मरुस्थलीकरण और बंजर होने से बचानी होगी कृषि भूमि

कृषि भूमियों का मरुस्थलीकरण और बंजर होने का खतरा
कृषि भूमियों का मरुस्थलीकरण और बंजर होने का खतरा

कृषि भूमियों का मरुस्थलीकरण और बंजर होने का खतरा धीरे-धीरे करीब एक अरब लोगों की जिंदगी के लिए खतरा बन चुका है। इसी के साथ लाखों तरह की वनस्पति प्रजातियां के भी विलुप्तिकरण का खतरा बन चुका है। खेती पर निर्भर लोग पलायन को मजबूर हैं। अनुमान यह है कि इस सदी के मध्य तक धरती की एक चौथाई मिट्टी बंजर हो चुकी होगी। अभी से इसकी चिंता ना की गई तो, यह संकट बड़े मानवीय संकट में बदल सकता है। 

उर्वरक और कीटनाशक के ज़्यादा उपयोग से कई देशों की कृषि भूमि तेज़ी से बंजर हो रही है। कृषि भूमि के बंजर होने, कम उपजाऊ होने से भारत के अनगिनत किसान परेशान हैं। कई समझदार किसान कृषि भूमि को बंजर होने से बचाने के लिए जैविक खाद बनाकर उसका उपयोग कर रहे हैं। दूसरी ओर भारत में बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने के लिए इसरो और नीति आयोग ने कृषि वानिकी को बढ़ावा देने का काम शुरू किया है। इसरो का प्रयास है कि आने वाले दो दशक में भारत की बंजर भूमि की 11.9 प्रतिशत भूमि पर हरियाली हो। इसरो के इस प्रयास में नीति आयोग भी उसका सहयोग दे रहा है।

भारत में कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए इसरो उपग्रहों के डेटा का उपयोग करके 12 फरवरी को भुवन-आधारित ग्रीनिंग एंड रेस्टोरेशन ऑफ वेस्टलैंड विद एग्रो फॉरेस्ट्री नाम का एक नया पोर्टल जारी किया था। इससे पोर्टल पर ज़िला स्तर पर कृषि वानिकी के लिए उपयुक्त भूमि की पहचान करके उसे फिर से हरा-भरा किया जाएगा। अभी तक वानिकी उपुक्तता के लिए राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना सबसे बड़े राज्य हैं। दुःखद यह है कि एक ओर इसरो नीति आयोग के साथ मिलकर भारत की तेज़ी से बंजर हो रही भूमि को हरा-भरा बनाने की योजना बनाकर उस पर काम कर रहा है, तो दूसरी ओर वनों को बहुत तेज़ी काटा जा रहा है, जिसके कारण बंजर भूमि बढ़ती जा रही है। वहीं उर्वरक और कीटनाशक बनाने वाली कम्पनियाँ किसानों की खेती को ख़राब करने का षड्यंत्र रच रही हैं।

दूसरी ओर इसरो के सैटेलाइट से जियोपोर्टल पर मिल रहे आँकड़े लेकर नीति आयोग कृषि वानिकी के माध्यम से भारत में वन क्षेत्र में सुधार करने की मुहिम चला रहा है। इस योजना के तहत सैटेलाइट डाटा से बंजर भूमि के साथ ही जलस्रोत, बंजर भूमि में मृदा कार्बन, भूमि की गुणवत्ता, मृदा में कार्बन, भूमि कवर जैसी भूमि कर जैसी विषयगत भूस्थानिक आंकड़े जुटाकर कृषि वानिकी की उपयुक्तता सूचकांक (ASI) स्थापित किया जा रहा है।

इसरो के अनुसार थोड़े से सार्थक प्रयासों से कृषि वानिकी के लिए भारत के लगभग 6.18% बंजर भूमि अधिक उपयोगी और 4.91% भूमि मध्यम रूप से उपयोगी हो सकती है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना की बंजर भूमि कृषि और वानिकी उपयोग में लाने के लिए सबसे अच्छी है। वहीं कृषि और वानिकी उपयोग के लिए जम्मू कश्मीर, मणिपुर और नागालैंड की बंजर भूमि मध्य प्रकार की है। 

नीति आयोग के अनुसार भारत में 67.30 लाख हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य भूमि में शर्तिया और लवणता बढ़ने के कारण यह भूमि बंजर हो चुकी है। इस बंजर भूमि में से लगभग 37.70 लाख हेक्टेयर भूमि क्षारीय है। और 29.60 लाख हेक्टेयर भूमि लवणीय है। अभी तक इस बंजर भूमि में लगभग 20 लाख हेक्टेयर क्षारीय भूमि को और लगभग 70 हजार हेक्टेयर लवणीय भूमि को फिर से उपजाउ बनाया जा चुका है। बचे हुए बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने के प्रयास किया जा रहे हैं, लेकिन यह एक बड़ी चुनौती है।

यदि इस बची हुई बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने में सफलता मिली, तो खाद्यान्न के क्षेत्र में भारत खाद्य उत्पादों के निर्यात में और आगे जा सकता है, जिससे आत्मनिर्भर होने के अतिरिक्त भारत की आय बढ़ेगी। सरकार के प्रयासों से कृषि वानिकी का यह प्रयास भारत को लकड़ी उत्पादों के आयात कम करके आत्मनिर्भर बनाने और कार्बन पृथक्करण के माध्यम से जलवायु परिवर्तन और बंजर भूमि में उपजाऊ बनायी जाने लायक भूमि को सुधारीकरण के उपयोगों को बढ़ावा देने से कृषि और वन क्षेत्र को बढ़ाने में मदद मिल सकती है। उम्मीद की जा रही है कि सार्थक प्रयासों से निकट भविष्य में कृषि वानिकी के माध्यम से परती और बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर उसे उर्वर बनाया जा सकता है।

इसरो से मिले डाटा के आँकड़ों के अनुसार, सबसे ज़्यादा बंजर भूमि की समस्या उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और
बिहार में है। इन राज्यों के कृषि और वन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा बंजर पड़ा है, जो हर वर्ष बढ़ रहा है। इन राज्यों की बंजर भूमि में पिछले 40 वर्षों में लगभग 1.2 मिलियन हेक्टेयर बंजर क्षेत्र को सुधारा जा चुका है। लेकिन दूसरी ओर 2.2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र का बंजर भूमि में तब्दील होना चिन्ता का विषय है। इन राज्यों में सबसे ज़्यादा बंजर भूमि वाला राज्य उत्तर प्रदेश है, जहाँ लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्र बंजर है। शेष 60 प्रतिशत बंजर भूमि बचे हुए पाँच राज्यों में है, जिनमें मध्य प्रदेश की बंजर भूमि का बड़ा हिस्सा है।

खाद्यान्न उत्पादन के लिहाज़ से भारत में अब तक कुल बंजर हो चुकी कृषि भूमि के कारण हर वर्ष लगभग 111.83 लाख टन खाद्यान्न का नुक़सान हो रहा है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार, अगर इस बंजर भूमि में सुधार करके इसमें दलहन, तिलहन और नकदी फ़सलें उगायी जाएँ, तो हर वर्ष लगभग 15,018 करोड़ रुपये की कमाई हो सकती है। वहीं इस भूमि पर फिर से कृषि होने से लाखों लोगों को रोज़गार मिलने के अतिरिक्त लाखों लोगों का पेट भी भरा जा सकता है।

बंजर भूमि के आँकड़े राज्यवार देखने पर ज्ञात होता है कि उत्तर प्रदेश में 13.5 लाख हेक्टेयर, गुजरात में 5.41 लाख हेक्टेयर, महाराष्ट्र में 4.23 लाख हेक्टेयर, तमिलनाडु में 3.55 लाख हेक्टेयर, आंध्र प्रदेश में 1.97 लाख हेक्टेयर, हरियाणा में 1.83 लाख हेक्टेयर, राजस्थान में 1.79 लाख हेक्टेयर, पंजाब में 1.52 लाख हेक्टेयर, कर्नाटक में 1.48 लाख हेक्टेयर, मध्य प्रदेश में 1.40 लाख हेक्टेयर, बिहार में 1.06 लाख हेक्टेयर भूमि बंजर पड़ी है। एसएसआरआई के प्रयासों से हरियाणा के करनाल, पश्चिम बंगाल के कैनिंग टाउन, उत्तर प्रदेश के लखनऊ, गुजरात के भरूच में भूमि सुधार केंद्रों में बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ भूमि सुधार केंद्र एक बड़े बंजर भू-भाग को सुधारने में सफल नहीं हो सकते। इसलिए दूसरे राज्यों में भी अभी इस प्रकार के और भी भूमि सुधार केंद्र खोलने की आवश्यकता है।

सरकारी सर्वे के अनुसार, वर्ष 1996-97 में भारत में 67.30 लाख हेक्टेयर भूमि बंजर थी। पानी के दूषित होने और कृषि भूमि में क्षारीयता, अम्लता अधिक होने के कारण ऐसा हुआ है। वर्ष 1966-67 में भारत में छिड़ी हरित क्रान्ति के जागरूकता कार्यक्रमों से प्रेरित होकर किसानों ने तीन से चार गुना फ़सल उत्पादन बढ़ाया था। इसकी वजह भूमि से पानी खींचकर सिंचाई करना भी था। लेकिन दूसरी ओर भूमि से अधिक जल निकासी के चलते भूमि में जल का स्तर 20 फीट से गिरकर 45 फीट तक पहुँच गया और जहाँ 30 से 35 फीट पर भूमि में पानी था, वहाँ 80 से 110 फीट पर जलस्तर पहुँच गया, जिसके चलते भूमि में दरारें पड़ गयी और वो बंजर होने लगी। वहीं जल प्रबंधन न होने से भी भूमि बंजर होने लगी। अधिक सिंचाई से भी भूमि में लवणता बढ़ने से बंजर भूमि बढ़ने लगी।

सीएसएसआरआई के वैज्ञानिकों के अनुसार, अधिक पानी से पैदा होने वाली फ़सलों की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों द्वारा लगातार खेतों में पानी भरे जाने से भूमि में लवण की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे भूमि बंजर होती है। जैसे गन्ने की फ़सल उगाने पर एक वर्ष में भूमि की ऊपरी परत पर दो टन लवण प्रति हेक्टेयर जमा हो जाता है। ऐसे ही कपास की फ़सल उगाने पर कृषि भूमि की ऊपरी परत पर एक वर्ष में 1.2 टन लवण प्रति हेक्टेयर जमा हो जाता है। वहीं धान की फसल उगाने पर एक वर्ष में एक टन प्रति हेक्टेयर लवण भूमि के ऊपरी भाग पर जमा हो जाता है और गेहूँ की फ़सल उगाने पर भूमि पर एक वर्ष में आधा टन लवण प्रति हेक्टेयर के हिसाब से जमा हो जाता है। यह लवण तभी भूमि में 1-2 मीटर नीचे जाता है, जब बारिश अच्छी हो। कम बारिश होने पर यह लवण भूमि की ऊपरी परतों में ही जमा रहता है, जहाँ से फ़सल की जड़ें अपना भोजन तैयार करके पौधों को पुष्ट करती हैं। जब यह लवण भूमि के इस फ़सल उत्पादन के लिए उपयोगी भाग में जमा रहता है, तो भूमि में उर्वरा शक्ति कम होने लगती है, जिससे फ़सल उत्पादन घटने लगता है और धीरे-धीरे लवण बढ़ते रहने के कारण भूमि बंजर होने लगती है। किसान इस बात को जानते हैं कि उनके खेत में जहाँ पानी अधिक भरा रहता है, वहाँ फ़सल नहीं हो पाती है। ऐसे ही जहाँ अधिक समय तक पानी न रहने पर भूमि में खुश्की बढ़ जाती है, वहाँ भी फ़सल नहीं उग पाती है। इसलिए किसानों को शुरू से ही सिंचाई के संतुलन का ध्यान रखना चाहिए।

भूमि में लवण बढ़ने की तरह ही भूमि में 15 प्रतिशत से अधिक सोडियम और 8.2 प्रतिशत से अधिक पीएच मान होने पर भूमि क्षारीय हो जाती है। क्षारीय भूमि में सिलिकेट लवण, सोडियम कार्बोनेट और बाइकार्बोनेट की अधिकता हो जाती है। ऐसी भूमि की ऊपरी परत पर सफ़ेद पाउडर जैसी धूल एकत्रित हो जाती है, जिसके चलते भूमि कृषि योग्य नहीं रहती है। क्षारीयता के कारण बंजर हो चुकी भूमि में सुधार के लिए वर्ष 1970 के दशक में पंजाब और हरियाणा से शुरुआत की गयी थी। इसके बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान ने विकसित तकनीक के उपयोग से उत्तर प्रदेश में क्षारीय हो चुकी भूमि में सुधार के प्रयासों को आगे बढ़ाया। भारत में अभी तक लगभग 1.95 लाख हेक्टेयर क्षारीय भूमि को दोबारा उपजाऊ बनाया जा चुका है। इससे कुल राष्ट्रीय खाद्य उत्पादन में 1.6 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन की बढ़त हुई है। अभी भूमि सुधार केंद्रों को क्षारीय भूमि और लवणीय भूमि में सुधार की गति को तेज़ करना होगा।

स्रोत : तहलका, 15 अप्रैल 2024


 

Path Alias

/articles/marusthalikaran-aur-banjar-hone-se-bachani-hogi-krishi-bhoomi

Topic
Regions
×