ड्रिप सिंचाई प्रणाली एक प्रकार की सिंचाई प्रणाली है जहां पानी को छोटे ट्यूबों और उत्सर्जकों के माध्यम से सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है, जिससे पानी का सटीक और कुशल उपयोग सुनिश्चित होता है, बर्बादी कम होती है और पौधों के इष्टतम विकास को बढ़ावा मिलता है।Kesar Singh posted 2 weeks 3 days ago
देश का हदय प्रदेश कहा जाने वाला मध्यप्रदेश जल संकट से जूझ रहा है। प्रदेश में बुन्देलखंड क्षेत्र की पहचान अब सूखे के रूप में हो रही है। बुन्देलखंड का अहम हिस्सा सागर जिला पहाड़ी इलाके के रूप में विद्यमान है। सागर जिले में पानी का संकट बहुत तेजी से बढ़ रहा है। सागर के आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों की नदियां, कुएं और तालाब सूखते जा रहे हैं। जिससे जिले के कई गाँव में पानी की समस्या गंभीर रूप से मंडरा रही है। Kesar Singh posted 2 weeks 4 days ago
चर्चा है कि मानवीय गतिविधियों द्वारा फिलहाल तो पर्यावरण के लिए भयानक संकट पैदा हो गया है। प्रकृति बार-बार विभिन्न तरीके से चेतावनी दे रही है, फिर भी लोग अनसुना कर रहे हैं। करीब करीब दो दशक पहले तक देश के ज्यादातर राज्यों में अप्रैल माह में अधिकतम तापमान औसतन 32-33 डिग्री रहता था अब वह 40 के पार प्राय: रहता है। Kesar Singh posted 2 weeks 4 days ago
जंगलों में लगने वाली आग से उस क्षेत्र की जैव विविधता जिसमें असंख्य पेड़-पौधों और छोटे -बड़े वन्य जीवों की दुनिया बसी हुई रहती है उस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। तमाम वनस्पति व जीव-जन्तु, पक्षी, कीड़े-मकोड़े आग की विभीषिका में जलकर नष्ट हो जाते हैं। कई छोटी वनस्पतियां जो पानी को जमीन के अन्दर ले जाने में मददगार साबित होती हैं वह आग से जल जाती हैं। फलतः जमीन के पूरी तरह शुष्क हो जाने पर जहां भू-कटाव का खतरा बढ़ जाता है वहीं जमीन की जलधारण क्षमता घट जाने से आसपास के जलस्रोतों में पानी की मात्रा भी कम होने लगती है अथवा वे सूखने के कगार पर पहुंच जाते हैं।Kesar Singh posted 2 weeks 5 days ago
पर्यावरण का मुद्दा पिछले दशकों में काफी चर्चा में रहा है। ग्लोबल वार्मिंग की बात हो या पीने के पानी की समस्या या फिर गिरता भू-जल स्तर, सभी चिंता के विषय हैं। ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ती गर्मी ने प्रथम चरण के औसतन मतदान को भी प्रभावित किया है। भाजपा का 'पर्यावरण अनुकूल' बनाम कांग्रेस का 'पर्यावरण न्याय' है, पर दोनों केवल नारों जैसे ही लगते हैं। फिलहाल धरती के खतरे के प्रति लापरवाही ही दिखती है। The issue of environment has been much discussed in the last decades. Be it global warming or the problem of drinking water or falling ground water level, all are matters of concern. The increasing heat due to global warming has also affected the average voting in the first phase. There is BJP's 'Environment Friendly' versus Congress's 'Environment Justice', but both seem just like slogans. At present, there seems to be indifference towards the danger to the earth.Kesar Singh posted 2 weeks 5 days ago
जानिए क्या कारण है कि चंपावत जिले की एकमात्र झील श्यामलाताल आज अपने अस्तित्व को तलाश रही है और तकरीबन 7 मीटर गहरी झील में अब सिर्फ एक से डेढ़ मीटर पानी रह गया है। Kesar Singh posted 3 weeks 1 day ago
देश में जलसंकट का प्रचार ज्यादा है, काम कम हो रहा है, जलसंकट देश के 90 प्रमुख शहरों में भी गहरा गया है, या कुछ समय बाद विकराल रूप में नजर आएगा। लेख में इस संकट की चर्चा और समाधान | Kesar Singh posted 3 weeks 3 days ago
जल संकट वर्तमान में विश्वव्यापी और विश्व की बड़ी समस्याओं में से एक बन चुका है। धरती का धरातल का दो-तिहाई पानी होने के बावजूद हम गंभीर रूप से जल-संकट का सामना कर रहे हैं।
वर्तमान में फोन और इंटरनेट का प्रयोग इतना अधिक हो गया है जो न सिर्फ हमारी जीवन शैली, स्वास्थ्य, पारिवारिक रिश्ते, सामुदायिक सामंजस्यता और संस्कारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। बल्कि हमारे प्राकृतिक संसाधनों जैसे, जल, जमीन व पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।Kesar Singh posted 9 months 1 week ago
गंगा-यमुना जैसी नदियों के मायके के प्रदेश उत्तराखंड में नदियों के हालात पर चर्चा और कुछ अच्छे प्रयोगों के बारे में जानकारी साझा करने के लिए एक मीडिया मित्र मिलन का कार्यक्रम रखा गया।Kesar Singh posted 10 months 3 weeks ago
महाद्वीपीय परत में आर्सेनिक की औसत सांद्रता 1-5 मिलीग्राम / किग्रा होती है जो यह दोनों एंथ्रोपोजेनिक और भूजनिक स्रोतों से आती है। यद्यपि, आर्सेनिक प्रदूषण के एंथ्रोपोजेनिक स्रोतों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जो कि बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हाल ही के प्रकरण में यहाँ यह भी ध्यान दिया जाना चाहिये कि गंगा- मेघना ब्रह्मपुत्र (GMB) नदियों के मैदानी क्षेत्रों में भूजल का आर्सेनिक प्रदूषण भूजनिक प्रवृति का है
विभिन्न जल संसाधनों में से भूजल हमारे दिन-प्रतिदिन जीवन की क्रियाओं में अधिकतम योगदान देता है। विश्व के कुल 3% ताजा जल संसाधनों में से अधिकतर जल ध्रुवीय और पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फ के रूप में पाया जाता है, वैश्विक जल का केवल 1% भाग ही तरल अवस्था में मौजूद है। जबकि, कुल 98% ताजा भूजल तरल अवस्था में पाया जाता है, इसलिये, यह पृथ्वी का सबसे मूल्यवान ताजा जल संसाधन है। भूजल की गुणवत्ता मानव स्वास्थ्य और खाद्यान की मात्रा एवं गुणवत्ता के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मृदा, फसलों और आसपास के वातावरण को प्रभावित करती है।
भारत के कृषि पर निर्भर होने के कारण सिंचाई इसकी रीढ़ की हड्डी है। कृषि के उपयोग में आने वाली सामग्रियों (इनपुट) में बीज, उर्वरक, पादप संरक्षण, मशीनरी और ऋण के अतिरिक्त सिंचाई की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। सिंचाई सूखी भूमि को वर्षा जल के पूरक के तौर पर जल की आपूर्ति की एक विधि है, इसका मुख्य लक्ष्य कृआप्लावन और बारहमासी
नहरों तथा बहु-उद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के द्वारा की जाती है। Kesar Singh posted 1 year ago
पर्यावरण के क्षेत्र में गोल्डमैन एनवायरमेंट पुरस्कार नोबेल के समकक्ष का पुरस्कार है। भारत की कई महत्वपूर्ण शख्सियतों को यह सम्मान प्राप्त हुआ है। भारत से मेधा पाटेकर, पर्यावरण प्रख्यात अधिवक्ता वकील एमसी मेहता, चंपा देवी शुक्ला आदि कई लोग गोल्डमैन एनवायरमेंट पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं। इस पुरस्कार को ग्रीन नोबेल पुरस्कार के रूप में भी जाना जाता है। Kesar Singh posted 1 year ago
मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से सटे जरधोबा गांव एक साल पहले तक जल संकट से जुझ रहा था। गर्मी के दिनों में पानी को लेकर यहां मारपीट हो जाती थी। कुछ मामलों में ग्रामीणों ने एक-दूसरे के खिलाफ एफ.आई.आर. तक करा दी थी। ऐसे में पानी को लेकर गांव में तनाव बना रहता था। लेकिन पिछले साल जब हर घर नल कनेक्शन के लिए जल जीवन मिशन के तहत नल जल योजना पर काम शुरू किया गया, तब यह उम्मीद जगी कि भविष्य में पानी को लेकर गांव में लड़ाइयां नहीं होगी। आखिरकार यह योजना क्रियान्वित हो गई और अब हर घर में साफ पानी मिलने लगा है।Kesar Singh posted 1 year ago
पहले हमारे शहरों, खासकर हमारे गाँवों के गोचर व कचरे वाले स्थल, व जंगलों में इनकी संख्या बहुत हुआ करती थी, लेकिन अब यदाकदा ही हमें गिद्ध कहीं नजर आते हैं। गिद्ध पक्षी को रामायण में जटायु के रूप में रावण से लड़कर मरने के कारण हम उसे श्रद्धा से देखते हैं, जबकि आमतौर पर इसे घृणित और बदसूरत पक्षी के रूप में जानते हैं व मरे हुए जानवरों के माँस को खाने के कारण हम इन्हें कम पसन्द करते हैं। लेकिन इसके इस महत्वपूर्ण काम के लिए इसे हम पर्यावरण का रक्षक भी कहते हैंKesar Singh posted 1 year ago
सेलफोन, टेलीविजन कम्प्यूटर व लैपटॉप आदि ने संचार की दुनिया का परिदृश्य बदला, वहीं दूसरी ओर इससे उपजे कचरे ने पर्यावरण असंतुलन में भयानक योगदान दिया है। दरअसल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बढ़ते प्रयोग के साथ-साथ ई-कचरे के परिमाण में भी अभिवृद्धि हुई है। खराब अथवा प्रयोग में न आने वाले मोबाइल फोन, टीवी, कम्प्यूटर, प्रिन्टर, छायाकन मशीन, रेडियो, ट्रांजिस्टर आदि उपकरणों का ढेर विश्वव्यापी समस्या बन चुके हैं।Kesar Singh posted 1 year ago