काका कालेलकर
काका कालेलकर
संध्यारस
Posted on 05 Mar, 2011 02:47 PMगौरीशंकर तालाब का दर्शन यकायक होता है। हमने बगीचे में जाकर पेड़ों की शोभा देख ली, चीनी तश्तरी के टुकड़ों से बनाए हुए निर्जीव हाथी, घोड़े और शेरों का रुआब देखकर तथा पेड़ों के बीच मौज करने वाले सजीव पक्षियों का कलरव सुनकर तालाब के किनारे पहुंचे; सीढ़ियां चढ़ने लगे; और ठंडे पवन की शांति अनुभव करने लगे; तो भी ख्याल नहीं हुआ कि यहां पर तालाब होगा। आखिरी (यानी ऊपर की) सीढ़ी पर पांव रखा कि यकायक मानों आकरेणुका का शाप
Posted on 05 Mar, 2011 01:35 PMरेणुका का मतलब है रेत। उसके शाप से कौन सी नदी सूख नहीं जायेगी? गया की नदी फल्गु भी इस तरह अंतःस्रोता हो गई हैं न! फिर वढबाण के पास की भोगावो भी ऐसी क्यों न हो? सौराष्ट्र में भोगावो (बरसात के बाद सूखने वाली नदियां) बहुत हैं। क्या हरेक को किसी न किसी राणकदेवी का शाप लगा होगा?अंबा-अंबिका
Posted on 05 Mar, 2011 01:30 PMभीष्म-पितामह अंबा-अंबिका नामक दो राजकन्याओं को जीतकर राजा विचित्र वीर्य के पास ले आये। कन्याओं ने साफ-साफ कह दिया, ‘हमारा मन दूसरी जगह बैठा हुआ है।’ विचित्रवीर्य अब इनसे विवाह कैसे करे? और जिसमें इनका मन चिपका था वह राजा भी जीती हुई कन्याओं का स्वीकार किस प्रकार करे? बेचारी राजकन्याओं को कोई पति नहीं मिला और वे झुर-झुर कर मर गयीं।लावण्यफला लूनी
Posted on 05 Mar, 2011 12:04 PMखारची (मारवाड़ जंक्शन) से सिंधु हैदराबाद जाते हुए लूनी नदी का दर्शन अनेक बार किया है। ऊंटों के स्वदेश जोधपुर जाने का रास्ता लूनी जंक्शन से ही है; इसलिए भी इस नदी का नाम स्मृतिपट पर अंकित है। यहां के स्टेशन पर हिरण के अच्छे-अच्छे चमड़े सस्ते मिलते थे। ऐसे मुलायम मृगाजिन यहां से खरीदकर मैंने अपने कई गुरुजनों को और प्रियजनों को ध्यानासन के तौर पर भेंट दिये थे। पता नहीं कि चमड़े के इस उपयोग से हिरणोंउंचल्ली का प्रपात
Posted on 05 Mar, 2011 11:36 AMजोग के बिल्कुल ही सूखे प्रपात के इस बार के दर्शन का गम हलका करने के लिए दूसरा एकाध भव्य और प्रसन्न दृश्य देखने की आवश्यकता थी ही। कारवार जिले के सर्वसंग्रह-गजेटियर- के पन्ने उलटते-उलटते पता चला कि जोग से थोड़ा ही घटिया उंचल्ली नामक एक सुन्दर प्रपात शिरसी से बहुत दूर नहीं है। लशिंग्टन नामक एक अंग्रेज ने सन् 1845 में इसकी खोज की थी, मानों उसके पहले किसी ने इसे देखा ही न हो। अंग्रेजों की आंखों पर वहगोकर्ण की यात्रा
Posted on 01 Mar, 2011 05:13 PMलंकापति रावण हिमालय में जाकर तपश्चर्या करने बैठा। उसकी माँ ने उसे भेजा था। शिवपूजक महान सम्राट् रावण की माता क्या मामूली पत्थर के लिंग की पूजा करे? उसने लड़के से कहा, “जाओ बेटा, कैलाश जाकर शिवजी से उन्हीं का आत्मलिंग ले आओ। तभी मेरे यहां पूजा हो सकती है।” मातृभक्त रावण चल पड़ा। मानसरोवर से हर रोज एक सहस्त्र कमल तोड़कर वह कैलाशनाथ की पूजा करने लगा। यह तपश्चर्या एक हजार वर्ष तक चली।भरत की आंखों से
Posted on 01 Mar, 2011 05:11 PMकिनारे पर खड़े रहकर समुद्र की शोभा को निहारने में हृदय आनंद से भर जाता है। यह शोभा यदि किसी ऊंचे स्थान से निहारने को मिले तब तो पूछना ही क्या?वेल्गंगा-सीता का स्नान-स्थान
Posted on 01 Mar, 2011 05:09 PMवेरूलग्राम का हरा कुंड देखकर लौटते समय रास्ते में वेलगंगा का झरना देखा था। झरना इतना छोटा था कि उसे नाला भी नहीं कह सकते। किन्तु उसे ‘वेलगंगा’ का प्रतिष्ठित नाम प्राप्त हुआ है। नदी का नाम सुनने पर उसका उद्गम कहां है, इसकी खोज किये बिना क्या रहा जा सकता है?कृषक नदी घटप्रभा
Posted on 01 Mar, 2011 05:00 PMघटप्रभा और मलप्रभा हमारी ओर के कर्नाटक की प्रमुख नदियां हैं। वे स्वभाव से किसान हैं। वे जहां जाती हैं वहां खेती करती हैं, जमीन को खाद देती हैं, पानी देती हैं और मेहनत करने वाले लोगों को समृद्धि देती हैं। इसमें भी गोकाक के पास एक बड़ा बांध बनाकर मनुष्य ने इस नदी की शक्ति बढ़ा दी है। जहां नदी के पानी की पहुंच न थी, वहां इस बांध के कारण वह पहुंच गयी। घटप्रभा का नाम लेते ही गोकाक के पास का लंबा बांध धकश्मीर की दूधगंगा
Posted on 26 Feb, 2011 03:16 PMसतीसर नामक पौराणिक सरोवर को तोड़कर ही तो कश्मीर का प्रदेश बना हुआ है, झेलम नही मानों इस उपत्यका की लंबाई और चौड़ाई को नापती हुई सर्पाकार में बहती है। इसके अलावा जहां नजर डालें वहां कमल, सिंघाड़े तथा किस्म-किस्म की साग-सब्जी पैदा करने वाले ‘दल’ (सरोवर) फैले हुए दीख पड़ते हैं। जिस वर्ष जल-प्रलय न हो वही सौभाग्य का वर्ष समझ लीजिये ऐसे प्रदेश में गाड़ी के संकरे रास्ते जैसे छोटे प्रवाह को भला पू