A collective impact effort, the first of its type in India that provides informal waste pickers a chance to live safe and dignified lives, with particular emphasis on gender and equity.
This study found that the sanitary quality of neighbourhood drains, in addition to toilets, affected sanitation and hygiene and incidences of ill-health in rural households.
Posted on 09 Oct, 2012 10:41 AM खुले में शौच तो हमें हर हाल में रोकना ही होगा। खुले में पड़ी टट्टी से उसके पोषक तत्व (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम) कड़ी धूप से नष्ट होते हैं। साथ ही टट्टी यदि पक्की सड़क या पक्की मिट्टी पर पड़ी है तो कम्पोस्ट यानी खाद भी जल्दी नहीं बन पाती और कई दिनों तक हवा, मिट्टी, पानी को प्रदूषित करती रहती है। मानव मल में मौजूद जीवाणु और विषाणु हवा, मक्खियों, पशुओं आदि तमाम वाहकों के माध्यम से फैलते रहते हैं और कई रोगों को जन्म देते हैं। सुबह-सुबह गांवों में अद्भुत नजारा होता है। रास्तों में महिलाओं की टोली सिर पर घूंघट डाले सड़कों पर टट्टी करती मिल जाएगी। पुरुषों की टोली का भी यही हाल होता है। टोली जहां-तहां सकुचाते, शर्माते और अपने भाई-भाभियों, काका-काकियों से अनजान बनते मलत्याग को डटी रहती है। हिंदुस्तान की बहुत सी भाषाओं में शौच जाने के लिए ‘जंगल जाना’, ‘बाहर जाना’, ‘दिशा मैदान जाना’ आदि कई उपयोगी शब्द हैं। झारखंड में खुले में ‘मलत्याग’ को अश्लील मानते हुए लोगों में एक ज्यादा प्रचलित शब्द है ‘पाखाना जाना’। पर जनसंख्या बहुलता वाले इस देश में न गांवों के अपने जंगल रहे और न मैदान ही। अब तो गांवों को जोड़ने वाली पगडंडियां, सड़कें, रेल की पटरियां, नदी-नालों के किनारे ही ‘दिशा मैदान’ हो गए हैं। परिणाम; गांव के गली-कूचे, घूरे-गोबरसांथ और कच्ची-पक्की सड़कें सबके सब शौच से अटी पड़ी हैं।
Posted on 08 Oct, 2012 06:01 PMकेंद्रीय ग्रामीण विकास, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री जयराम रमेश गांवों को स्वच्छ बनाने के अभियान में जोर-शोर से जुटे हैं। वे लगातार लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जब तक लोग खुले में शौच करते रहेंगे, देश कुपोषण और दूसरी बड़ी बीमारियों से मुक्त नहीं हो पायेगा। इस संदर्भ में 3 अक्टूबर को वर्धा से निर्मल भारत यात्रा का शुभारंभ किया गया है। पेश है अंजनी कुमार सिंह से उनकी बातचीत के मुख्य अंश
Posted on 08 Oct, 2012 05:34 PMगांधी जंयती के मौके पर वर्धा से केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश और अभिनेत्री विद्या बालन की मौजूदगी में निर्मल भारत यात्रा की शुरुआत हुई। इस यात्रा का उद्देश्य देश के गांवों को स्वच्छ रहने के लिए प्रेरित करना है। यात्रा 17 नवंबर को बिहार के बेतिया में पहुंच कर संपन्न होगी। इससे पहले भी सरकार की ओर से निर्मल भारत अभियान की शुरुआत की गयी है, जिसका उद्देश्य पूरे भारत को निर्मल बनाना है। इ
Posted on 08 Oct, 2012 05:30 PMसुलभ शौचालय के रूप में देश के शहरों और कस्बों को सार्वजनिक शौचालय का बेहतरीन विकल्प पेश करने वाले बिंदेश्वशर पाठक किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्हें इस जनकल्याणकारी योजना को व्यवसाय का रूप दे दिया है। पेश है ग्राणीण स्वच्छता के मुद्दे पर उनसे विशेष बातचीत
एक स्वच्छ शौचालय का मानव जीवन में कितना महत्व है? स्वच्छ भोजन जीवन के लिए जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी स्वच्छ शौच की व्यवस्था भी है। मल त्याग की अव्यवस्थित व्यवस्था कई तरह की बीमारियों को जन्म देती है। बीमारियों की वजह से न सिर्फ दैहिक नुकसान होता है, बल्कि आर्थिक हानि भी होती है। शौचालय की व्यवस्था होने पर सामाजिक, शारीरिक और आर्थिक तीनों ही रूप में सशक्त होते हैं। इसके साथ ही यह प्रदूषण मुक्ति में भी सहयोगी है। मानव मल खाद बन कर जहां खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में मददगार होता है, वहीं इससे बायोगैस का निर्माण भी होता है।
Posted on 28 Sep, 2012 02:33 PMकपूरथला, रेलगाड़ियों में जैव शौचालय बनाने के लिए रेलवे कपूरथला स्थित रेल कोच फैक्टरी में जीवाणु उत्पादन संयंत्र लगाने जा रहा है। इस संयत्र से उत्पादित जीवाणुओं का इस्तेमाल जैव शौचालयों में किया जाएगा। इस परियोजना से जुड़े रेलवे कोच फैक्ट्री के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘हम जैव शौचालय में इस्तेमाल होने वाले एनरोबिक बैक्टीरिया (हवा के अभाव में पनपने वाले बैक्टीरिया) के उत्पादन के लिए यहां संयंत्र लगा