आरम्भ हुए।
भूदान के प्रयोग तो किए गए, लेकिन सफल नहीं हुआ। इसके पीछे क्या कारण थे?
दरअसल जमीन लेने की बात तो हुई लेकिन उसके साथ-साथ वितरण की व्यवस्था नहीं हुई। जमीन प्राप्ति के साथ-साथ संपुष्टि जरूरी थी। जब जाकर वितरण करना था। सामान्य जन में दृष्टि विकसित करना था। उसमें विलम्ब हुआ।
बिहार के भूमिसंघर्ष की क्या स्थिति रही है?
बिहार सामंती प्रदेश रहा है। इसके कारण टकराव की स्थिति उत्पन्न होती आई है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने मुशहरी में प्रयोग किया। उनके प्रयोग से उत्तर बिहार में तो हिंसा का प्रयोग थमा, लेकिन मध्य बिहार में जारी रहा। यह अनेक नरसंहारों के रूप में सामने आया।
बिहार में भूमिसुधार को लेकर क्या हुए?
बिहार में भूमिसुधार को लेकर वंगोपाध्याय कमेटी तो बनी, लेकिन उसकी सिफारिशों को राज्य सरकार लागू नहीं कर पाई। लिहाजा भूमि सुधार का काम हासिये पर चला गया। सरकार के मुखिया गठबंधन को अपनी मजबूरी बताते रहे।
विनोबा के प्रयास को आगे बढ़ाने के लिए क्या प्रयास होना चाहिए?
ज्यों ही भूदान से जमीन मिली। उसके वितरण और अन्य प्रक्रिया में गाँधी के रचनात्मक कार्यकर्ता लगा दिए गए। इस कारण न तो भूदान का मक्सद कामयाब हो पाया और न ही गाँधी का रचनात्मक कार्यक्रम। जमीन वितरण के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण सवाल पर जोर देना चाहिए। नई तालीम, जलप्रबन्धन, कृषि और अन्य सवाल महत्त्वपूर्ण है। गाँधी की विकास की अवधारणा को आधुनिकता से जोड़कर देखना होगा। नई तालीम को नए संदर्भ में देखना होगा। हालाँकि राज्य सरकार ने राज्य के 391 नई तालीम के स्कूलों के पुनरूत्थान की दिशा में कदम उठाए हैं। बाजार की चुनौतियों का मुकाबला करना होगा। जमीन के सवाल को लोगों ने जिन्दा रखा है। बाजारवादी व्यवस्था में यह महत्वपूर्ण है। एक ओर जमीन की कीमत बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर भूमिहीनता की स्थिति है।
आप राज्यस्तरीय कोर कमेटी के सदस्य हैं। भूमि सुधार की दिशा में किए जा रहे पहल के बारे में बताएँ।
समीक्षा के दौरान यह बात सामने आई है कि सिलिंग अधिनियम के अन्तर्गत प्राप्त अधिशेष घोषित भूमि, भूदान के अन्तर्गत प्राप्त भूमि, गैर मजरूआ आम एवं गैर मजरूआ खास भूमि के पर्चे तो लोगों को दिए गए, लेकिन उनका कब्जा नहीं है। बेदखली के अनेक मामले हैं। विवादित जमीनों का आवंटन कर दिया गया है। इसके मद्देनजर आॅपरेशन दखलदेहानी चलाया गया है। भूमि से सम्बंधित मामलों के निष्पादन के लिए एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में राज्य के अंचलाधिकारियों, भूमिसुधार उपसमहर्ताओं, अपर समाहर्ताओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है। भूमि अभिलेखों का कम्पयुटरीकृत किया जा रहा है। हर अंचल में कैप लगाए जा रहे हैं। हर माह इसका मासिक प्रतिवेदन मुख्यालय में भेजने को कहा गया है। आज जब अन्य जगहों पर भूमिअधिग्रहण की बात की जाती है तो बिहार जैसे प्रदेश में भूमिसुधार और ऑपरेशन दखलदेहानी की बात कर जनपक्ष की दिशा में काम किया जा रहा है।
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