Charting the course of water: Historical narratives and contemporary solutions
India’s tragedy of water scarcity and development: A multi-dimensional analysis
Godavari at Dowleswaram Barrage near Rajahmundry (Image: Aditya Madhav; Wikimedia Commons, CC-BY-SA-3.0)
ऐतिहासिक रहा कॉप 28 शिखर सम्मेलन, पर जलवायु वित्त अब भी समस्या
भारत सहित ग्लोबल साउथ के देशों की जलवायु परिवर्तन में छोटी भूमिका है, लेकिन उन पर इसका प्रभाव अधिक है। संसाधनों की कमी के बगैर भी ये देश कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध हैं | COP 28 summit was historic, but climate finance still a problem
कॉप 28 शिखर सम्मेलन
भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड के विषाक्तता मामले पर एनजीटी का राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस
भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड के मामले में एनजीटी ने "जिम्मेदारी से भागने" के लिए 28 राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों, सीजीडब्ल्यूए को नोटिस जारी किया।
भूजल में आर्सेनिक,फ्लोराइड जैसे जहरीले तत्व
केंचुआ खाद परिचय एवं प्रकार | Vermicompost and its types
केंचुआ खाद क्या होता है ? उसके बारे में जानकारी प्राप्त करें | What is vermicompost? get information about it
केंचुआ खाद परिचय एवं प्रकार
Creating scalable, sustainable agriculture programs
The report presents six case studies on how sustainable agriculture programmes scaled up in the past in India
A farmer uses a hosepipe to irrigate crops at her farm in the Nilgiris mountains, Tamil Nadu (Image: IWMI Flickr Photos; CC BY-NC-ND 2.0 DEED)
Assessment of India's preparedness: Implementing effective social protection
The ASPIRE tool analyses various social protection programs, offering insights into tailoring them for different climate risks
Women working on an NREGA site building a pond to assist in farming and water storage in Jhabua district (UN Women/Gaganjit Singh; CC BY-NC-ND 2.0 DEED)
Empowering women farmers through collective action: The case of Odisha
How has the collective action model piloted in rural women of Odisha helped empower farm women?
Farm women at work. Image for representation purposes only (Image Source: IWP Flickr photos)
Agricultural landownership among rural women in India
While most post independence reforms have encouraged agricultural landownership among rural women as daughters, what exists in actual practice? A study explores.
Farm women in India (Image Source: Asian Development Bank via Wikimedia Commons)
क्यारियों से केंचुआ खाद एकत्र करना
र्मीकम्पोस्ट तैयार होने में लगा समय केंचुओं की नस्ल, परिस्थितियों, प्रबन्धन तथा कचरे के प्रकार पर निर्भर करता है। वर्मीकम्पोस्ट जैसे-जैसे तैयार होती जाये  उसे धीरे-धीरे एकत्र करते रहना चाहिए। तैयार खाद हटा लेने से उस क्षेत्र में वायुसंचार बढ़ जाता है जिससे केंचुआ खाद निर्माण की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है। तैयार केंचुआ खाद हटाने में विलम्ब होने से केंचुए मरने लगते हैं और उस क्षेत्र में चीटियों के आक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है। केंचुआ खाद हटाने के लिए 5 से 7 दिन पहले पानी का छिड़काव बन्द कर देना चाहिए ताकि केंचुए खाद में से निकल कर नीचे की ओर चले जायें।
क्यारियों से केंचुआ खाद एकत्र करना
वर्मीकम्पोस्ट बनाने की विधियाँ(Methods of Making Vermi-compost In Hindi)
क्यारियों को भरने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियाँ, घास, सब्जी व फलों के छिलके, गोबर आदि अपघटनशील कार्बनिक पदार्थों का चुनाव करते हैं। इन पदार्थों को क्यारियों में भरने से पहले ढेर बनाकर 15 से 20 दिन तक सड़ने के लिए रखा जाना आवश्यक है। सड़ने के लिए रखे गये कार्बनिक पदार्थों के मिश्रण में पानी छिड़क कर ढेर को छोड़ दिया जाता है। 15 से 20 दिन बाद कचरा अधगले रूप (Partially decomposed) में आ जाता है। ऐसा कचरा केंचुओं के लिए बहुत ही अच्छा भोजन माना गया है। 
र्मीकम्पोस्ट बनाने की विधियाँ
कृषि के टिकाऊपन में केंचुओं का योगदान
केंचुओं द्वारा निरंतर जुताई व उलट पलट के कारण स्थायी मिट्टी कणों का निर्माण होता है जिससे मृदा संरचना में सुधार एवं वायु संचार बेहतर होता है जो भूमि में जैविक कियाशीलता, ह्यूमस निर्माण तथा नत्रजन स्थिरीकरण के लिए आवश्यक है।
कृषि के टिकाऊपन में केंचुओं का योगदान,Pc-राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र 
केंचुआ खाद (Vermi-Compost)
केंचुए को कृषकों का मित्र तथा भूमि की आँत भी कहा जाता है, जो जीवांश से भरपूर एवं नम भूमि में पर्याप्त संख्या में रहते है। नम भूमियों में केंचुओं की संख्या पचास हजार से लेकर चार लाख प्रति हेक्टेयर तक आंकी गई है। केंचुए जमीन में 50 से 100 से.मी. की गहराई में विद्यमान जीवाशं युक्त मिट्टी को खाकर, मृदा एवं खनिजों को भूमि की सतह पर हगार के रूप में विसर्जित करते है। इस हगार में पोषक तत्व भरपूर मात्रा में रहते है। रसायनों के लगातार उपयोग एवं कार्बनिक पदार्थों को मृदा में न डालने के कारण इनकी संख्या में कमी का होना स्वाभाविक है।
केंचुआ खाद (Vermi-Compost)
आत्मनिर्भर गाँव में कृषि की भूमिका
आत्मनिर्भर भारत का मार्ग आत्मनिर्भर गाँवों के संकल्प से निर्धारित होता है। अतीत में आत्मनिर्भर गाँवों का सिद्धांत ही भारत को 'सोने की चिड़िया' कहने का मुख्य कारण था। परंतु उपनिवेशवादी नीतियों ने आत्मनिर्भर गाँवों के संकल्प को तहस- नहस कर दिया। कालांतर में कृषि लाभ में निरंतर कमी, बेहतर रोजगार की व्यवस्था, आधुनिक शिक्षा की आवश्यकता, जीवन के लिए भौतिक सुविधाओं की सुलभता, आधुनिक सुख-सुविधाओं आदि की कमी ने ग्रामीण आत्मनिर्भरता को गाँवों से विवर्तित करके भारतीय शहरों में स्थापित कर दिया था।
आत्मनिर्भर गाँव में कृषि की भूमिका
Voices at COP28 and the power of language
A snapshot of global climate conversations at COP 28
 Global warming may increase the intensity and frequency of droughts in many areas (Image: Maher Najm; Flickr PDM 1.0 DEED)
ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना जम्मू-कश्मीर का पल्ली गाँव
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर) के अंतर्गत कार्यरत भारत सरकार के उद्यम सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (सीईएल) द्वारा 20 दिनों के रिकॉर्ड समय में पल्ली में ग्राउंड माउंटेड सोलर पॉवर (जीएमएसपी) संयंत्र स्थापित किया गया है।
ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना जम्मू-कश्मीर का पल्ली गाँव,Pc-कुरुक्षेत्र
डिजिटल रूप से सशक्त गाँवों की ओर
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के परिप्रेक्ष्य में वैश्विक खाद्य प्रणाली को, पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाए बिना, 2050 तक 9 अरब से अधिक लोगों का भरण-पोषण करने में सक्षम होना चाहिए और ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि एक सक्षम और सतत खाद्य उत्पादन प्रणाली विकसित करने का प्रयास किया जाए। साथ ही, ग्रामीण समुदाय बाजार की दुर्गमता, बढ़ती आबादी, जनसंख्या में कमी और अपर्याप्त सार्वजनिक सेवाओं जैसे मुद्दों से जूझ रहे हैं जो सतत खाद्य उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं। इसी के मद्देनजर, 'डिजिटलीकरण' एक समाधान के रूप में उभरा है जो कृषि संसाधन दक्षता में सुधार और ग्रामीण सेवाओं को समृद्ध कर रहा है। यह अवधारणा संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के भी अनुरूप है जो गरीबी, खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसे परस्पर जुड़े मुद्दों का समाधान करके ग्रामीण क्षेत्रों में प्रगति को बढ़ावा दे रही है।
डिजिटल रूप से सशक्त गाँवों की ओर
वृक्षों के आक्रामक प्रजातियों से मानव और वन को खतरा
उत्तराखंड जो अपनी प्राकृतिक सुन्दरता से सभी को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. विगत कई वर्षो से वृक्षों की आक्रामक प्रजातियों की बढ़ती संख्या को अनदेखा करता रहा, परंतु अब यही आज राज्य के लिए चिन्ता का विषय बनते जा रहे हैं. इन प्रजातियों से न केवल राज्य में वनों को वरन् वन्य जीवों को भी नुकसान हो रहा है. राज्य में वनों का अस्तित्व देखा जाए तो 40-50 वर्ष पूर्व राज्य में बाज, उतीस, खड़िग, भीमल, क्वैराल, पदम, काफल, बेडू जैसी प्रजातियों के जंगल हुआ करते थे,
वृक्षों के आक्रामक प्रजातियों से मानव और वन को खतरा,Pc-चरखा फीचर
प्रयोगशाला से खेतों तक किसानों का तकनीकी सशक्तीकरण
प्रौद्योगिकी उन्नयन और समावेशी विकास ग्रामीण भारत के विकास के केंद्र बिंदु रहे हैं। देश की प्रयोगशालाओं में विकसित प्रौद्योगिकियां आत्मनिर्भर गाँवों के लिए तकनीकी सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। आज प्रौद्योगिकी को समाज और गाँव केंद्रित बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। आधुनिक प्रौद्योगिकी के सामंजस्य और खेतों तक पहुँच से बेहतर कृषि उत्पादकता, सामाजिक-आर्थिक समानता और सतत विकास को सुनिश्चित किया जा रहा है। ग्रामीण आत्मनिर्भरता, तकनीकी समझ और कृषि प्रौद्योगिकी से लेकर कौशल विकास की परिभाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ देश के गाँवों में सृजित हो रही है। भारत में करीब साढ़े छह लाख गाँव है, छह हजार से अधिक ब्लॉक हैं, और सभी पंचायती राज प्रणाली द्वारा शासित हैं। 
प्रयोगशाला से खेतों तक किसानों का तकनीकी सशक्तीकरण
वर्टीकल फार्मिंग के बढ़ते कदम
कम्प्यूटर के द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि घूमने वाली रैकों में उगने वाले प्रत्येक पौधे को एकसमान ही प्रकाश की प्राप्ति हो इसमें इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि पानी के पम्पों से पोषक तत्वों का वितरण एकसमान रूप से हो किसान अपने स्मार्ट फोन से सम्पूर्ण बहुमंजिला खेत की देखभाल कर सकते हैं.
वर्टीकल फार्मिंग के बढ़ते कदम
दुनिया भर में बांधों को हटाने में वृद्धि
बांध को हटाने की योजना बनाते समय यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि इसकी कुछ लागत तो आएगी ही। साथ ही नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के प्रभावित होने की संभावना भी रहेगी
दुनिया भर में बांधों को हटाने में वृद्धि
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