झांसी के लक्ष्मी ताल के अंदर कराये जा रहे कंक्रीट के निर्माण पर एनजीटी ने जताई आपत्ति

झांसी के लक्ष्मी ताल के अंदर कराये जा रहे कंक्रीट के निर्माण,Pc- नरेंद्र कुशवाहा
झांसी के लक्ष्मी ताल के अंदर कराये जा रहे कंक्रीट के निर्माण,Pc- नरेंद्र कुशवाहा

झांसी: उत्तरप्रदेश के झांसी जिले में स्थित 400 साल पुराने ऐतिहासिक लक्ष्मी ताल के अंदर कराये जा रहे कंक्रीट के निर्माण पर  एनजीटी ने आपत्ति जताई है। एनजीटी का यह फैसला गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के कार्यकर्ता नरेंद्र कुशवाहा की जनहित याचिका की सुनवाई पर हुआ है ।  

अवैध निर्माण और अतिक्रमण 

जलाशयों में कंक्रीट के निर्माण पर रोक लगाने वाले सख्त पर्यावरण कानूनों का हवाला देते हुए पीठ ने तालाब के अंदर किए जा रहे  निर्माण पर सवाल उठाए और कहा कि यह जलग्रहण क्षेत्र से पानी को रोककर तालाब के इकोसिस्टम को प्रभावित करेगा।वही एनजीटी  अध्यक्ष  जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ डॉ. ए सेंथिलवेल द्वारा 10 अक्टूबर को जारी एक रिपोर्ट में मौके के निरीक्षण के समय ली गई तालाब की तस्वीरों के साथ कहा गया कि तालाब के चारों ओर स्टील की बाड़ लगाने के लिए एक चारदीवारी का निर्माण किया गया है ।

पैनल ने कहा कि इससे जलग्रहण क्षेत्र से तालाब में पानी के प्रवाह पर असर पड़ने की संभावना है और इसके क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि नगर निगम, झांसी के आयुक्त को लक्ष्मी ताल के बफर जोन के आसपास एलिवेटेड बाउंड्री वॉल और एक मार्ग बनाने के साथ तालाब पर इसके प्रतिकूल प्रभाव या इससे संभावित लाभ के बारे में फिर से रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है.' वही विरोधी पक्ष के वकील की और से दलील दी गई है कि कंक्रीट की दीवार का निर्माण तालाब के आगे अतिक्रमण को रोकने के लिए किया गया था, जिसे पीठ ने स्वीकार नहीं किया।

दूसरी ओर, पीठ ने तालाब के चारों ओर ग्रीन बेल्ट के लिए चिह्नित हरित भूमि पर बनी इमारतों को ध्वस्त कर सुनिश्चित करने का आदेश भी दिया है  रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन विकास अधिनियम, 1973 की धारा 27 के तहत अतिक्रमण के लिए अब तक 2,505 नोटिस  जारी किए गए हैं, जिनमें से  आठ धार्मिक  स्थल भी शामिल हैं। इनमें से 24  अतिक्रमणों  को हटा दिया गया है, जबकि शेष मामलों में या तो स्थगन आदेश प्राप्त कर लिए गए हैं या जनता ने कई अतिक्रमण विरोधी अभियानों के लिए नाराजगी जताई है, जिससे स्थानीय प्रशासन को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

वही इस मुद्दे पर  वकील आकाश वशिष्ठ ने कहा कि उनके द्वारा कोर्ट के सामने विशालकाय और ऊंची दीवारों और कंक्रीट के रास्तों के निर्माण का गंभीर मुद्दा उठाया गया था। जिस पर, अदालत ने बहुत गंभीर आरोप लगाया और कहा कि इस तरह के कृत्य से वास्तव में पूरी लक्ष्मी ताल खत्म हो जाएगी। चूंकि इन विशाल संरचनाओं का निर्माण जल निकाय के ठीक अंदर और साथ ही इसके जलग्रहण क्षेत्रों में किया जाता है, जो नो-कंस्ट्रक्शन, बफर ज़ोन में शामिल हैं,  जो इसमें पानी के प्रवाह को बाधित करेंगे और इसे पूरी तरह से मार देंगे। हमने अधिकारियों द्वारा किये गए इस पारिस्थितिकी-विनाशकारी कृत्य के लिए अदालत में लिखित आपत्तियां भी दर्ज कराई थीं।

उन्होंने आगे कहा  कि, “यह एक स्थापित कानूनी स्थिति है कि किसी भी जल निकाय के जलग्रहण क्षेत्र को किसी भी तरीके से कंक्रीट में तब्दील नहीं किया जा सकता है। एनजीटी ने देश भर के जल निकायों के मामलों में विभिन्न आदेशों में ऐसा ही माना था।यह पूरा मामला झांसी में लक्ष्मी ताल को अवैध अतिक्रमण और प्रदूषण से बचाने के साथ-साथ उसमें छोड़े जा रहे दूषित सीवेज और गंदे पानी को रोकने से जुड़ा है। समिति द्वारा सबमिट इस रिपोर्ट के मुताबिक जो क्षेत्र तालाब के रूप में दर्ज है उसके भीतर अवैध रूप से बने दो घरों को तोड़ दिया गया है। हालांकि सात मंदिर और एक मस्जिद भी हैं जिन्हें स्थानीय विरोध के कारण ध्वस्त नहीं किया जा सका।

ताल में नाला 

उत्तर प्रदेश के सरकारी वकील ने लक्ष्मी ताल की स्थिति पर एक समिति की रिपोर्ट बताई, जिसमें यह कहा गया है कि सात नाले लक्ष्मी ताल में मिलते हैं, जो मैले पानी से प्रदूषित होते हैं। इस बारे में उत्तर प्रदेश के वकील ने स्वतंत्र समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि सात नाले (कुबेरू, कसाई मंडी नाला, लक्ष्मी ताल नाला, जोशियाना नाला, बंगलाघाट नाला, डिमेरियाना नाला और ओम शांति नगर नाला) लक्ष्मी में मिलते हैं। हालांकि, अब इन नालों में बहते सीवेज का उपचार एसटीपी द्वारा किया जाता है, और अब गंदा पानी लक्ष्मी ताल या किसी अन्य स्थान पर नहीं जा रहा है।
एसटीपी इन नालों में से मैले पानी को साफ करता है, और साफ पानी को लक्ष्मी ताल और नारायण बाग में भेजा जाता है। यह भी जानकारी दी गई है कि यह एसटीपी औसतन 17 से 26 एमएलडी सीवेज का उपचार करता है। इसमें से साफ किए गए चार एमएलडी पानी को आगे प्रोसेस करने के बाद लक्ष्मी ताल में छोड़ दिया जाता है, जबकि बाकी साफ पानी को नारायण बाग नाले में छोड़ा जाता है। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि यह साफ किए गए इस सीवेज के पानी की गुणवत्ता आवश्यक मानकों को पूरा करती है। सरकार की तरफ से बार-बार कहा गया कि साफ पानी का स्तर नियमों के अनुसार होता है, और लक्ष्मी ताल को सुधारने में मदद करता है।

इस मसले पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के मुताबिक झांसी में लक्ष्मी ताल पर स्वतंत्र समिति द्वारा दायर रिपोर्ट में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से निकलने वाले ट्रीटेड पानी में मौजूद फीकल कोलीफॉर्म के स्तर या जलाशय के पानी की गुणवत्ता के बारे में कोई जानकारी नहीं है। मामला उत्तर प्रदेश के झांसी जिले का है। इस पर अदालत ने 10 अक्टूबर 2023 को उत्तर प्रदेश सरकार से अगली रिपोर्ट में इसका खुलासा करने का निर्देश दिया है।
 

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Post By: Shivendra
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