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हेला समाज के बारे में ऐसी लोकमान्यता है कि प्राचीन समय में किसी राजा ने अपने आदेश की अवहेलना पर एक बिरादरी को मै
वर्ष 2008 में सरकार ने कहा था कि वर्ष 2015 तक कुल 60 फीसदी भारतीयों की खुले में शौच की समस्या का निराकरण कर लिया
आधुनिक भारत में इंसान की गुलामी के अब दो ही नमूने मिलते हैं। रिक्शे पर बैठे आदमी को उसे चलाने वाला मेहनतकश आदमी ही ढोता है। इसके अलावा आदमी ही आदमी का मैला सिर पर ढोता है। इन दोनों मामलों में मैला ढोने की कुप्रथा कहीं ज्यादा शर्मनाक है। ज्यादा अफसोसजनक यह है कि देश के कानून, सरकार, आयोग, पुलिस या प्रशासन सभी के लिए इस कुप्रथा का खात्मा सदियों से चुनौती बना हुआ है।
केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को दी गई एक हालिया जानकारी के मुताबिक सदियों पुरानी मैला कुप्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए आगामी मानसून सत्र में एक विधेयक पेश करने की तैयारी हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक अकेले इसी इस अमानवीय कुप्रथा के शिकंजे में देश भर में आज भी पांच लाख से ज्यादा लोग फंसे हैं। जबकि लाखों लोग ऐसी दूसरी कुप्रथाओं का भी त्रासद दुख भोग रहे हैं। कुप्रथाओं पर लगाम लगाने के प्रयासों में पाबंदी से ज्यादा उन पीड़ितों के पुनर्वास की जरूरत होती है। लेकिन इस दिशा में हो रहे प्रयासों की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगता है कि उस जनहित याचिका के 2003 में दायर होने के 9 साल बाद इस विधेयक के लाने की मंशा उच्चतम न्यायालय को बताई गई है।जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है कि देश में फोन धारकों और टीवी देखने वालों की संख्या में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है