विंध्य और सतपुड़ा पर्वत, नर्मदा और ताप्ती (तापी) नदियां चारों मिलकर भारत माता की कटिमेखला बनते हैं।
नर्मदा और ताप्ती एक ही पिता की दो कन्याएँ हैं। दोनों अपना पानी पश्चिमी सागर को देकर पति भक्ति पूर्ण कर सकीं। नर्मदा तो दो पहाड़ों के बीच बहती रहने के कारण उसके लिए इधर-उधर का पानी लेना मुश्किल नहीं था। लेकिन दो पहाड़ों के बीच होने से अपने पानी से, दूर के वृक्ष-वनस्पति को और पशु-पक्षियों को तृप्त करने का आनंद उसे नहीं मिल सका। पिता की भक्ति और पति की सेवा इतने से उसको संतोष मानना पड़ा।
तो भी नर्मदा का भाग्य नर्मदा का ही है। सारी दुनिया उसे दक्षिण गंगा कहती है, इससे अधिक क्या चाहिये? मेखल पहाड़ से जन्म पाने के कारण उसे ‘मेखला’ नाम भी मिला है।
ताप्ती नदी को इधर-उधर से पानी लेना आसान तो था ही, लेकिन पानी देने का आनंद उसे अधिक मिलता है, हालांकि गोदावरी, कृष्णा, तुंगभद्रा आदि पूर्व गामिनी नदियों के जितना तो नहीं।
गुजरात में रहने वाले लोगों के लिए सूरत शहर अगर प्रेम का स्थान है, तो ताप्ती नदी भी भक्ति की अधिकारिणी है।
और अंग्रेजों ने जब भारत में शुरू-शुरू में अपना व्यापार आरम्भ किया तब उनके लिए सूरत शहर का महत्त्व सबसे ज्यादा था और समुद्र के रास्ते सूरत जाने के लिए ताप्ती के मुख से ही प्रवेश करना पड़ता था।
भारत के कपड़ों का और गृह-उद्योगों का आकर्षण यूरोप के लोगों को यहां खींच सका। उन में सबसे पहले आये पुर्तगीज। उनका यह अधिकार छीन लेने में सफलता पाई अंग्रेजों ने। यह विजय आसानी से थोड़े ही मिल सकती थी! जहां ताप्ती नदी समुद्र को मिलती है, वहां सुवाली बंदरगाह के नजदीक पुर्तगीज और अंग्रेजों के बीच एक बड़ी सामुद्रिक लड़ाई हुई। इसमें जब पुर्तगीज हारे तभी अंग्रेजों को भारत के व्यापार पर अधिकार करने का आत्मविश्वास जागृत हुआ।
व्यापार के लिए आने वाले लोगों को अपना राज्य दे देना, यह तो भारतीयों का स्वधर्म ही रहा। ब्रिटिश साम्राज्य के संस्थापकों के लिए सुवाली का बंदरगाह एक बड़ा तीर्थस्थान था। आज उसका तनिक भी महत्त्व नहीं रहा। ताप्ती माता ने कितने ही साम्राज्य देखे होंगे। वह तो महादेव के पहाड़ों से पानी लाकर विष्णु भगवान के सागर को अर्पण करने का काम निरंतर करती ही रहेगी।
11 मार्च 1939
नर्मदा और ताप्ती एक ही पिता की दो कन्याएँ हैं। दोनों अपना पानी पश्चिमी सागर को देकर पति भक्ति पूर्ण कर सकीं। नर्मदा तो दो पहाड़ों के बीच बहती रहने के कारण उसके लिए इधर-उधर का पानी लेना मुश्किल नहीं था। लेकिन दो पहाड़ों के बीच होने से अपने पानी से, दूर के वृक्ष-वनस्पति को और पशु-पक्षियों को तृप्त करने का आनंद उसे नहीं मिल सका। पिता की भक्ति और पति की सेवा इतने से उसको संतोष मानना पड़ा।
तो भी नर्मदा का भाग्य नर्मदा का ही है। सारी दुनिया उसे दक्षिण गंगा कहती है, इससे अधिक क्या चाहिये? मेखल पहाड़ से जन्म पाने के कारण उसे ‘मेखला’ नाम भी मिला है।
ताप्ती नदी को इधर-उधर से पानी लेना आसान तो था ही, लेकिन पानी देने का आनंद उसे अधिक मिलता है, हालांकि गोदावरी, कृष्णा, तुंगभद्रा आदि पूर्व गामिनी नदियों के जितना तो नहीं।
गुजरात में रहने वाले लोगों के लिए सूरत शहर अगर प्रेम का स्थान है, तो ताप्ती नदी भी भक्ति की अधिकारिणी है।
और अंग्रेजों ने जब भारत में शुरू-शुरू में अपना व्यापार आरम्भ किया तब उनके लिए सूरत शहर का महत्त्व सबसे ज्यादा था और समुद्र के रास्ते सूरत जाने के लिए ताप्ती के मुख से ही प्रवेश करना पड़ता था।
भारत के कपड़ों का और गृह-उद्योगों का आकर्षण यूरोप के लोगों को यहां खींच सका। उन में सबसे पहले आये पुर्तगीज। उनका यह अधिकार छीन लेने में सफलता पाई अंग्रेजों ने। यह विजय आसानी से थोड़े ही मिल सकती थी! जहां ताप्ती नदी समुद्र को मिलती है, वहां सुवाली बंदरगाह के नजदीक पुर्तगीज और अंग्रेजों के बीच एक बड़ी सामुद्रिक लड़ाई हुई। इसमें जब पुर्तगीज हारे तभी अंग्रेजों को भारत के व्यापार पर अधिकार करने का आत्मविश्वास जागृत हुआ।
व्यापार के लिए आने वाले लोगों को अपना राज्य दे देना, यह तो भारतीयों का स्वधर्म ही रहा। ब्रिटिश साम्राज्य के संस्थापकों के लिए सुवाली का बंदरगाह एक बड़ा तीर्थस्थान था। आज उसका तनिक भी महत्त्व नहीं रहा। ताप्ती माता ने कितने ही साम्राज्य देखे होंगे। वह तो महादेव के पहाड़ों से पानी लाकर विष्णु भगवान के सागर को अर्पण करने का काम निरंतर करती ही रहेगी।
11 मार्च 1939
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