Kesar Singh

आखिर क्यों और कैसे जल रहे हैं जंगल?
उत्तराखंड को देश के चंद हरियाली वाले राज्यों के रूप में जाना जाता है. प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इसका हर इलाका लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है. यही कारण है कि यहां के विभिन्न पर्यटक स्थलों पर वर्ष भर देश विदेश के पर्यटकों का तांता लगा रहता है. लेकिन अभी यही प्राकृतिक सुंदरता आग की भेंट चढ़ रही है जानिए क्या है कारण? Kesar Singh posted 8 months 4 weeks ago
चीड़ के जंगल में आग को रोकने का प्रयास करते वनकर्मी
धरती का बढ़ता तापमान, आत्मघाती साबित होगी संकट की अनदेखी
यूरोपीय संघ की कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (सी3एस) के अनुसार, 22 जुलाई को पृथ्वी ने कम से कम 84 वर्षों में अपना सबसे गर्म दिन अनुभव किया, जब वैश्विक औसत तापमान 17.15 डिग्री सेल्सियस के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया। यह एक दिन पहले 21 जुलाई को दर्ज किये गये 17.09 डिग्री सेल्सियस के पिछले रिकार्ड को पार कर गया। रोज ब रोज तापमान के नए रिकार्ड पर लेखक आशीष सिंह की एक टिप्पणी। Kesar Singh posted 8 months 4 weeks ago
बढ़ता तापमान (छवि: मैक्सपिक्सेल, सीसी0 पब्लिक डोमेन)
चुनाव, जलवायु परिवर्तन और युवा
चुनावों के सन्दर्भ में हमारे युवा जलवायु परिवर्तन को लेकर क्या सोचते हैं? क्या वे जलवायु परिवर्तन को जरूरी चुनावी मुद्दा मानते हैं? इस सर्वे से जलवायु शिक्षा के स्तर का भी पता चलता है। 59% युवाओं को उनके स्कूलों-कॉलेजों में दी जा रही शिक्षा से जलवायु परिवर्तन के कारण और परिणामों के बारे में पर्याप्त और सही जानकारी नहीं मिलती Kesar Singh posted 8 months 4 weeks ago
चुनाव और पर्यावरण (courtesy - needpix.com)
बेपानी व्यवस्था के सामने पानी मांगता न्याय
कहते हैं कि पानी की अपनी स्मृति होती है। वो अपने आसपास से स्मृतियों को समेट कर लंबे समय तक अपने पास रखता है। व्यक्ति या व्यवस्था भले ही अपनी सुविधा या हित के लिए भूल जाए मगर पानी याद रखता है कि यहां नदी थी‚ यहां नाला था‚ यहां से होकर वो बरसात में बहता था‚ और गर्मी और सर्दी वो लौट कर वापस कहां रु कता था। इसलिए पानी की स्मृति को अनदेखा कर उसकी राह में बाधा डालने की कवायद एक विलंबित विनाश का निमंत्रण देती है। Kesar Singh posted 8 months 4 weeks ago
बाढ़ (courtesy - needpix.com)
मानसून 2024 : लापरवाही और आपदा
कई अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से दुनिया भर के कई क्षेत्रों में बादल फटने की आवृति और तीव्रता में वृद्धि हुई है। हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने की सबसे अधिक घटनाएँ देखी जा रही हैं, क्योंकि हिमालयी क्षेत्र में 'दशकीय तापमान वृद्धि' 'वैश्विक तापमान वृद्धि' की दर से अधिक है। हाल ही में किए गए एक मॉडलिंग अध्ययन से भी पता चला है कि भारत के पूर्वोत्तर में हवा में 'ब्लैक-कार्बन' की बढ़ती मात्रा बारिश बढ़ा रही है। एक्सट्रीम रेनफाल अब न्यू नार्मल घटना हो गई है। लापरवाही और आपदा लेख में हम जानते हैं कि क्या करना होगा? Kesar Singh posted 8 months 4 weeks ago
वर्षा के पानी का यदि संचयन हो तो बाढ़ से मुक्ति मिले (स्रोत: लिज जिनराज, विकिमीडिया कॉमन्स)
संदर्भ आपदा : प्रबंधन हो दुरुस्त
इस बार केदारनाथ में आई आपदा ने 2013 की केदारनाथ आपदा की याद दिला दी है। केदारनाथ ही नहीं प्रदेश भर में आपदा से हो रहे नुकसान ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि किसी ने भी पिछली आपदाओं से जनता के हित में कुछ सीख नहीं ली है। पर्यटन के नाम पर पहाड़ों में भारी भीड़ को न्यौता देने की नीति को उसने और जोर- शोर से अपना लिया है। आपदाओं के मसले पर लेखक की टिप्पणी Kesar Singh posted 9 months ago
18 जून, 2013 को उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे बाढ़ से क्षतिग्रस्त सड़क (छवि: एएफपी फोटो/ भारतीय सेना; फ़्लिकर कॉमन्स)
प्राकृतिक कृषि :  किसान, उपभोक्ता एवं पर्यावरण हितैषी
प्राकृतिक कृषि पद्धति में एक देशी गाय से 30 एकड़ भूमि पर कृषि की जा सकती है और जैविक खेती में 30 गाय से मात्र एक एकड़ में कृषि हो पाएगी। प्राकृतिक कृषि पद्धति इतनी सरल है कि कोई भी किसान इसके माध्यम से खेती कर सकता है। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बचेगी, जल की खपत में 70 प्रतिशत से अधिक कमी आएगी। पढ़िए बृजेंद्र पाल सिंह की टिप्पणी  Kesar Singh posted 9 months ago
वैकल्पिक कृषि पद्धति जिसे शून्य-बजट प्राकृतिक खेती कहा जाता है, को आंध्र प्रदेश सरकार के रायथु साधिकारा संस्था द्वारा आंध्र प्रदेश में लोकप्रिय बनाया जा रहा है (छवि: ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद)
अधिक पानी पीने से मौत : वाटर इंटॉक्सिकेशन
ज्यादा पानी पीने से जब शरीर में नमक और इलेक्ट्रोलाइट्स पतले (Dilute) हो जाते हैं तो किडनी इसे शरीर से बाहर निकालने असमर्थ हो जाती है। इससे सूजन, पॉलीयूरिया, हाइपोनेट्रेमिया और पुअर मेटाबॉलिज्म की परेशानी हो सकती है। किडनी एक बार में केवल सीमित मात्रा में पानी को हैंडल कर सकती हैं। भारी मात्रा में तरल पदार्थ पीने से कई अंगों में सूजन हो जाते हैं। ज्यादा पानी पीने के खतरों के प्रति आगाह करता यह आलेख। Kesar Singh posted 9 months ago
पीने के पानी का संतुलन भी जरूरी
चुनौती बनता वायु प्रदूषण (भाग 2) : वायु प्रदूषण का प्रभाव
वायु प्रदूषण का सर्वाधिक दुःष्प्रभाव इंसान के स्वास्थ्य पर पड़ता है। हानिकारक गैसें और धूल आदि हमारे श्वसन तंत्र को बुरी तरह से प्रभावित करती है, जिससे श्वास संबंधी रोग बड़ी तेजी से फैलते हैं। पढ़िए वायु प्रदूषण के प्रभावों पर एक टिप्पणी Kesar Singh posted 9 months ago
पराली, वायु प्रदूषण की बड़ी वजह (साभार छवि: www.freepik.com)
चुनौती बनता वायु प्रदूषण (भाग 1)
वायु हमारे लिए कितनी आवश्यक है, इसका अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि एक मनुष्य बिना भोजन के पांच सप्ताह तक तथा बिना जल के पांच दिन तक जीवित रह सकता है, लेकिन बिना सांस लिए उसका पांच मिनट जीवित रहना भी मुश्किल है। इसलिए, जिस वायु में हम सांस लेते हैं, उसका शुद्ध व निरापद होना अनिवार्य है। यह आलेख वायु प्रदूषण पर शोधपरक टिप्पणी है। Kesar Singh posted 9 months ago
पराली जलाना (साभार छवि: विकिमीडिया कॉमन्स)
जल निकाय क्या हैं, जल निकायों की गणना (भाग 2)
जल शक्ति मंत्रालय ने पूरे भारत में जल निकायों की प्रथम जनगणना की है। यह एक निश्चित आंतराल पर बार-बार होते रहना चाहिए। जनगणना तालाबों और झीलों जैसे प्राकृतिक और मानव निर्मित जल निकायों सहित भारत के जल संसाधनों की एक सूची प्रदान करती है। जनगणना के तहत 24.24 लाख से अधिक जल निकायों की गणना की गई है। पढ़िए इस मुद्दे पर एक टिप्पणी Kesar Singh posted 9 months ago
भूकैलाश - कोलकाता में एक जल निकाय (छवि: मोहित रे)
जल निकाय क्या हैं, उनकी गणना क्या है (भाग 1)
जल निकाय से अभिप्राय उन संरचनाओं से है, जहाँ आवासीय या अन्य क्षेत्रों से हिमगलन, धाराओं, झरनों तथा वर्षा जल निकासी से जल एकत्र होता है। इनमें किसी धारा, नाले या नदी से परिवर्तित करके भंडारित किया गया जल भी शामिल है, परन्तु महासागरों, नदियों, झरनों, स्विमिंग पूलों, व्यक्तियों द्वारा बनाए गए ढके हुए जल के टैंक, कारखानों और अस्थायी जल निकायों को इस जनगणना से बाहर रखा गया है। जलस्रोतों के संरक्षण की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम है Kesar Singh posted 9 months ago
हर्मिसर झील, भुज
जिंदगी में जल का महत्व और उसके अवयव (भाग 2)
जलवायु परिस्थितियों में स्थानिक विविधताओं की वजह से अलग-अलग राज्यों में सूखे का खतरा बना रहता है तथा संभवतः लगभग हर वर्ष सूखा पड़ता ही है। पानी की कमी होने से अकाल की स्थिति पैदा हो जाती है। सूखे की वजह से कृषि में किसानों की आमदनी में नुकसान और लोगों को पानी की कमी से घरेलू कामों में काफी परेशानी होती है। जरूरी है कि इसके समस्या के सारे अवयव जानें Kesar Singh posted 9 months ago
नदी के विभिन्न अंग
जिंदगी में जल का महत्व और उसके अवयव (भाग 1)
पृथ्वी की सतह का लगभग 71% क्षेत्र पानी से बना है पानी में कई विशेषताएं हैं जैसे पानी एक बहुत अच्छा विलायक है- जो कई पदार्थों को घोलने की क्षमता रखता है। पानी की विशिष्ट ऊष्मा काफी अधिक होती है। पृथ्वी की जलवायु में एक बड़ी भूमिका निभाती है इस गुण के कारण पानी पृथ्वी के वातावरण में सूर्य द्वारा प्रदत्त गर्मी को अवशोषित करता है व पर्यावरण को नियंत्रित करता है। पानी के बहुआयामी महत्व को, जरूरी है कि
हम जानें
Kesar Singh posted 9 months 1 week ago
जिंदगी में जल का महत्व और उसके अवयव
ब्रह्मपुत्र महानद ‌का जलविज्ञानीय विश्लेषण (भाग 2) - ब्रह्मपुत्र बेसिन की जलवायु
राष्ट्रीय बाढ़ आयोग (RBA) द्वारा किये गए मूल्यांकन के अनुसार राज्य का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 31.05 लाख हेक्टेयर है, जबकि राज्य का कुल क्षेत्रफल 78.523 लाख हैक्टेयर है अर्थात असम में कुल भूमि क्षेत्र का 39.58% बाढ़ से प्रभावित है। यह देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का लगभग 9.40% है। यह दर्शाता है कि असम का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र देश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के चार गुणा से अधिक है। Kesar Singh posted 9 months 1 week ago
ब्रह्मपुत्र
जल क्षेत्र में यूनेस्को : वैश्विक स्तर पर यूनेस्को के जलविज्ञानीय कार्यक्रम (भाग 3)
(IHP) के तत्वावधान में जल संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के निस्तारण के लिए कुल 17 प्रमुख कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, जिसकी हम संक्षेप में चर्चा करते जा रहे हैं। पिछले भाग 2 में 11 कार्यक्रमें की चर्चा हम कर चके हैं। आगे के क्रयक्रमें को आप यहां पढ़ सकते हैं।  Kesar Singh posted 9 months 1 week ago
यूनेस्को मना रहा है 'वाटर फार पीस के रूप में'
जल क्षेत्र में यूनेस्को : वैश्विक स्तर पर यूनेस्को के जलविज्ञानीय कार्यक्रम (भाग 2)
वैश्विक स्तर पर यूनेस्को के अन्तः शासकीय जलविज्ञानीय कार्यक्रम के संगर्भ में हमें यह जानना है कि (IHP) के तत्वावधान में जल संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के निस्तारण के लिए कुल 17 प्रमुख कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, जिसकी हम संक्षेप में चर्चा करने जा रहे हैं: Kesar Singh posted 9 months 1 week ago
इस वर्ष की थीम है 'वाटर फार पीस'
जल क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के निराकरण में वैश्विक संगठनों विशेष रूप से यूनेस्को का योगदान (भाग 1)
यूनेस्को का उद्देश्य शांति एवं सुरक्षा के लिए योगदान करना है, जिसकी पूर्ति हेतु शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति के द्वारा राष्ट्रों के मध्य निकटता की भावना का निर्माण करना है। यूनेस्को ने प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञान के विकास पर बहुत अधिक ध्यान दिया है। यूनेस्को के माध्यम से वैज्ञानिक सहयोग की पृष्ठभूमि का उचित निर्माण हुआ है। जल संरक्षण के साथ-साथ यह संगठन मरुप्रदेशों को उर्वरक बनाने के सम्बन्ध में अनेक देशों में जो प्रयोग हो रहे हैं उसमें भी अपनी महती भूमिका निभा रहा है। Kesar Singh posted 9 months 1 week ago
युनेस्को का इस बार का थीम है 'वाटर फार पीस'
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