Kesar Singh

चेतावनी देती केदारघाटी
केदारघाटी में हाल ही में आई आपदा ने एक बार फिर से लोगों के दिल में डर का माहौल भर दिया है। 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद से इस क्षेत्र में पुनर्निर्माण कार्य तेजी से हो रहे हैं पर बार-बार आ रही आपदा हमें क्या बता रही है Kesar Singh posted 10 months ago
केदारघाटी में बार-बार आपदा (Needpix.com)
असंतुलन की बारिश में डूबती पर्यावरण की नांव
आज वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन की बहसें जारी हैं। दुनिया के तमाम देश स्वीकार कर रहे हैं कि आपसी सहमति के बिना हम पृथ्वी को नहीं बचा पाएंगे। पढ़िए जलवायु परिवर्तन के पर्यावरण के विभिन्न तत्वों पर पड़ते प्रभाव एक टिप्पणी Kesar Singh posted 10 months ago
बाढ़ (courtesy - needpix.com)
मुल्लापेरियार बांध : केरल में एक और आपदा की आशंका
मुल्लापेरियार बांध केरल और तमिलनाडु के बीच लंबे समय से विवाद का मुद्दा बना हुआ है। हाल-फिलहाल आए  2018 और 2019 की बाढ़ के बाद केरल का कहना है कि बांध की संरचना पुरानी हो चुकी है और यह सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं करती। जबकि तमिलनाडु, जो इस बांध से पानी प्राप्त करता है, का मानना है कि बांध सुरक्षित है और इसे हटाने या बदलने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस विवाद के चलते दोनों राज्यों के बीच कानूनी लड़ाई भी चल रही है।  Kesar Singh posted 10 months ago
मुल्लापेरियार बांध (स्रोत: विकिपीडिया कॉमन्स, फोटो - जयेश)
फास्ट फैशन क्या है, पानी-पर्यावरण के संदर्भ में निहितार्थ
नैतिक रूप से तैयार नेचर-न्यूट्रल टिकाऊ वस्त्र हमारे फैशन के केन्द्र में होने चाहिए।

Kesar Singh posted 10 months ago
फैशन में पर्यावरण की अनदेखी (courtesy - needpix.com)
मीथेन उत्सर्जन कम करना सलाह नहीं चेतावनी
ग्रीनहाउस प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो तब होती है जब पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और जल वाष्प जैसी कुछ गैसें सूर्य से आने वाली गर्मी को रोक लेती हैं, जिससे ग्रह जीवन को बनाए रखने के लिए पर्याप्त गर्म रहता है। जीवाश्म ईंधन जलाने, वनों की कटाई और कृषि जैसी मानवीय गतिविधियों ने इन गैसों की सांद्रता को बढ़ा दिया है. जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि हुई है। Kesar Singh posted 10 months 1 week ago
2008 से 2017 की अवधि में मीथेन उत्सर्जन के मुख्य स्रोत (वैश्विक कार्बन परियोजना द्वारा अनुमानित) फोटो - विकिपीडिया
संदर्भ आपदा : प्रकृति की चेतावनियों को सुनें
केरल के वायनाड में कुदरत ने ऐसा कहर बरपाया, जिसकी शायद ही कभी ने कल्पना की हों। वायनाड में आए भूस्खलन में कई 400 से अधिक लोगों की जान चली गई। वायनाड में जिस तरफ नजर जा रही है। उस तरफ बस तबाही का खौफनाक मंजर दिख रहा है। इलाके के ज्यादातर घर, इमारतें, स्कूल अब मलबे के ढेर में तब्दील हो चुके हैं। भूस्खलन में कई घर उजड़ गए, यह प्रलय नहीं है, तो और क्या है? Kesar Singh posted 10 months 1 week ago
18 जून, 2013 को उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे बाढ़ से क्षतिग्रस्त सड़क (छवि: एएफपी फोटो/ भारतीय सेना; फ़्लिकर कॉमन्स)
धीरे-धीरे दिमाग में माइक्रोप्लास्टिक भर रहा है, इमरजेंसी लागू हो: वैज्ञानिक
मानें या न मानें एक क्रेडिट कार्ड जितना माइक्रोप्लास्टिक हर सप्ताह इंसान के शरीर में जा रहा है। विभिन्न अध्ययन से यह साबित हो रहा है कि माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण का खतरनाक दुष्चक्र जीवित लोगों पर भयानक असर डाल रहा है। फिलहाल के कई अध्ययन बताते हैं कि इंसानी दिमाग सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले अंगों में है।

Kesar Singh posted 10 months 1 week ago
माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण  (courtesy - needpix.com)
जलविज्ञान के दृष्टिकोण से मध्य प्रदेश का संक्षिप्त परिचय
यह आलेख जलविज्ञान के दृष्टिकोण से मध्य प्रदेश का संक्षिप्त परिचय कराता है। Kesar Singh posted 10 months 1 week ago
नर्मदा नदी (छवि स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स के माध्यम से जितेश उकानी)
पानी के लिए खून बहा रहे लोग : पैसिफिक इंस्टिट्यूट का दावा
पैसिफिक इंस्टिट्यूट की वार्षिक रिपोर्ट कहती है कि पूरी दुनिया में पानी के लिए हिंसक घटनाएं बढ़ रही हैं। पूरी दुनिया से 2023 में जल से संबंधित हिंसा के 347 मामले सामने आए हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत में 25 मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि 2022 में ऐसे सिर्फ 10 मामले थे। पानी के लिए हिंसा के बढ़ते मामलों पर रिपोर्ट के महत्वपूर्ण अंश Kesar Singh posted 10 months 1 week ago
कर्नाटक के होगेनकल में कावेरी नदी। (स्रोत: साभार - क्लेयर अर्नी और ओरिओल हेनरी के माध्यम से)
भारत में जल की उपलब्धता का गणित यानी वाटर बजटिंग
आइए एक छोटा सा गणित करें कि क्या धरती पर सबके लिए पानी है। पृथ्वी का लगभग 71% भाग जल से घिरा हुआ है किन्तु, इसका 97% जल खारा होने के कारण पीने योग्य नहीं है शेष बचे हुए 3% जल में से (जो कि पीने योग्य है), 2% हिमनद (ग्लेशियर) के रूप में है और इस प्रकार जलमंडल में उपलब्ध समस्त जल की केवल 1% से भी कम मात्रा ही पीने योग्य है जो कि सतही एवं भूजल के रूप में नदियों, झरनों, झीलों, तालाबों, कुओं आदि के रूप में उपलब्ध है। और यदि इस उपलब्ध जल को पृथ्वी में उपस्थित कुल आबादी (8 बिलियन) में समान रूप से बाँटा जाये तो जल की उपलब्धता 7,800 घनमीटर/व्यक्ति/वर्ष निर्धारित की जा सकती है जो कि एक जल समृद्ध श्रेणी का उदाहरण है। यानी धरती पर सबके लिए पानी है। Kesar Singh posted 10 months 1 week ago
भारत में जल की उपलब्धता कितनी है?
नोसोकॉमियल संक्रमण क्या हैं, और यह पानी-पर्यावरण और स्वास्थ्य पर क्या असर कर रहा है
नोसोकॉमियल संक्रमण यानी अस्पतालजनित संक्रमण विश्व में सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण चुनौती है। इस गुप्त खतरे से भरती होने से पहले अथवा उस समय नहीं, बल्कि भरती रहने और इलाज की प्रक्रिया के दौरान संक्रमित होता है। गंभीर रोगों के इलाज के लिए अस्पताल तथा अति गंभीर स्थिति में आई सी यू यानी गहन चिकित्सा कक्ष में भरती होना पड़ता है। इसी दौरान कभी-कभी रोगी नोसोकोमियल संक्रमणों की चपेट में आ जाते हैं। Kesar Singh posted 10 months 1 week ago
अस्पतालजनित संक्रमण
लखनऊ में खुलेगा प्राकृतिक कृषि विश्वविद्यालय
लखनऊ में “प्राकृतिक खेती के विज्ञान पर क्षेत्रीय परामर्श कार्यक्रम” हुआ। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री के “धरती मां को रसायनों से बचाने” के स्वप्न को पूरा करते हुए हम पूरी कोशिश करेंगे कि आने वाले समय में किसान रसायन मुक्त खेती करें। कार्यक्रम की पूरी खबर यहां पढ़ें Kesar Singh posted 10 months 1 week ago
वैकल्पिक कृषि पद्धति जिसे शून्य-बजट प्राकृतिक खेती कहा जाता है, को आंध्र प्रदेश सरकार के रायथु साधिकारा संस्था द्वारा आंध्र प्रदेश में लोकप्रिय बनाया जा रहा है (छवि: ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद)
नदी पुनर्जीवन अभियान भैंसही नदी होगी निर्मल एवं गतिमान
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में संकटग्रस्त एवं मृतप्राय नदियों को पुनजीर्वित और संरक्षित करने का अभियान चल रहा है। कुकरैल नदी की दशा सुधारने की पहल व्यापक चर्चा में है। इसी क्रम में पूर्वी उत्तर प्रदेश की भैंसही नदी को पुनः जीवन देने के लिए शासन से वृहद कार्ययोजना तैयार की जा रही है। इससे नदी को जहां प्राकृतिक स्वरूप मिलेगा, वहीं नदी भी अतिक्रमण मुक्त होगी।  Kesar Singh posted 10 months 2 weeks ago
भैंसही नदी (फोटो साभार  - जागरण)
अत्यधिक खतरनाक है नाइट्रोजन प्रदूषण
नाइट्रोजन प्रदूषण के बढ़ते खतरे को देखते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि इससे निजात कैसे मिले। जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों में मृत क्षेत्र (कम ऑक्सीजन स्तर), मिट्टी का क्षरण और अम्लीकरण, वायु प्रदूषण (नाइट्रोजन ऑक्साइड, कण पदार्थ), जलवायु परिवर्तन (नाइट्रस ऑक्साइड एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है) के आदि प्रभावों कम कैसे किया जा सकता है। डॉ. रामानुज पाठक की एक टिप्पणी Kesar Singh posted 10 months 2 weeks ago
प्रदूषित पेयजल, स्वास्थ्य के लिए गंभीर ख़तरा (छवि स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स)
नदी बाढ़ को हम समझना ही नहीं चाहते
हम न नदी को समझना चाहते हैं और ना ही बाढ़ को, नदी और बाढ़ के फायदे को तो भूल ही जाएं। बिहार सहित देश के अन्य भाग में आने वाली बाढ़ को एक सालाना आपदा के रूप में सत्ता और समाज दोनों ने स्वीकार कर लिया है और हम सब इसके आदी हो चुके हैं। Kesar Singh posted 10 months 2 weeks ago
बाढ़ (courtesy - needpix.com)
नौलों-धारों की भी होगी गिनती
पहाड़ के समाज में हमेशा से नौलों-धारों के उपयोग और संरक्षण में धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संवेदनशीलता इत्यादि का पूरा ध्यान रखा जाता रहा है। और हाँ, अधिकतर मामलों में ये धारे, पंदेरे, मगरे और नौले प्राकृतिक ही रहे हैं। हमें इनके संरक्षण की कोशिश करनी होगी। सरकार इनके गणना का एक बड़ा कार्यक्रम करने जा रही है। इस मसले पर पानी-पर्यावरण के प्रख्यात लेखक पंकज चतुर्वेदी की टिप्पणी Kesar Singh posted 10 months 2 weeks ago
नौले-धारे हिमालयी क्षेत्र में मुख्य जलस्रोत
रे दैया, नमक और चीनी के साथ खा रहे हैं रंगीन नैनोप्लास्टिक! पढ़ लीजिए यह स्टडी रिपोर्ट
आपको जानकर हैरानी होगी कि जो चीनी और नमक हम खाते हैं, उनमें छोटे-छोटे प्लास्टिक यानी माइक्रोप्लास्टिक होते हैं। ये बात टॉक्सिक्स लिंक नाम के एक थिंक टैंक की स्टडी में सामने आई है। जिसके मुताबिक हम धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा रोज प्लास्टिक खा रहे हैं। Kesar Singh posted 10 months 2 weeks ago
समुद्र तल में माइक्रोप्लास्टिक गुबार (फोटो साभार  - needpix.com)
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