काका कालेलकर

काका कालेलकर
वैगै और कावेरी
Posted on 19 Feb, 2011 04:07 PM
भारतीय एकता के प्रखर समर्थक हमारे धर्माचार्यों ने और संस्कृत-कवियों ने जिन नदियों को एक श्लोक में बांध दिया और अपने पूजा-जल में जिन नदियों की सन्निधी मांग ली, उनमें कावेरी का नाम हैः

गंगे! च यमुने! चैव, गोदावरी! सरस्वति!
नर्मदे! सिन्धु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।

अनेक नखरेवाली नदी सतलज
Posted on 19 Feb, 2011 01:38 PM
बचपन में जब हमने भगवान की पूजा के मंत्र कण्ठ किये तब एक मंत्र में भारत की मुख्य सात नदियों को हमारी पूजा के कलश में (लोटे में) आकर बैठने की प्रार्थना करते थे। उसमें सिंधु नदी थी। हमने सुना कि सिंधु बड़ी होने के कारण उसे सिंधुनद कहते हैं। सिंधु, ब्रह्मपुत्र और शोणभद्र ये भारत के प्रख्यात नद है।
‘पतित-पावनी’ वैगैई
Posted on 19 Feb, 2011 01:36 PM
अगर मदुराई के जैसा इतिहास प्रसिद्ध नगर और तीर्थ-स्थान उसके किनारे पर नहीं होता तो वैगैई नदी की ओर मेरा ध्यान ही नहीं जाता। कृष्णा, गोदावरी, तुंगभद्रा, कावेरी आदि दक्षिण के विख्यात नदियों के साथ वैगैई नदी का नाम कभी सुना नहीं था। लेकिन मदुराई जैसी संस्कृतिधानी जिस नदी के तट पर विराजमान है उसके महत्त्व का इन्कार कौन करेगा?
अवन्ति की शिप्रा
Posted on 19 Feb, 2011 01:31 PM
कथा हमें तो बिलकुल रोचक नहीं मालूम हुई। महाराष्ट्रीयों ने शिप्रा क
दूसरी कटि-मेखला ताप्ती
Posted on 19 Feb, 2011 01:28 PM
विंध्य और सतपुड़ा पर्वत, नर्मदा और ताप्ती (तापी) नदियां चारों मिलकर भारत माता की कटिमेखला बनते हैं।
कटि –मेखला, विंध्य-सतपुड़ा
Posted on 19 Feb, 2011 01:26 PM
विंध्य और सतपुड़ा नर्मदा के बलवान् रक्षक है। इन दोनों ने मिलकर नर्मदा को उसका जल भी दिया है और उसका रक्षण भी किया है। ये दोनों पहाड़ नर्मदा के अति निकट होने के कारण नर्मदा को न अपना पात्र बदलने का मौका मिला है, न अपने पानी के आशीर्वाद से दूर-दूर तक खेती करने की जमीन उसे मिली है।
पुन: अपि नर्मदा
Posted on 19 Feb, 2011 12:10 PM

कितना अच्छा हुआ कि संक्रांति के दूसरे ही दिन नर्मदा मैया का काव्यमय दर्शन करके पुनीत हो सके! धुआंधार, चौंसठ योगिनीवाला गौरीशंकर का मंदिर और सफेद, नीले, पीले, हरे, काले पहाड़ों के बीच रास्ता निकालने वाली शांत गंभीर और प्रसन्न शीतल पानी वाली नर्मदा का भेड़ाघाट यह प्रेरणा दायीत्रयी है।
पहाड़ों का पितामह अरावली
Posted on 18 Feb, 2011 04:55 PM
हमारे देश में बड़े-बड़े मकानों के और शहरों के भग्नावशेष अनेक जगह पाये जाते हैं। अच्छे और नये मकानों की अपेक्षा इन अवशेषों का काव्य कुछ अधिक होता है। कर्ण के जैसा कोई दानी पुरुष जब दारिद्रय से क्षीण होता है, कोई बड़ा पहलवान या योद्धा जब जराजरजरित होकर लकड़ी के सहारे चलता दीख पड़ता है तब उसके प्रति हमारा आदर करुणा के साथ मिश्रित होकर भक्तिभाव पैदा करता है। इसी तरह प्राचीन किले के या नगर के अवशेष हमा
भारत के प्रधान सरोवर
Posted on 18 Feb, 2011 04:51 PM
जिस तरह भारत में असंख्य नदियां हैं और उन्हें हमारे पुरखों ने लोकमाता कहा, उसी तरह भारत में छोटे-बड़े सरोवर भी असंख्य हैं। सर, सरोवर, सरसी, तालाब, ताल, तलैया, झील, पुष्कर पुष्करिणी, ह्रद, कासार, खात, तडाग ऐसे तरह-तरह के कई नाम हमारे लोगों ने जलाशयों को दिये हैं। जिसके प्रति हमारी अधिक-से-अधिक भक्ति है ऐसा सरोवर तो हिमालय के उस पार कैलाश के रास्ते है। उसे मानस-सरोवर कहते हैं। उसी के पड़ोस में उतना ह
भारतीय भक्ति-मानस का सनातन केंद्र मानस-सरोवर
Posted on 18 Feb, 2011 04:47 PM
हिमालय के उस पार त्रिविष्टप, यानी तिब्बत में हमारी देवभूमि है। वहां दुनिया के सबसे ऊंचे, सबसे सुन्दर और सबसे प्रभावी तीन सरोवर हैं। एक है पैंसठ मील के घेरेवाला मान-सरोवर। उससे कुछ छोटा उसी के पड़ोस में है रावण हृद या राकसताल। और उनके उत्तर-पूर्व में कैलास के नजदीक है, इन दोनों से छोटा, लेकिन इन दोनों से भी ऊंचा गौरीकुंड। इनके आसपास; हर दिशा में पहाड़ ही पहाड़ फैले हुए हैं जो चिर-हिम के श्वेत मुकुट
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