भारत में जलाशयों का निर्माण लंबे समय तक जारी रहा। इस संदर्भ में फीरोज शाह तुगलक (1351-1388 ई.) का उल्लेख सार्वजनिक निर्माणों के लिए विशेषकर किया जा सकता है। सिंचाई की पांच नहरों, नदियों पर कई बांधों, जलाशयों और पुराने निर्माणों की मरम्मत के लिए उनको विशेष याद किया जाता है।
हिसार फीरोजा शहर जाने के बाद फीरोज शाह ने “पाया कि यहां पानी की भारी कमी है और उसने पानी की आपूर्ति करने का संकल्प लिया।” इसके लिए उसने यमुना और सतलुज से एक-एक सोते (जुइ) बनवाए। यमुना वाली जुइ को राजिवाह और सतलुज वाली को अलघखानी नाम दिया गया था। दोनों करनाल शहर से होकर 80 कोस (258 किमी.) लंबी थीं और शहर में एक सोते के रूप में पानी देते थे। शम्स-ए-सिराज अफीफ ने तारीख-ए-फीरोज शाही में लिखा है कि किस तरह पानी फतेहाबाद और हिसार फीरोजा में लाया गया और किस तरह इन जिलों के कई शहरों-गाँवों के 80-90 कोस क्षेत्र में खेती-बाड़ी शुरू हो सकी। इसके बदले में फीरोज शाह किराया इस्तिकमत-इ-अमलाक शर्ब के रूप में वसूलता था। शाह ने जल स्रोतों की निगरानी बरसात में उनमें टूट-फूट का जायजा लेते रहने के लिए कारकूनों की नियुक्ति की थी। दिल्ली में हौजखास की खुदाई अलाउद्दीन खिल्जी ने 1296-1316 ई. में सिरी के निवासियों के लिए पानी के इंतजाम के लिए कारवाई थी। हौज-ए-अलाई के प्राचीन नाम से जाने गए इस हौज से गाद की सफाई फीरोज शाह ने करवाई थी। शाह ने फतह-ए-फीरोज शाह में लिखा हैः
“कुछ नाकारा लोगों ने पानी का बहाव रोक कर अल्तमश के हौज-ए-शम्सी को पानी से महरूम कर दिया है। मैंने इन बदमाशों को सख्त सजा दी और पानी के बहाव को खोल दिया। हौज-ए-अलाई यानी अलाउद्दीन के तालाब में भी पानी नहीं था, उसे भरवाया। लोगों ने इसमें खेती शुरू कर दी थी और कुएं खोद दिए थे जिसका पानी बेचते थे। एक कर्न (पीढ़ी) के बाद मैंने इसे साफ करवाया ताकि इस बड़े तालाब में फिर से हर साल पानी भरा जा सके।”
उसने अपने शिकारगाहों मालचा महल, भूली भटियारी का महल और कुशक महल के आसपास जलाशय के लिए तटबंध बनवाए। शम्स-ए-सिराज में फीरोज शाह द्वारा बनवाई गई इमारतों के अलावा कई बंधों का भी जिक्र किया है, “फतह खान, मालजा (जिसमें उसने ताजा पानी, आबे जमजम डलवाया), महिपालपुर, शुक्र खान, सलौरा, वजीराबाद और दूसरे खासे मजबूत बंध” शामिल है। फिरोज शाह ने सूरजकुंड की भी मरम्मत करवाई। माना जाता है कि तोमर वंश के राजा सूरजपाल ने 10वीं शताब्दी में सूरजकुंड बनवाया था। सूरजकुंड के पास ही अनंगपुर बांध है। बताया जाता है कि इसके जलद्वार तोमर वंश के ही अनंगपाल ने बनवाए थे। यह बांध अभी भी उपयोग में आ रहा है।
हिसार फीरोजा शहर जाने के बाद फीरोज शाह ने “पाया कि यहां पानी की भारी कमी है और उसने पानी की आपूर्ति करने का संकल्प लिया।” इसके लिए उसने यमुना और सतलुज से एक-एक सोते (जुइ) बनवाए। यमुना वाली जुइ को राजिवाह और सतलुज वाली को अलघखानी नाम दिया गया था। दोनों करनाल शहर से होकर 80 कोस (258 किमी.) लंबी थीं और शहर में एक सोते के रूप में पानी देते थे। शम्स-ए-सिराज अफीफ ने तारीख-ए-फीरोज शाही में लिखा है कि किस तरह पानी फतेहाबाद और हिसार फीरोजा में लाया गया और किस तरह इन जिलों के कई शहरों-गाँवों के 80-90 कोस क्षेत्र में खेती-बाड़ी शुरू हो सकी। इसके बदले में फीरोज शाह किराया इस्तिकमत-इ-अमलाक शर्ब के रूप में वसूलता था। शाह ने जल स्रोतों की निगरानी बरसात में उनमें टूट-फूट का जायजा लेते रहने के लिए कारकूनों की नियुक्ति की थी। दिल्ली में हौजखास की खुदाई अलाउद्दीन खिल्जी ने 1296-1316 ई. में सिरी के निवासियों के लिए पानी के इंतजाम के लिए कारवाई थी। हौज-ए-अलाई के प्राचीन नाम से जाने गए इस हौज से गाद की सफाई फीरोज शाह ने करवाई थी। शाह ने फतह-ए-फीरोज शाह में लिखा हैः
“कुछ नाकारा लोगों ने पानी का बहाव रोक कर अल्तमश के हौज-ए-शम्सी को पानी से महरूम कर दिया है। मैंने इन बदमाशों को सख्त सजा दी और पानी के बहाव को खोल दिया। हौज-ए-अलाई यानी अलाउद्दीन के तालाब में भी पानी नहीं था, उसे भरवाया। लोगों ने इसमें खेती शुरू कर दी थी और कुएं खोद दिए थे जिसका पानी बेचते थे। एक कर्न (पीढ़ी) के बाद मैंने इसे साफ करवाया ताकि इस बड़े तालाब में फिर से हर साल पानी भरा जा सके।”
उसने अपने शिकारगाहों मालचा महल, भूली भटियारी का महल और कुशक महल के आसपास जलाशय के लिए तटबंध बनवाए। शम्स-ए-सिराज में फीरोज शाह द्वारा बनवाई गई इमारतों के अलावा कई बंधों का भी जिक्र किया है, “फतह खान, मालजा (जिसमें उसने ताजा पानी, आबे जमजम डलवाया), महिपालपुर, शुक्र खान, सलौरा, वजीराबाद और दूसरे खासे मजबूत बंध” शामिल है। फिरोज शाह ने सूरजकुंड की भी मरम्मत करवाई। माना जाता है कि तोमर वंश के राजा सूरजपाल ने 10वीं शताब्दी में सूरजकुंड बनवाया था। सूरजकुंड के पास ही अनंगपुर बांध है। बताया जाता है कि इसके जलद्वार तोमर वंश के ही अनंगपाल ने बनवाए थे। यह बांध अभी भी उपयोग में आ रहा है।
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