खगड़िया के अलौली की प्रमिला ने जैविक खाद बनाकर धरती-घरती दोनों साधा
जीविका द्वारा महिलाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा देने की बाद ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं में जागृति आयी है। गांव के स्तर पर महिलाएं नये-नये काम करके आर्थिक रूप से सबल हो रही हैं। महिलाओं के बनाये गये इन समूहों में से कई समूह वर्मी कंपोस्ट बनाने काम कर रहे हैं।
वर्मी कंपोस्ट
Taming the ash: Strategies for fly ash management in India
The problem of fly ash from coal plants in India and recommended solutions
A fly ash dam near NTPC in Korba (Image: India Water Portal Flickr)
सोलन के बद्दी में डाबर ने तालाब का किया पुनरुद्धार
बद्दी, सोलन में स्थित डाबर इंडिया की इकाई ने 2030 तक वाटर पॉजिटिव होने के अपने मिशन के अंतर्गत धर्मपुर गांव में एक तालाब के पुनर्जीवन की योजना की और पूरा किया। इस पुनर्जीवन अभियान से थाना पंचायत के 350 से अधिक परिवारों को लाभ होगा।
सोलन के बद्दी में डाबर ने तालाब का किया पुनरुद्धार
बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर कर रहे खेती
संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) के आंकड़ों के अनुसार, 2015 से 2019 के बीच भारत की कुल रिपोर्टेड जमीन की 30.51 करोड़ हेक्टेयर भूमि की गुणवत्ता गिरी, बंजर हुई है। इसका मतलब है कि 2019 में देश की कुल जमीन का 9.45% गुणवत्ता गिर चुका था, जो 2015 में केवल 4.42% था। यह जानकारी यूएनसीसीडी द्वारा जारी की गई है।
बड़ी मात्रा में कृषि भूमि की गुणवत्ता गिरी या बंजर हुई हैं
देश भर के जलाशयों के भंडार खाली, खतरे में खेती
नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय जल आयोग द्वारा प्रकाशित आंकड़े भारत में जल संकट की बढ़ती गंभीरता को प्रकट करते हैं। इन आंकड़ों से देश के जलाशयों के स्तर में हुई खतरनाक कमी का पता चलता है। 25 अप्रैल 2024 तक, भारत के प्रमुख जलाशयों में जल की मात्रा में उनकी कुल भंडारण क्षमता के मुकाबले लगभग 30-35 प्रतिशत की कमी आई है।


जलाशयों के जलभंडारों में उल्लेखनीय कमी
How do your everyday choices impact the world's resources?
The surprising connection between Wikipedia, beaches, and your water bottle.
A top down image of a lush green forest in a sacred grove in Meghalaya (Image created by: Sreechand Tavva)
Factors influencing adaptation decisions among tribal farmers in Nagaland
How do farmers in Nagaland perceive the impacts of climate change? What do they do to adapt to these changes? What are the factors influencing their adaptation decisions? A study explores.
Terrace cultivation in Nagaland (Image Source: Tewu via Wikimedia Commons)
Irrigation dominated areas and the risk of gall bladder cancer in Bihar
This study found that increase in well and canal irrigated areas was associated with a rise in the gall bladder cancer cases in Bihar due to presence of cancer causing contaminants in irrigation water.
Groundwater irrigation and the risk of gall bladder cancer in Bihar. Image used for representation purposes only (Image Source: India Water Portal
Empowering women through socio-technical innovations
A case study of women-led climate resilient farming by Swayam Shikshan Prayog
Building the resilience of women farmers (Image: ICRISAT, Flcikr Commons)
जलवायु परिवर्तनः रोगवाहक जन्य रोगों के विशेष संदर्भ में मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव
वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्ष 2100 तक तापमान में 1.4 से 5.8°C तक की वृद्धि के साथ समुद्र के स्तरों में 18-59 से.मी. तक की वृद्धि की संभावना है जिसके चलते तटवर्ती क्षेत्रों में जल प्लावन के कारण वर्ष 2050 तक 200 मिलियन लोग अपनी जगह से अलग हो जाएंगे।
जलवायु परिवर्तनः रोगवाहक जन्य रोगों के विशेष संदर्भ में मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव
सूखी ही बहने को मजबूर नदियाँ
दुनिया में ज्यादातर नदियां अपने तटवर्ती क्षेत्रों के लिए जीवनदायिनी रही हैं। यह भी कटु सत्य है कि सभ्यताओं का विकास ही नदियों के विलोपन का कारण भी बन रहा है। यह किसी से छुपा नहीं है, लेकिन विकास की अंधी दौड़ में आज नदियों का अस्तित्व खतरे में है। अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह का कारण, नदी से मिलने वाली रेत व जलराशि है।
नदियों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह
Evaluating economic indicators for a solar agriculture farm
A comparative case study of ground-mounted and agrivoltaic systems
Solar energy and land use (Image: Rawpixel, CC0)
पर्यावरण-प्रबन्धन और प्रकृति-संरक्षण: एक वैदिक दृष्टिकोण
अथर्ववेद के ‘पृथ्वीसूक्त’ में पृथ्वी को माता और हमें इसके पुत्र कहा गया है। यह सूक्त प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण का आह्वान करता है और “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को दर्शाता है। रवीन्द्र कुमार जी का लेख हमारे आदिग्रन्थों में पर्यावरण संबंधी मान्यताओं को दर्शाता है।
प्रकृति-संरक्षण पर वैदिक दृष्टिकोण
जलवायु परिवर्तन से धार से दिल्ली तक तपन, सेहत पर हो रहा बुरा असर
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप के अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन ने अप्रैल में एशिया में हीट वेव की तीव्रता को बहुत बढ़ा दिया है। इस दौरान दर्ज किए गए उच्चतम तापमान ने लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है। मानव-जनित गतिविधियों के कारण जलवायु में आए बदलाव ने इन गर्मी की लहरों की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि की है।
पूरे एशिया में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी
Highlighting the solar-agriculture-water nexus
Incentivising the use of panel cleaning robots could enhance water resource management
Solar Power Plant Telangana II (Image: Thomas Lloyd Group, Wikimedia Commons)
पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) का महत्व क्या है? और भारत में पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जो प्रस्तावित परियोजनाओं, नीतियों या कार्यक्रमों को लागू करने से पहले उनके संभावित पर्यावरणीय परिणामों का मूल्यांकन करती है। इसका प्राथमिक उद्देश्य पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर किसी परियोजना के संभावित प्रतिकूल प्रभावों की पहचान करना और उनका आकलन करना है, साथ ही इन प्रभावों को कम करने या कम करने के उपायों का प्रस्ताव करना है
पर्यावरण प्रभाव आकलन प्रक्रिया
बेहिसाब भूजल दोहन भूकंप के खतरे को विनाशकारी बना देगा
बेहिसाब भूजल दोहन भूकंप के खतरे को विनाशकारी बना देगा। हाल फिलहाल के दो अध्ययन हमारे लिए खतरे का संकेत दे रहे हैं। एक अध्ययन पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में भूकंप के आवृत्ति और तीब्रता बढ़ने की बात कर रहा है। तो दूसरा भूजल का अत्यधिक दोहन से दिल्ली-NCR क्षेत्र के कुछ भाग भविष्य में धंसने की संभावना की बात कर रहा है। दोनों अध्ययनों को जोड़ कर अगर पढ़ा जाए तस्वीर का एक नया पहलू सामने आता है।
भूजल का अत्यधिक दोहन
जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं वर्तमान प्रदूषण रहित चुनौतियां (भाग 2)
जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर गरीब लोगों पर पड़ रहा है। पहले से ही खाद्य व आवास की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए बदलती जलवायु व इसका प्रभाव त्रासदी पूर्ण है। वैसे समाजशास्त्रियों की मानें तो गरीबी अपने आप बीमारियों का समुच्चय है। जलवायु परिवर्तन बहुत सारी बीमारियों के होने की प्रक्रिया को बहुत भयानक कर देगा।
स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं वर्तमान प्रदूषण रहित चुनौतियां (भाग 1)
जलवायु परिवर्तन से मिट्टी पर पड़े प्रभाव का सीधा असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि होती है और वाष्पीकरण का संतुलन खराब हो जाता है व हमारी मिट्टी की आर्द्रता असंतुलित हो जाती है। इसके परिणाम स्वरूप हमें सूखे की मार झेलनी पड़ सकती है। अगर यह स्थिति लगातार बनी रही तो मिट्टी मरुस्थल में तब्दील हो जाती है। मिट्टी एक समय ऊसर व बंजर हो जाती है। अर्थात हमारे पास भोज्य पदार्थ के उत्पादन के लिए पर्याप्त उर्वर भूमि नहीं बचेगी और हमें भूख व कुपोषण की चपेट में आकर अपनी जान गंवानी पड़ेगी। हालांकि यह स्थिति अभी भी बनी हुई है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण इसका स्वरूप और विकराल हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
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