दिल्ली : यमुना की मिट्टी का प्रयोग मूर्ति बनाने के लिए संभव नहीं

यमुना की मिट्टी का प्रयोग मूर्ति बनाने के लिए संभव नहीं
यमुना की मिट्टी का प्रयोग मूर्ति बनाने के लिए संभव नहीं

यमुना की मिट्टी का अवसाद, नालों का प्रवाह और बाढ़ ने दिल्ली में इसके रूप को बिगाड़ दिया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि दुर्गा पूजा के अवसर पर मूर्तियों के निर्माण में भी इसका प्रयोग नहीं हो सका है। कुछ मूर्तिकारों को पानीपत से मिट्टी मंगानी पड़ी है, क्योंकि विशेषज्ञों के अनुसार, दिल्ली की यमुना में मिट्टी का स्तर बहुत कम हो गया है। यहां के बाढ़ क्षेत्र में सिर्फ गाद और रेत ही पाई जाती है, जिससे कोई सुंदर सामग्री नहीं बन सकती, चाहे वह मूर्ति हो, मिट्टी के पत्र या मिट्टी के दीपक।

यमुना के बाड़ क्षेत्र में दोमट नामक मिट्टी पाई जाती है। इस मिट्टी में रेत और चिकनी मिट्टी का अनुपात होता है। यह मिट्टी उपजाऊ होती है और इससे मूर्तिकारी और कुम्हारी का काम किया जाता है। परंतु, दिल्ली के प्रदूषण और बाड़ क्षेत्र पर अवैध कब्जे के कारण, इस मिट्टी का स्वरूप बिगड़ गया है।

वजीराबाद बांध के निर्माण के कारण दोमट मिट्टी का स्थान नजफगढ़ नाले के मैले पानी ने ले लिया है। इस पानी में रेत का प्रवाह कम होने से सतह के नीचे की मिट्टी साफ नहीं होती है। इस मिट्टी से कोई भी चीज बनाना संभव नहीं है।सीमेंट और बालू का मिलान मकान बनाने के लिए जरूरी है। सीमेंट और बालू का सही अनुपात मकान को मजबूत और लंबे समय तक चलने वाला बनाता है, लेकिन अगर बालू अधिक होता है, तो मकान कमजोर होता है। दिल्ली की यमुना की मिट्टी में बालू की मात्रा ज्यादा होती है।

डीडीए के कार्य में हुई 6 से 12 महीने की देरी 

यमुना के डूब क्षेत्रों को पुनर्स्थापित करने के लिए डीडीए के कार्य में देरी हुई है। ओखला में 124 मिलियन गैलन प्रति दिन का एसटीपी 2023 के मार्च तक पूरा होने की उम्मीद है। सोनिया विहार में सात मिलियन गैलन प्रति दिन का एसटीपी 2023 के अंत तक पूरा होने का लक्ष्य है। दिल्ली सरकार ने 2025 तक यमुना को स्नान मानकों के हिसाब से साफ करने का वादा किया है, जिसके लिए पानी में बीओडी कम से कम 3 मिलीग्राम प्रति लीटर और डीओ कम से कम 5 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए।

दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि  प्रो.रामकुमार सिंह, यमुना के शोधार्थी व प्रोफेसर कहते है कि यमुना की प्राकृतिक स्थिति को सुधारने के लिए, बांधों से मुक्ति, नालों से प्राप्त मल-मूत्र का प्रक्रिया, मिट्टी के संरक्षण, और प्रकृति-सहकारी प्रक्रियाओं का प्रयोग है। जगतपुर में, इसका प्रमाण है, परंतु, इसकी मापनी होना आवश्यक है

प्रोफेसर, भूविज्ञान विभाग,प्रो शशांक शेखर के अनुसार  दिल्ली विवयमुना की दिल्ली में जो स्थिति है, वह उसकी प्राकृतिक संरचना से भिन्न है। इसका कारण है, बांधों का निर्माण, जो उसके फ्लड प्लेन को संकुचित करते हैं। इससे, यमुना की मिट्टी में परिवर्तन होता है। दिल्ली में, यमुना में दोमट मिट्टी की कमी होती है, जो मूर्ति और बर्तन बनाने के काम आती है। इसके स्थान पर, हल्की बालू और नालों का मल मिलता है, जो प्रदूषण का स्रोत हैं। परंतु, पानीपत के पास और चंबल के संगम के बाद, यमुना अपनी मूल प्रकृति में वापस आती है

डीपीसीसी की ताजा रिपोर्ट से पता चला है कि यमुना में प्रदूषण कम करने के लिए शुरू किए गए कार्यों में विलंब हो रहा है। एनजीटी को प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में जल बोर्ड और डीडीए के द्वारा संचालित परियोजनाओं का विवरण है। इनमें से कुछ हैं- नए सीवेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) का निर्माण, मौजूदा संयंत्रों का सुधार, अनौपचारिक कॉलोनियों में सीवर पाइपलाइन का स्थापन है ।

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Post By: Shivendra
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