मेधा बहन के साथ एक दिन


8 फरवरी, दिन सोमवार, स्थान- जन सेवा मंडल, नंदुरबार, महाराष्ट्र। यहाँ से हम सुबह 5.30 बजे जीप से बड़वानी के लिये निकले। नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री मेधा बहन ( मेधा पाटकर) साथ मैं, राहुल, भागीरथ और ड्राइविंग कर रहे कैलाश थे। दो कार्यकर्ता गाँव से थे जिसमें से एक युवक साथी जीवनशाला में शिक्षक थे। जीवनशाला वे स्कूल हैं, जो नर्मदा बचाओ आन्दोलन अपने सहयोगी संगठनों की मदद से चलाए जा रहे हैं।

मेधा जी ने कहा- केशव भाऊ से मिलते जाना है। उन्हें गेंगरीन के कारण दोनों पैर गँवाने पड़े हैं। वे संगठन के बहुत ही मजबूत व जुझारू साथी रहे हैं। उस गाँव का नाम है बडछील। यह सरदार सरोवर से विस्थापित है जिसे 2005 के आसपास शाहदा के पास बसाया गया है। इस गाँव को शोभानगर के नाम से भी जाना जाता है, शोभा बेन नर्मदा बचाओ आन्दोलन की जुझारू कार्यकर्ता थीं। उनकी दलदल में फँसकर मौत हो गई थी।

जीप सड़क पर दौड़ रही है। सड़क के दोनों ओर हरे-भरे खेत थे। जहाँ कहीं सिंचाई का साधन था, वहाँ गेहूँ, पपीता और बगीचे थे। मोतियों से लदे ज्वार के भुट्टे मोह रहे थे। गाँव,कस्बे पीछे छूटते जा रहे थे। मैं सिर्फ देख ही पा रहा था, पेड़ों को व तख्तियों में लिखे नामों को पढ़ नहीं पा रहा था।

मेधा जी बता रही थीं- विस्थापितों को कुछ तो मिला है, पर अभी लड़ाई बाकी है। सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश का विस्थापन हुआ है, फिर उससे कम महाराष्ट्र का और सबसे कम गुजरात का। इसके उलट गुजरात को ही बाँध का ज्यादा फायदा है। अब तक कुल 10 हजार 5 सौ परिवारों की बसाहट हुई है। लेकिन हजारों परिवार अब भी बाकी हैं। बड़ी गड़बड़ियाँ हैं। कई परिवारों को डूब क्षेत्र में होते हुए भी उससे बाहर कर दिया गया है। जबकि बड़ी संख्या में आज भी लोग डूब क्षेत्र में ही रह रहे हैं।

अब हम बडछील आ गए। केशव भाऊ के घर गए। मेधा बहन ने केशव भाऊ को गले से लगा लिया। उनके परिवार के लोग सब इकट्ठे हो गए। पड़ोस की गीता भी आ गई जो मेधा जी से लिपटकर रोने लगी। मेधा बहन इस गाँव में बहुत लम्बे अरसे बाद पहुँची थीं। भागीरथ भाई, जो हमारे साथ आये थे, ने गीता को याद दिलाया कि वे जलसिंधी में जीवनशाला के शिक्षक थे। केशव भाऊ का गाँव जलसिंधी के पास ही था, जहाँ लम्बा सत्याग्रह चला था। वे आदिवासी हैं।

केशव भाऊ, को मेधा बहन सिडनी ले गई थीं, जहाँ उन्हें राइट लाइवलीहुड पुरस्कार मिला था। मेधा बहन ने कहा पुरस्कार उनको मिलना चाहिए, जो अपनी और नर्मदा को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

थोड़ी देर में चाय आ गई, नाश्ते में पपीता दिया गया। मेधा बहन ने पूछा- इस पपीते में क्या रासायनिक खाद डाला है। जैविक पपीता ज्यादा कीमत में मिलता है और स्वादिष्ट भी होता है। इस गाँव के लोगों को खेती के लिये हर परिवार को 5 एकड़ जमीन मिली है। इस जमीन पर देशी बीजों वाली जैविक खेती करनी चाहिए।

ख्याली के पिता से भी मिली मेधा पाटेकरकेशव भाई के घर बहुत भीड़ लग गई। महिलाएँ आ गई। हर कोई मेधा जी से मिलना चाहता था। उन्हें अपने घर ले जाना चाहता था। अपने बच्चों से मिलवाना चाहता था। वे सबको नाम से जानती हैं। नाम लेकर पुकारती हैं। मैं हतप्रभ था। उन्हें सबके नाम सालों बाद भी कैसे याद हैं। वे भावुक दिख रही हैं।

राहुल नर्मदा बचाओ आन्दोलन का कैलेंडर बेच रहे हैं। आन्दोलन की फोटो प्रदर्शनी दिखाई जा रही है। लोगों को याद आ रही है, सत्याग्रह की। नाव रैली की। जब पानी गाँव तक आ गया था। कैसे जीवनशाला चलाई जाती थी।

हम थोड़ी देर जीप से चले गाँव में ही। दूसरे मोहल्ले में। मेधा जी बोली- ख्याली के घर चलते हैं। वे बहुत ही अच्छी कार्यकर्ता थी। कहीं दूर से किसी का फोन आ गया। मेधा जी बताने लगी। याद है न ख्याली, जो सत्याग्रह के दौरान हमारी बहुत फिक्र करती थी। सबको खाना खिलाती थी। पता नहीं उन्हें क्या समझ आया। पर मैं समझ गया था वे लोगों से उनका कितना जुड़ाव है।

बाबा, जानते हो, अब ख्याली इस गाँव की निर्विरोध सरपंच बन गई। इस गाँव में एनसीपी और भाजपा की खींचतान है। पर लोगों ने एकता दिखाई। ख्याली का घर आ गया है। कुछ लोग पुलिया पर बैठकर दातौन कर रहे हैं। ख्याली, मेधा जी को देखकर गले से लग गई। थोड़ी देर दोनों खुश थे। फिर ख्याली से उसके पिता की कुशलक्षेम पूछते ही मेधा जी गमगीन हो गईं। ख्याली के पिता लकवाग्रस्त हो गए हैं। बोलने की कोशिश करते हैं, बोल नहीं पाते हैं। पिता के गाल और बालों को उन्होंने सँवारा और रोने लगीं। उनकी आँखों से टप-टप आँसू गिरने लगे। बाद में उन्होंने ख्याली के पिता को शाल भेंट किया।

मैं उन्हें देखा तो देखता ही रहा। उन्हें कुछ मौकों पर भावुक होते देख चुका हूँ। लेकिन इस दृश्य ने हिला दिया। मुझे वे मदर टेरेसा जैसी लगीं। ये ख्याली आन्दोलन के कार्यकर्ताओं और सत्याग्रहियों की बहुत देखभाल करती थी।

अब हम बड़वानी की ओर चलने लगे। गाड़ी दौड़ने लगी। पर मेरा मन बडछील में ही अटक गया लगता है। बड़वानी आये। आन्दोलन के बारे में बातें होती रही। पर मैं बडछील, वहाँ के लोग और मेधा जी के बारे में ही सोचता रहा। मेधा जी ने अपना परिवार कितना बड़ा बना लिया है। उनकी दुनिया बहुत बड़ी है।
 

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Post By: RuralWater
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