काका कालेलकर

काका कालेलकर
स्वर्धुनी वितस्ता
Posted on 26 Feb, 2011 03:09 PM

‘संसार में अगर कहीं स्वर्ग है,
तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।’

सेवाव्रता रावी
Posted on 26 Feb, 2011 03:02 PM
सिन्धु नदी को करभार देने वाली पांच नदियों में वितस्ता-झेलम-और शुतुद्री दो ही महत्त्व की मानी जाती हैं। बाकी की नदियां अपने जिम्मे आया हुआ काम नम्रता के साथ पूरा करती हैं। जिस प्रकार किसी श्रेष्ठ पुरुष से मिलने के लिए शिष्ट-मंडल जाता है, उसी प्रकार ये नदियां धीरे-धीरे साथ मिलकर आखिर सिन्धु से जा मिलती हैं। व्यास सतलुज से मिलती है। चिनाब झेलम से मिलती है और रावी इन दोनों से मिलती है। मुलतान के पास त
चिनाब
Posted on 26 Feb, 2011 11:14 AM
कश्मीर से लौटते समय पैर उठते ही नहीं थे। जाते समय जो उत्साह मन में था, वह वापस लौटते वक्त कैसे रह सकता था?
जम्मू की तवी अथवा तावी
Posted on 26 Feb, 2011 09:57 AM

किसी नदी के बारे में कहने जैसा कुछ न मिले तो भी क्या? उसमें स्नान करने का आनंद कम थोड़ ही होने वाला है! नदी का महत्त्व स्वतः सिद्ध है। उसके नाम के साथ कोई इतिहास जुड़ा हुआ हो तो धन्य है वह इतिहास। नदी को उससे क्या?
सिंधु का विषाद
Posted on 26 Feb, 2011 09:54 AM
हिमालय के उस पार, पृथ्वी के इस मानदंड के लगभग बीच में कैलाशनाथ जी कि आंखों के नीचे चिर-हिमाच्छादित पुण्यवान प्रदेश है, जिसके छोटे से दायरे में आर्यावर्त की चार लोकमाताओं का उद्गम-स्थान है। उस पार और इस पार का विचार यदि न करें, तो हम कह सकते हैं कि उत्तर भारत की लगभग सभी नदियां यहां से झरती हैं।
सिंधु के बाद गंगा
Posted on 25 Feb, 2011 04:55 PM
फरवरी की 15 या 16 तारीख को ठेठ पश्चिम की ओर रोहरी-सक्कर के बीच सिंधु के विशाल पट पर जल-विहार करने के बाद और 28 फरवरी को कोटरी के समीप उसी सिंधु के अंतिम दर्शन करने के बाद, बारह-पंद्रह दिन के भीतर ही पूर्व की ओर पाटलिपुत्र के निकट गंगा का पावन प्रवाह देखने को मिला। यह कितने सौभाग्य की बात हैं!
नदी पर नहर
Posted on 25 Feb, 2011 04:53 PM
श्रावण पूर्णिमा के मानी हैं जनेऊ का दिन; और यदि ब्राह्मण्य को भूल जायं तो राखी का दिन। उस दिन हम रूड़की पहुंचे। मजाकिये वेणीप्रसाद ने देखते-ही-देखते मुझसे दोस्ती कर ली और कहा, ‘अजी काका जी, आज तो आपके हाथ से ही जनेऊ लेंगे। यहां के ब्राह्मण वेदमंत्र बराबर बोलते ही नहीं। आप महाराष्ट्री हैं। आप ही हमें जनेऊ दीजियेगा।’ वेणीप्रसाद के मामा परम भक्त थे। उनसे जनेऊ के बारे में चर्चा चली। उत्तर भारत के ब्रा
मंचर की जीवन-विभूति
Posted on 25 Feb, 2011 03:03 PM
जिसने पानी को जीवन कहा, वह कवि था या समाजशास्त्री?
लहरों का तांडवयोग
Posted on 25 Feb, 2011 03:00 PM
(कराची के पास की आमारी से जरा दूर मनोरा नामक एक टापू है। वहां एक सुंदर मंदिर है। टापू पर अधिकतर पोर्टट्रस्ट के लोग और थोड़ी-सी फौज रहती है। मनोरा टापू कराची का गहना तथा समुद्र का खिलौना है। इसके दक्षिण के छोर पर एक बड़ी खोह है, जिस पर समुद्र की लहरें टकराती हैं। इससे आगे काफी दूर तक एक बड़ी दीवार खड़ी करके लहरों को रोका गया है। इससे वहां लहरों का अखंड सत्याग्रह देखने को मिलता है। यह दृश्य देखने के
नेपाल की बाघमती
Posted on 25 Feb, 2011 12:12 PM

कश्मीर की जैसे दूधगंगा है, वैसे नेपाल की वाघमती या बाघमती है। इतनी छोटी नदी की ओर किसी का ध्यान भी नहीं जायेगा। किन्तु बाघमती ने एक ऐसा इतिहास-प्रसिद्ध स्थान अपनाया है कि उसका नाम लाखों की जबान पर चढ़ गया है। नेपाल की उपत्य का अर्थात अठारह कोस के घेरेवाला और चारों ओर पहाड़ों से सुरक्षित रमणीय अण्डाकार मैदान। दक्षिण की ओर फरपिंग-नारायण उसका रक्षण करता है। उत्तर की ओर गौरीशंकर की छाया के नीचे
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