गोमती नदी के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास
गोमती का जन्म हिमालय की तलहटी में जनपद पीलीभीत से 30 किमी पूर्व तथा पूरनपुर (पुराणपुर) से 12 किमी उत्तर में माधोटांडा के निकट फुलहर झील (गोमत ताल) से हुआ। गोमती 660 किमी की यात्रा में 14 जिले पीलीभीत, शाहजहाँपुर, लखीमपुर, हरदोई, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, अयोध्या, अमेठी, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, जौनपुर, गाजीपुर के 22735 वर्ग किमी जल ग्रहण क्षेत्र के वर्शा जल को संजोकर मार्केण्डेश्वर तपस्थली के पास कैची घाट, वाराणसी में गंगा मैया की गोद में समा जाती है। गोमती पहाड़ों से नहीं, गौरूपी धरती की कोख (भूगर्भ जल) से जन्मी नदी है, इसलिए गोमती कहलाती है। इसके प्राण भूजल स्रोतों में निहित हैं।
गोमती (प्रतिकात्मक तस्वीर)
जयपुर, लापोड़िया : पानी ने बदली 70 गांवों की कहानी
राजस्थान की राजधानी जयपुर से 80 किलोमीटर दूर स्थित लापोड़िया गांव के रहने वाले किसान लक्ष्मण सिंह देश में ग्रामोदय के रोल मॉडल हैं। दुनिया को इजराइल कम पानी में खेती की तकनीक सिखाता है, लेकिन लक्ष्मण सिंह इजराइल को खेती और पानी बचाने की टेक्निक सिखाते हैं। लक्ष्मण सिंह को पद्मश्री देकर 'निष्काम कर्म' का मान ऊंचा किया गया है।
लापोड़िया की एक प्रतिकात्मक तस्वीर
Atal Bhujal Yojana: Bridging ambition with reality
Rethinking community engagement in the Atal Bhujal Yojana
Towards sustainable groundwater management (Image: IWMI)
भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
बढ़ते तापमान और मौसम में बदलाव से गर्मी की लहरों और चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है, जिससे बीमारी, चोट और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही जलवायु-संवेदनशील रोगजनकों के फैलाव में बदलाव आता है, जिससे डेंगू और डायरिया जैसी बीमारियाँ कुछ क्षेत्रों में अधिक आम हो सकती हैं। जलवायु परिवर्तन से फसलों की पैदावार में कमी, खाद्य कीमतों में वृद्धि, खाद्य असुरक्षा और अल्पपोषण का खतरा बढ़ता है। इससे जल सुरक्षा भी प्रभावित होती है। ये परिवर्तन गरीबी, मानव प्रवास, हिंसक संघर्ष और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा सकते हैं। Rising temperatures and climate change are increasing the frequency and intensity of heat waves and extreme weather events, increasing the risk of disease, injury, and death. It also changes the spread of climate-sensitive pathogens, which could cause diseases like dengue and diarrhea to become more common in some areas. Climate change increases the risk of reduced crop yields, increased food prices, food insecurity and undernutrition. This also affects water security. These changes may increase poverty, human migration, violent conflict, and mental health problems.
सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
कार्बन डाईऑक्साइड रिकार्ड हाई से बाढ़-सूखे का खतरा
पृथ्वी को गर्म करने में कार्बन डाई ऑक्साइड की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि वायुमंडल में इस गैस के स्तर में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। कार्बन की खतरनाक बढ़त ने मौसम की एक्सट्रीम कंडीशन को बढ़ाया है यानी बाढ़-सूखे का खतरा बहुत बढ़ गया है। 




कार्बन डाईऑक्साइड रिकार्ड स्तर पर
Unravelling the escalating forest fire crisis in Uttarakhand
Deforestation, expansion of agricultural land, encroachment into forested areas, and unplanned urbanisation alter landscape connectivity, fragment habitats, and increase fire ignition sources.
Uttarakhand's wildfire wake-up call (Image: Pickpic)
नदियों के पुनरुद्धार का प्रकल्प 'गोमती गौरव अभियान' का संकल्प
लखनऊ गोमती नदी के किनारे पर बसा है। उत्तर प्रदेश मे गोमती नदी पीलीभीत से प्रारम्भ होकर गाजीपुर में गंगा नदी में मिल जाती है। गोमती नदी में जल गंगा-यमुना आदि की तरह किसी पहाड में बर्फ के पिघलने से नहीं आता है बल्कि तमाम सहायक नदियों और नालों का जल गोमती में गिरता है और नदी में शामिल होकर बडा आकार ले लेता है।
गोमती संरक्षण अभियान,Pc-लोक सम्मान 
पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मददगार सौर ऊर्जा
भारत, जो विश्व के सबसे जनसंख्या वाले देशों में से एक है, के लिए सौर ऊर्जा एक आदर्श ऊर्जा स्रोत है क्योंकि यह पर्यावरण के अनुकूल है और कार्बन डाइऑक्साइड नहीं छोड़ती। यह गैर-नवीकरणीय ऊर्जा का एक श्रेष्ठ विकल्प है क्योंकि यह अक्षय है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इसका उपयोग खाना पकाने, सुखाने और बिजली जैसे विभिन्न कार्यों के लिए कर सकते हैं। भारत में बिजली का उत्पादन महंगा होने के कारण, सौर ऊर्जा एक बेहतर विकल्प है।
सौर उर्जा
समृद्ध जैव संकेतक और जलीय जैविक-संपदा से परिपूर्ण अंडमान द्वीप समूह
प्रदूषण और पर्यावर्णीय जैव निगरानी के लिए जैव संकेतक के रूप में प्रोटोजोआ सहित कई प्रजातियों के महत्व को लम्बे समय से मान्यता प्राप्त है, विशेष रूप से जल शोधन संयंत्रों और सक्रिय स्लज (कोच) प्रक्रियाओं में। इनके प्रति समझ हमें विकसित करनी पड़ेगी।
जलीय जैविक-संपदा से परिपूर्ण अंडमान द्वीप समूह
ग्रीन करियर : पवन ऊर्जा में है भविष्य का मजबूत करियर
पवन ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार का मजबूत भविष्य है। विशेषज्ञों का मानना है कि साल 2035 तक पवन ऊर्जा जनरेट करने की लागत आज के मुकाबले 17 से 35 फीसदी तक कम हो जायेगी और पवन ऊर्जा का उत्पादन आज से कई सौ फीसदी बढ़ जायेगा। इसलिए इस ऊर्जा का भविष्य अक्षय है, क्योंकि यह प्राकृतिक संसाधन कभी कम नहीं होगा। पवन ऊर्जा प्रदूषण रहित है, जिस कारण जलवायु परिवर्तन से निपटने में इसके जरिये मदद मिलती है।
पवन उर्जा भारत का भविष्य
Ecosystem-based approach to water management: Key to Karnataka’s water future
What is the ecosystem based approach to water management? How can it help in solving the water woes of states in the Deccan Plateau?
An ecosystem based approach to water management (Image Source: India Water Portal)
पर्यावरण प्रदूषण और विकट समस्या जलवायु परिवर्तन से महासागर को सहेजना आवश्यक
पर्यावरण प्रदूषण और मौजूदा समय की विकट होती समस्या जलवायु परिवर्तन का महासागर पर क्या असर होता है? और इसके विपरीत महासागर पर्यावरण और मानव जीवन पर किस तरह से प्रतिक्रिया करता है, इन तमाम बातों को समझने के लिए भारतीय वैज्ञानिक लगातार अनुसंधान कर रहे हैं। What is the impact of environmental pollution and climate change on the ocean? And on the contrary, Indian scientists are continuously doing research to understand how the ocean reacts to the environment and human life.
पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का महासागर पर असर
Floating forward: An entrepreneur's tryst for 'clean-water' bodies
In our quest to spotlight dedicated entrepreneurs in the water sector, we bring you the inspiring story of Priyanshu Kamath, an IIT Bombay alumnus, who pivoted from a lucrative corporate career to tackle one of India's most intricate water quality challenges, that of pollution of its urban water bodies.
Innovative solutions to clean urban water bodies, Floating islands (Photo Credit: Priyanshu Kamath)
भारत के जलनायक
प्राचीन वैदिक काल में ही नहीं बल्कि मध्यकाल और उसके बाद के समय में भी जल विकास और संचयन के क्षेत्रों में उत्कृष्ट निर्माण कार्य किए गए। जल विकास और संचयन के अनेक प्रमुख कार्य तो स्वाधीनता संग्राम के साथ-साथ ही चलाए गए जिनके निर्माण में भारतीय इंजीनियरों, स्वतंत्रता सेनानियों, रजवाड़ों और राजघरानों के शासकों और अनेक अज्ञात नायकों ने उल्लेखनीय सफलताएँ प्राप्त करके देश में अपनी अमिट छाप लगा दी। Not only in the ancient Vedic period but also in the medieval period and thereafter, excellent construction works were done in the fields of water development and harvesting. Many major works of water development and harvesting were carried out simultaneously with the freedom struggle, in the construction of which Indian engineers, freedom fighters, rulers of princely states and royal families and many unknown heroes achieved remarkable successes and left their indelible mark in the country.
जल समृद्ध परंपरा
जल प्रशासन में गुजरात और भारत की जलयात्रा
गुजरात और भारत की जल यात्रा बहुत दिलचस्प है, जिसने दुनिया को दिखाया है कि जल को संधारणीय बनाने और पर्यावरण संरक्षण को बहाल करने के लिए जल प्रबंधन में कैसे नयापन लाया जा सकता है। संधारणीयता के उद्देश्य से, लोगों की भागीदारी प्रौद्योगिकी पर केंद्रित ये पहल, पूरी दुनिया के लिए किफायती, प्रेरक और विश्वसनीय मॉडल का मार्ग प्रशस्त करती है। The water journey of Gujarat and India is very interesting, which has shown the world how to innovate in water management to make water sustainability and restore environmental protection. These initiatives, focused on people-participatory technology with the aim of sustainability, pave the way for affordable, inspiring and reliable models for the entire world.
जल प्रशासन में गुजरात की भूमिका प्रभावी
पर्यावरण-अनुकूलन के लिए विविधीकृत खेती अपनाएं
एक विविधिकृत फार्म क्या है? क्या पानी-पर्यावरण और पर्यावरण अनुकूलन में उपयोगी है?
विविधिकृत खेती
कम दबाव (लो हेड) ड्रिप सिंचाई प्रणाली क्या है
ड्रिप सिंचाई प्रणाली एक प्रकार की सिंचाई प्रणाली है जहां पानी को छोटे ट्यूबों और उत्सर्जकों के माध्यम से सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है, जिससे पानी का सटीक और कुशल उपयोग सुनिश्चित होता है, बर्बादी कम होती है और पौधों के इष्टतम विकास को बढ़ावा मिलता है।
ड्रिप सिंचाई प्रणाली
बूंद-बूंद उपयोग: धान के खेत में मछली पालन
जानिए धान संग मछली पालन के तहत किसान क्या कर सकता है? धान की खेती और मछली पालन क्या एक साथ संभव है।
धान संग मछली पालन
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