अफलातून

अफलातून
नाराज हैं कंपनियां : मॉड बार्लो
Posted on 31 Aug, 2010 09:54 AM

पानी के हक के लिए चले अभियान में सर्वाधिक चर्चित नाम है। आंदोलनकारी और लेखिका मॉड बार्लो का। कनाडा के सब से बड़े नागरिक संगठन काउंसिल ऑफ कैनेडियंस की अध्यक्ष हैं वे। यह संगठन अहिंसा और सिविल नाफरमानी में विश्वास करता है। दस विश्वविद्यालयों ने उन्हें सामाजिक सक्रियता के लिए मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया है। मुक्त व्यापार विरोधी होने के कारण कैथोलिक बिशप्स कांफ्रेंस से निकाले गए टोनी क्लार्क
‘नीला सोना’ पर अब सबका अधिकार
Posted on 30 Aug, 2010 02:25 PM
इक्कीसवीं सदी का ‘नीला सोना’ कहे जाने वाले पानी का करोबार एक खरब डॉलर तक पहुंच गया है। संयुक्त राष्ट्र ने साफ पानी और सफाई को बुनियादी अधिकार माना है। पानी को सार्वजनिक धरोहर मानने वालों और उसे अपनी जागीर समझने वाली कंपनियों के बीच तनातनी लगातार बढ़ रही है। इससे उपजे हालात का जायजा ले रहे हैं अफलातून। स्कूलों में पढ़ाया जाता है कि पृथ्वी का जल-चक्र एक बंद प्रणाली है। यानी वर्षा और वाष्पीकरण की प्रक्रिया के जरिए पानी पृथ्वी के वातावरण में जस का तस बना रहता है। पृथ्वी के निर्माण के समय इस ग्रह पर जितना पानी था, अभी भी वह बरकरार है। यह कल्पना दिलचस्प है कि जो बूंदें हम पर गिर रही हैं वे कभी डाइनॉसोर के खून के साथ बहती होंगी या हजारों बरस पहले के बच्चों के आंसुओं में शामिल रही होंगी।

पानी की कुल मात्रा बरकरार रहेगी, फिर भी मुमकिन है कि इंसान उसे भविष्य में अपने और अन्य प्राणियों के उपयोग के लायक न छोड़े। पेयजल संकट की कई वजहें हैं। पानी की खपत हर बीसवें साल में प्रतिव्यक्ति दोगुनी हो जा रही है। आबादी बढ़ने की रफ्तार से भी यह दोगुनी है। अमीर औद्योगिक देशों की तकनीकी और आधुनिक स्वच्छता प्रणाली ने जरूरत से कहीं ज्यादा पानी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया है। दूसरी ओर घर-गृहस्थी और नगरपालिकाओं के तहत दस फीसद पानी की खपत
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