धान और गेहूँ की खेती के लिए भारतीय कृषि परंपरा का एक लंबा इतिहास है। परंतु,आज के पर्यावरणीय और जलवायु संकट के युग में, हमें अधिक टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों की ओर रुख करना आवश्यक है। इस संदर्भ में, 'मिलेट्स' यानी छोटे अनाज, एक महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में उभर रहे हैं। एक स्वस्थ पर्यावरण दुनिया में सभी जीवित प्राणियों के लिए महत्तवपूर्ण है क्योंकि यह हवा, पानी, भोजन और अन्य आवश्यक चीजे प्रदान करता है। जो जीवन के लिए आवश्यक है। अफसोस की यह बात है कि मानवीय गतिविधियों के कारण हमारा पर्यावरण बेहद खराब हो रहा है जिसके कारण कई नकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है। दुनिया में सतही जल सूखता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिर्पोट के अनुसार,वैश्विक स्तर पर होने वाली कुल पानी का 70% कृषि के लिए उपयोग किया जाता है। यह परिदृश्य और भी बुरा होगा क्योंकि अनुमान है कि अगले दो दशकों तक तापमान 0.2 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से अधिक रहेगा जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान भूजल की कमी अधिक होगी।
मिलेट्स, जिन्हें स्थानीय भाषा में बाजरा, ज्वार, रागी आदि के नाम से जाना जाता है, पारंपरिक भारतीय खेती का एक अभिन्न अंग रहे हैं। ये छोटे अनाज न केवल पोषण के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता के लिए भी अत्यंत लाभकारी हैं। ये टिकाऊ अनाज है जो कई प्रकार से लाभकारी है। विभिन्न प्रकार की जलवायु और मिट्टी में उगने वाली इसकी क्षमता किसानो के लिए एक मूल्यवान उत्पादन है विशेष रुप से उन क्षेत्रों में जहां अन्य अनाज नही उगते हैं। हम सभी को मिलेट्स के पर्यावरण-अनुकूल गुणों को जानने की आवश्यकता है।
मिलेट्स की खेती के लिए धान और गेहूँ की तुलना में काफी कम पानी की आवश्यकता होती है। यह एक सूखा रसायनिक पौधा है जिसे न्यूनतम के साथ वर्गीकृत किया जा सकता है, फसलें सूखे की स्थितियों में भी अच्छी तरह से पनप सकती हैं,जिससे जल संरक्षण में मदद मिलती है। 01 किलो मिलेट्स पैदा करने के लिए लगभग 200 से 300 लीटर पानी की आवश्यकता होती है जबकि 01 किलो चावल और गेहूं पैदा करने के लिए 8000 से 12,000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। यह अनाज मृदा संरक्षण के लिए उपयोगी है। मिलेट्स की जड़ प्रणाली मिट्टी को मजबूती प्रदान करती है, जिससे मृदा कटाव में कमी आती है।
इसके अलावा, ये फसलें मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाती हैं। मिलेट्स प्राकृतिक रूप से कीट और रोग प्रतिरोधी होते हैं, जिससे इनकी खेती में कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम होती है। यह न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है, बल्कि किसानों की लागत को भी कम करता है। मिलेट्स की विविध प्रजातियाँ कृषि जैव विविधता को बढ़ावा देती हैं। यह विविधता पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है। मिलेट्स अत्यधिक तापमान और विषम जलवायु परिस्थितियों में भी अच्छी उपज देते हैं। इस प्रकार ये फसलें जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक लचीली होती हैं।
अंततः, मिलेट्स की ओर रुख करना न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है,बल्कि यह किसानों के लिए भी अधिक आर्थिक रूप से लाभदायक सिद्ध हो सकता है। यह खाद्य सुरक्षा, पोषण संवर्धन और टिकाऊ कृषि के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में एक कदम है। इस प्रकार, मिलेट्स की खेती आज के युग में पर्यावरण-अनुकूल और टिकाऊ कृषि का एक प्रमुख आधार बन सकती है, जो हमारे ग्रह की रक्षा करने के साथ-साथ हमारे किसान समुदाय को भी सशक्त बना सकती है।
स्रोत - समता न्यूज व्यूज फीचर्स
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